हाड़ौती का पठार
राजस्थान को मुख्यतया चार भौगोलिक भागों में बाटांं गया है। इनमें चौथा भाग हाड़ौती का पठार या दक्षिण-पूर्वी पठार के नाम से जाना जाता है।
दक्षिण-पूर्वी पठार-
राजस्थान का दक्षिण-पूर्वी पठार हाड़ौती के नाम से विख्यात है। हाड़ौती का पठार राजस्थान के दक्षिणी पूर्व में 23‘51’ से 25‘27’ उत्तरी अक्षांश एवं 75’15’ से 77‘25’ पूर्वी देशान्तर के मध्य है। यह राजस्थान के 9 प्रतिशत भू-भाग को घेरे हुए है। यहां राज्य की 12 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इसमें कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड एवं चित्तौड़गढ़ जिले का पूर्वी भाग शामिल है। यहां लावा मिश्रित शैल व विन्ध्यन शैलों का सम्मिश्रण है। इस पठारी भाग की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 500 मीटर है। इस क्षेत्र में काली व लाल मिट्टी पाई जाती है। चम्बल, पार्वती एवं काली सिंध इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं।[1]
इस पठार को भौतिक दृष्टि से दो उप- प्रदेशों में विभाजित किया जाता है-
(अ) विन्ध्ययन कगार
यह कगार मुख्य रूप से बलुआ व चूना पत्थरों से बना है। इसकी औसत ऊँचाई 350 से 550 मीटर के बीच है। कगारों का मुख बनास व चम्बल नदी के बीच क्रमबद्ध दक्षिण-पूर्व एवं पूर्व दिशा की ओर है। उत्तर में चम्बल के सहारे-सहारे ये सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर क्षेत्र में फैले हुए हैं।
(ब) दक्कन लावा पठार
यह दक्षिणी पूर्वी राजस्थान का चौड़ा व ऊपर उठा पथरीला भू-भागें है। यह बलुआ पत्थर व चूना पत्थर चट्टानों से निर्मित है। इसका पूर्वी व दक्षिणी भाग लावा से ढका है। यहाँ पर उपजाऊ काली मिट्टी पाई जाती है। चम्बल व उसकी सहायक काली, सिंध व पार्वती नदियों ने कोटा में एक 'त्रिकोणीय जलोढ़ मैदान' की रचना की है।[2]