हाइफा का युद्ध
प्रथम विश्व युद्ध की जिसमे अंग्रेजो की ओर से जोधपुर रियासत की सेना ने भी हिस्सा लिया। इतिहास में इस लड़ाई को हाइफा की लड़ाई के नाम से जाना जाता है।हाइफा की लड़ाई 23 सितंबर 1918 को लड़ी गयी। इस लड़ाई में राजपूताने की सेना का नेतृत्व जोधपुर रियासत के सेनापति मेजर दलपत सिंह ने किया,उनका जन्म वर्तमान पाली जिले के देवली गाँव मे रावणा राजपूत परिवार में हुआ था। अंग्रेजो ने जोधपुर रियासत की सेना को हाइफा पर कब्जा करने के आदेश दिए गए। आदेश मिलते ही जोधपुर रियासत के सेनापति दलपत सिंह ने अपनी सेना को दुश्मन पर टूट पड़ने के लिए निर्देश दिया। जिसके बाद यह राजस्थानी रणबांकुरो की सेना दुश्मन को खत्म करने और हाइफा पर कब्जा करने के लिए आगे की ओर बढ़ी। लेकिन तभी अंग्रेजो को यह मालूम चला की दुश्मन के पास बंदूके और मशीन गन है जबकि जोधपुर रियासत की सेना घोड़ो पर तलवार और भालो से लड़ने वाली थी। इसी वजह से अंग्रेजो ने जोधपुर रियासत की सेना वापस लौटने के आदेश दिया। लेकिन जोधपुर रियासत के सेनापति दलपत सिंह ने कहा की हमारे यहाँ वापस लौटने का कोई रिवाज नहीं है। हम रणबाँकुरे जो रण भूमि में उतरने के बाद या तो जीत हासिल करते है या फिर वीरगति को प्राप्त हो जाते है। दूसरी ओर यह सेना को दुश्मन पर विजय प्राप्त करने के लिए बंदूके, तोपों और मशीन गन के सामने अपने छाती अड़ाकर अपनी परम्परागत युद्ध शैली से बड़ी बहादुरी के लड़ रही थी। इस लड़ाई में जोधपुर की सेना के करीब नो सौ सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध का परिणाम ने एक अमर इतिहास लिख डाला। जो आज तक पुरे विश्व में कही नहीं देखने को मिला था। क्युकी यह युद्ध दुनिया के मात्र ऐसा युद्ध था जो की तलवारो और बंदूकों के बीच हुआ। लेकिन अंतत : विजयश्री राठौड़ो मिली और उन्होंने हाइफा पर कब्जा कर लिया और चार सौ साल पुराने ओटोमैन साम्राज्य का अंत हो गया। रणबाँका राठौड़ो की इस बहादुरी के प्रभावित होकर भारत में ब्रिटिश सेना के कमांडर-इन-चीफ़ ने फ़्लैग-स्टाफ़ हाउस के नाम से अपने लिए एक रिहायसी भवन का निर्माण करवाया। भवन एक चौराहे से लगा हुआ बना है, इस चौराहे के मध्य में गोल चक्कर के बीचों बीच एक स्तंभ के किनारे तीन दिशाओं में मुंह किये हुए तीन सैनिकों की मूर्तियाँ लगी हुई हैं। जो की रणबाँका राठौड़ो की बहादुरी को यादगार बनाने के लिए बनाई गई।
==सन्दर्भ= हाइफा युद्ध में भारत की तरफ से तीन राज्यों की सेना गई जिसमे हैदराबाद,मैसूर और मारवाड़ रियासत, इस युद्ध को लड़ने का निर्णय मारवाड़ी सेना ने लिए जिसका नेतृत्व राठौड़ दलपत सिंह ने किया जिन्हे हाइफा हीरो के नाम से जाने जाते है। इस युद्ध के 100 वर्ष पूर्ण होने पर 2018 में जर्मन सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया।