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हाइपरथाइरॉयडिज़्म

Hyperthyroidism
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Triiodothyronine (T3, pictured) and thyroxine (T4) are both forms of thyroid hormone.
आईसीडी-१०E05.
आईसीडी-242.9
डिज़ीज़-डीबी6348
मेडलाइन प्लस000356
ईमेडिसिनmed/1109 
एम.ईएसएचD006980

हाइपरथाइरॉयडिज़्म या अतिगलग्रंथिता वह शब्द है जिसका प्रयोग गलग्रंथि (थाइरॉइड) के भीतर के अतिसक्रिय ऊतकों (टिसू) के लिए किया जाता है जिसकी वजह से गलग्रंथि हार्मोन (थायरोक्सिन या "T4" और/या ट्राईआयोडोथायरोनाइन या "T3") का आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने लगता है। इस तरह, अतिगलग्रंथिता, थायरोटोक्सीकोसिस[1], अर्थात् रक्त में बढे हुए गलग्रंथि हार्मोन की नैदानिक स्थिति, का एक कारण है। यह गौर करने लायक बात है कि अतिगलग्रंथिता और थायरोटोक्सीकोसिस समानार्थक नहीं हैं। उदाहरण के लिए, थायरोटोक्सीकोसिस बजाय इसके बहिर्जात थाइरॉइड हार्मोन के अंतर्ग्रहण या थाइरॉइड ग्रंथि की सूजन के कारण हो सकता है, जिसकी वजह से यह अपने थाइरॉइड हार्मोन के भण्डार से स्रावित होने लगता है[2]. थाइरॉइड हार्मोन कोशिकीय (सेलुलर) स्तर पर महत्त्वपूर्ण है, जो शरीर के लगभग हर प्रकार के ऊतक को प्रभावित करता है।

जब अवटु ग्रंथि (थायरायड) बहुत अधिक मात्रा में हार्मोन बनाने लगता है तो शरीर, उर्जा का उपयोग मात्रा से अधिक करने लगता है। इसे हाइपर थाइराडिज़्म या अवटु गर्न्थि की अतिसक्रियता कहते हैं। यह बीमारी किसी भी आयु वाले व्यक्तियों को हो सकती है तथापि महिला में पुरुष के अनुपात में यह बीमारी पांच से आठ गुणा अधिक है। अवटुग्रंथि (थायराइड) एक छोटी सी ग्रंथि होती है जो तितली के आकार की निचले गर्दन के बीच में होती है। इसका मूल काम होता है कि शरीर के उपापचय (मेटाबोलिज्म) (कोशिकाओं की दर जिससे वह जीवित रहने के लिए आवश्यक कार्य कर सकता हो) को नियंत्रित करे। उपापचय (मेटाबोलिज़्म) को नियंत्रित करने के लिए अवटुग्रंथि (थायराइड) हार्मोन बनाता है जो शरीर के कोशिकाओं को यह बताता है कि कितनी उर्जा का उपयोग किया जाना है। यदि अवटुग्रंथि (थायराइड) सही तरीके से काम करे तो संतोषजनक दर पर शरीर के उपापचय (मेटाबोलिज़म) के कार्य के लिए आवश्यक हार्मोन की सही मात्रा बनी रहेगी। जैसे-जैसे हार्मोन का उपयोग होता रहता है, अवटुग्रंथि (थायराइड) उसकी प्रतिस्थापना करता रहता है। अवटुग्रंथि, रक्त की धारा में हार्मोन की मात्रा को पिट्यूटरी ग्रंथि को संचालित करके नियंत्रित करता है। जब मस्तिष्क के नीचे खोपड़ी के बीच में स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि को यह पता चलता है कि अवटुग्रंथि हार्मोन की कमी हुई है या उसकी मात्रा अधिक है तो वह अपने हार्मोन (टीएसएच) को समायोजित करता है और अवटुग्रंथि को बताता है कि क्या करना है।

थाइरॉइड हार्मोन शरीर में सभी प्रक्रियाओं की गति के एक नियंत्रक के रूप में काम करता है। इस गति को चयापचय कहा जाता है। यदि बहुत ज्यादा थाइरॉइड हार्मोन हो, तो शरीर के हर कार्य में तेजी आने लगती है। इसलिए आश्चर्य की बात नहीं है कि अतिगलग्रंथिता के कुछ लक्षणों में शामिल घबराहट, चिड़चिड़ापन, पसीना में वृद्धि, दिल का जोरों से धड़कना, हाथ का कांपना, चिंता, सोने में तकलीफ होना, त्वचा का पतला होना, नाजुक बाल, खासकर ऊपरी बाहों और जांघों की मांसपेशियों में कमजोरी आना, शामिल हैं। आंत की गड़बड़ी बहुत लगातार होती रह सकती है, लेकिन दस्त या डायरिया असामान्य है। काफी भूख के बावजूद कभी-कभी बहुत अधिक वजन में कमी आ सकती है, उल्टी हो सकती है और, महिलाओं में, मासिक स्राव हल्का हो सकता है और मासिक स्राव अक्सर कम हो सकते हैं।[3] थाइरॉइड हार्मोन कोशिकाओं के सामान्य कार्य के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसके अलावा, यह चयापचय को अतिउत्तेजित और संवेदी तंत्रिका प्रणाली के प्रभाव को तीव्र करता है, इससे विभिन्न शारीरिक प्रणाली "तेज" हो जाती है और एपिनेफ्रीन (एड्रेनालाईन) के ओवरडोज के लक्षण दिखने लगते हैं। इनमें दिल की तेज धड़कन और धकधकी के लक्षण, हाथ के कम्पन जैसे तंत्रिका तंत्र कम्पन और व्यग्रता के लक्षण, पाचन तंत्र की अतिसक्रियता (हाइपरमोटिलिटी) (दस्त), वजन में अधिक कमी और रक्त परीक्षण द्वारा वसा (कोलेस्ट्रॉल) स्तर में असामान्य कमी दिखाया जाना शामिल हैं।

अतिगलग्रंथिता आमतौर पर धीरे-धीरे शुरू होती है। पहले-पहल, तनाव के कारण साधारण घबराहट समझकर लक्षणों को समझने की भूल की जा सकती है। अगर कोई व्यक्ति डाइटिंग के जरिये वजन घटाने की कोशिश कर रहा है, तो कोई व्यक्ति अतिगलग्रंथिता से वजन घटने से प्रसन्न हो सकता है, जिसमे बड़ी तेजी से वजन में कमी आती है, जिससे अन्य समस्याएं पैदा होती हैं।

ग्रेव्स रोग में, जो अतिगलग्रंथिता का सबसे आम रूप या कारण है, ऊपरी पलक के ऊंचा हो जाने से आंखें बड़ी लग सकती हैं। कभी-कभी, एक या दोनों आंखें बाहर उभर आती हैं। थाइरॉइड ग्रंथि (एक गलगण्ड) के बढ़ जाने से कुछ रोगियों के सामने की गर्दन में सूजन आ जाता है। अतिगलग्रंथिता के कारण, विशेष रूप से ग्रेव्स' रोग, परिवार में हो सकता है; परिवार के सदस्य की जांच से अन्य सदस्यों में भी थाइरॉइड की समस्याएं सामने आ सकती हैं।[3]

दूसरी ओर, कार्यशील थाइरॉइड ऊतकों में कमी के परिणामस्वरूप थाइरॉइड हार्मोन में लक्षणात्मक कमी आती है, जिसे हाइपोथायरायडिज्म (अवटु-अल्पक्रियता) कहा जाता है। अतिगलग्रंथिता अक्सर ही अंततः अवटु-अल्पक्रियता में बदल जाती है।

संकेत व लक्षण

बड़े नैदानिक लक्षणों में वजन घटना (प्रायः भूख में वृद्धि के साथ), चिंता, गर्मी के प्रति असहनशीलता, बाल का झाड़ना, मांसपेशियों में दर्द, कमजोरी, थकान, अतिसक्रियता, चिड़चिड़ापन, अल्पशर्करारक्तता, उदासीनता, बहुमूत्रता, अतिपिपासा, प्रलाप, कम्पन, प्रीटिबियल मिक्सीडीमा और पसीना शामिल हैं। इसके अलावा, रोगियों में और भी विभिन्न प्रकार के लक्षण दिख सकते हैं, जैसे कि धकधकी और अतालता (अराइथमियास) (विशेष रूप से अलिन्दी तंतुविकसन), श्वास कष्ट (डिस्प्निया), कामेच्छा में कमी, मिचली, उल्टी और दस्त.[4] दीर्घकालिक अनुपचारित अतिगलग्रंथिता से अस्थि-सुषिरता (ऑस्टियोपोरोसिस) हो सकती है। ये शास्त्रीय लक्षण बुजुर्गों में अक्सर मौजूद नहीं भी हो सकते.

स्नायविक प्रत्यक्षीकरण में कम्पन, नर्तनरोग (कोरिया), पेशीविकृति और कुछ अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में (खासकर एशियाई वंशजों में) आवधिक पक्षाघात को शामिल किया जा सकता है। थाइरॉइड रोग और सहज पेशी दुर्बलता (मायास्थेनिया ग्रेविस) के बीच एक संबंध पाया गया है। इस हालत में, थाइरॉइड रोग स्वभाव से स्वरोगक्षम (ऑटोइम्यून) होता है और लगभग 5% सहज पेशी दुर्बलता के रोगियों में अतिगलग्रंथिता भी पायी जाती है। थाइरॉइड के इलाज के बाद सहज पेशी दुर्बलता में बहुत ही कम मामलों में सुधार होता है और इन दोनों के बीच के संबंध को ठीक से नहीं समझा जा सका है।[] कुछ बहुत ही दुर्लभ स्नायविक प्रत्यक्षीकरण जो कि संदिग्ध रूप से[किसके द्वारा?] थायरोटोक्सीकोसिस के साथ जुड़े हैं वे हैं स्यूडोट्यूमर सेरिब्री या प्रमस्तिष्क, पेशीशोषी पार्श्व काठिन्य (एमायोट्रोफिक लैटरल स्क्लेरोसिस) और गुलियन-बारे-जैसा (Guillain-Barré-like) सिंड्रोम.[]

किसी भी प्रकार की अतिगलग्रंथिता में मौजूद रह सकने वाली लघु दृष्टि (आंख) संबंधी लक्षण हैं पलक प्रत्याहार (आईलिड रिट्रैक्शन) ("टकटकी"), अतिरिक्त नेत्र मांसपेशियों की कमजोरी और पपनी का मंद पड़ना.[] अतिगलग्रंथि (हाइपरथाइरॉइड) टकटकी (डेलरिम्पल लक्षण) में पलकें सामान्य से अधिक ऊपर की ओर प्रत्यादिष्ट होती हैं (श्रेष्ठतर स्‍वच्‍छमण्‍डल एवं श्‍वेतपटल किनारा (सुपीरियर कॉर्नियोस्क्लेरल लिम्बस) सामान्य स्थिति होती है, जहां आँख की पुतली की ऊपरी सीमा पर आँख का "सफ़ेद" शुरू होता है). अतिरिक्त-दृष्टि संबंधी कमजोरियां दुहरी दृष्टि के साथ मौजूद हो सकती हैं। मंद-पलक (वोन ग्रेफ के लक्षण) में, जब रोगी अपनी आँख से नीचे की ओर किसी वस्तु का पीछा करता है, तब नीचे की ओर घूमती या झुकती पुतलियों का अनुसरण करने में पलकें विफल रहती हैं और ऊपरी ओर के प्रदर्शन में भी उसी प्रकार के होना को पलक प्रतिगमन का होना कहते हैं, अस्थायी रूप से. अतिगलग्रंथिता के उपचार के साथ ये लक्षण या संकेत गायब हो जाते हैं।

दृष्टि संबंधी इन किसी भी लक्षण या संकेतों को एक्सोफथाल्मोस (नेत्रगोलक का उभार) के साथ भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए, जो विशेष रूप से और विलक्षण ढंग से ग्रेव्स रोग के कारण अतिगलग्रंथिता में होता है (ध्यान दें कि सभी एक्सोफथाल्मोस ग्रेव्स रोग के कारण नहीं होते, लेकिन जब अतिगलग्रंथिता के साथ मौजूद हो तब यह ग्रेव्स रोग का नैदानिक है). आंखों का सामने की ओर उभार या बहिःक्षेपण पूर्व-नेत्रकक्षीय (नेत्र कोटर) वसा में इम्यून मध्यस्थता सूजन की वजह से होता है। एक्सोफथाल्मोस जब मौजूद हो, तब अतिगलग्रंथि मंद-पलक और टकटकी को तीव्र कर सकता है।[5]

थाइरोटॉक्सिक संकट (या थाइरॉइड तूफान) दुर्लभ है लेकिन अतिगलग्रंथिता की एक गंभीर समस्या है, जो किसी थाइरोटॉक्सिक रोगी के बहुत बीमार होने या शारीरिक रूप से अत्यधिक थका होने से हो सकती है। इसके लक्षण में शामिल हैं: शरीर के तापमान में 40 डिग्री सेल्सियस (104 डिग्री फेरनहाइट) से अधिक की वृद्धि, द्रुतनाड़ी, अतालता, उल्टी, दस्त, निर्जलीकरण, कोमा और मृत्यु.[]थाइरॉइड तूफान (स्टोर्म) का आपातकालीन उपचार और अस्पताल में भर्ती होना जरुरी है। परिसंचारी थाइरॉइड हार्मोन के स्तर को कम करना और उनके निर्माण में कमी लाना मुख्य इलाज है। प्रोपिलथियोयूरासिल और मेथिमज़ोल ऐसे दो एजेंट हैं जो थाइरॉइड हार्मोन संश्लेषण में कमी लाते हैं और आमतौर पर इनकी उच्च खुराक दी जाती है। थाइरॉइड ग्रंथि से थाइरॉइड हार्मोन के स्राव को रोकने के लिए सोडियम आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और/या लुगोल का घोल दिया जा सकता है। प्रोप्रानोलोल (इंडेराल, इंडेराल एलए, इन्नोप्रान एक्सएल) जैसे बीटा ब्लॉकर्स हृदय की दर को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं और रक्त संचार में सहायता करने के लिए अंतःशिरा स्टेरॉयड का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस सदी के प्रारम्भ में, थाइरॉइड तूफान से मृत्यु दर 100% तक पहुँच चुकी थी। हालांकि, अब, ऊपर वर्णित चिकित्सा के आक्रामक उपयोग से, थाइरॉइड तूफान से मृत्यु दर 20% से कम हो गयी है।[6]

हाइपरथायरोडिज़्म के निम्नलिखित लक्षण है:

  • चिड़-चिड़ापन/अधैर्यता
  • मांस-पेशियों में कमजोरी/कंपकपीं
  • मासिक-धर्म अक्सर न होना या बहुत कम होना
  • वजन घटना
  • नींद ठीक से न आना
  • अवटुग्रंथि का बढ़ जाना
  • आंख की समस्या या आंख में जलन
  • गर्मी के प्रति संवेदनशीलता

यदि अवटुग्रंथि की बीमारी जल्दी पकड़ में आ जाती है तो लक्षण दिखाई देने से पहले उपचार से यह ठीक हो सकता है। अवटुग्रंथि जीवन भर रहता है। ध्यानपूर्वक इसके प्रबंधन से अवटुग्रंथि (थाइराड) से पीड़ित व्यक्ति अपना जीवन स्वस्थ और सामान्य रूप से जी सकते हैं।

कारण

अतिगलग्रंथिता के कई कारण होते हैं। अधिकांशतः, सम्पूर्ण ग्रंथि थाइरॉइड हार्मोन का अति-उत्पादन करने लगती है। इसे ग्रेव्स रोग कहा जाता है। आम तौर पर कम मामलों में, अतिरिक्त हार्मोन स्राव के लिए एक अकेली ग्रंथिका जिम्मेदार होती है, जिसे "गर्म" ग्रंथिका कहा जाता है। थाइरॉडिटिस (थाइरॉइड की सूजन) भी अतिगलग्रंथिता पैदा कर सकती है।[7] अनेक नैदानिक स्थितियों में कार्यशील थाइरॉइड ऊतक द्वारा अतिरिक्त थाइरॉइड हार्मोन का उत्पादन किया जाने लगता है।

मनुष्यों में इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  • ग्रेव्स रोग एक स्व-प्रतिरक्षी (ऑटोइम्यून) रोग है (आमतौर पर, विश्व स्तर पर 50-80% के साथ बहुत ही आम रोगोत्‍पत्‍ति कारक या हेतु विज्ञान है, हालांकि यह स्थान के साथ पर्याप्त रूप से भिन्न होता है - मसलन, स्विट्जरलैंड में 47% (होर्स्ट और अन्य, 1987) से लेकर अमेरिका में 90% (हम्बर्गर और अन्य 1981). समझा जाता है कि आहार में आयोडीन की भिन्नता के कारण ऐसा होता है।[8]
  • विषाक्त थाइरॉइड ग्रंथि-अर्बुद (स्विट्जरलैंड में सबसे अधिक सामान्य हेतु विज्ञान, 53%, माना जाता है कि इस देश में आयोडीन के आहार स्तर में एक असामान्य कमी से ऐसा होता है)[8]
  • विषाक्त बहुग्रंथिका गण्डमाला

अनेक अन्य कारणों से थाइरॉइड हार्मोन का उच्च रक्त स्तर (बहुत सटीक शब्द अतिथाइरॉक्सिनरक्तता) हो सकता है:

  • थाइरॉइड की सूजन को थाइरॉडिटिस कहा जाता है। अनेक प्रकार के थाइरॉडिटिस होते हैं, जिनमें शामिल हैं हाशिमोटो का थाइरॉडिटिस (इम्यून मध्यस्थता) और अर्द्धजीर्ण थाइरॉडिटिस (डीक्वेर्वैन का). आरम्भ में ये अतिरिक्त थाइरॉइड हार्मोन के स्राव से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन आमतौर पर ग्रंथि दुष्क्रिया की ओर बढ़ते हैं और इस प्रकार हार्मोन की कमी तथा अवटु-अल्पक्रियता अर्थात हाइपोथायरायडिज्म की ओर.
  • अतिरिक्त थाइरॉइड हार्मोन की गोलियों की ओरल खपत संभव है, क्योंकि भूमि पर पड़े दूषित गोमांस के साथ थाइरॉइड ऊतकों के उपभोग की घटना बहुत कम हुआ करती है और इसी तरह थाइरॉइड हार्मोन भी (जिसे "हैमबर्गर अतिगलग्रंथिता" कहा जाता है).
  • ऐमियोडैरोन, एक अतालता-विरोधी दवा है जो थाईरोक्सिन के समान है और थाइरॉइड की या तो कम- या अतिक्रियाशीलता का कारण हो सकती है।
  • जन्म देने वाले वर्ष के दौरान लगभग 7% महिलाओं में होने वाला पोस्टपार्टम थाइरॉडिटिस (PPT) (जन्म देने के तुरंत होने वाली अवटुग्रंथिता या थाइरॉडिटिस). आमतौर पर PPT कई चरणों में हुआ करती है, जिनमे पहली है अतिगलग्रंथिता. अतिगलग्रंथिता की यह अवस्था आमतौर पर इलाज की आवश्यकता के बिना ही कुछ सप्ताह या महीनों में ही दुरुस्त हो जाया करती है।

रोग की पहचान

रक्त में श्‍लैष्मिक ग्रंथि (जो कि बदले में अधःश्चेतक के टीएसएच स्रावित हार्मोन द्वारा विनियमित होती है) द्वारा उत्पादित थाइरॉइड-उत्तेजन हार्मोन (थाइरॉइड-स्टिमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच (TSH))) के स्तर को मापना विशिष्ट रूप से संदिग्ध अतिगलग्रंथिता का प्रारंभिक परीक्षण है। टीएसएच का निम्न स्तर पर विशिष्ट रूप से इंगित करता है कि श्‍लैष्मिक ग्रंथि को मस्तिष्क द्वारा थाइरॉइड ग्रंथि के उत्तेजन में कटौती करने के लिए रुकावट डाली गयी है या "निर्देशित" किया गया है, जिससे रक्त में T4 और/या T3 के स्तरों में वृद्धि होने लगती है। कभी-कभार ही, एक निम्न टीएसएच श्‍लैष्मिक की प्राथमिक विफलता, या अन्य बीमारी (यूथाइरॉइड सिक सिंड्रोम) के कारण श्‍लैष्मिक के अस्थायी अवरोधन को इंगित करता है और इसलिए T4 और T3 की जांच तब भी नैदानिक रूप से उपयोगी है।

ग्रेव्स रोग में प्रति-टीएसएच-अभिग्राहक रोग-प्रतिकारक या हाशीमोटो के थाइरॉडिटिस (अतिगलग्रन्थिता की एक आम वजह) में प्रति-थाइरॉइड-पैरोक्साइडेज़ जैसे विशिष्ट रोग-प्रतिकारकों को मापने से भी रोग निदान में योगदान हो सकता है।

रक्त परीक्षणों से अतिगलग्रंथिता के निदान की पुष्टि होती है, जो थाइरॉइड उत्तेजन हार्मोन (टीएसएच) स्तर में कमी और T4 तथा T3 स्तरों में वृद्धि दर्शाता है। टीएसएच मस्तिष्क में श्‍लैष्मिक ग्रंथि द्वारा बनाया गया एक हार्मोन है, जो थाइरॉइड ग्रंथि को बताता है कि कितना हार्मोन बनाना है। जब थाइरॉइड हार्मोन बहुत अधिक होता है, तब टीएसएच कम हो जाता है। रेडियोधर्मी आयोडीन उद्ग्रहण परीक्षण और थाइरॉइड स्कैन दोनों अतिगलग्रंथिता के कारण का चरित्र-चित्रण करते हैं या रेडियोलॉजिस्ट और डॉक्टरों को अतिगलग्रंथिता के कारण के निर्धारण में सक्षम बनाते हैं। थाइरॉइड ग्रंथि द्वारा अवशोषित आयोडीन की मात्रा को मापने के लिए उद्ग्रहण परीक्षण के दौरान खाली पेट रेडियोधर्मी आयोडीन इंजेक्शन का उपयोग किया जाता है या मुंह के द्वारा शरीर में डाला जाता है। अतिगलग्रंथिता से ग्रस्त व्यक्ति बहुत ज्यादा आयोडीन आत्मसात कर लेते हैं। उद्ग्रहण परीक्षण के सिलसिले में विशिष्ट रूप से संचालित थाइरॉइड स्कैन छवियां प्रस्तुत करता है, जिससे ग्रंथि की अति-क्रियाशीलता की दृश्य जांच हो पाती है।

अतिगलग्रंथिता और थाइरॉडिटिस से आयी इस बीमारी के चरित्र चित्रण के लिए (कारणों के बीच भेद करने के लिए) थाइरॉइड सिन्टीग्राफी एक उपयोगी परीक्षण है। यह परीक्षण प्रणाली में विशिष्ट रूप से एक दूसरे से जुड़े दो परीक्षण शामिल हैं: एक आयोडीन उद्ग्रहण परीक्षण और एक गामा कैमरे के साथ एक स्कैन (छवियां बनाना). उद्ग्रहण परीक्षण में रेडियोधर्मी आयोडीन की एक खुराक (रेडियोआयोडीन), विशिष्ट रूप से आयोडीन-123 या 123I, को प्रभाव में लाना शामिल है, जो थाइरॉइड रोग के नैदानिक अध्ययन के लिए आयोडीन का सबसे उपयुक्त समस्थानिक है। थाइरॉइड ऊतक और थाइरॉइड कैंसर अपरूपान्तरण की छवियां बनाने के लिए I-123 लगभग आयोडीन का आदर्श समस्थानिक है।[9]

आमतौर पर, सोडियम आयोडाइड (NaI) युक्त एक गोली मुंह से निगल ली जाती है, जिसमें आयोडीन-123 की छोटी मात्रा होती है, जो संभवतः नमक के एक दाने से भी कम होती है। आम तौर पर गोली निगलने से पहले दो घंटे और उसके बाद एक घंटे तक उपवास में रहना आवश्यक है। आम तौर पर उनके द्वारा रेडियोआयोडीन की यह कम खुराक सहनीय होती है जिनमें अन्य रूप से आयोडीन से एलर्जी है (जैसे कि वे लोग जो CT स्कैन, शिराभ्यंतर पाइलोग्राम (IVP) और इसी तरह के छवि बनाने वाली नैदानिक प्रणालियों में इस्तेमाल होने वाले आयोडीन की बड़ी खुराकों से युक्त प्रतिकूल माध्यम को सहन नहीं कर सकते हैं). थाइरॉइड ग्रंथि में अवशोषित नहीं हो सकने वाले अतिरिक्त रेडियोआयोडीन को शरीर मूत्र द्वारा बाहर निकाल देता है। कुछ रोगी नैदानिक रेडियोआयोडीन से हल्की एलर्जिक प्रतिक्रया का अनुभव कर सकते हैं और उन्हें हिस्टामिनरोधी दिया जा सकता है। रोगी आमतौर पर 24 घंटे बाद रेडियोआयोडीन "उद्ग्रहण" का स्तर वापस प्राप्त कर लेता है (थाइरॉइड ग्रंथि द्वारा अवशोषित), इसे गले में बंधी एक धातु शलाका से जुड़े उपकरण से मापा जाता है, जो थाइरॉइड से रेडियोधर्मिता उत्सर्जन को मापता है। इस परीक्षण में 4 मिनट लगते हैं, तब तक मशीन सॉफ्टवेयर के द्वारा उद्ग्रहण % संचित (परिकलित) होता है। विशिष्ट रूप से, एक स्कैन भी किया जाता है, जहां गामा कैमरा से विषम थाइरॉइड ग्रंथि की छवियां (विशिष्ट रूप से मध्य, बाएं और दाहिने कोण से) ली जाती हैं; रेडियोलोजिस्ट उसका अध्ययन करता है और छवियों की जांच करने के बाद उद्ग्रहण % का उल्लेख करते हुए एक रिपोर्ट तैयार करता है और अपनी टिप्पणी देता है। अतिगलग्रंथि (हाइपरथाइरॉइड) के रोगी विशिष्टतया सामान्य से उंचे स्तर का रेडियोआयोडीन "ग्रहण करते" हैं। RAI उद्ग्रहण का सामान्य सीमा 10-30% से हैं।

टीएसएच स्तरों के परीक्षण के अलावा, अनेक डॉक्टर अधिक विस्तृत परिणामों के लिए T3, फ्री T3, T4 और/या फ्री T4 के भी परीक्षण करते हैं। इन हार्मोनों के लिए विशिष्ट वयस्क सीमाएं हैं: टीएसएच (यूनिट): 0.45 - 4.50 uIU / एमएल, T4 फ्री/प्रत्यक्ष (नानोग्राम्स): 0.82 - 1.77 एनजी/डेसीलीटर; और T3 (नानोग्राम्स): 71 - 180 एनजी/डेसीलीटर. अतिगलग्रंथिता से ग्रस्त व्यक्ति आसानी से कई बार T4 और/या T3 की इन ऊपरी सीमाओं को प्रदर्शित कर सकते हैं। थाइरॉइड ग्रंथि आलेख में थाइरॉइड कार्य की सामान्य श्रेणी सीमाओं की संपूर्ण तालिका देखें.

हाइपरथाइराडिज़्म के कारण निम्नलिखित हैं-

  • ग्रेव बीमारी में पूरा अवटुग्रंथि अति सक्रिय हो जाता है और अधिक हार्मोन बनाने लगता है।
  • नोड्यूल्स अवटुग्रंथि में भी अति सक्रिय हो जाता है।
  • थाइरोडिटिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें दर्द हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि अवटुग्रंथि (थाइराड) में ही रखे गए हार्मोन निर्मुक्त हो जाए जिससे कुछ सप्ताह या महीनों के लिए हाइपरथारोडिज़्म की बीमारी हो जाए। दर्दरहित थाईरोडिटिस अक्सर प्रसव के बाद महिला में पाया जाता है।
  • अत्यधिक आयोडिन कई औषधियों में पाया जाता है जिससे किसी-किसी में अवटुग्रंथि या तो बहुत अधिक या फिर बहुत कम हार्मोन बनाने लगता है।

उपचार

मानव में अतिगलग्रंथिता के उपचार के लिए बृहद और आम तौर पर स्वीकार्य रूपात्मकताओं में दमनात्मक थाइरोस्टेटिक्स उपचार (गलग्रंथिरोधी दवाएं) का प्रारंभिक अस्थायी उपयोग शामिल है और संभवतः बाद में स्थायी शल्य चिकित्सा या रेडियो समस्थानिक चिकित्सा का उपयोग भी किया जा सकता है। सक्रिय थाइरॉइड कार्य (अवटु-अल्पक्रियता) के तहत सभी रास्ते कारण हो सकते हैं, जिन्हें आसानी से लेवोथाईरोक्सिन अनुपूरण से संभाला जा सकता है।

अस्थायी औषधीय चिकित्सा

थाइरोस्टेटिक्स (गलग्रंथिरोधी दवाएं)

थाइरोस्टेटिक्स दवाएं थाइरॉइड हार्मोन के उत्पादन को अटकाती हैं, जैसे कि कर्बीमाजोल (ब्रिटेन में प्रयोग किया जाता है) और मेथीमाजोल (अमेरिका में प्रयोग होता है) और प्रोपाइलथ्युरेसिल. माना जाता है कि थाइरोस्टेटिक्स थाइरोपेरोक्सिड़ेस द्वारा थाइरोग्लोब्युलिन के आयोडाइनीकरण को रोकने का काम करता है और इस तरह टेट्रा-आयोड़ोथाइरोनाइन (T4) के निर्माण को रोकता है। थाइरॉइड ग्रंथि के बाहर भी प्रोपाइलथ्युरेसिल काम करता है, सक्रिय रूप T3 में (अधिकांशतः निष्क्रिय) T4 के रूपांतरण को रोकता है। चूंकि थाइरॉइड ऊतक आमतौर पर थाइरॉइड हार्मोन का एक बड़ा संचय रखे होते हैं, इसलिए थाइरोस्टेटिक्स को प्रभावी हो पाने में कई सप्ताह लग जाते हैं और खुराक को प्रायः महीनों की अवधि में टाइट्रेट करने की जरूरत पड़ती है, साथ ही नियमित रूप से डॉक्टरों की देखभाल और परिणामों की जांच के लिए रक्त परीक्षण भी करते रहना पड़ता है।

प्रारंभिक उपचार में प्रायः एक बहुत ही उच्च खुराक की जरूरत होती है, लेकिन अगर लगातार एक उच्च खुराक का इस्तेमाल किया जाता रहे तो रोगियों में अवटु-अल्पक्रियता के लक्षण विकसित हो सकते हैं। खुराक का यह अनुमापांक सही ढंग से कर पाना मुश्किल है और इसीलिए कभी-कभी "बाधा व प्रतिस्थापन" ("ब्लॉक एंड रिप्लेस") का ढंग अपनाया जाता है। बाधा व प्रतिस्थापन उपचार में थाइरॉइड हार्मोन को पूरी तरह से बंद करने के लिए पर्याप्त मात्रा में थाइरोस्टेटिक्स लिए जाते हैं, मरीज का इलाज इस तरह किया जाता है जैसे कि उसे पूरी अवटु-अल्पक्रियता है।

बीटा-ब्लॉकर्स

धकधकी, कम्पन और व्यग्रता जैसे अतिगलग्रंथिता के आम लक्षणों में से अनेक कोशिका सतहों पर बीटा एड्रीनर्जिक अभिग्राहकों में वृद्धि द्वारा बीच-बचाव किये जाते हैं। विशिष्ट रूप से उच्च रक्त चाप के इलाज में इस्तेमाल किये जाने वाले बीटा ब्लॉकर्स इस प्रकार की दवा है जो इस प्रभाव को प्रतिसंतुलित कर देती है, धकधकी के संवेदन से जुड़ी तीव्र धड़कन को कम करती है और कम्पन तथा व्यग्रता में कमी लाती है। इस प्रकार, अतिगलग्रंथिता से पीड़ित मरीज अक्सर तत्काल अस्थायी राहत प्राप्त कर सकते हैं, जब तक कि ऊपर बताये रेडियोआयोडीन परीक्षण से अतिगलग्रंथिता का चरित्र चित्रण हो जाता है और फिर तब अधिक स्थायी इलाज शुरू हो सकती है। ध्यान दें कि ये दवाएं अतिगलग्रंथिता या इलाज नहीं कराने की वजह से इसके दीर्घकालिक प्रभावों का कोई इलाज नहीं करतीं, बल्कि ये केवल स्थिति के लक्षणों का इलाज करती हैं या उन्हें कम करती है। थाइरॉइड हार्मोन के उत्पादन पर कुछ अल्पतम प्रभाव तथापि प्रोप्रानोलोल से भी आता है -जिसका अतिगलग्रंथिता के उपचार में दो भूमिकाएं होती हैं, जो प्रोप्रानोलोल के अलग समवयवी पदार्थ द्वारा निर्धारित होता है। एल-प्रोप्रानोलोल बीटा-अवरोधन का कारण है, इसलिए कम्पन, धकधकी, व्यग्रता और गर्मी असहनशीलता जैसे अतिगलग्रंथिता के साथ जुड़े लक्षणों का उपचार करता है। डी-प्रोप्रानोलोल थाइरॉक्सिन ड़ियोडिनेज का अवरोध करता है, इस तरह T3 में T4 के रूपांतरण को अवरुद्ध करके कुछ, हालांकि अल्पतम प्रभाव प्रदान करता है। अन्य बीटा ब्लॉकर्स का इस्तेमाल केवल अतिगलग्रंथिता के साथ जुड़े लक्षणों के इलाज के लिए किया जाता है।[10] अमेरिका में प्रोप्रानोलोल और ब्रिटेन में मेटोप्रोलोल का इस्तेमाल अक्सर अतिगलग्रंथि के मरीजों के इलाज में वृद्धि करने के लिए किया जाता है।[11]

स्थायी उपचार

आक्रामक रेडियो समस्थानिक चिकित्सा (रेडियोआयोडीन 131 थाइरॉइड अंग-उच्छेदन) के कम उपयोग के लिए समय से पहले सर्जरी एक विकल्प है, लेकिन ऐसे मामलों में तब भी इसकी जरूरत पड़ती है, जिनमें थाइरॉइड ग्रंथि बड़ी हो गयी हो और गर्दन की बनावट पर दबाव का कारण हो, या अतिगलग्रंथिता का आधारभूत कारण मूलतः कैंसर-संबंधी हो.

सर्जरी

सर्जरी (पूरे थाइरॉइड या इसके एक भाग को निकाल बाहर करना) का प्रयोग व्यापक रूप से नहीं किया जाता है, क्योंकि अतिगलग्रंथिता के सबसे आम रूपों का बहुत प्रभावकारी इलाज रेडियोधर्मी आयोडीन पद्धति द्वारा किया जाता है और चूंकि पैराथाइरॉइड ग्रंथियों को निकालने और आवर्तक लैरिंजियल तंत्रिका के काटे जाने से निगलना मुश्किल हो जाता है और किसी बड़ी सर्जरी से यहां तक कि सामान्यीकृत स्‍तवकगोलाणु संक्रमण हो सकता है। कुछ ग्रेव्स रोग के मरीज, तथापि, इस या उस कारण से दवाओं को बर्दाश्त कर सकते हैं, वे रोगी जिन्हें आयोडीन से एलर्जी है, या जो रोगी रेडियोआयोडीन से इंकार करते हैं, वे शल्य चिकित्सा का विकल्प चुन सकते हैं। इसके अलावा, कुछ सर्जनों का मानना है कि असामान्य रूप से बड़ी ग्रंथि वाले, या जिनकी आंखें कोटर से बाहर निकली हुई हों, ऐसे मरीजों के लिए रेडियोआयोडीन उपचार असुरक्षित है; भय है कि रेडियोआयोडीन 131 की बहुत अधिक खुराक से मरीज के लक्षण बढ़ जा सकते हैं।

रडियोआयोडीन

आयोडीन-131 (रेडियोआयोडीन) रेडियो समस्थानिक चिकित्सा में, अति सक्रिय थाइरॉइड ग्रंथि के कार्य को सख्ती के साथ रोकने या एकदम से नष्ट करने के लिए एक बार के लिए रेडियोधर्मी आयोडीन-131 मुंह के जरिये दिया जाता है (गोली या तरल द्वारा). अपादान कारक उपचार के लिए इस रेडियोधर्मी आयोडीन के समस्थानिक का प्रयोग नैदानिक रेडियोआयोडीन (आयोडीन-123) की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है, जिसका जैविक अर्द्ध जीवन 8-13 घंटे होता है। आयोडीन-131, जो भी बीटा कणों को समाप्त करता है जो सीमित क्षेत्र में ऊतकों के लिए कहीं अधिक नुकसानकारी है, का लगभग 8 दिनों का अर्द्ध-जीवन होता है। जिन रोगियों पर पहली खुराक का असर नहीं होता, कभी-कभी उन्हें रेडियो आयोडीन की अतिरिक्त, बड़ी खुराक दी जाती है। इस इलाज में आयोडीन-131 को थाइरॉइड में सक्रिय कोशिकाओं द्वारा उठा लिया जाता है और उन्हें नष्ट कर देता है, थाइरॉइड ग्रंथि को ज्यादातर या पूरी तरह से निष्क्रिय बना देता है। चूंकि थाइरॉइड कोशिकाओं द्वारा आयोडीन को बड़ी सरलता से उठा लिया जाता है (हालांकि अनन्य रूप से नहीं) और (अधिक महत्त्वपूर्ण रूप से) अति-सक्रिय थाइरॉइड कोशिकाओं द्वारा और भी अधिक सरलता से उठाया जाता है, सो विनाश स्थानीय स्तर पर होता है और इस चिकित्सा के व्यापक दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। 50 वर्षों से रेडियोआयोडीन अंशोच्छेदन का प्रयोग हो रहा है और इसका उपयोग नहीं करने की एकमात्र बड़ी वजह हैं गर्भावस्था और स्तनपान (स्तन के ऊतक भी आयोडीन को उठा लेते हैं और समाहृत करते हैं). एक बार जब थाइरॉइड ग्रंथि निष्क्रिय बना दी जाती है, तब शरीर की थाइरॉइड हार्मोन की मात्रा की जरुरत को पूरा करने के लिए प्रतिदिन मुंह के जरिये प्रतिस्थापन हार्मोन चिकित्सा आसानी से दी जा सकती है। हालांकि, एक विषम अध्ययन की टिप्पणी है कि अतिगलग्रंथिता के लिए रेडियोआयोडीन इलाज के बाद कैंसर की घटनाओं में वृद्धि देखी गयी।[12]

अतिगलग्रंथिता के लिए रेडियोआयोडीन उपचार का प्रमुख लाभ यह है कि औषधि चिकित्सा की तुलना में इसमें सफलता दर बहुत अधिक है। रेडियोआयोडीन की खुराक के चयन और इलाज किये जा रहे रोग (ग्रेव्स रोग, बनाम विषाक्त गलगंड, बनाम गर्म ग्रंथिका आदि) पर निर्भर, अतिगलग्रंथिता के निश्चित समाधान की सफलता दर 75-100% पर भिन्न हो सकती है। ग्रेव्स रोगियों में रेडियोआयोडीन का एक प्रमुख संभावित दुष्प्रभाव के रूप में जीवन भर के लिए अवटु-अल्पक्रियता का विकास है, जिसके लिए प्रतिदिन थाइरॉइड हार्मोन के इलाज की जरुरत है। कभी-कभी, कुछ रोगियों को एक से अधिक रेडियोधर्मी उपचार की आवश्यकता हो सकती है, यह रोग के प्रकार, थाइरॉइड के आकार और दी गयी प्रारंभिक प्रशासित खुराक पर निर्भर है। अनेक रोगी पहले इस बात से दुखी होते हैं कि उन्हें जीवन भर थाइरॉइड हार्मोन की गोली लेनी पड़ेगी. फिर भी, थाइरॉइड हार्मोन सुरक्षित, सस्ते और आसानी से निगल लेने वाले होते हैं; और हार्मोन थाइरॉइड के जैसे होते हैं तथा सामान्यतः थाइरॉइड द्वारा ही बने होते हैं; आम तौर पर यह चिकित्सा बहुत अधिकांश रोगियों के लिए अत्यंत सुरक्षित और बहुत ही सहनीय है।[13]

रेडियोधर्मी आयोडीन उपचार के परिणामस्वरूप थाइरॉइड ऊतक के विनाश से, अक्सर कई दिनों से लेकर सप्ताहों तक की एक चलायमान अवधि आती है जब रेडियोधर्मी आयोडीन उपचार के बाद अतिगलग्रंथिता के लक्षण वास्तव में और बिगड़ सकते हैं। थाइरॉइड हार्मोन युक्त थाइरॉइड कोशिकाओं के रेडियोधर्मी आयोडीन-जनित विनाश के बाद रक्त में थाइरॉइड हार्मोन के जारी होने से आमतौर पर ऐसा होता है। कुछ रोगियों में, बीटा ब्लॉकर्स (प्रोप्रानोलोल, एटेनोलोल, आदि) जैसे औषधि उपचार इस अवधि में उपयोगी हो सकते हैं। अनेक रोगी शुरूआती कुछ सप्ताह को बिना किसी समस्या के बर्दाश्त करने में समर्थ होते हैं।

आमतौर पर एक छोटी सी गोली के रूप में दिए जाने वाले रेडियोधर्मी आयोडीन उपचार के बाद अधिकांश रोगियों ने किसी भी कठिनाई का अनुभव नहीं किया। अगर थाइरॉइड में हल्की सूजन विकसित हो और गर्दन या कंठ क्षेत्र में परेशानी पैदा कर रही हो तो कभी-कभी, कुछ दिनों बाद गर्दन सुकुमारता या गले का शोथ प्रकट हो जा सकता है। यह आमतौर पर अस्थायी होता है और यह बुखार आदि के साथ संबद्ध नहीं है।

रेडियोधर्मी आयोडीन उपचार के बाद जो महिलाएं स्तनपान कराती हैं उन्हें कम से कम एक सप्ताह और संभवतः अधिक समय तक के लिए स्तनपान कराना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि रेडियोधर्मी आयोडीन उपचार के कई सप्ताह बाद भी रेडियोधर्मी आयोडीन की कुछ मात्रा स्तन के दूध में पायी जा सकती है।

रेडियोआयोडीन के बाद एक आम परिणाम होता है अतिगलग्रंथिता अर्थात अवटु-अतिक्रियता से आसानी से उपचारयोग्य अवटु-अल्पक्रियता में एक बदलाव और यह ग्रेव्स थाइरोटॉक्सिकॉसिस का इलाज करा रहे 78% में तथा विषाक्त बहुपर्विल गलगण्ड या अकेले विषैले ग्रंथि-अर्बुद का इलाज करा रहे 40% होता है।[14] रेडियोआयोडीन की बड़ी खुराक का प्रयोग उपचार विफलता की घटनाओं को कम कर देता है, इलाज के उच्च प्रतिसाद के लिए हर्जाने के रूप में फलस्वरूप अवटु-अल्पक्रियता की ऊंची दर अधिकांशतः शामिल है, जिसका हार्मोन इलाज जीवन भर करना पड़ता है।[15]

अल्ट्रासाउंड स्कैन में थाइरॉइड में रेडियोआयोडीन चिकित्सा से अधिक एकरूप से (हाइपोइकोजेनिक) संवेदनशीलता में वृद्धि देखी गयी, ऐसा खचाखच भरे बड़ी कोशिकाओं के कारण होता है, जो बाद में 81% हाइपोथाइरॉइड (अवटु-अल्पक्रियता) में बदल जाती हैं, जो सामान्य स्कैन प्रकटन (नोर्मोइकोजेनिक) वालों की तुलना में 37% अधिक होती हैं।[16]

थाइरॉइड स्टॉर्म

अतिगलग्रंथिता के चरम लक्षणों के साथ थाइरॉइड स्टॉर्म उपस्थित होता है। इसका इलाज आक्रामकता के साथ किया जाता है, उपर्युक्त संयोजनों सहित पुनर्जीवन उपायों के साथ, जिनमे शामिल हैं: मेथीमाजोल जैसे एक थियोनामाइड, के बाद प्रोप्रानोलोल जैसे शिराभ्यंतर बीटा ब्लॉकर्स, एक आयोडिनेटेड रेडियोकंट्रास्ट एजेंट या अगर रेडियोकंट्रास्ट एजेंट उपलब्ध नहीं हो तो आयोडीन घोल और एक शिराभ्यंतर स्टीरॉयड हाइड्रोकार्टिज़ोन.[17]

अन्य प्राणियों में

बिल्लियां

पशु चिकित्सा में, अतिगलग्रंथिता पुरानी पालतू बिल्लियों को प्रभावित करने वाली सबसे आम अन्तःस्रावी स्थितियों में एक है। कुछ पशु चिकित्सकों के अनुसार 10 साल की उम्र से अधिक की बिल्लियों में से 2% तक को यह होता है।[18] 1970 के दशक में बिल्लियों की अतिगलग्रंथिता पर पहली रिपोर्ट आने के बाद से यह रोग उल्लेखनीय रूप से अधिक आम बन गया। बिल्लियों में, अतिगलग्रंथिता का एक कारण सौम्य अर्बुद लगता है, लेकिन उन बिल्लियों में ऐसे अर्बुद विकसित होने के कारण को जानने के लिए शोध जारी है।

हालांकि, अमेरिकी रासायनिक सोसाइटी के एक प्रकाशन, पर्यावरण विज्ञान व तकनीक में प्रकाशित हाल के शोध आलेख में कहा गया है कि पोलिब्रोमिनेटेड डाइफ़िनाइल ईथर्स (पीबीडीई (PBDE)) नामक पर्यावरणीय संदूषकों के अनावरण से बिल्लियों की अतिगलग्रंथिता के अनेक मामले जुड़े हुए हैं; ये संदूषक अनेक घरेलू उत्पादों के अग्नि मंदकों में मौजूद होते हैं, खासकर फर्नीचर और कुछ इलेक्ट्रोनिक सामान में.

EPA के नॅशनल हेल्थ एंड एनवायरमेंटल इफेक्ट्स लैबोरेटरी और इंडियाना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अध्ययन पर यह रिपोर्ट आधारित है। अध्ययन में, अतिगलग्रंथिता से पीड़ित 23 पालतू बिल्लियों को शामिल किया गया था, उनसे छोटी उम्र की तथा गैर-अतिगलग्रंथिता वाली बिल्लियों की तुलना में उनमें तीन गुना अधिक पीडीबीई (PDBE) रक्त स्तर पाए गये। आदर्श रूप में, पीबीडीई और संबंधित अन्तःस्रावी भंगकारी (एन्डोक्राइन डिसरप्टर), जो सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं, जानवरों या मनुष्यों के रक्त में मौजूद नहीं होते.

हाल ही में, थाइरॉइड उत्तेजन हार्मोन अभिग्राहक के उत्परिवर्तनों (म्यूटेशनों) की खोज की गई है, जो थाइरॉइड ग्रंथि कोशिकाओं के दैहिक सक्रियण का एक कारण हैं। बीमारी के रोगजनन में कई अन्य कारक भूमिका निभा सकते हैं, जैसे कि गलगण्डजंक (गोइट्रोजेन) (जेनिस्टीन, डैडजेन और कुएरसरटिन जैसे आइसोफ्लेवोन) और आयोडीन और आहार में सेलेनियम तत्व.

सबसे आम प्रकट होने वाले लक्षण हैं: तेजी से वजन घटना, तीव्र हृदय स्‍पंदन दर (टैकिकार्डिया), उल्टी, दस्त, अतिपिपासा (पोलिडिप्सिया) और भोजन में वृद्धि, तथा मूत्र उत्पादन में वृद्धि (पोलियूरिया). अन्य लक्षणों में शामिल हैं अतिसक्रियता, संभावित आक्रामकता, ह्रदय की मर्मर ध्वनि, सरपट ताल, अस्तव्यस्त रूप और बड़े व मोटे नाखून. लगभग 70% पीड़ित बिल्लियों की थाइरॉइड ग्रंथियों (गण्डमाला) बढ़ी हुई होती हैं।

बिल्लियों की अतिगलग्रंथिता में भी उपचार के वही तीन विकल्प हैं जो मनुष्यों के लिए इस्तेमाल होते हैं (सर्जरी, रेडियो आयोडीन उपचार और थाइरॉइड-विरोधी दवाएं). बिल्लियों को उनके बाक़ी बचे जीवन के लिए दवा जरुर दी जानी चाहिए, लेकिन खासकर बहुत बूढ़ी बिल्लियों को कम महंगा विकल्प दिया जा सकता है। रेडियोआयोडीन उपचार और सर्जरी अक्सर अतिगलग्रंथिता को ठीक कर देती हैं। कुछ पशु चिकित्सक शल्य चिकित्सा के बजाय रेडियो आयोडीन इलाज को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि इसमें संज्ञाहरण (एनेस्थीसिया) से जुड़ा जोखिम नहीं है। हालांकि, बिल्लियों के लिए रेडियोआयोडीन उपचार सभी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं है। इसका कारण यह है कि इस इलाज के लिए परमाणु रेडियोधर्मी विशेषज्ञता और सुविधाओं की आवश्यकता होती है, चूंकि रेडियोधर्मी उपचार के बाद अनेक दिनों तक जानवरों के मूत्र, पसीना, लार और मल रेडियोधर्मी रहते हैं, सो आम तौर पर कुल तीन सप्ताह के लिए उन्हें अंतरंग रोगी की तरह अस्पताल में रखना जरुरी होता है और उसकी सुविधाओं की जरूरत होती है (पहले हफ्ते तो उन्हें पूरी तरह से अलग रखना जरुरी है और अगले दो हफ्ते एकांतवास में).[19] विकिरण के स्तर के लिए दिशा निर्देश अलग-अलग राज्यों में भिन्न हैं; मैसाचुसेट्स जैसे कुछ राज्यों में दो दिनों तक अस्पताल में रखने के बाद देखभाल के निर्देश के साथ घर भेज दिया जाता है। थाइरॉइड ग्रंथियों में से एक (एकतरफा रोग) के प्रभावित होने के बाद सर्जरी की जा सकती है; लेकिन सर्जरी के बाद बाक़ी ग्रंथियां अति-सक्रिय हो जा सकती हैं। जहां तक लोगों की बात है, सर्जरी की जटिलताओं में एक सबसे आम है अवटु- अल्पक्रियता.

कुत्ते

श्वानीय (कुत्ते) में अतिगलग्रंथिता बहुत कम होती है (1 या 2% से भी कम कुत्तों में होती है), इसके बजाय इनमें विपरीत समस्या की प्रवृत्ति होती है: अवटु-अल्पक्रियता जो अस्वस्थ लगनेवाली खाल और मादा में प्रजनन समस्याओं के जरिये खुद को प्रकट करती है। जब अतिगलग्रंथिता कुत्तों में दिखाई देती है, यह अवटु-अल्पक्रियता के इलाज के दौरान थाइरॉइड हार्मोन के अधिक-अनुपूरण के कारण हो जाती है। लक्षण आमतौर पर गायब हो जाते हैं जब खुराक समायोजित की जाती है।[]

कभी-कभी कुत्तों को थाइरॉइड में क्रियात्मक कार्सिनोमा (कैंसर) हो जाता है; अधिकतर (लगभग 90% मामलों में) यह बहुत ही आक्रामक ट्यूमर है जो बहुत तेजी से फैलता है और आसानी से स्थलांतरण करता है या अन्य ऊतकों में फैलता है (खासकर फेफड़े में) और पूर्व निदान को बहुत कमजोर बना देता है। जबकि सर्जरी संभव है, लेकिन यह अक्सर बहुत कठिन हो जाती है क्योंकि धमनियों, ग्रासनली और श्वासनली सहित ऊतकों के आस-पास पुंज फैलते जाते हैं। सिर्फ पुंज के आकार को कम करने के लिए इसका किया जाना संभव है, इस तरह लक्षणों से राहत मिलेगी और अन्य उपचार कार्यों के लिए समय मिल पाएगा.[]

यदि किसी कुत्ते को सौम्य क्रियात्मक कार्सिनोमा है (10% मामलों में प्रकट होता है), उपचार और रोग का निदान नहीं की है कि बिल्ली से अलग है। केवल वास्तविक अंतर यह है कि कुत्ते अलाक्षणिक होते हैं, इनमें अपवादस्वरूप गर्दन में एक गोला के रूप में एक बढी हुई थाइरॉइड ग्रंथि दिखाई देती है।[]

गैलरी

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. कित्तीसुपामोंग्कोल डब्ल्यू. अवटु-अतिक्रियता या थाइरोटॉक्सिकॉसिस? क्लीव क्लीन जे मेड. मार्च 2009;76(3):152.
  2. "Floyd, J.L. (2009) Thyrotoxicosis. eMedicine". मूल से 17 मार्च 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अगस्त 2010.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 मार्च 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अगस्त 2010.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 17 सितम्बर 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 सितम्बर 2021.
  5. Faculty of Medicine & Dentistry (2006). "Course-Based Physical Examination - Endocrinology -- Endocrinology Objectives (Thyroid Exam)". Undergraduate Medical Education. University of Alberta. मूल से 19 जनवरी 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 जनवरी 2007.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 जनवरी 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अगस्त 2010.
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  8. "संग्रहीत प्रति". मूल से 3 अक्टूबर 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अगस्त 2010.
  9. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 अक्टूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अगस्त 2010.
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  18. Shomon, Mary (2004). "Feline Hyperthyroidism: Frequently Asked Questions, Information About Overactive Thyroid Conditions in Cats". मूल से 31 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जून 2009.[]
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इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

आगे पढ़ें

  • Siraj, Elias S. (2008). "Update on the Diagnosis and Treatment of Hyperthyroidism" (PDF). Journal of Clinical Outcomes Management. 15 (6): 298–307. मूल (PDF) से 19 अक्टूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जून 2009. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)

बाहरी कड़ियाँ

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