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हलवाई

हलवाई
महत्वपूर्ण जन्संख्या वाले क्षेत्र
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भाषा

हिन्दीअवधीभोजपुरीमारवाड़ीपंजाबी

धर्म

हिन्दूजैनइस्लाम

संबंधित जातीय समूह

• मुस्लिम हलवाई • बनिया

काका हलवाई की मिठाई की दुकान
पुणे का प्रसिद्द श्रीमन्त दगडू शेठ हलवाई की गणपति

हलवाई भारत में मिष्ठान बनाने वाले को कहते हैं।[1]हलवाई भारत, पाकिस्तान और नेपाल में एक जाति हैं[2],"मधेेशिया वैश्य बनिया, हलवाई" पोद्दार की उपजातियों में आते हैं। जिनका मिठाईयों का पारंपरिक व्यवसाय होता हैं। हलवाई हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म में पाया जाता हैं। मोदनवाल, कांदु, आदि हलवाई समुदाय द्वारा प्रयोग किया जाने वाला उपनाम हैं।[3][4]

हलवाई अपना नाम 'हलवा' शब्द से लेते हैं जो कि आटे से बनी एक मीठी वस्तु है, और घी, चीनी एवं जाफरान (केसर) के सत एवं मेवे से बनती है। हलवाई समुदाय में मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दू अधिक हैं। हिन्दू हलवाई, शब्द हलवाई को 'हलवाही' (खेत जोतना) शब्द से जोड़ते हैं जो कि वैश्यों का मुख्य व्यवसाय था। हिन्दू हलवाई में कई उप-जातियाँ हैं, जैसे कि कनौजिया, मगहिया, बन्तीरिया, पंछैन्या, मधेसिया, पुरबिया, भोजपुरिया, कोरंच, मलतारिया आदि। ये गुप्ता, वैश्य, यज्ञसैनी, मोदनवाल, कान्यकुब्ज आदि उप-नामों का इस्तेमाल करते हैं। वे अपने को वर्ण-व्यवस्था में वैश्य वर्ण का मानते हैं।

मुसलमान हलवाई 'मिठाईवाले' के नाम से भी जाने जाते हैं। वे इस्लाम धर्म के सुन्नी समुदाय के होते हैं और अपने को मुस्लिम समाज में शेख कहते हैं। उनकी मातृभाषा उर्दू है जबकि वे हिन्दी भी बोलते हैं। मुस्लिम हलवाई वे हैं जो कि एक समय में वैश्य समूह के थे और बाद में इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गये। वे पीर एवं मज़ारों पर हाज़री देते हैं। उनकी पारम्परिक सामुदायिक परिषद् या पंचायत है जो चुपचाप शादी करके भागने वाले, उपद्रव करने वाले, चोर एवं अभद्र व्यवहार करने वाले आदि मामलों को निस्तारित करती है।

हलवाइयों का पारम्परिक व्यवसाय मिठाई बनाना है। या तो उनकी स्वयं की मिठाई की दूकान है या वे बड़ी एवं मशहूर मिठाई की दुकानों में कुशल कारीगर के रूप में कार्य करते हैं। आमतौर से उनकी दुकानें बाज़ारों और घनी आबादी में होती हैं। बहुत से हलवाई विवाह समारोह में पकने वाले व्यंजनों के प्रबन्धन का कार्य भी करते हैं व बहुत से परिवारों में बच्चे प्लेट एवं कप को सजाने लगाने में, ग्राहक को पानी उपलब्ध कराने में, बर्तनों को साफ़ करने आदि जैसे व्यवसाय में मदद करते हैं। वर्तमान समय में वे दूसरे व्यवसाय एवं नौकरियों में भी लिप्त हैं। उनमें से कुछ डाक्टर एवं इंजीनियर भी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इनके बहुत से लोगों के पास भूमि है और यह आम तौर से बटाई पर खेती कराते हैं। मिठाई के प्रमुख आपूर्तिकारक होने के नाते वे महोत्सवों, विवाह, बच्चे के जन्म-दिन आदि में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं और अपने सामाजिक एवं अनुष्ठानिक महत्त्व के कारण आदरणीय माने जाते हैं। कुछ हलवाइयों द्वारा मिठाई बनाने की नयी तकनीक भी अपनायी गयी है और उन्होंने अधिक मात्रा में व्यापक आपूर्ति हेतु डिब्बाबन्द उत्पाद बनाना भी प्रारम्भ कर दिया है। मुस्लिम हलवाई अधिकतर भूमिहीन हैं और मुख्य रूप से मिठाई बिक्री, तम्बाकू, दैनिक मज़दूरी व कपड़ा रँगने के कार्य में भी लगे हैं जब कि उनमें से कुछ ने सरकारी एवं निजी नौकरियों को भी अपना लिया है।[5]

सन्दर्भ

  1. The tribes and castes of the Central Provinces of India By R V Russell, R.B.H. Lal, Volume III, 1916
  2. People of India Uttar Pradesh Volume XLII edited by A Hasan & J C Das page 601
  3. People of India Uttar Pradesh Volume XLII edited by A Hasan & J C Das page 597
  4. Ritual as Language: The Case of South Indian Food Offerings Gabriella Eichinger Ferro-Luzzi Current Anthropology, Vol. 18, No. 3 (Sep., 1977), pp. 507-514
  5. Hasnain, Nadeem (2011). Doosra Lucknow. Vani Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5000-850-8.