हकीम खाँ सूरी
हकीम खाँ सूरी | |||||
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Prince of The Suri Dynasty | |||||
जन्म | 16th Century दिल्ली Sur Empire | ||||
निधन | 18 June 1576 हल्दीघाटी † | ||||
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राजवंश | House of Sur | ||||
पिता | Khaisa Khan Suri | ||||
माता | Bibi Fatima (step-mother) | ||||
धर्म | सुन्नी इस्लाम | ||||
Military career | |||||
युद्ध/झड़पें | हल्दीघाटी का युद्ध |
न 2018}} इनका जन्म 1538 ई. में हुआ | ये अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के वंशज थे | महाराणा प्रताप का साथ देने के लिए ये बिहार से मेवाड़ आए व अपने 800 से 1000 अफगान सैनिकों के साथ महाराणा के सामने प्रस्तुत हुए |[1] हकीम खान सूरी को महाराणा ने मेवाड़ का सेनापति घोषित किया | हकीम खान हरावल (सेना की सबसे आगे वाली पंक्ति) का नेतृत्व करते थे | ये मेवाड़ के शस्त्रागार (मायरा) के प्रमुख थे | मेवाड़ के सैनिकों के पगड़ी के स्थान पर शिरस्त्राण पहन कर युद्ध लड़ने का श्रेय इन्हें ही जाता है। हाकिम खां सूरी एक मात्र व्यक्ति थे जो मुग़लो के खिलाफ मुसलमान होते हुए भी। महाराणा प्रताप की तरफ से लड़े। जबकि कई राजपूत राजा उस समय अकबर की तरफ से लड़े थे। हल्दीघाटी के युद्ध मे लड़ते लड़ते शहिद होकर अमर हो गए।
- डाॅ.चंद्रशेखर शर्मा,चारणकार रामा सांधू (जो प्रत्यक्ष युद्ध देख रहा था ),डाॅ गोपीनाथ मुंडे इनका कथन सच है लेकिन फजल,बदायूनी, टाॅड ने (made the bundle of mistakes )ऐसा अंग्रेज लेखक सर एलीयट ने कहा था, नैनसी ने भी झूठ का सहारा लीया जो1666 में अपनी नौकरी से सस्पेंड हुआ था।
- रामा सान्धू न केवल इस युद्ध में प्रत्यक्ष दर्शी थे वरन अपनी टुकड़ी के साथ महाराणा प्रताप के साथ अकबर की सेना से लड़े थे ।
संदर्भ
- ↑ Kumar, Amrita (14 October 2012). Journeys Though Rajasthan. Rupa Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-8129123275.