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स्वामी ओमानन्द सरस्वती

चित्र:Swami Omanand.jpg
स्वामी ओमनन्द सरस्वती

स्वामी ओमानन्द सरस्वती (मार्च, 1910 - 23 मार्च 2003) भारत के हरियाणा प्रान्त के स्वतंत्रता-संग्राम-सेनानी, शिक्षक, इतिहासकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे हरियाणा आर्य प्रतिनिधि सभा, अजमेर की परोपकारिणी सभा तथा दिली की सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान भी रहे।

जीवनी

स्वामी ओमानन्द सरस्वती का जन्म दिल्ली के निकट नरेला में हुआ था। उनके पिताजी का नाम चौधरी कनक सिंह था जो जाट खत्री थे। वे अपने माता-पिता के अकेले संतान थे। उनका मूल नाम भगवान् देव था।

सन् १९४२ ईस्वी में आचार्य भगवान देव ने झज्जर के गुरुकुल के आचार्य का पदभार सम्भाला। उनके आचार्य पद संभालने पर गुरुकुल नित्य नई ऊँचाइयों को पाने लगा। यह आचार्य भगवान् देव जी की कार्यकुशलता तथा कर्मठता का ही परिणाम था। आचार्य भगवान देव जी के आचार्यत्व के पश्चात् ही इस गुरुकुल को सर्वत्र ख्याति प्राप्त हुई। १९६९-७० में संन्यास लेकर वे स्वामी ओमानंद सरस्वती बन गये।

इतिहास में उन्हें अत्यधिक रूचि थी। वह जहाँ कहीं भी जाते, ऐतिहासिक सामग्री की खोज करते रहते। वह जहाँ-कहीं से लाये गए प्राचीन सिक्कों को निकाल कर उन्हें साफ़ करते रहते थे। अपना खाली समय में वह इस इतिहासिक सामग्री को संजोंने में ही लगे रहते थे। उनके इस व्यवहार से अनेक आर्य लोग उनका उपहास भी उड़ाते थे किन्तु आपने कभी इस और ध्यान ही नहीं दिया और निरंतर अपने इतिहास सम्बन्धी शोध और संकलन में लगे रहे। इस प्रकार अनेक प्रकार के सिक्के, तोपों के गोलों के खोल, हेलमेट, प्राचीन चरखे, हड़प्पा मोहनजोदाडो आदि से प्राप्त वस्तुएं आदि का संकलन कर एक विशाल भवन में आपने संग्रहालय आरम्भ किया। इस संग्रहालय को देखने तथा इस पर शोध करने के लिए अनेक लोग तथा अनेक शोधार्थी समय समय पर इस गुरुकुल में आते ही रहते हैं।

स्वामी ओमानन्द ने इस गुरुकुल में एक रसायनशाला तथा औषधालय भी आरम्भ किया। समय-समय पर देश के अनेक भागों में बाढ़ या कोई आपदा आती थी तो आप अनेक औषध लेकर पीड़ित लोगों के रोगोपचार के लिए वहाँ जा पहुंचते थे। अनेक भयानक रोगों के इलाज तो आपकी अँगुलियों पर ही रहते थे। इस कारण रोगोपचार के लिए भी इस गुरुकुल को खूब ख्याति प्राप्त हुई। इस गुरुकुल में एक बहुत बड़े हाल में देश के तथा आर्य समाज के वीर शहीदों के चित्र लगाए गए हैं। इस भवन का नाम ही 'शहीद भवन' रखा गया है।

उनकी मृत्यु दिल्ली के जयपुर गोल्डेन अस्पताल में हुई।

कृतियाँ

उन्होने इतिहास के कई ग्रन्थ लिखे हैं जिनमें निम्नलिखित बहुत प्रसिद्ध हैं -

बाहरी कड़ियाँ