स्वर्णामुखी नदी
स्वर्णामुखी नदी | |
Swarnamukhi river స్వర్ణముఖి | |
श्रीकालाहस्ती का एक दृश्य, जिसमें स्वर्णामुखी नदी भी दिख रही है | |
देश | भारत |
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राज्य | आन्ध्र प्रदेश |
क्षेत्र | रायलसीमा |
जिला | चित्तूर ज़िला |
स्रोत | 13°27′N 79°10′E / 13.45°N 79.16°Eनिर्देशांक: 13°27′N 79°10′E / 13.45°N 79.16°E |
- स्थान | नेंद्रागुंटा हनुमान मंदिर के समीप |
मुहाना | 14°04′37″N 80°08′24″E / 14.077°N 80.140°E |
- स्थान | बंगाल की खाड़ी |
स्वर्णामुखी नदी भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में बहने वाली एक नदी है। तिरुपति और श्रीकालाहस्ती के तीर्थस्थल इसी नदी की द्रोणी में स्थित हैं।[1]
स्कन्ध पुराण के अनुसार -
भरद्वाजजी बोले—ही कुन्तीनन्दनअर्जुन ! अगस्त्य पर्वतसे जहाँ पहले-पहल महानदी सुवर्णमुखरी पृथ्वीपर उतरी है, उस तीर्थमें स्नान करके मनुष्य कृतार्थ हो जाता है। वहाँ सब लोगोंको आनन्द देनेवाले अगस्त्य मुनिके द्वारा स्थापित किये हुए भगवान् शिव अगस्त्येश्वरके नामसे प्रसिद्ध हैं। वहाँसे पूर्व-उत्तरकी ओर दो योजनकी सीमामें वेणा नामवाली महानदी सुवर्णमुखरीमें मिली है। इन दोनों नदियोंके संगममें विधिपूर्वक स्नान करनेवाले मनुष्य दस अश्वमेध यज्ञोंका फल प्राप्त करते हैं। वेणासे मिलकर परम पवित्र सुवर्णमुखरी नदी पर्वतोंके दुर्गम मार्गसे उत्तरवाहिनी होकर गयी है। फिर पर्वतोंके बीचसे होकर विषम मार्गसे आगे बढ़ती हुई चार योजन दूर जाकर प्रकाशमें आयी है। वहाँसे पूर्व डेढ़ योजनकी दूरीपर उदक्कल नामक मनोहर स्थानमें यह महानदी पूर्ववाहिनी हो गयी है। वहीं भगवान् शंकरका अगस्त्येश्वर नामसे प्रसिद्ध एक और शिवलिंग है, जो स्मरणमात्रसे मनुष्योंके समस्त पापोंका निवारण करता है। जो मनुष्य उस महानदीमें स्नान करके इन्द्रियोंको संयममें रखते हुए अगस्त्य-मुनिके द्वारा स्थापित भगवान् पार्वतीनाथका दर्शन करते हैं, वे अनेक जन्मोंकी उपार्जित पापराशिको दूर करके अनन्त कालतक स्वर्गलोकमें सुख भोगते हैं। व्याघ्रपदा नामवाली नदी सुवर्णमुखरी नदीमें मिली है। उन दोनों नदियोंके संगममें स्नान करनेवाले श्रेष्ठ मनुष्य दस अश्वमेध यज्ञोंका पूर्ण फल प्राप्त करते हैं। व्याघ्रपदा नदीके तटपर शंखतीर्थ सुशोभित है, जो सब पापोंका नाश करनेवाला है। अर्जुन! वहाँ शंखेश्वर नामसे प्रसिद्ध भगवान् शिव विराजमान हैं। जो उस तीर्थमें भलीभाँति स्नान करके भगवान् शंकरका दर्शन करते हैं, वे दस अश्वमेध यज्ञोंका फल प्राप्त करके देवलोकमें जाते हैं। व्याघ्रपदासंगमसे एक योजन भूमि आगे जाकर शुभ एवं निर्मल जल बहानेवाली मुनीन्द्रसेवित सुवर्णमुखरी नदी वृषभाचलके समीप पहुँची है। वहाँ मंगलदायिनी कल्या नामवाली पवित्र नदी सुवर्णमुखरीमें आकर मिली है। वह वृषभाचलसे प्रकट हुई है। तीर्थराजसे उसकी शोभा और बढ़ गयी है। नदियोंमें उत्तम कल्या नदी पापसमूहका नाश करनेवाली है। उन दोनों नदियोंके संगमकी महिमा बतलानेमें कौन समर्थ है? जहाँ नदीके बीचमें ब्रह्मशिला विराजमान है और अगस्त्यजीकी तपस्याके प्रभावसे जहाँ गयातीर्थका वास है उन दोनों नदियोंके पवित्र संगममें स्नान करनेवाले मनुष्य सौ पुण्डरीक यज्ञोंका फल प्राप्त करते हैं और उनके ब्रह्महत्या आदि समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। तदनन्तर महानदी सुवर्णमुखरीके उत्तर भागमें आधे योजन दूर सुप्रसिद्ध वेंकटाचल पर्वत विराजमान है, जिसकी ऊँचाई एक योजनकी है। भगवान् मधुसूदनने पहले वाराह शरीरसे इस पर्वतको अपने रहनेके लिये स्वीकार किया था, इसलिये श्रेष्ठ पुरुषोंने इसे वाराहक्षेत्र कहा है। वेंकटाचलपर भगवान् विष्णु श्रीलक्ष्मीजीके साथ सदैव निवास करते हैं। जो लोग वेंकटाचलनिवासी जगदीश्वर विष्णुका स्मरण करते हैं, वे सब दोषोंसे रहित हो सनातन अविनाशी पदको प्राप्त होते हैं।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ Rangarajan, A. D. (18 November 2015). "Swarnamukhi 'flows' after a decade". The Hindu (अंग्रेज़ी में). Tirupati. मूल से 13 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 January 2016.