स्फूर घोलक जैव उर्वरक
फास्फोरस घोलक जीवाणु (Phosphate solubilizing bacteria (PSB)) एक उपयोगी जीवाणुओं (बैक्टीरिया) का समूह है जो जैविक तथा अजैविक फॉस्फोरस को जल-अपघटित (हाइड्रोलाइज) करने की क्षमता रखता है।
परिचय
फसल उत्पादन में जिन 16 आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, उनमें प्रमुख रूप से नत्रजन व स्फूर (फास्फोरस) तत्व का महत्व सबसे अधिक होता है। इन तत्वों में से किसी भी एक तत्व की कमी से जहां फसल उत्पादन में गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अब यह भी देखा और अनुभव किया जा रहा है कि लगातार रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से जिस फसल की 10-15 वर्ष में जो उत्पादकता थी, या तो उस उत्पादकता में कमी आयी है अथवा पहले जैसा उत्पादन लेने में डेढ़ से दो गुना अधिक उर्वरक देना पड़ रहा है जिससे भूमि की गुणवत्ता भी नष्ट हो रही है। फास्फोरस युक्त रासायनिक उर्वरक जैसे सुपर फास्फेट आदि की जो भी मात्रा, हम फसल उत्पादन के लिए खेतों में डालते हैं उसका सिर्फ 20 से 25 प्रतिशत भाग ही पौधों को उपलब्ध हो पाता है, शेष स्फूर मिट्टी के कणों द्वारा स्थिर कर लिया जाता है अथवा रासायनिक क्रियाओं द्वारा अघुलनशील मिश्रण में परिवर्तित हो जाता है। फलस्वरूप यह महत्वपूर्ण तत्व पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाता। स्फूर तत्व की यह स्थिति विशेषकर काली मिट्टी (कन्हार) तथा हल्की मिट्टी (भाटा) में देखने को ज्यादा मिली है।
स्फूर तत्वों की औसत खपत आज मात्र 10 से 11 किलो प्रति हेक्टर है जो भरपूर उत्पादन के लिए अत्यंत कम आंकी गई है। अतः जमीन में अनुपलब्ध स्फूर का अधिक से अधिक दोहन कर उसका समुचित उपयोग करना, आज की आवश्यकता है।
भूमि में कई प्रकार के सूक्ष्म जीव पाये जाते हैं। जिसमें सुडोमोनास, बैसिलस बैक्टिरिया समूह में आते हैं तथा पेनीसिलीयम, ट्रायकोडर्मा और एस्परजिलस, कवक (फफूंद) श्रेणी में आते हैं। इन दोनों समूहों के सूक्ष्म जीव अनुपलब्ध व अघुलनशील स्फूर को घुलनशील स्फूर में बदलकर पौधों को उपलब्ध कराने की क्षमता रखते हैं। ऐसे ही सूक्ष्म जीवों को स्फूर घोलक जैव उर्वरक (पी.एस.बी.) के नाम से जाना जाता है।
भूमि में ये जीवाणु साधारणतया उचित वातावरण मिलने पर सेंद्रीय पदार्थ (कार्बनिक) के अपचयन क्रिया के फलस्वरूप कार्बनिक अम्ल जैसे आक्जेलिक, लेक्टीक, मेलिक, साइट्रिक, टारटेरिक आदि प्रकार के अम्ल स्रावित करते हैं। सूक्ष्म जीवाणुओं का यही गुण अघुलनशील और अनुपलब्ध स्फूर तत्व को घुलनशील तत्व में बदलकर पौधों को उपलब्ध कराने में मदद करते हैं। स्फूर घोलक ये जीवाणु राक फास्फेट व ट्रायकेल्सियम फास्फेट जैसे अघुलनशील स्फूरधारित उर्वरक के कणों को सूक्ष्म आकार में बदलकर घुलनशील बना पौधों को पोषक तत्व के रूप में उपलब्ध करा देता है।
पी एस बी का उपचार कब और कैसे करें?
बीज उपचार
प्रायः सभी फसलों के बीजों को इस कल्चर से उपचार किया जा सकता है। इसके लिये 3 से 5 ग्राम कल्चर का एक किलो बीज के हिसाब से उपचार करना चाहिए। करीब 2 पैकेट पी.एस.बी. का कल्चर एक एकड़ में लगने वाले बीज के लिये पर्याप्त होता है। बीजोपचार विधि में बीज को पानी से छिड़ककर नम कर पी.एस.बी. जैव उर्वरक को उस पर छिड़क कर साफ सूथरे हाथ से ऐसा मिलाएं कि प्रत्येक दाना काला पड़ जाये। बीज उपचार हमेशा छाया में ही करें तथा उसे साफ सुथरे जगह में ही सुखने दें। ध्यान रहे बीजोपचार बोवाई के अधिकतम 6 घंटे पहले ही करें। उपचारित ऐसे हर बीज पर करीब 1 लाख इसके जीवाणुओं की संख्या होती है।
पौधा जड़ उपचार
ऐसे फसल जिसे रोपाई द्वारा लगाया जाता है, जैसे धान, टमाटर, मिर्च, बैगन, गोभी इत्यादि, ऐसे फसलों के रोपा को करीब 10 से 15 प्रतिशत पी.एस.बी. कल्चर के घोल में रोपा के जड़ों को करीब आधा घंटा डुबाकर रखने के बाद मुख्य खेत में इनकी रोपाई कर देनी चाहिए। प्रायः इस विधि में 10 लीटर पानी के लिये 2 से 3 पैकेट पी.एस.बी. कल्चर की आवश्यकता होती है।
कम्पोस्ट उपचारित कल्चर विधि
कुछ विशेष परिस्थितियों में जब इस कल्चर की उपलब्धता समय पर न हो अथवा शुष्क स्थिति में जब तापमान औसत से अधिक हो तो ऐसी स्थिति में 100 किलोग्राम अच्छे पके हुये कम्पोष्ट गोबर खाद में 4 से 5 किलो पी.एस.बी. कल्चर को अच्छी तरह मिलाकर और इसे 24 से 48 घंटे ढेर में रखकर इस उपचारित कम्पोस्ट को फसल के कतार में कुंडी के पीछे-पीछे बीज के साथ बोनी करने से भरपूर लाभ मिलता है। इसी प्रकार अधपके कम्पोस्ट खाद में 1 किलो इस कल्चर के घोल को प्रति टन कम्पोस्ट में मिलाकर ढेरी बनाकर रख दिया जाये तो स्फूर घोल जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है और इस तरह अच्छे गुणवत्ता वाला कम्पोस्ट मिल जाता है।
स्फूर घोलक जैव उर्वरक से लाभ
स्फूर की उपलब्धता बढ़ाने में सहायक पी.एस.बी. कल्चर लिग्नाइट चारकोल के काले चूर्ण में मिलाकर जैव उर्वरक बनाया जाता है। कल्चर के प्रति ग्राम भाग में इन जीवाणु की संख्या 10 करोड़ के बराबर होती है। ऐसे जीवाणु की कार्यशीलता जमीन में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों की मात्रा पर निर्भर करती है। इस कल्चर से मिलने वाला लाभ निम्नलिखित हैं :-
- इसके उपचार से लगभग 25 से 30 किलो प्रति हेक्टर स्फूर युक्त रासायनिक उर्वरक की बचत हो सकती है तथा इससे विभिन्न फसलों के उत्पादन में 15 से 30 प्रतिशत तक अतिरिक्त उत्पादन भी पाया जा सकता है।
- पीएसबी जैव उर्वरक कुछ ऐसे कार्बनिक अम्लों को स्रावित करता है जैसे इन्डोल एसिटिक एसिड, जिब्रेलिन, विटामिन, एन्जाईम आदि, जो पौधों की अच्छी बढ़वार में सहायक होता हैं।
- इस जैव उर्वरक के उपयोग से तिलहनी व दलहनी फसलों में उपचारित राइजोबियम की कार्य गति बढ़ जाती है, जिससे इन फसलों में गांठे और ज्यादा प्रभावशाली होती है। इसीलिए किसानों को चाहिए, पी.एस.बी. कल्चर तथा राइजोबियम कल्चर का इन फसलों में संयुक्त रूप से उपचार करें।
उपचार के पूर्व सावधानी
चूंकि पी.एस.बी. कल्चर एक जीवित पदार्थ है अस्तु इसे गर्मी के दिनों में व अधिक तापक्रम (35 सें.ग्रे.) से बचाकर रखें। इसे सदैव छाया युक्त कम तापक्रम वाले स्थान में रखें ताकि इसकी क्षमता बनी रहे।
रेफ्रिजरेटर में रखना सर्वथा उपयुक्त होता है। जिस खेत की मिट्टी में सेंद्रीय पदार्थ (जीवांश) की मात्रा जितनी अधिक होती है, इस कल्चर की कार्य क्षमता उतनी ही बढ़ जाती है, फलस्वरूप उत्पादन भी अधिक मिलता है। अतः ऐसे खेतों में गोबर खाद का उपयोग पर्याप्त मात्रा में हो।
ध्यान रहे पी.एस.बी. कल्चर के पैकेट में लिखे अंतिम तिथि के पूर्व ही उस पैकेट का उपयोग करें। इस कल्चर के पैकेट को किसी भी रसायनिक उर्वरकों के बोरियों के सम्पर्क में न आने दें।