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स्टेनलेस स्टील

इस्पात के विभिन्न उपयोग

जंगरोधी इस्पात या स्टेनलेस स्टील एक इस्पात है जो वायुमंडल तथा कार्बनिक और अकार्बनिक अम्लों से कलुषित (खराब) नहीं होता है। साधारण इस्पात की अपेक्षा ये अधिक ताप भी सह सकते हैं। इस्पात में ये गुण क्रोमियम मिलाने से उत्पन्न होते हैं। इसमें 15-20% क्रोमियम, 8-10% निकेल तथा साधारण स्टील होता है। क्रोमियम इस्पात के बाह्य तल को निष्क्रिय बना देता है। प्रतिरोधी शक्ति की वृद्धि के लिए इसमें निकल भी मिलाया जाता है। निकल के स्थान पर अंशत: या पूर्णत: मैंगनीज़ का भी उपयोग किया जाता है। अकलुष इस्पात के निर्माण में लोहे में कभी-कभी ताम्र, कोबाल्ट, टाइटेनियम, नियोबियम, टैंटालियम, कोलंबियम, गंधक और नाइट्रोजन भी मिलाया जाता है। इनकी सहायता से विभिन्न रासायनिक, यांत्रिक और भौतिक गुणों के अकलुष इस्पात बनाए जा सकते हैं।

इतिहास

सन १९१५ में न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित जंगरोधी ईस्पात के निर्माण (शेफील्ड, इंग्लैंड में) की घोषणा

सन् 1872 ई. में वुड्स और क्लार्क ने लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि लौह और क्रोमियम की कुछ मिश्र धातुओं में न तो जंग (मुरचा) लगता है और न अम्ल के प्रभाव से उन पर कोई विकार होता हैं। पेरिस में आयाजित सन् 1900 ई. की प्रदशनी में इस्पात के कुछ नमूने थे जिनकी संरचना आधुनिक अकलुष इस्पात के समान थी। सन् 1903 ई. में लौह, क्रोमियम और निकल की मिश्र धातुओं को इंग्लैंड में पेटेंट कराया गया। इन मिश्र धातुओं में क्रोमियम की मात्रा 24 से 57 प्रतिशत और निकल की मात्रा 5 से 60 प्रतिशत तक थी। संयुक्त राज्य अमरीका में निकल और फेरोक्रोम (अर्थात् क्रोमियम-मिश्रित लोहे) को मूषा (घरिए) में पिघलाकर थर्मोकपल बनाने योग्य इस्पात की रचना की गई। सन् 1905 ई. में लौह में निकल, क्रोमियम और कोबाल्ट की मिश्र धातु से मोटरकारों के स्पार्क प्लगों में चिनगारी देनेवाले तार बनाए गए। सन् 1910 ई. में उच्चतापमापी नलिकाओं के लिए जर्मनी ने इस्पात, क्रोमियम और निकल की मिश्रधातु का और सन् 1912 ई. के लगभग इंग्लैंड ने बंदूक की नाल बनाने के लिए क्रोमियम और इस्पात की मिश्रधातु का उपयोग किया और चाकू, छुरी आदि बनाने के लिए इसे पेटेंट कराया। बाद में केवल निकल या निकल और क्रोमियम को इस्पात में मिलाकर बनाई गई मिश्र धातुओं के विभिन्न मिश्रण संयुक्त राज्य अमरीका, इंग्लैंड और जर्मनी में पेटेंट कराए गए। इन प्रारंभिक मिश्रणों के आधार पर ऐल्यूमीनियम, सेलीनियम, मालिब्डीनम, सिलिकन, ताम्र, गंधक, टंग्स्टन और कोलंबियम को क्रोमियम और क्रोमियम इस्पात में मिलाकर श्रेष्ठ गुणधर्मवाले अकलुष इस्पात बनाने के आविष्कार हुए। जर्मनी में निकल का अभाव होने के कारण सन् 1935 ई. में एक ऐसे प्रकार के अकलुष इस्पात का निर्माण हुआ जिसमें निकल के स्थान पर मैंगनीज़ का प्रयोग किया गया और मिश्र धातु बनाने के लिए सहायक के रूप में नाइट्रोजन प्रयुक्त हुआ।

वर्गीकरण

लोहा-क्रोमियम प्रावस्था आरेख
लोहा-निकेल प्रावस्था-आरेख

क्षयरोधक और तापरोधक आधुनिक अकलुष इस्पातों को पाँच वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

  • (1) जिनमें क्रोमियम का उपयोग मुख्य धातु-मिश्रणकारी के रूप में किया गया हो।
  • (2) जिनमें क्रोमियम और इस्पात की मिश्र धातु के गुणों में परिवर्तन के लिए पर्याप्त मात्रा में ऐल्यूमीनियम, ताम्र, मोलिब्डीनम, गंधक, सिलिकन, सेलीनियम या टंग्स्टन का उपयोग किया गया हो।
  • (3) जिनमें क्रोमियम, निकल और इस्पात के मिश्रणों में पूर्वोक्त अनुच्छेद में दी गई धातुओं में से हो, एक या अधिक का उपयोग अकलुष इस्पात के गुणों में थोड़ा सा परिवर्तन लाने के लिए किया गया हो।
  • (4) जिनमें क्रोमियम और निकल का उपयोग प्रमुख धातु-मिश्रणकारी के रूप में किया गया हो।
  • (5) जिनमें निकल के स्थान पर प्रमुख धातु-मिश्रणकारी के रूप में मैंगनीज़ का उपयोग किया गया हो और वैसा ही अकलुष इस्पात बनाया गया हो जैसा अनच्छेद (3) और (4) में वर्णित है।

कार्बन की मात्रा या धात्वीय संरचना की दृष्टि से भी इस्पात का वर्गीकरण किया जा सकता है। इनमें से प्रत्येक रीति में इस्पात का तीन वर्गों में विभाजन किया जाता है। कार्बन के अनुसार वर्गीकरण करने पर इस्पात न्यून, मध्यम और उच्च कार्बनवाले इस्पात कहलाते हैं। संरचना की दृष्टि से भी इस्पात को तीन वर्गों में बाँटते हैं:

  • (1) फेरिटिक इस्पात, जो कड़े किए ही नहीं जा सकते। इनमें 15 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक क्रोमियम रहता है और कार्बन की मात्रा बहुत कम (0.08 से 0.20 प्रतिशत तक) रहती है।
  • (2) मारटेंसिटिक इस्पात, जो तप्त करके पानी में बुझाने पर कड़े हो जाते हैं। इनमें 10 प्रतिशत से 18 प्रतिशत तक क्रोमियम रहता है और 0.08 प्रतिशत से 1.10 प्रतिशत तक कार्बन।
  • (3) आस्टेनिटिक इस्पात, जो बिना बुझाए ही कड़ा किया जा सकता है। इसमें 16 प्रतिशत से 26 प्रतिशत तक क्रोमियम और 6 प्रतिशत से 22 प्रतिशत तक निकल रहता है।

परलैटिक इस्पात कठोर किया जा सकता है और ऐसा करने पर उसकी संरचना मारटेंसिटिक के समान हो जाती है।

वर्ग C Cr Ni
मारटेंसिटिक < 1,2% 10,5 - 17% < 6,0%
फेरिटिक < 1,2% 10,5 - 29% < 1,5%
आस्टेनिटिक < 1,2% 16 - 28% 3,5 - 36%

क्रोमियम इस्पात में क्षय-प्रतिरोध-शक्ति बाह्य तल पर लौहक्रोमियम आक्साइड की पतली स्थायी परत बन जाने के कारण उत्पन्न होती है। यह पतली परत अपने नीचे स्थित इस्पात के क्षय को रोकती है। यदि रासायनिक क्रिया या रगड़ से यह तह नष्ट हो जाती है तो अविलंब उसके नीचे ऐसी ही दूसरी तह का निर्माण हो जाता है। उच्च ताप पर भी यह तह दृढ़ता से चिपकी रह जाती है और आक्सीकरण को रोकती है। लौह को निष्क्रिय बनाने के लिए क्रोमियम की न्यूनतम मात्रा 12 प्रतिशत है। धातु-मिश्रणकारी के रूप में क्रोमियम और निकल अथवा क्रोमियम और मैंगनीज़ मिलाकर बने अकलुष इस्पातों के गुण "फेरिटिक" और साधारण क्रोमियम इस्पात से भिन्न होते हैं। ये इस्पात तार खींचने योग्य, अचुंबकीय और ठंडी विधि को छोड़ अन्य विधियों से कठोर न होनेवाले वर्ग में आते हैं। संरचना में ये आस्टेनिटिक इस्पात के समान हैं। क्षयनिरोधकता की दृष्टि से क्रोमियम मैंगनीज़ इस्पात की मिश्र धातु क्रोमियम-निकल-इस्पात की मिश्र धातु से निर्बल, किंतु उतने ही क्रोमियमवाले इस्पात की मिश्र धातु से सबल होती है। भारत में क्रोमियम और मैंगनीज़ की बहुलता की दृष्टि से यह तथ्य औद्योगिक महत्व का है।

तुल्य नामकरण
EN 10027
(यूरोपीय)
Afnor
NF A 35573
(फ्रांस)
AISI
(यूएएस)
संघटन
% C% Cr% Ni% Mo% Si% Mn% P% Sटिप्पणी
X10CrNi18-08 1.4310 Z10CN18-09 302 0,1216 से 186 से 8120,040,03
X8CrNiS18-09 1.4305 Z10CNF18-09 303 ≤ 0,1217 से 198 से 100,6120,06≥ 0,15
X5CrNi18-10 1.4301 Z7CN18-09 304 0,0517 से 198 से 10120,040,03
X2CrNi18-09 1.4307 Z3CN18-10 304 L 0,0217 से 199 से 11120,040,03
X5CrNi19-11 1.4303 Z8CN18-12 305 0,0517 से 1911 से 13120,040,03
X7CrNi23-14 Z12CNS25-13 309 0,0722 से 2511 से 14120,040,03
X12CrNiSi25-20 Z12CNS25-20 310 0,1223 से 2618 से 21120,040,03
X5CrNiMo18-10 1.4401 Z6CND17-11 316 0,0516 से 1810 से 12,52 से 2,5120,040,03
X2CrNiMo17-12-02 1.4404 Z2CND17-12 316 L 0,0216 से 1810,5 से 132 से 2,5120,040,03
X10CrNiMoTi18-10 1.4571 Z6CNDT17-12 316 Ti 0,116 से 1810,5 से 132 से 2,5120,040,03Ti . 5 C ; Ti . 0,6
X10CrNiTi18-09 1.4541 Z6CNT18-10 321 0,1017 से 1910 से 12120,040,03Ti . 5 C ; Ti . 0,6
X7Cr13 1.4003 Z6C13 403 0,0711,5/13,5110,040,03
X10Cr13 1.4006 Z12C13 410 0,08/0,1511,5/13,5110,040,03
X12CrS13 Z12CF13 416 0,08/0,1512 से 140,50,15/0,611,50,06≥ 0,15
X20Cr13 1.4021 Z20C13 420 0,16-0,2512≤ 1≤ 1,5≤ 0,04≤ 0,015
X30Cr13 1.4028 Z30C13 420 B 0,312 से 14110,040,03
X6Cr17 1.4016 Z8C17 430 0,0816/180,5110,040,03
X12CrMoS17 Z10CF17 430 F 0,1216/180,50,2/0,611,50,06≥ 0,15
X22CrNi17 1.4057 Z15CN16-02 431 0,1/0,215/171,5/3110,040,03
X105CrMo17 1.4125 Z100CD17 440 C 1171

निर्माण

व्यावहारिक रूप से लगभग संपूर्ण अकलुष इस्पात विद्युत भट्ठी में बनाया जाता है। थोड़ा सा भाग प्रवर्तन भट्ठियों (इंडक्शन फनेंसेज़) और आर्क-भट्ठियों में बनाया जाता है। कच्चे लोहे के टुकड़े भट्ठी में पिघलाए जाते हैं और आक्सीजन की सहयता से शोधित कर लिए जाते हैं। इसमें क्रोमियम डालने के लिए कार्बन की कम मात्रावाली लौहक्रोमियम मिश्र धातु पिघले लौह में मिलाई जाती है। फिर उसमें निकल या मैंगनीज़ मिलाया जाता है। अन्य धातुएँ भी आवश्कतानुसार भट्ठी में मिला दी जाती हैं। तब पिघले हुए, शोधित और विधिवत् निर्मित मिश्र धातु की सिलें ढाल ली जाती हैं। इन सिलों को पीटकर या बेलकर छड़ों के रूप में बना लिया जाता है। अन्य प्रकार के इस्पातों की अपेक्षा अकलुष इस्पात में निर्माण की क्रियाएँ, यथा बाह्य तल का नियंत्रण, घिसना, रेतना, बाह्य तल पर आक्सीकरण रोकने के लिए पुन: गरम करना, अर्धनिर्मित वस्तुओं पर रेत की धार मारना और अम्ल से स्वच्छ करना आदि क्रियाएँ, अधिक मात्रा में की जाती हैं। इसके अतिरिक्त अकलुष इस्पात के उपकरणों के ऊपरी पृष्ठ को लोग विभिन्न अवस्थाओं में चाहते हैं, यथा मृदु, कठोर, चमकरहित से लेकर श्रेष्ठ पालिशवाले तक और खुरदुरे से लेकर पूर्णतया सुचिक्कण तक।

विशेषताएँ एवं उपयोग

जहाँ निम्नलिखित अवस्थाओं में से एक या अधिक अवस्थाओं का निर्वाह सफलतापूर्वक करना पड़ता है वहाँ अकलुष इस्पात की आवश्यकता पड़ती है : प्रतिकूल ऋतु, धूल, खट्टा या नमकीन भोजन, रासायनिक पदार्थ, धातुओं को हानि पहुँचानेवाले जीवाणु, जल, घर्षण, आघात और अग्नि। इसका उपयोग वहाँ भी किया जाता है जहाँ बाह्य तल को स्वास्थ्य की दृष्टि से स्वच्छ, सुंदर या सुचिक्कण रखना होता है। जहाँ मजबूती की आवश्यकता होती है वहाँ भी इसका उपयोग किया जाता है।

अकलुष इस्पात को चमकदार रखने के लिए साधारण पालिश या बिजली की कलई की आवश्कता नहीं होती, केवल समय-समय पर साधारण सफाई ही पर्याप्त रहती है। अकलुष इस्पात की विशेषता उसमें जंग न लगने, क्षय न होने और रंग में विकृति न होने के कारण है। साधारणत: प्रतिरोधशक्ति क्रोमियम अंश के अनुसार बदलती है। आस्टेनिटिक 18 : 8 वाले अकलुष इस्पात में (जिसमें 18 प्रतिशत क्रोमियम और 8 प्रतिशत निकल रहता है) ऋतुक्षय से बचने और भोजनालय के, कपड़ा धोने के तथा दुग्धशाला के बर्तनों और अन्य साधारण उपयोगों के निमित्त उत्तम प्रतिरोधशक्ति रहती है। इसके गुण 14 : 18 क्रोमियम-इस्पात के समान होते हैं जिनमें कार्बन की मात्रा 0.12 प्रतिशत से अधिक नहीं होती। निकलवाला अकलुष इस्पात साधारण अकलुष इस्पात से कुछ ही महँगा पड़ता है। क्रोमियम निकल अकलुष इस्पात में मोलिब्डीनम मिलाने से लवणों और तेजाबों के प्रति प्रतिरोधशक्ति बढ़ जाती है। इससे इसका उपयोग समुद्रतटवर्ती अथवा लवण के संपर्क में आनेवाले उपादानों में विशेष रूप से होता है।

क्रोमियम-निकल अकलुष इस्पात को 450 डिग्री से 900 डिग्री सेंटीग्रेड के तापों के बीच उपयोग करने अथवा पीटने से उसकी प्रतिरोध शक्ति कम हो जाती है। इस दोष को दूर करने के लिए उसे 1,000 डिग्री से उच्च ताप पर गरम करके पुन: शीघ्रता से शीतल कर लिया जाता है। क्रोमियम-निकल और केवल क्रोमियमवाले अकलुष इस्पात, जिनमें कार्बन की की मात्रा 0.03 प्रतिशत से 0.08 प्रतिशत तक होती है और जिनको थोड़ा सा कोलंबियम, नियोबियम या टाइटेनियम मिलाकर स्थायी किया जाता है, इस प्रभाव से मुक्त रहते हैं।

अकलुष इस्पात के रासायनिक शत्रु हैं क्लोराइड, ब्रोमाइड और आयोडाइड। यदि धातु को समय-समय पर जल से स्वच्छ कर लिया जाता है और हवा में सूखने दिया जाता है तो वह अच्छा काम देती है। यदि धातु पर धूल अथवा अन्य पदार्थों की तह जम जाती है जिससे धातु से वायु का संपर्क नहीं हो पाता और धूल की तह लवणमय जल से तर हो जाती है तो ऐसे स्थानों पर गड्ढे पड़ जाते हैं। इसे रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए :

(1) बर्तनों की संधियाँ गहरी और तीक्ष्ण न रहें। उन्हें गोल रखा जाए।

(2) क्षयात्मक प्रयोगों में आनेवाले उपादानों को भली भाँति चिकना करके पालिश कर ली जाए, विशेषकर वेल्ड की गई संधियों को।

(3) छनने और जालीदार टोकरियों को विशेष रूप से स्वच्छ किया जाए जिससे जालियों के बीच गर्द न जमने पाए।

(4) निर्माण के समय लगे हुए लौहकण और पपड़ियाँ घिसकर साफ कर दी जाएँ।

(5) क्षयकारी वातावरण में गरम किए जानेवाले सामानों के बनाने में इस बात का ध्यान रखा जाए कि उनके विभिन्न अवयवों के प्रसार के लिए पर्याप्त स्थान रहे।

चाप सहनेवाले वाल्व, पंप और नल की फिटिंग, जिन्हें 550 डिग्री सेंटीगेड से ऊँचे ताप पर काम में लाना होता है, विश्वनीय मजबूती के लिए अकलुष इस्पात के बनाए जाते हैं। भट्ठियों के भागों में, दाहक कक्षों में, चिमनियों के अस्तर में और इसी प्रकार के अन्य कार्यों में अकलुष इस्पात का उपयोग किया जाता है। साधारण इस्पात पर जमी आक्साइड की परत सरलता से छूट पड़ती है, पर अकलुष इस्पात की आक्साइड की परत इसकी तुलना में स्थायी होती है और नीचे की धातु की रक्षा करती रहती है।

बहुत ठंडी करने पर अधिकांश धातुएँ चुरमुरी हो जाती हैं, किंतु क्रोमियम निकलवाले इस्पात द्रव आक्सीजन के ताप तक दृढ़, तार खींचने योग्य और आघातसह बने रहते हैं। इसलिए उद्योगों में इस श्रेणी के निम्न ताप पर इसी धातु का प्रयोग किया जाता है।

अन्य धातुओं की अपेक्षा अकलुष इस्पात को बहुधा कम खर्च में ही सूक्ष्म एवं दृढ़ रूप दिया जा सकता है। इसके तार उसी सुगमता से खींचे जा सकते हैं जिस सुगमता से ताम्र या पीतल के, पर यह साधारण इस्पात से अधिक दृढ़ होते हैं। अपनी इस दृढ़ता के कारण अकलुष इस्पात के उपादानों को रूप देने में अधिक शक्ति, बड़े यंत्रों और अधिक श्रम की आवश्यकता होती है। यदि अत्यधिक दृढ़ उपादान निर्मित करना हो तो इस्पात को बीच-बीच में मृदु बनाने की क्रिया करनी पड़ती है। अकलुष इस्पात से विविध सामग्री बनाने में की जानेवाली प्रमुख क्रियाएँ ये हैं : मोड़ना, गोल करना, तार खींचना, पीटना, ऐंठना, तानना और नली बनाना।

यदि सावधानी से कार्य किया जाए तो अकलुष इस्पात के लिए व्यावसायिक वेÏल्डग की सभी प्रचलित रीतियाँ काम में लाई जा सकती हैं। पिघलाकर जोड़ने (वेल्ड करने) में आपसे आप बन जानेवाली गोलियों को घिसकर अत्यंत चिकना कर लिया जाता है जिससे जोड़ देखने में सुंदर लगे और स्वास्थ्य के लिए हितकर रहे। सुनिर्मित, स्वचालित, निष्क्रिय गैसों में संरक्षित, "आर्क" भट्ठी पर वेल्ड किए हुए अकलुष इस्पात बिजली द्वारा पालिश करने देने से साधारणत: पर्याप्त चिकने हो जाते हैं। सभी प्रकार के क्रोमियम-निकल अकलुष इस्पात वेÏल्डग के ताप पर उत्पन्न होनेवाले विकृतिकारी प्रभावों के होते हुए भी तार खींचने योग्य रहते हैं। वेल्ड करते समय संधि के आसपास बनी गोलियाँ भी मृदु, पुष्ट और पिट सकने योग्य रहती हैं। यदि ऐसिटिलीन वेÏल्डग ठीक से न की जाए तो संधि में कार्बन का समावेश हो जाने से पुष्टता क्षयनिरोधकता में कमी आ जाती है।

कठोर बनाने योग्य अकलुष इस्पातों की भी वेÏल्डग की जा सकती है, किंतु उन्हें विशेष क्रियाओं द्वारा जोड़ा जाता है, जिससे वे चिटक न जाएँ। ऐसे इस्पातों को, जिनमें कार्बन की मात्रा 0.20 प्रतिशत से अधिक हो, पहले 260रू सें. तक गरम कर लिया जाता है, फिर उन्हें उसी ताप पर वेल्ड करके मृदु बना लिया जाता है। यदि वेÏल्डग के पश्चात् तुरंत ही धातु को कठोर करना और उसपर पानी चढ़ाना हो तो मृदु बनाने की क्रिया छोड़ी जा सकती है। साधारणत: ऐसे पुरजों को वेÏल्डग द्वारा नहीं जोड़ना चाहिए जिनपर बहुत ठोंक पीट या कटाई करनी हो।

अकलुष इस्पात के टुकड़े साधारणत: टक्करी जोड़ (बट वेÏल्डग) से जोड़े जाते हैं। पतली वस्तुएँ एक के ऊपर एक चढ़ाकर वेÏल्डग द्वारा जोड़ी जाती हैं। टैंक और रेफ्रिजरेटर आदि की जोड़ाई सीम वेÏल्डग से की जाती है।

अकलुष इस्पात को जोड़ने में राँगे-सीसे के टाँके का उपयोग कदापि न करना चाहिए। अकलुष इस्पात को दूसरी धातुओं से जोड़ने के लिए चाँदी का टाँका लगाया जाता है, किंतु यदि यह क्रिया शीघ्र संपन्न न की जा सके तो इसमें मालिब्डीनम आदि पड़े सुस्थिर अकलुष का ही उपयोग करना चाहिए।

अधिकांश प्रामाणिक अकलुष इस्पातों को खरादने आदि में बड़ी कठिनाई पड़ती है। धातु के निकाले गए अंश लंबे-लंबे चिमड़े टुकड़ों में निकलते है जिनसे परेशानी होती है। गंधक अथवा सेलीनियम की कुछ अधिक मात्रा अकलुष इस्पात में मिलाकर इस दोष से मुक्त संकर धातु का निर्माण किया जा सकता है।

तप्त करके किसी भी प्रकार के अकलुष इस्पात को ठोंक पीटकर इच्छित आकार दिया जा सकता है। यद्यपि अकलुष इस्पात को ढाला जा सकता है, फिर भी पतली या मोटी चादरें जोड़कर ही विभिन्न वस्तुएँ बनाने की प्रथा अधिक प्रचलित है। यदि अकलुष इस्पात से सूक्ष्म यंत्र बनाने हों तो इसके लिए विशेष प्रकार के दाबनेवाले साँचों का उपयोग किया जाता है।

क्षयनिरोधक छनने और इसी प्रकार के अन्य नियंत्रित रंध्रोंवाले यंत्र बनाने के लिए चूर्ण अकलुष इस्पात को विशेष ढंग के साँचों में अत्यंत अधिक दाब से दबाया जाता है।

पेंच, सिटकिनी, रिविट आदि को, जिनका उपयोग अकलुष इस्पात की वस्तुओं के संयोग के लिए किया जाए, अकलुष इस्पात का बनाना चाहिए।

क्रोमियम-निकल अकलुष इस्पात को अत्यधिक कठोर बनाया जा सकता है। मृदु किए गए सब प्रकार के अकलुष इस्पात साधारण इस्पात से अधिक मजबूत होते हैं। कठोर करने पर वे और भी मजबूत हो जाते हैं। ठंडी अवस्था में ही बेलने या तार खींचने से 18 : 8 वाले अकलुष इस्पात की मजबूती प्रति वर्ग इंच कई सौ टन होती है। ठंडी दशा में तनाव देकर बनाए गए क्रोमियम-निकल अकलुष इस्पात की चद्दरों को स्पॉट वेÏल्डग द्वारा जोड़कर ऐसी धरनें बनाई जा सकती हैं जिनका उपयोग अन्य हल्की संकर धातुओं के स्थान पर यातायात उद्योग अथवा ऐसे निर्माण कार्यों में लाभ के साथ हो सकता है जहाँ हल्की धातु का उपयोग नितांत आवश्यक होता है।

नीचे दी हुई तालिका विभिन्न प्रकार के अकलुष इस्पात और उनके उपयोगों को व्यक्त करती है :

(1) 12 प्रतिशत क्रोमियम साधारण कामों के लिए; कोयले के क्षेत्र में; प्रयुक्त यंत्रादि में; पंप, वाल्व आदि में।

(2) 17 प्रतिशत क्रोमियम

  • तप्त कठोर हो सकनेवाला छुरी, काँटा आदि; शस्त्रचिकित्सा के औजार, बाल बेयरिंग आदि में।
  • कठोर न हो सकनेवाला गृहनिर्माण (आँतरिक); मोटरकार; दाहक कक्ष में।

(3) 18 : 8 क्रोमियम-निकल भोजन, भोजनागार, गृहों के बाहरी दरवाजों या दीवारों में।

(4) 18 : 8 क्रोमियम-निकल-मालिब्डीनम लवणमय जल; वस्त्रनिर्माण के यंत्र, कागज निर्माण के यंत्र; या फोटोग्राफी में।

(5) क्रोमियम-मैंगनीज़ भोजनागार, गृह के बाहरी उपकरण और बाह्य दीवारों में।

सुचिक्कण अकलुष इस्पात सबसे अच्छा क्षयनिरोधी है। अकलुष इस्पात के बने पात्रों के भीतरी कोने गोल रखे जाते हैं। सर्वाधिक क्षयप्रतिरोध-शक्ति प्राप्त करने के लिए अकलुष इस्पात को 20-40 प्रतिशत शोरे के अम्ल में 55 डिग्री सें. से 70डिग्री सें तक ताप पर कम से कम आधे घंटे तक डुबाकर रखा जाता है।

भौतिक गुण

कुछ प्रकार के स्टेनलेस स्टील के भौतिक गुण[1]
प्रकार घनत्व (kg/dm3) प्रत्यास्थता गुणांक (GPa) औसत प्रसार गुणांक (e-6 K-1) ऊष्मा चालकता (W/m K) विशिष्ट ऊष्मा (J/kg K) प्रतिरोधकता (Ω mm2/m)
EN [n°] AISI/ASTM 20 °C पर 20 °C पर 20–200 °C पर 20–400 °C पर 20 °C पर 20 °C पर 20 °C पर
ऑस्टेनिटिक स्टेनलेस स्टील
1.4301 304 7,9 200 16,5 17,5 15 500 0,73
1.4401 316 8,0 200 16,5 17,5 15 500 0,75
ऑस्टेनो-फेरिटिक स्टेनलेस स्टील (डुप्लेक्स)
1.4462 2205 7,8 200 13,5 14,0 (g)15 500 0,80
1.4362 2304 7,8 200 13,5 14,0 (n)15 500 0,80
1,4501 7,8 200 13,5 (n.r.) 15 500 0,80
लौह स्टेनलेस स्टील
1.4512 409 7,7 220 11,0 12,0 25 460 0,60
1.4016 430 7,7 220 10,0 10,5 25 460 0,60
मार्टेन्सिटिक स्टेनलेस स्टील
1.4021 420 7,7 215 11,0 12,0 30 460 0,60
1.4418 7,7 200 10,8 11,6 15 430 0,80
Precipitation hardened stainless steel
1.4542 630 7,8 200 10,8 11,6 16 500 0,71

वैश्विक उत्पादन

स्टेनलेस स्टील के वैश्विक उत्पादन के आंकड़े प्रतिवर्ष अन्तरराष्ट्रीय स्टेनलेस स्टील फोरम द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं।[2]

चपटे और लम्बे रूपों में स्टेनलेस स्टील का कुल वैश्विक उत्पादन (मेट्रिक टन, '000s)
वर्ष यूरोपीय संघ अमेरिका चीन एशिया, चीन को छोड़कर अन्य देश विश्व
2019 6,8052,59329,4007,8945,52552,218
2018 7,3862,80826,7068,1955,63550,729
2017 7,3772,75425,7748,0304,14648,081
2016 7,2802,93124,9389,95667245,778
2015 7,1692,74721,5629,46260941,548
2014 7,2522,81321,6929,33359541,686
2013 7,1472,45418,9849,27664438,506

सन्दर्भ

  1. साँचा:Lien web
  2. "INTERNATIONL STAINLESS STEEL FORUM".

इन्हें भी देखें

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