सौदागर (1973 फ़िल्म)
सौदागर | |
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सौदागर का पोस्टर | |
निर्देशक | सुधेन्दु रॉय |
लेखक | सुधेन्दु रॉय (पटकथा) पी.एल.संतोषी (संवाद) |
निर्माता | ताराचंद बड़जात्या सुभाष घई |
अभिनेता | अमिताभ बच्चन नूतन पदमा खन्ना |
छायाकार | दिलीप रंजन मुखोपाध्याय |
संपादक | मुख़्तार अहमद |
संगीतकार | रवीन्द्र जैन |
प्रदर्शन तिथियाँ | 26 अक्तूबर, 1973 |
लम्बाई | 131 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
सौदागर 1973 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। इसका निर्देशन सुधेन्दु रॉय द्वारा किया गया और नरेन्द्रनाथ मित्र की कहानी रस पर आधारित है। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और नूतन प्रमुख भूमिकाओं में है।[1] हालांकि इस फ़िल्म को बॉक्स ऑफ़िस में उतनी सफलता नहीं मिली लेकिन इसे भारत की ओर से अकादमी पुरस्कार के लिए भेजा गया था लेकिन यह फ़िल्म नामांकित न हो सकी।
संक्षेप
नौजवान मोती (अमिताभ बच्चन) खजूर का रस ठेके पर निकालता है और उसका महजबी (नूतन) नाम की थोड़ी उम्र में बड़ी विधवा से गुड़ बनवाता है और उसे आमदनी में हिस्सा भी देता है। महजबी की गुड़ बनाने की कला लाजवाब है और मोती का गुड़ हाथों हाथ बिक जाता है। ये मौसमी काम है और जब इसका मौसम नहीं होता वो एक सुंदर युवती फूल बानो (पदमा खन्ना) से मिलता है और उससे शादी करना चाहता है। जब वह उसके अब्बा शेख़ साहब (मुराद) से उसका हाथ मांगने जाता है तो शेख़ साहब कहते हैं कि उन्हें ₹ ५०० महर चाहिए ताकि उनकी लड़की सुरक्षित रहे। जो कि उसके पास देने को नहीं है। वह ₹ २००, २५० और ३०० की मेहर भी ठुकरा देता है। मायूस लौट के आये मोती को कोई यह सलाह देता है कि जो उसका गुड़ बनाती है उसी से निक़ाह पढ़वाकर अपनी आमदनी का हिस्सा बचा ले। काम के फाश में पड़ा मोती महजबी के साथ निक़ाह पढ़वाता है और उसे अपने घर लाकर और अधिक गुड़ बनवाता है। जब उसके पास मेहर के पैसे पूरे हो जाते हैं तो वह महजबी को तलाक़ देता है और फूल बानो से ब्याह रचा लेता है। इस सदमे से महजबी किसी दूसरे गांव में एक मछली के व्यापारी, जिसके तीन बच्चे पहले से ही हैं, से ब्याह रचा लेती है। जब गुड़ बनाने का मौसम आता है तो फूल बानो जिसे गुड़ बनाने की कला का ज्ञान नहीं है निम्न गुणवत्ता का गुड़ बना के देती है। जिसकी वजह से उससे कोई गुड़ नहीं ख़रीदता है और मण्डी में उसकी १० साल पुरानी साख ख़त्म हो जाती है। आख़िरकार मोती थक हार के रस की दो हांडियाँ महजबी के नये घर लेकर जाता है और महजबी से उसका गुड़ बनाने की गुहार लगाता है। मोती के पीछे-पीछे फूल बानो भी आ जाती है और जब महजबी इस बात से इन्कार कर रही होती है कि वह मोती के लिए गुड़ बनाएगी, तभी उसकी नज़र बाड़े के पीछे खड़ी रोती हुयी फूल बानो पर पड़ती है। फूल बानो उसे आपा (दीदी) पुकारती है और दोनों आलिंगन कर लेते हैं। इस फ़िल्म के आख़िर में यह नहीं बताया गया है कि क्या महजबी ने फिर से मोती के लिए गुड़ बनाना शुरु कर दिया या फूल बानो को अपने गुड़ बनाने के राज़ बता दिए।
मुख्य कलाकार
- अमिताभ बच्चन - मोती
- नूतन - महजबी
- पदमा खन्ना - फूल बानो
- मुराद - फूल बानो का पिता
- लीला मिश्रा - गांव की एक बुढ़िया
- त्रिलोक कपूर
- सी एस दुबे
संगीत
सभी गीत रवीन्द्र जैन द्वारा लिखित; सारा संगीत रवीन्द्र जैन द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "तेरा मेरा साथ रहे" | लता मंगेश्कर | 5:45 |
2. | "क्यों लायो संइया पान" | आशा भोंसले | 4:41 |
3. | "मैं हूँ फूल बानो" | लता मंगेश्कर | 4:18 |
4. | "दूर है किनारा" | मन्ना डे | 5:31 |
5. | "हुस्न है या कोई कयामत है" | मोहम्मद रफी, आरती मुखर्जी | 4:57 |
6. | "हर हसीन चीज़ का" | किशोर कुमार | 4:12 |
7. | "सजना है मुझे सजना के लिए" | आशा भोंसले | 5:04 |
सन्दर्भ
- ↑ "गुड़ बेचने से लेकर लोगों का सामान उठाने तक, अमिताभ ने फिल्मों में किए ऐसे काम". दैनिक भास्कर. 1 मई 2018. मूल से 16 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अगस्त 2018.