सैम हिग्गिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान
'सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय' (Sam Higginbottom University of Agriculture, Technology and Science) भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के प्रयागराज नगर में एक प्रमुख विश्वविद्यालय है। यह दक्षिण एशिया के सबसे पुराने संस्थानों में से एक है। इसकी स्थापना १९१० में डॉ॰ सैम हिगिनबौटम द्वारा की गई थी। इसको पहले इलाहाबाद कृषि संस्थान कहा जाता था।
प्रोफेसर विलियम ब्रुस्टर हेज
प्रोफेसर विलियम ब्रुस्टर हेज (William Brewster Hayes ; 14 मार्च 1900-20 अगस्त 1957) उद्यान विज्ञान के क्षेत्र में एक जाने-माने प्रतिष्ठित वैज्ञानिक थे। वे प्रायः डब्ल्यू. बी. हेज के नाम से जाने जाते थे। उद्यान विज्ञान के क्षेत्र में इस वैज्ञानिक के योगदान और कृतियों का जितना ही बखान किया जाय, थोड़ा होगा। प्रो० हेज का सबसे बड़ा योगदान उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक "फुट ग्रोइंग इन इण्डिया" (Fruit Growing in India) है।
प्रोफेसर हेज एक अमरीकी (कैलिफोर्निया के) वैज्ञानिक थे, जो वर्ष 1921 में भारत आए थे और इलाहाबाद कृषि संस्थान, इलाहाबाद (नैनी) में एक उद्यान विशेषज्ञ के पद पर कार्यरत रहते हुए छात्रों को उद्यान विज्ञान की शिक्षा देते रहे। वे इस संस्थान के उपप्रधानाचार्य भी थे। गहन अध्ययन की दृष्टि से प्रो० हेज ने भारत के कोने-कोने के फल उद्यानों एंव शोधकेन्द्रों के व्यापक दौरे किये। यह पुस्तक प्रो० हेज के अनुभवों, गहन अध्ययन तथा कठोर परिश्रम का परिणाम है, जिसके माध यम से उक्त समस्त कमियों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास किया गया है।
इतना ही नहीं, देश-विदेश के विभिन्न उद्यानों एवं अनुसंधान केन्द्रों पर भिन्न भिन्न औद्यानिक विषयों पर क्या-क्या कार्य हुए तथा कौन कौन से और कार्य होने की आवश्यकता थी- ये सभी विवरण तथा स्वयं के विचार इस पुस्तक में व्यक्त किए गए हैं।
उद्यान विज्ञान के उत्थान में अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होने के साथ साथ यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और फल-उत्पादकों के लिए विविध फलों पर शोध कार्य एवं अध्ययन करने हेत आधार प्रदान करती है। उद्यान विज्ञान संबंधी शायद ही कोई लेख, पुस्तक, थीसिस अथवा शोधपत्र हो, जिसमें उक्त पुस्तक "फ्रट ग्रोइंग इन इण्डिया' का संदर्भ न दिया गया हो। इस पुस्तक की पाण्डलिपि प्रो० हेज ने 15 मई वर्ष 1944 को पूर्ण की। इसके पश्चात् वर्ष 1945 के जून मास में किताबिस्तान इलाहाबाद से यह पुस्त्क प्रथम बार प्रकाशित हुई, जो इलाहाबाद लॉ जर्नल प्रेस इलाहाबाद में श्री जे.के. शर्मा द्वारा मुद्रित हुई।
यह पुस्तक 283 पृष्ठों में प्रकाशित दो भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में फल उगाने की संभावनाएँ, उद्यान रोपण का आयोजन, पौध प्रसारण, रोपाई, उद्यान मृदा-प्रबंध, ऋतु परिवर्तन द्वारा उत्पन्न विपरीत दशाओं से बचाव, काट, छांट, अफलन की समस्या, फसल की कटाई तथा विपणन, फल उद्यान स्वास्थ्य, फल-उत्पाद तथा पामोलॉजी (Pomology फलों की वैज्ञानिक बागवानी) का इतिहास एवं साहित्य पर जानकारियाँ उपलब्ध कराई गई हैं। इस भाग में 12 अध्याय हैं।
पुस्तक के दूसरे भाग में आम, नीबूवर्गीय फल, केला, अमरूद तथा जामुन जैसे इसके कुटुम्ब (मिटैंसी : Myrtaceae) के अन्य फल, पपीता, लीची, खजूर, अंगूर, अंजीर, शरीफा व इसके कुटुम्ब (एनोनैसी : Anonaceae) के अन्य फल, अनन्नास, लघु सम-उष्णीय फल (Minor Subtropical fruits) तथा शीतोष्ण (Temperate) फलों के विस्तृत विवरण प्रस्तुत किए गए हैं। इस भाग में 13 अध्याय हैं।
इस प्रकार पूरी पुस्तक में कुल 25 अध्याय हैं । यथास्थान इसमें चित्रों का भी समावेश किया गया है, जिससे इस पुस्तक का और भी महत्व बढ़ जाता है।
प्रोफेसर हेज ने विश्वविख्यात इलाहाबादी अमरूद की काट-छांट पर वर्ष 1932 से 1943 तक इलाहाबाद कृषि संस्थान इलाहाबाद में शोध कार्य भी किया। इसके लिए वर्ष 1932 में 15-15 फुट तथा 25-25 फुट के फासले पर दो भागों में अमरूद के पौधे लगाए गए। जब 15-15 फुट पर लगे वृक्ष घने हाने लगे, तब इनकी वार्षिक कड़ी काट-छाँट की जाने लगी। इसके लिए पिछले ऋतु की टहनी को एक या दो आँख तक काट दिया जाता था। प्रत्येक वृक्ष के कुछ भाग की छंटाई मई में, कुछ की जून और कुछ की जुलाई में की जाती रही। इस भाग के कुछ वृक्षों की तथा 25-25 फुट पर लगे समस्त वृक्षों की सामान्य हल्की छंटाई होती रही।
इसके परिणामस्वरूप जहा एक ओर कड़ी छंटाई किए गये वृक्षों में फल माप में बड़े बड़े प्राप्त हुए और प्रति एकड पौधों की संख्या अपक्षाकृत बहुत अधिक रही, वहीं दूसरी ओर प्रति वृक्ष फलों की संख्या इतनी कम रही कि इसकी प्रति एकड़ उपज 25-25 फुट पर लगे वृक्षों की प्रति एकड़ उपज के आधे से भी कम पाई गई।
इसके अतिरिक्त वर्ष 1942-43 तक 15-15 फुट पर लगे हल्की छंटाई किए गए वृक्षों की उपज 25-25 फुट पर लग वृक्षों की उपज से कुछ अधिक रही। परन्तु इसके बाद 15-15 फुट पर लगे वृक्ष घने होने लगे थे, जबकि 25-25 फुट पर लगे वृक्षों को भविष्य में वृद्धि की सम्भावनाएं प्रबल थीं। अमरूद की छंटाई के लिए जून-जुलाई का समय सर्वोपयुक्त पाया गया। उक्त शोध पत्र "पूनिंग दि गवावा' (pruning th guava) शीर्षक से 'इण्डियन जर्नल ऑफ हॉटीकल्चर' में अंक 1 (एक) के पृष्ठ 120-125 पर वर्ष 1943 में प्रकाशित हुआ।
नीबूवर्गीय फलों का फलमक्खी के प्रभाव पर अध्ययन करने के मध्य प्रो० हेज ने पाया कि सिक्किम में फल मक्खी के प्रकोप से प्रत्येक वर्ष इतनी अधिक क्षति होती है कि वृक्षों के नीचे की भूमि इन कीटों द्वारा ग्रसित गिरे फलों से बिल्कुल ढक जाती है। वे इस निष्कर्ष पर भी पहुंचे कि नीबूवर्गीय फुलों में फल-मक्खी का घातक प्रकोप केवल सम-उष्णीय (सबट्रॉपिकल) ठंडे क्षेत्रों तक ही सीमित रहता है। उक्त अध्ययन का परिणाम “दि सिट्रस इण्डस्ट्री इन सिक्कम' (The Citrus Industry in Sikkim) शीर्षक से वर्ष 1945 में इण्डियन जर्नल ऑफ हॉटीकल्चर अंक, 3 के पृष्ठ 49-55 पर प्रकाशित है। शिक्षण कार्य के अतिरिक्त उद्यान विज्ञान के विकास हेतु प्रोफेसर हेज अपने विषय के गहन अध्ययन, शोध कार्य एवं व्यावहारिक कार्यों में अंतिम समय तक के फल-उद्यानों के सुचारु रूप से रख-रखाव के लिए वृक्षों की काट छांट आदि जैसे कार्य व अन्य देखभाल वे स्वंय भी किया करते थे। आवश्यकता पड़ने पर वे वृक्ष पर चढ़ भी जाते थे।
वे उपयोगी एंव उत्तम पौध-सामग्रियों की खोज में सर्वदा जुटे रहते थे। इलाहाबाद कृषि संस्थान के स्थापित फल-उद्यानों में लगे विशिष्ट किस्मों के नीबूवर्गीय फल मुख्यतः ग्रेप फ्रूट तथा किन्नों संतरे आदि के उद्यान प्रो० हेज के कठोर परिश्रम तथा उद्यान विज्ञान के प्रति पूर्णतः समर्पण भाव के परिचायक हैं।
स्वर्गीय प्रोफेसर विलियम ब्रूस्टर हेज हॉर्टीकल्चरल सोसायटी ऑफ इण्डिया के स्थापन वर्ष 1942 से ही संस्थापक सदस्य तथा वर्ष 1947 तक काउन्सिलर बने रहे। वे इस सोसाइटी के वरिष्ठतम पद पर वर्ष 1953 से 1955 तक अध्यक्ष रहे। प्रो० हेज की ये महत्वपूर्ण कृतियाँ वैज्ञानिकों एवं लेखकों को सर्वदा उनकी याद दिलाती रहेंगी।
बाहरी कड़ियाँ
* जालस्थल