सेवरी किला
सेवरी दुर्ग | |
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शिवडी किल्ला | |
सेवरी किला | |
मुम्बई में अवस्थिति | |
सामान्य विवरण | |
प्रकार | दुर्ग |
स्थान | सेवरी, मुम्बई |
निर्देशांक | 19°00′02″N 72°51′37″E / 19.000635°N 72.860363°E |
उच्चता | 60 मी॰ (197 फीट) |
निर्माण सम्पन्न | १६८० |
ग्राहक | ब्रिटिश |
स्वामित्व | पुरातत्त्व एवं संग्रहालय विभाग, महाराष्ट्र सरकार |
सिवरी दुर्ग (सेवरी किला) ब्रिटिश द्वारा मुम्बई के सिवरी में बनवाया गया था। इस दुर्ग का निर्माण १६८० में एक उत्खनित पहाड़ी पर मुंबई बंदरगाह पर दृष्टि बनाये रखने हेतु एक पहरे की मीनार के रूप में किया गया था।[1]
इतिहास
अठारहवीं शताब्दी तक, मुंबई में कई छोटे-छोटे द्वीप शामिल हुआ करते थे। १६६१ में इन में से सात द्वीपों को पुर्तगालियों ने इंग्लैड के राजा चार्ल्स तृतीय को अपनी राजकुमारी से विवाह होने पर दहेज़ के रूप में दिए गए थे। सेवरी का बंदरगाह एक उत्कृष्ट और योग्य बंदरगाह था, इसलिए अंग्रेजो ने सूरत से अपना तल यहाँ बदलने की योजना बनाई। अफ्रीका से आये हुए सिद्दियों ने अपनी नौसेना के मुगल साम्राज्य से अच्छे सम्बन्ध बना लिये थे। ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश और मुग़लों में लगातार युद्ध चल रहा था। मुगलों की निकटता पाने हेतु सिद्दियों ने ब्रिटिश से शत्रुता कर ली। १६७२ में सिद्दियों द्वारा कई हमलो के उपरान्त अंग्रेज़ों ने कई जगह से उनकी किलेबंदी कर ली और १६८० में सिवरी किले का निर्माण कार भी पूरा हो गया। यह मझगाँव द्वीप पर बना था जहां से यह पूर्वी समुद्र तट पर नजर रखता था। यहां ५० सिपाहियों की एक चौकी थी उन पर एक सूबेदार था। यह टुकड़ी आठ से दस तोपों के साथ लैस थी। १६८९ में सिद्दी जनरल याकूत खान ने २०,००० सैनिकों के साथ बॉम्बे पर आक्रमण किया। इनके पहले बेड़े ने सिवरी किले पर अधिकार कर लिया फिर मझगाँव किला और माहिम को घेर कर अधिकृत कर लिया। इसके बाद १७७२ में किले से एक और युद्ध हुआ जिसमें पुर्तगाली हमलो को पीछे हटाया गया। स्थानीय शक्तियों में कमजोरी आने पर किले को बाद को में कैदियों के लिए प्रयोग किया जाने लगा था।
वास्तु
इस किले के मुख्य रूप से रक्षा की दृष्टि से बनाया गया था, इसलिए अलंकरण और आभूषण का यहां नितान्त अभाव रहा है। इसे ऊँची पत्थर की दीवारों से घेरा हुआ है और ऐसी ही एक घेरेबन्दी आतंरिक भी है जो अधिक सुरक्षा के लिए बनायीं है। बाहर यह तीन दिशाओं पर घिरा है, और एक ६० मीटर (१९७ फ़ीट) की चट्टान भी है। इसका प्रवेश द्वार एक पत्थर का द्वार है जो प्रांगण में ले जाता है। यहाम के सामने के दरवाजे से आक्रमण होने पर बचाव हेतु भीतरी प्रवेश द्वार मुख्य प्रवेश द्वार को सीधा रखा गया। एक लंबे गुंबददार गलियारे के साथ पंचकोना कमरे और रैखिक गुंबददार संरचनाएँ यह इस वास्तु की विशेषताएँ है।
यह किला वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य के पुरातत्व व संग्रहालय विभाग के अनुरक्षण में है। इसे एक ग्रेड वन विरासत संरचना के रूप में वर्गीकृत किया गया है, और 'मुम्बई फोर्ट सर्किट' परियोजना के तहत इस किले को बहाल करने के प्रयास शुरू हैं।
सन्दर्भ
- ↑ "मुम्बई के ऐतिहासिक किले". बुकस्ट्रक. मूल से 20 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित.
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in first (मदद)