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सुसमाचार (ईसाई धर्म)

"चार शुभ-संदेशकार", बलूटेनबर्ग कासल, मुनिक, जर्मनी में चारों इंजीलों के रचयिताओं की चित्र, (बाएं से दाएं: मत्ती, यूहन्ना, लुका और मरकुस)

ईसाई संप्रदाय में, सुसमाचार या गॉस्पेल, जिसे (इस्लाम में) इंजील भी कहा जाता है, यीशु मसीह का इस दुनिया में आना और उद्धार करना को समाचार को कहते हैं।[1] यह मूलतः एक वर्णात्मक कथा है, जिसमें यीशु मसीह, उनके जन्म, उनके जीवन, सूली पर चढ़ाये जाने और पुनरुत्थान ( अर्थात् यीशु मसीह का मृतकों में से जी उठना ) को बताया गया है।

★ कई लोगों का कहना है, कि, यह एक विदेशी धर्म है, लेकिन बाइबल ऐसा बताती है कि, यीशु मसीह किसी का धर्म बदलने के लिए नहीं आया, और यह भी कि, परमेश्वर किसी विशेष जाति के लिए नहीं आया, किसी विशेष धर्म के लिए नहीं आया, वो इसलिएआया ताकि लोग सच्चाई को जानें। ★

बाइबल के विभिन्न अनुवादों में इसे शुभसंदेश या खुशखबरी[2] भी कहा गया है, जोकि यूनानी शब्द यूआनजेलिऑन के पुराणी अंग्रेजी अनुवाद, गॉस्पेल का हिंदी में अनुवादित रूप है। सुसमाचार की कथा का सार, बाइबल की चार किताबों में पाया जाता है: मत्ती, मरकुस, लुका, और युहन्ना।

नामकरण

बाइबल के हिंदी अनुवादों में गॉस्पेल को शुभसंदेश या सुसमाचार कहा गया है। यह शब्द यूनानी शब्द यूआनजेलिऑन (εὐαγγέλιον) से आता है, जिसका अर्थ है, "अच्छी खबर", यह दो यूनानी शब्दों से आया है: εὖ (यू) "शुभ" + ἄγγελος (आंजेलोस) "संदेशवाहक"। इसी शब्द को लैटिन भाषा के अपभ्रंशों में evangelium (एवाञ्जेलियम) के रूप में अपना लिया गया, जिसे यूरोप के अन्य भाषाओँ में सम्मिलित कर लिया गया। पुरानी अंग्रेजी में अनुवाद में, यूनानी शब्दावली यूआनजेलिऑन को गूड्सपील (gōdspel) के रूप में अनुवादित किया गया, जो पुरानी अंग्रेजी के दो शब्दों से आता है:gōd "शुभ" + spel "समाचार", इसे मध्यकालीन अंग्रेजी में, वर्तनी सुधर किये बिना "गॉस्पेल" (Gospel) के रूप में अपना लिया गया। सुसमाचार, इन्हीं शब्दों का अनुवादित रूप है।

परिचय

सुसमाचार का यह सन्देश, ईसाई धर्म की धार्मिक-संकल्पना में मौलिक स्थान रखता है। तथा ईसाई धर्म के दार्शनिक परिपेक्ष को समझने के लिए इसे समझना महत्वपूर्ण है। एक धर्मसिद्धांत के रूप में, सुसमाचार को नए नियम के कई पत्रों में वर्णित किया गया है। ईसाई मान्यता के अनुसार, यह समाचार, मानवता के प्रति ईश्वर की दया का सूचक है, जिसके ज़रिये ईश्वर ने अपने पुत्र यीशु को धरती पर भेज कर, सूली पर चढ़ाकर, समस्त मानवता के पापों का प्रायश्चित करवा, मानवता और ईश्वर के बीच सुलह स्थापित कर दिया। इसके अलावा, इस सुसमाचार की कथा में, विश्वासियों पर पवित्र आत्मा का उतारना और यीशु के पुनर आगमन का सन्देश भी शामिल है। कुल मिला कर सुसमाचार की कथा और इससे जुडी संकल्पनाएँ, ईसाई धर्मशास्त्र की मूल मान्यताओं में से एक है।

ईसाई शास्त्र, यीशु मसीह में निर्वाण के इस सुसमाचार को, नए नियम में रची गयी एक नई संकल्पना नहीं मानता। ईसाई मान्यता के अनुसार, इसके होने की भविष्यवाणी पुराने नियम में भी की गयी है, तथा उत्पत्ति की किताब में, मानव के पतन की घटना के समय भी सुसमाचार का प्रचार नबियों द्वारा भविष्यवाणी के रूप में किया गया पाया जाता है।[3][4][5][6][7]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Mark 1,Mark 1:14-15 Archived 2007-12-30 at the वेबैक मशीन
  2. [1]
  3. [3:14-15]
  4. The Proto-Gospel, by R. C. Sproul.Archived 2008-12-03 at the वेबैक मशीन
  5. Luther and the Christology of the Old Testament Archived 2015-01-20 at the वेबैक मशीन, by Dr. Raymond F. Surburg, p14, saying: "Messianic prophecy has its origin in Genesis 3:15, which has been called the "protevangelium," the first Gospel promise. It was spoken by the LORD God ( יְהוָה אֱלֹהִם ) to the Serpent, used by Satan, in the hearing of Adam and Eve."
  6. The Lutheran Study Bible, p20, "3:15...This points to Christ and His defeat of Satan on the cross, and for this reason this verse is often called the 'protevangelium' (the first promise of the Gospel)"
  7. Worldwide Mission: The Work of the Triune God Archived 2015-01-20 at the वेबैक मशीन, by Dr. Paul Peter, p3, saying "After the Fall of man (Gen. 3) and its dire results, the loss of Paradise (3:23f.), death by sin (3:3; Rom. 5:12), and the cursing of the ground (3:17), preceded by the Protevangelium (3:15), the first revelation of the missio Dei, the Scriptures continue with the generations of Adam and the names of all the patriarchs from Adam to Noah..."

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