सुचेता कृपलानी
सुचेता कृपलानी (मूल नाम: सुचेता मजूमदार) (२५ जून,१९०८[1] - १ दिसम्बर, १९७४[2][3]) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ थीं। ये उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनीं और भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री थीं। वे प्रसिद्ध गांधीवादी नेता आचार्य कृपलानी की पत्नी थीं।
जीवनी
सुचेता कृपलानी का जन्म हरियाणा के अंबाला शहर में सम्पन्न बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता सरकारी चिकित्सक थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कई स्कूलों में पूरी हुई क्योंकि हर दो-तीन वर्ष में पिता का तबादला होता रहता था। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें दिल्ली भेज दिया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से उन्होंने इतिहास विषय में स्नातक की डिग्री हासिल की।
कॉलेज से निकलने के बाद, 21 वर्ष की उम्र में ही ये स्वतंत्रता संग्राम में कूदना चाहती थीं पर दुर्भाग्यवश वह ऐसा कर नहीं पायीं क्योंकि 1929 में उनके पिता और बहन की मृत्यु हो गयी और परिवार को संभालने की जिम्मदारी सुचेता के कंधो पर आ गयी। इसके बाद, वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में संवैधानिक इतिहास की व्याख्याता बन गईं।
सन १९३६ में अठाइस साल की उम्र में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्य नेता जेबी कृपलानी से विवाह किया। सुचेता के इस कदम का उनके घर वालों के साथ महात्मा गांधी ने भी विरोध किया था। जेबी कृपलानी सिन्धी थे और उम्र में सुचेता कृपलानी से बीस साल बड़े थे। इसके अलावा गाँधीजी को डर था कि इस विवाह के कारण आचार्य जो उनके “दाहिने हाथ” थे, कहीं स्वतंत्रता संग्राम से पीछे न हट जाँय। आचार्य कृपलानी का साथ पाकर सुचेता पूरी तरह से राजनीति में कूद पड़ीं। 1940 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की महिला शाखा – ‘अखिल भारतीय महिला काँग्रेस’ की स्थापना की। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय होने के कारण उन्हें एक साल के लिए जेल जाना पड़ा। १९४६ में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गई। 1949 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था।
भारत के स्वतंत्र होने के बाद वह भारतीय राजनीति में सक्रिय हो गयीं। जब उनके पति व्यक्तिगत व राजनीतिक मतभेदों के कारण जवाहरलाल नेहरू से अलग हो गए और अपनी खुद की पार्टी किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई तब सुचेता भी इनके साथ हो लीं। 1952 में सुचेता किसान मजदूर पार्टी की ओर से न्यू दिल्ली से चुनाव लड़ी और जीतीं भी। पर शीघ्र ही राजनैतिक मतभेदों के कारण वह काँग्रेस में लौट आयीं। 1957 में काँग्रेस के टिकिट पर इसी सीट से वह दुबारा चुनाव जीतीं और राज्यमंत्री बनायीं गयीं। १९५८ से १९६० तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थी।
1962 में सुचेता कृपलानी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा। वे कानपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गयीं और उन्हें श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। १९६३ ई में उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। १९६३ से १९६७ तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 1967 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ कर जीत हासिल की।
सन १९७१ में उन्होने राजनीति से संन्यास ले लिया। राजनीति से सन्यास लेने के बाद वे अपने पति के साथ दिल्ली में बस गयीं। निःसन्तान होने के कारण उन्होंने अपना सारा धन और संसाधन लोक कल्याण समिति को दान कर दिया। इसी समय, उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘एन अनफिनिश्ड ऑटोबायोग्राफी’ लिखनी शुरू की, जो तीन भागों में में प्रकाशित हुई। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरता गया और 1 दिसम्बर 1974 को हृदय गति रूक जाने से उनका निधन हो गया।
सुचेता कृपलानी भारत के किसी प्रदेश की पहली महिला मुख्य मंत्री थीं। ये बंटवारे की त्रासदी में महात्मा गांधी के बेहद करीब रहीं। वे उन चंद महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने बापू के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वे दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुईं, जब उनके रुख में नरमी आई।
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सन्दर्भ
- ↑ S K Sharma (2004), Eminent Indian Freedom Fighters, Anmol Publications PVT. LTD., पृ॰ 560, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788126118908[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 जुलाई 2009.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 2 मई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 जुलाई 2009.
राजनीतिक कार्यालय | ||
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पूर्वाधिकारी चंद्रभानु गुप्त | उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री २ अक्टूबर १९६३ – १४ मार्च १९६७ | उत्तराधिकारी चंद्रभानु गुप्त |