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सीसा


सीसा / Lead
रासायनिक तत्व
रासायनिक चिन्ह:Pb
परमाणु संख्या:82
रासायनिक शृंखला:संक्रमणोपरांत धातु

आवर्त सारणी में स्थिति
अन्य भाषाओं में नाम:Lead (अंग्रेज़ी)
विद्युत अपघटन द्वारा शुद्ध किया हुआ सीस ; १ घन सेमी से घन के साथ (तुलना के लिए)
विद्युत अपघटन द्वारा शुद्ध किया हुआ सीस ; १ घन सेमी से घन के साथ (तुलना के लिए)

सीस, सीसा या लेड (अंग्रेजी : Lead, संकेत : Pb लैटिन शब्द प्लंबम / Plumbum से) एक धातु एवं तत्त्व है। काटने पर यह नीलिमा लिए सफ़ेद होता है, लेकिन हवा का स्पर्श होने पर स्लेटी हो जाता है। इसे इमारतें बनाने, विद्युत कोषों, बंदूक की गोलियाँ और वजन बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। यह सोल्डर में भी मौजूद होता है। यह सबसे घना स्थिर तत्त्व है।

यह एक पोस्ट-ट्रांज़िशन धातु है। इसका परमाणु क्रमांक ८२, परमाणु भार २०७.२१, घनत्व ११.३६, गलनांक ३,२७.४ डिग्री सें., क्वथनांक १६२०डिग्री से. है। इसके चार स्थायी समस्थानिक, द्रव्यमान २०४, २०६, २०७ और २०८ और चार रेडियो ऐक्टिव समस्थानिक, द्रव्यमान २०९, २१०, २११ और २१४ ज्ञात है। आवर्त सारणी के चतुर्थ समूह के 'ख' वर्ग का यह अंतिम सदस्य है। इस समूह के तत्वों में यह सबसे अधिक भारी और धात्विक गुणवाला है। इसकी संरचना में पूछद (shell) और एक बाह्य छेद (shell) है। बाह्य छेद में इलेक्ट्रान होते हैं जिनमें दो को यह बड़ी सरलता से छोड़ देता है। इस कारण इसके द्विसंयोजक लवण अधिक स्थायी होते हैं। चतुःसंयोजक लवण कम स्थायी होते हैं और उनकी संख्या भी कम है।

यह पीटने से फैल सकता है और तार रूप में भी हो सकता है, पर कुछ कठिनता से। इसका रंग भी जल्दी बदला जा सकता है। इसकी चद्दरें, नलियाँ और बंदूक की गोलियाँ आदि बनती हैं। सीसा दूसरी धातुओं के साथ बहुत जल्दी मिल जाता और कई प्रकार की मिश्र धातुएँ बनाने में काम आता है। छापे के टाइप की धातु इसी के योग से बनती है। आयुर्वेद में सीसा सप्त धातुओं में है और अन्य धातुओं के समान यह भी रसौषध के रूप में व्यवहृत होता है। इसका भस्म कई रोगों में दिया जाता है। वैद्यक में सीसा आयु, वीर्य और कांति को बढ़ानेवाला, मेहनाशक, उष्ण तथा कफ को दूर करनेवाला माना जाता है।

इतिहास

सीसा बहुत प्राचीन काल से ज्ञात है। इसका उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसका उपयोग भी ईसा के पूर्व से होता आ रहा है। मिस्रवासी इस जानते थे और लुक फेरने में प्रयुक्त करते थे। स्पेन का सीसा निक्षेप २००० ई. पू. से ज्ञात था। यूनान में भी ५०० ई. पू. से इसका उत्पादन होता था। जर्मनी के राइन नदी और हार्ट्स पर्वत के आसपास ७०० से १००० ई. के बीच यह खानों से निकाला जाता था। आज सीसा का सर्वाधिक उत्पादन संयुक्त राज्य अमरीका के मिसिसिपी में होता है। अमरीका के बाद आस्ट्रेलिया (ब्रोकेन हिल जिला), मेक्सिको, कैनाडा, जर्मनी, स्पेन, बेलजियम, बर्मा, इटली और फ्रांस आदि देशों में यह पाया जाता है। साधारणतया यह सोना, चाँदी, ताँबे और जस्ते आदि के साथ मिला रहता है।

खनिज

स्वतंत्र अवस्था में यह नहीं पाया जाता। भूपटल पर इसकी मात्रा १ प्रतिशत से कम ही पाई गई है। इसका प्रमुख खनिज गैलिना (PbS) है जिसमें अधिकतम ८६.६% रहता है। इसके अन्य खनिजों में सेरुसाइट (Cerussite, लेडकार्बोनेट) ऐंग्लीसाइट (Anglesite, लेड सल्फेट), क्रोकासाइट (Crocoisite, लेडक्रोमेट), मैसीकॉट (Massicot, लेड आक्साइड) कोटुनाइट (Cotunrite, लेड क्लोराइड), बुल्फेनाइट (Wulfenite, लेड मोलिबडेट), पाइरोमारफाइट (Pyromorphite, लेड फास्फो क्लोराइड), बेरिसिलाइट (Barysilite, लेड सिलिकेट) और स्टोलजाइट (Stolzite, लेड टंगस्टेट) है।

सीसा धातु की प्राप्ति

सीसा खनिजों में कुछ कचरे और कुछ धातुएँ जैसे ताँबा, जस्ता, चाँदी और सोना आदि प्राय: सदा ही मिले रहते हैं। कुछ अपद्रव्य तो उत्प्लावन विधि से और कुछ पीसने से निकल जाते हैं। ऐसे अंशत: शुद्ध खनिजों को प्रद्रावण भ्राष्ट्र (मेल्टिंग फर्नेस) में मर्जित (purify) करते हैं। जो भ्राष्ट प्रयुक्त होते हैं वे साधारणतया तीन प्रकार की चुल्ली या स्कॉच तलभ्राष्ट्र (Hearth furnace), वात भ्राष्ट्र (Blast furnace) अथवा परावर्तन भ्राष्ट्र (Reverberatory furnace) होते हैं। भ्राष्ट्र का चुनाव खनिज की प्रकृति पर निर्भर करता है। उच्च कोटि के खनिज के लिए, जिसकी पिसाई महीन हुई है और जिसमें अन्य वस्तुएँ प्राय: नहीं है, स्कॉच भ्राष्ट्र तथा निम्न कोटि के खनिजों के लिए वातभ्राष्ट्र उपयुक्त होता है। रद्दी माल और अन्य उपोत्पाद के लिए ही परावर्तक भ्राष्ट्र काम में आता है। भ्राष्ट्र में मार्जन के बाद ऐसी धातु प्राप्त होती है जिसमें अन्य धातुएँ जैसे ऐंटिमनी, आर्सेनिक, ताँबा, चाँदी और सोना आदि मिली रहती है। परिष्कार उपचार से अन्य धातुएँ निकाली जाती हैं। अब सिल में ढालकर धातु बाजारों में बिकती हैं।

रासायनिक गुण

शुद्ध सीसा चाँदी सा सफेद होता है पर वायु में खुला रहने से मलिन हो जाता है। सीसा कोमल, भारी और द्रुत गलनीय होता है। ३०० डिग्री से. से ऊपर यह नम्य हो जाता है और तब विभिन्न आकारों में परिणत किया जा सकता है। यह घातवर्ध्य ९malleable) है पर इसमें तनाव क्षमता का अभाव होता है। यह तन्य नहीं है। आक्सीकरण से इसके तल पर एक आवरण चढ़ जाता है जिसके कारण वायु का फिर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सामान्य ताप पर यह जल में घुलता नहीं पर आक्सीजन वाले जल में घुलकर हाइड्राक्साइड बनाता है। अत: पेय जल के नल के लिए यह उपयुक्त नहीं है, तनु नाइट्रिक अम्ल और उष्ण सल्फ्यूरिक अम्ल से यह आक्रांत होता है। ठंढे सलफ्यूरिक अम्ल और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की कोई क्रिया नहीं होती। मुख या नाक से शरीर में प्रविष्ट होकर यह इकट्ठा होता जाता है। पर्याप्त मात्रा में इकट्ठे होने पर 'सीसा विष' के लक्षण प्रकट होते हैं। प्रति घनफुट वायु में यदि ०.००९ मिग्रा सीसा है तो ढाई वर्ष के बाद सीसा विष के लक्षण प्रकट होते हैं।

सीसा के यौगिक

सीसा के अनेक यौगिक बनते हैं जिनमें औद्योगिक दृष्टि से कुछ बड़े महत्व के हैं।

आक्साइड

सीसे के पाँच आक्साइड बनते हैं जिनमें लिथार्ज (Pbo), लेडपेराक्साइड (PbO2) और रक्तसिंदूर (Red lead, Pb3 O4) अधिक महत्व के हैं। लिथार्ज पीला या पांडु रंग का गंधहीन चूर्ण होता है जिसका उपयोग रबर, पेंट, काँच, ग्लेज और इनेमल के निर्माण में होता है। विद्युत बैटरियों के लिए इसके पट्ट भी बनते हैं। कृमिनाशक औषधियों और पेट्रोल की सफाई में सीसा लगता है। पिछली सीसा धातु को परावर्तक भ्राष्ट्र में ऊँचे ताप पर वायु द्वारा आक्सीकरण करने से लिथार्ज प्राप्त होता है।

रक्तसिंदूर चमकीला लाल रंग का भारी चूर्ण होता है। इसका सर्वाधिक उपयोग वर्णक के रूप में होता है। इसके लेप से लोहे और इस्पात के तलों का संरक्षण होता और उस पर मोरचा नहीं लगता है। संचय बैटरी के पट्ट में भी यह काम आता है। काँच और ग्लेज का निर्माण भी इससे होता है। रक्तसिंदूर का निर्माण परावर्तक भ्राष्ट्र में ऑक्सीजन के साथ ४५० डिग्री-४८०डिग्री से. के बीच सीसा के तपाने से होता है। ५०० डिग्री से. से ऊपर ताप पर यह लिथार्ज में बदल जाता है। इसे पीस और छानकर पेंट में प्रयुक्त करते हैं। लेड पैराक्साइड का उपयोग दियासलाई और रंजकों के निर्माण में होता है। यह प्रबल आक्सीकारक होता है। सीसा के शेष दो आक्साइड, लेड सबआक्साइड (Pb2O) और लेड सेस्क्विच ऑक्साइड (Pb2O3) व्यापार की दृष्टि से महत्व के नहीं हैं।

लेड ऐसीटेड

लिथार्ज को ऐसीटिक अम्ल में घुलाकर गरम कर विलयन को संतृप्त बनाकर ठंडा करने से लेड ऐसीटेड के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं। क्रिस्टल को Pb (C2 H3 O2)2 3H2O 'सीसा शर्करा' भी कहते हैं। वायु में खुला रखने से क्रिस्टल प्रस्फुटित होते हैं। जल और ग्लिसरीन में यह जल्द घुल जाता है। यह स्तंभ (astringent) होता है पर विषाक्त होने के कारण इसका सेवन नहीं कराया जाता। यह पशु चिकित्सा, कपड़े की रँगाई, छींट की छपाई, रेशम को भारी बनाने और सीसा के अन्य यौगिकों के प्राप्त करने में व्यवहृत होता है। इसका एक क्षारक रूप भी होता है जो जल में जल्द घुलता नहीं, कार्बनिक पदार्थों की सफाई और विश्लेषण में यह रसायनशाला में काम आता है।

लेड कार्बोनेट

सीसा के अनेक कार्बोनेट होते हैं पर सबसे अधिक महत्व का कार्बोनेट जलयोजित क्षारक कार्बोनेट है जो सफेदा के नाम से वर्णक में बहुत बड़ी मात्रा में प्रयुक्त होता है। इसमें तलाच्छादन की क्षमता इसी प्रकार के अन्य वर्णकों से बहुत अधिक है पर टाइटेनियम आक्साइड से कम। अब सफेदा का स्थान टाइटेनियम आक्साइड ले रहा है। सफेदा में दोष यह है कि यह वायु के हाइड्रोजन सल्फाइड सेलेड सल्फाइड बनने के कारण काला हो जाता है। टाइटेनियम आक्साइड में दोष यह है कि यह महँगा पड़ता है और अभी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। सफेदा का उपयोग पेंट के अतिरिक्त पुट्टी (Putty) सीमेंट और लेड कार्बोनेट कागज के निर्माण में भी होता है।

लेड सल्फेट

सीसा के किसी विलेय लवण के विलयन में सलफ्यूरिक अम्ल अथवा विलेय सल्फेट का विलयन डालने से अविलेय सीसा सल्फेट का अवशेपण प्राप्त होता है। सीसा के क्षारक सल्फेट भी होते हैं। सल्फेट का निर्माण बड़ी मात्रा में भ्राष्ट्र के ऑक्सीकारक वायुमंडल में गलनांक तक गरम करने से होता है। यह सफेद चूर्ण होता है। वर्णक के अतिरिक्त इसका उपयोग संचय बैटरियों, लिथो छपाई और वस्त्रों का भार बढ़ाने में होता है।

लेड सल्फाइड

यह काला अविलेय चूर्ण होता है। इसी का प्राकृतिक रूप गैलिना है। मिट्टी के बरतनों या पोसिंलेन पर लुक फेरने में यह काम आता है। इसके काले अवक्षेप से विलयन में सीसा लवण की उपस्थिति जानी जाती है।

लेड क्रोमेट

सीसा के विलेय लवणों पर पोटैशियम या सोडियम बाइक्रोमेट के विलयन की क्रिया से लेड क्रोमेट (क्रोमपीत) और क्षारक सीसा क्रोमेट (क्रोम नारंगी) का अवक्षेप प्राप्त होता है। इनके उपयोग पेंट में होते हैं। लेड क्रोमेट को प्रशियन ब्लू के साथ मिलाने से क्रोम हरा वर्णक प्राप्त होता है। लेड सल्फेट के मिलने से लेड क्रोमेट का रंग हल्का पीला हो जाता है।

लेड नाइट्रेट

सीसा को तनु नाइट्रिक अम्ल में घुलाने से सीसा नाइट्रेट प्राप्त होता है। यह सफेद क्रिस्टलीय होता है और जल में जल्द घुल जाता है। यह स्तंभक होता है पर विषैला होने के कारण बाह्य रूप में ही व्यवहृत होता है। दियासलाई बनाने, कपड़े की रँगाई, छींट की छपाई और नक्काशी बनाने में यह काम आता है।

लेड आर्सेनाइट

सीसी अनेक आर्सेनिक बनाता है जिनमें सीसा डाइ आर्सेनिक (Pb H As O2) सबसे अधिक महत्व का है। कृमिनाशक औषधियों में यह काम आता है, विशेष रूप से पेड़ में लगे कीड़े इसी से मारे जाते हैं। लिथार्ज पर आर्सेनिक अम्ल और अल्प नाइट्रिक अम्ल की क्रिया से यह बनता है। क्रिया संपन्न हो जाने पर उत्पाद को छानते, धोते और सुखाते हैं।

सीसा के अन्य लवणों में लेड बोरेट [Pb (BO2)2 H2O] पेंट और वार्निश में शोषक के रूप में और काँच, ग्लेज़, चीनी बर्तन पोर्सिलेन इत्यादि पर लेप चढ़ाने में काम आता है। सीसा क्लोराइड (PbCl2) मरहम बनाने और क्रीमपीत बनाने में काम आता है। सीसा टेट्राएथिल Pb (C2 H5)4) बहुत विषैला पदार्थ है पर इसका उपयोग आजकल बहुत बड़ी मात्रा में पेट्रोल या गैसोलिन में प्रत्याघाती (anti knock) के रूप में होता है। विषैला होने के कारण इसके व्यवहार में सावधानी बरतने की आवश्यकता पड़ती है।

सीसा के उपयोग

सीसे के ब्लॉकों का उपयोग विकिरण से शिल्डिंग के लिये किया जाता है।
सीसे के बने 'मुभेबल टाइप' (movable type)

सीसा बहुत बड़ी मात्रा में खपता है। यह धातु मिश्र धातु के रूप में और यौगिकों के रूप में व्यवहृत होता है। सीसा की चादरें, सिंक, कुंड, सल्फ्यूरिक अम्ल निर्माण के सीसकक्ष और कैल्सियम फास्फेट उर्वरक निर्माण के पात्रों में आदि में अस्तर देने में काम आती है। संक्षारक द्रवों और अवशिष्ट पदार्थों के परिवहन में इसके नल इस्तेमाल होते हैं। टेलीफोन केबल के ढकने में, भूगर्भ स्थित वाहक नलियों के निर्माण में, गोलों (shots), गुलिकाओं, गोलियों (bullets), संचायक बैटरियों के पट्टों और पन्नियों के निर्माण में यह काम आता है।

एक्स-रे और रेडियो ऐक्टिव किरणों से बचाव के लिए इसकी चादरें काम आती हैं क्योंकि इन किरणों को सीसा अवशोषित कर लेता है (रेडिएशन शिल्डिंग)।

इसकी अनेक महत्व की मिश्र धातुएँ बनती हैं। अल्प ताँबे की उपस्थिति से संक्षारण-प्रतिरोध, कड़ापन और तनाव सामर्थ्य बढ़ जाता है। ऐंटीमनी की उपस्थिति से भी कठोरता, कड़ापन और तनाव सामर्थ्य बढ़ जाता है। अल्प टेल्यूरियम के रहने से संक्षारण प्रतिरोध, विशेषत: ऊँचे ताप पर, बहुत बढ़ जाता है। इसकी मिश्र धातुएँ सोल्डर (टाँके का मसाला), बेयरिंग धातुएँ, टाइप, लाइनोटाइप धातुएँ, प्यूटर (Pewter), ब्रिटानिया धातु, द्रावक धातु, ऐंटीमनी सीसा और निम्न ताप द्रवनांक धातुएँ अधिक महत्व की हैं। इसकी मिश्र धातु पाईप बनाने में काम आती हैं।

इसके लवणों में सबसे अधिक मात्रा में सफेदा प्रयुक्त होता है। लिथार्ज, सीस पेराक्साइड, सीस ऐसीटेट, सीस आर्सेनाइट, सीस क्रोमेट, सीस सल्फेट, सीस नाइट्रेट, सीस टेट्राएथिल इत्यादि इसके अन्य लवण हैं जो विभिन्न कार्यों में पर्याप्त मात्रा में प्रयुक्त होते हैं।

भारत में सीसा

राजपूताना गजेटियर के अनुसार राजस्थान के जावर क्षेत्र में सन् १३८२-९७ में ही सीसा तथा चाँदी की खानों का अन्वेषण हो चुका था किंतु प्रथम बार राज्य द्वारा इस क्षेत्र का विधिवत् पूर्वेक्षण सन् १८७२ में किया गया। कुछ सूत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि अजमेर के समीप तारागढ़ पहाड़ियों में सीसे के निक्षेपों में अनेक वर्षों तक कार्य होता रहा है और सन् १८५७ के पूर्व जब इन खानों से उत्पादन बंद हुआ, यहाँ का उत्पादन साढ़े पाँच क्विंटल प्रति वर्ष तक पहुँच गया था। भारतीय भूतात्विक समीक्षा के अभिलेखों के अनुसार भारत के गैलेना (PbS) की प्राप्ति अनेक भागों जैसे बिहार, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश एवं तमिलनाडु आदि से भी हो सकती है। अक्टूबर, १९४५ में जावर क्षेत्र के लिए पूर्वेक्षण प्रपत्र, राजस्थान सरकार ने मेसर्स मेटल कॉर्पोरेशन ऑव इंडिया लि. को दिया। इस कंपनी ने तभी से मोबिया मोगरा पहाड़ियों में विस्तृत खनन कार्य प्रारंभ कर दिया।

सीसा और जस्ता खनिज प्राय: साथ-साथ ही पाए जाते हैं। और बहुधा इनके साथ अल्प मात्रा में चाँदी भी प्राप्त होती है।

बाहरी कड़ियाँ