सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान
सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान (उर्दू: سپاہ صحابہ پاکستان, पाकिस्तान का एक सुन्नी देवबन्दी संगठन है जो पहले एक राजनैतिक पार्टी भी रहा है। इसकी स्थापना हक़ नवाज़ झंगवी ने 1980 के दशक में पाकिस्तानी पंजाब के झंग शहर में की थी। यह एक शिया-विरोधी संगठन है और इसने अपना ध्येय पाकिस्तान में 1979 में हुई ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद शियाओं के प्रभाव को कम करना बताया था। ईरान एक शिया-प्रमुख देश है। 2002 में भूतपूर्व पाकिस्तानी तानाशाह परवेज़ मुशर्रफ़ ने इसपर प्रतिबन्ध लगा दिया था और इसे एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था। इसके बाद इस संगठन ने अपना नाम बदलकर 'अह्ल-ए-सुन्नत वल जमात' रख लिया। हालाँकि इसे अभी भी अधिकतर 'सिपाह-ए-सहाबा' ही बुलाया जाता है। मार्च 2012 में पाकिस्तानी सरकार ने अह्ल-ए-सुन्नत वल जमात पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया। कुछ विद्वानों के अनुसार पाकिस्तान के एक और भूतपूर्व तानाशाह ज़िया-उल-हक़ ने ही प्रारम्भ में इस संगठन को प्रोत्साहित किया था।[1]
नाम
इस्लामी इतिहास में 'सहाबा' पैग़म्बर मुहम्मद के साथियों को कहा जाता है। इस संगठन ने अपने-आप को उनकी परम्परा के रखवाले होने का नाम दिया।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ The Politics of Terrorism: A Survey, Andrew Tian Huat Tan, pp. 214, Taylor & Francis US, 2006, ISBN 978-1-85743-347-0, ... The Sipah-e-Sahaba broke from the main Deobandi Sunni organization, the Jumiatul Ulema-e-Islam in 1985, and was originally known as the Anjuman Sipah-e-Sahaba. The group claims to be a response to the militancy of Shias in Punjab state after the Iranian Revolution in 1979. However, it may also have received some encouragement from the government of Zia ul-Haq ...