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सिन्धु कला

सिन्धु कला एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय कला है। यह सर्वमान्य है कि सिन्धु सभ्यता सर्वथा स्वदेशी है। हड़प्पा से प्राप्त नर्तकी की काँसे की मूर्ति तथा लाल पत्थर की एक मूर्ति का धड़, मोहनजोदड़ों से प्राप्त बैल तथा बन्दरों की आकृतियाँ आदि इस कला की सबसे महत्त्वपूर्ण कलाकृतियाँ हैं। इन कृतयों में जिस कला का परिचय मिलता है, वह सैली की सशक्त स्वाभाविकता, आकृति के विभिन्न अनुपातों के उत्कृष्ट ज्ञान और हर्ष एवं उल्लास की ऐसी भावनाओं से परिपूर्ण है जिनका अनुभव जीवन के स्पंदनशील क्षेत्र में ही हो सकता है। इस काल की कलाकृतियों में अनुभव तथा कौशल की पर्याप्त परिपक्वता का परिचय मिलता है। कुछ विद्वानों का विचार है कि सिन्धु सभ्यता तथा आर्य सभ्यता कुछ समय तक सहवासिनी रहीं और परस्पर मेल से फली फूलीं। सिंधु सभ्यता के अंतर्गत हमें कलाकारो विकसित स्वरूप में देखने को मिलता है सिंधु सभ्यता के निवासी कला के प्रेमी थे तथा उन्होंने कला के विकास को पर्याप्त योगदान दिया सिंधु सभ्यता में हमें वस्तु कला मूर्तिकला स्थापत्य कला और चित्रकला आदि के प्रमाण मिलते हैं

मूर्तिकला

भारत में मूर्तिकला का वास्तविक आरंभ सिंधु घाटी के निवासियों ने किया सिंधु घाटी सभ्यता के अंतर्गत मूर्तिकला का अत्यधिक विकास हुआ यहां के नगरों की खुदाई में पाषाण पत्थर धातु तथा मिट्टी की मूर्तियां प्राप्त होती हैं पाषाण तथा धातु की मूर्तियां यद्यपि कम है परंतु देख कलात्मक दृष्टि से उच्च कोटि की है पाषाण यानी पत्थर की मूर्तियां सिंधु घाटी सभ्यता के अंतर्गत खुदाई में पाषाण से बनी हुई दर्जनों मूर्तियां प्राप्त हुई है हड़प्पा से तीन पत्थर की मूर्तियां मिली हैं पुजारी की पत्थर की मूर्ति यह 19 सेंटीमीटर ऊंची है इसमें दाढ़ी सवारी गई है कृपया छाप वाला शॉल ओढ़े हुए हैं उसका बायां कंधा ढका हुआ है लेकिन दाहिना कंधा खुला हुआ है मोहनजोदड़ो से 12 पत्थर की मूर्तियां मिली हैं यहां से प्राप्त मूर्तियों में पुजारी को की मूर्ति भीड़ तथा हाथी की मूर्ति उल्लेखनीय है