सिन्धी भाषा की लिपियाँ

एक शताब्दी से कुछ पहले तक सिन्धी लेखन के लिए चार लिपियाँ प्रचलित थीं। हिन्दू पुरुष देवनागरी का, हिंदु स्त्रियाँ प्राय: गुरुमुखी का, व्यापारी लोग (हिंदू और मुसलमान दोनों) "हटवाणिको" का (जिसे 'सिंधी लिपि' भी कहते हैं) और मुसलमान तथा सरकारी कर्मचारी अरबी-फारसी लिपि का प्रयोग करते थे। सन 1853 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के निर्णयानुसार लिपि के स्थिरीकरण हेतु सिंध के कमिश्नर मिनिस्टर एलिस की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई। इस समिति ने अरबी-फारसी-उर्दू लिपियों के आधार पर "अरबी सिंधी " लिपि की सर्जना की। सिंधी ध्वनियों के लिए सवर्ण अक्षरों में अतिरिक्त बिंदु लगाकर नए अक्षर जोड़ लिए गए। अब यह लिपि सभी वर्गों द्वारा व्यवहृत होती है। हालांकी भारत के सिंधी लोग नागरी लिपि को अपना रहे हैं।
इतिहास
सिन्धी एक मात्र ऐसी भाषा है, जिसकी दो लिपियों को भारतीय संविधान की मान्यता है। सिंधी भाषा की लिपि को लेकर लंबा विवाद चला है और आज भी इसको लेकर विवाद होता रहता है। सिंधी किस लिपि में लिखी जाए, इसको लेकर सिंधी लेखकों व साहित्यकारों में दो धड़े हो चुके हैं। ये दोनों ही धड़े सिंधी भाषा को संविधान में मान्यता दिए जाने के दौरान आमने-सामने आ गए। दोनों एक दूसरे का विरोध करने लगे तथा केन्द्रीय सरकार के ऊपर अपनी-अपनी लिपि सिंधी लिपि तथा देवनागरी लिपि को मान्यता देने के लिए दबाव डालते रहे। आखिरकार भारत सरकार ने 10 अप्रैल 1967 में सिंधी भाषा को संविधान में मान्यता प्रदान की, साथ-साथ सिंधी भाषा के लिए दोनों लिपियों अरबी-फारसी तथा देवनागरी लिपि को मंजूर किया। सिंधी भाषा भारतीय संविधान की एक मात्र ऐसी भाषा है, जिसके उपयोग के लिए दो लिपियों को मान्यता प्रदान की गई है।
ऐसा नहीं है कि लिपि को लेकर आजादी के बाद ही विवाद हुआ। संयुक्त हिंदुस्तान के समय भी देवनागरी लिपि अस्तित्व में आ चुकी थी। सिंधियों के जन्माक्षर देवनागरी लिपि में लिखे जाते थे। सन् 1923 में कराची सरकार ने पाठ्यक्रमों की पुस्तकें देवनागरी में प्रकाशित की थीं। गद्य की प्रारंभिक पुस्तकें, जो अंग्रेजों ने रची एवं प्रकाशित कीं, उन में कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें देवनागरी लिपि में थीं, जो इस प्रकार हैं:- मती अजील बाइबल से सेन्ट मौथियूस का अनुवाद, 1825, ग्रामर ऑफ सिंधी लैंग्वेज, मी. प्रनेसप 1855, ए ग्रामर वोक्यूबलरी ऑफ सिंधी लैंग्वेज-मी. वाथन 1836, वाक्यूबलरी ऑफ सिंधी लैंग्वेज- ईस्टविक 1849, ए ग्रामर वोक्यूबलरी ऑफ सिंधी लैंग्वेज- कैप्टन स्टैक 1849, ए डिक्शनरी-अंग्रेजी-सिंधी-कैप्टन स्टैक 1849.
सन् 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ और सिंध के हिन्दू सिंधी भारत में आए और अनेक राज्यों में बस गए। भारत में फिर से लिपि के प्रश्न को उठाया गया। दिसम्बर 1942 में मुंबई में एक सिंधी साहित्य सम्मेलन हुआ था, जिसमें यह निर्णय भी हुआ था कि सिंधी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाए। यह प्रस्ताव सिंधी के सुप्रसिद्ध ग्रंथकार लालचंद अमरडिऩो मल ने रखा था। साथ में स्वतंत्रता सेनानी, राज्य सभा के सदस्य और पूर्व केन्द्रीय मंत्री दादा जैरामदास दौलतराम तथा अन्य कांग्रेसी सिंधी स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की वस्तुस्थिति तथा हिन्दी देवनागरी लिपि की मांग को आगे बढ़ाया। इसका अरबी लिपि का उपयोग करने वाले सिंधी विद्वानों ने विरोध किया। अलवर में अखिल भारत सिंधी सम्मेलन में, अखिल भारत सिंधी बोली साहित्य सभा, जो सिंधी विद्वानों, शिक्षा शास्त्रियों, पत्रकारों तथा कलाकारों की प्रतिनिधि सभा थी, ने अरबी लिपि का प्रस्ताव किया, जिसमें गोविंद माल्ही, कीरत बाबाणी, पोपटी हीरानंदाणी, प्रो॰ मंघाराम मलकाणी तथा अन्य भाषा विज्ञानी व शिक्षाशास्त्री थे।
वैसे वस्तुस्थिति ये है कि प्राचीन-अर्वाचीन सिंधी साहित्य, लोक-साहित्य, धार्मिक सिंधी अरबी लिपि में ही प्रकाशित है। अरबी लिपि में ही अध्ययन एवं अध्यापन की ज्यादातर सुविधाएं हैं। लिपि के संबंध में स्वाधीनता के पश्चात आज तक संघर्ष चला आ रहा है। कोई एक स्पष्ट निर्णय नहीं हो पाया है। चूंकि राष्ट्रभाशा की लिपि देवनागरी है और अन्य भाषाओं की अधिकतर लिपियां देवनागरी के नजदीक हैं, इसलिए हिन्दी प्रदेशों में सिंधी भाषा के लिए देवनागरी का प्रचलन कुछ ज्यादा है।
हिन्दी भाषा के लेखन के लिए एक ही लिपि देवनागरी लिपि का प्रयोग होता है, परन्तु सिंधी भाषा के लेखन में अरबी-फारसी और देवनागरी दोनों लिपियों का प्रयोग होता है। इसलिए सिंधी भाषा की विशिष्ट ध्वनियों के लिए देवनागरी लेखन में विशेष चिन्ह लगाते हैं। उदाहरण के लिए देखें तो हिंदी में अन्त: स्फुरित ध्वनियां नहीं हैं, जब कि सिंधी की ग, ज, ब, ड ध्वनियों के अन्त:स्फुटिक रूप सिंधी में मिलते हैं। देवनागरी लिपि में उक्त लिपि-चिन्हों के नीचे पड़ी रेखा लगा कर अन्त:स्फुटिक ध्वनियों के लिए लिपि-चिन्ह लगाने की परम्परा है।
वर्तमान में भारत के अधिकतर राज्यों में सिंधी माध्यम के स्कूल बंद होते जा रहे हैं। स्कूलों-कॉलेजों में सिंधी एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। इसी कारण नई सिंधी युवा पीढ़ी सिंधी भाषा से विमुख हो रही है। अरबी-फारसी लिपि सीखना उनके लिए दुश्वार सा हो गया है। इसलिए युवा पीढ़ी में देवनागरी लिपि का प्रचलन हो रहा है। सभी राज्यों के युवा सिंधी लेखक देवनागरी लिपि में लेखन कार्य तथा प्रकाशन कार्य कर रहे हैं। सिंधी लिपि का बड़ी तेजी से व्यवहार में उपयोग कम होता जा रहा है। अधिकतर राज्य साहित्य अकादमियां भी अपना साहित्य देवनागरी लिपि में प्रकाशित कर रही हैं।
देवनागरी
भारत में अरबी के अलावा देवनागरी लिपि का उपयोग भी किया जाता है। देवनागरी लिपि जो हिन्दी कि तरह बायें से दायें लिखी जाती है। यह 1948 में भारत सरकार द्वारा लायी गयी भाषा है।
| अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ए | ऐ | ओ | औ |
|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
| ə | a | ɪ | i | ʊ | uː | e | ɛ | o | ɔ |
| क | ख | ख़ | ग | ग॒ | ग़ | घ | ङ | ||
| k | kʰ | x | ɡ | ɠ | ɣ | ɡʱ | ŋ | ||
| च | छ | ज | ज॒ | ज़ | झ | ञ | |||
| c | cʰ | ɟ | ʄ | z | ɟʱ | ɲ | |||
| ट | ठ | ड | ड॒ | ड़ | ढ | ढ़ | ण | ||
| ʈ | ʈʰ | ɖ | ɗ | ɽ | ɖʱ | ɽʱ | ɳ | ||
| त | थ | द | ध | न | |||||
| t | tʰ | d | dʱ | n | |||||
| प | फ | फ़ | ब | ब॒ | भ | म | |||
| p | pʰ | f | b | ɓ | bʱ | m | |||
| य | र | ल | व | ||||||
| j | r | l | ʋ | ||||||
| श | ष | स | ह | ||||||
| ʃ | ʂ | s | h | ||||||
अरबी-फारसी लिपि
सिंधी लिखने के लिये प्रयुक्त अरबी-फारसी लिपि में 52 अक्षर होते है। इसमें से अधिकांश अरबी वर्णमाला के हैं, कुछ फारसी वर्णमाला के हैं और कुछ नये वर्ण जोड़े गये हैं। 18 नये अक्षर, ڄ, ٺ, ٽ, ٿ, ڀ, ٻ, ڙ, ڍ, ڊ, ڏ, ڌ, ڇ, ڃ, ڦ, ڻ, ڱ, ڳ, ڪ है। इनमें अधिकतर का रूप आदि, मध्य और अंत में भिन्न-भिन्न होता है। स्वरों की मात्राएँ अनिवार्य न होने के कारण एक ही शब्द के कई उच्चारण हो जाते हैं।
| جھ | ڄ | ج | پ | ث | ٺ | ٽ | ٿ | ت | ڀ | ٻ | ب | ا |
|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
| ɟʱ | ʄ | ɟ | p | s | ʈʰ | ʈ | tʰ | t | bʱ | ɓ | b | * |
| ڙ | ر | ذ | ڍ | ڊ | ڏ | ڌ | د | خ | ح | ڇ | چ | ڃ |
| ɽ | r | z | ɖʱ | ɖ | ɗ | dʱ | d | x | h | cʰ | c | ɲ |
| ق | ڦ | ف | غ | ع | ظ | ط | ض | ص | ش | س | ز | ڙھ |
| k | pʰ | f | ɣ | ∅ | z | t | z | s | ʃ | s | z | ɽʱ |
| ي | ه | و | ڻ | ن | م | ل | ڱ | گھ | ڳ | گ | ک | ڪ |
| * | h | * | ɳ | n | m | l | ŋ | ɡʱ | ɠ | ɡ | kʰ | k |
मेरा भारत महान
| हिन्दी | मध्य-पूर्व | पूर्वी/भारतीय-सिंधी |
|---|---|---|
| ० | ٠ | ۰ |
| १ | ١ | ۱ |
| २ | ٢ | ۲ |
| ३ | ٣ | ۳ |
| ४ | ٤ | ۴ |
| ५ | ٥ | ۵ |
| ६ | ٦ | ۶ |
| ७ | ٧ | ۷ |
| ८ | ٨ | ۸ |
| ९ | ٩ | ۹ |
लिप्यन्तरण
व्यंजनों का लिप्यंतरण
| देवनागरी | अरबी-फारसी |
| आ | آ |
| अ | ا |
| ब | ب |
| भ | ڀ |
| थ | ٿ |
| ट | ٽ |
| ठ | ٺ |
| प | پ |
| ज | ج |
| झ | جھ |
| ञ | ڃ |
| च | چ |
| छ | ڇ |
| ख़ | خ |
| द | د |
| ध | ڌ |
| ड | ڊ |
| ढ | ڍ |
| र | ر |
| ढ़ | ڙھ |
| ड़ | ڙ |
| श | ش |
| ग़ | غ |
| फ़ | ف |
| फ | ڦ |
| क़ | ق |
| क | ڪ |
| ख | ک |
| ग | گ |
| घ | گھ |
| ङ | ڱ |
| ल | ل |
| म | م |
| न | ن |
| ं | ن |
| ण | ڻ |
| व | و |
| य | ي |
| ब॒ | ٻ |
| ज॒ | ڄ |
| ड॒ | ڏ |
| ग॒ | ڳ |
| त | ت |
| त | ط |
| ह | ح |
| ह | ه |
| ज़ | ذ |
| ज़ | ز |
| ज़ | ض |
| ज़ | ظ |
| स | س |
| स | ص |
| स | ث |
इन्हें भी देखें
- खुदाबादी लिपि
- देवनागरी लिपि
- सिंध
- सिन्धी भाषा का साहित्य
- भारतीय सिन्धु विद्यापीठ
- राष्ट्रीय सिन्धी भाषा संवर्धन परिषद
- भारत की भाषाएँ
- भारत के भाषाई परिवार
== सिन्धी ॿोली ऐं लिपी (सूरतख़ती)
ॿोली माना ॻाल्हायल ॿोलनि (लफ़्ज़नि) जो भन्डारु .
लिपी माना ॻाल्हायल ॿोलनि (लफ़्ज़नि) जे सुरनि - उचारनि (आवाज़नि) जा लिखियल रूप (सूरतूं) जिनि खे पढ़ी सघिबो आहे .
ॿोली आत्मा आहे त उन्हं जी पंहिंजी लिपी, रूपु माना अवतारु हूंदी आहे . छो त ॿोलीअ जी पंहिंजी लिपीअ में ई सुर ऐं उचार - आवाज़नि जे लिखियल रूपनि खे सही - सही पढ़ी सघिजे थो .
सिन्धीअ में ॿारहां (१२) सुर (Vowels) ऐं चालीह (४०) उचार (Consonants) मिलाए कुलु ॿावन्झा (५२) अखर आहिनि . सिन्धीअ जी मूलु - असुली लिपी देवनागिरीअ में ॿारहनि सुरनि जा रूप आहिनि ऐं ॿारहनि मां यारहनि (११) जूं लाकिनाऊं (ऐराब) -- ज़ेरि, ज़बर ऐं पेशु वगेरह) बि अलॻि आहिनि .
सिन्धी देवनागिरी लिपीअ जा अखिरी रूप - सूरतूं ॻाल्हायल अखरनि जे आधार ते ठहियल आहिनि . इन्हं अखर-माल्हा (अल्फा बेट) जे अखरनि जो सिलसिलो मूंहं जे लिङनि सां उचारिण वारे रिथाइते सिलसिले सारूं (मूजिब) आहे .
इन्हं करे सिलसिले में पहिरियों छाती मां निकितल ॾह सुर 'अ', 'आ' खां 'ओ', 'औ', यारहों नक मां टुॿिके वारो 'अं' = 'ं' ऐं दुन वटां सघारो सुरु 'ह' ताईं वारा ॿारहां सुर रखिया वया आहिनि .
पो ॼिभ ऐं काकिड़े सां उचारियल उचार -- क, ख, ग, ॻ, घ, ङ .
पो ॿिन्हीं तारुनि जे विच मां उचारियल चीभाटिणा उचार -- च, छ, ज, ॼ, झ, ञ .
पो ॼिभ उबिती करे मथें तारूंअं सां उचारियल तारुवां उचार -- र, ल, ट, ठ, ड, ॾ, ढ, ड़, ढ़, ण ट्र, ड्र ऐं ढ्र .
पो ॾन्दनि सां ॼिभ टकिराए उचारियल उचार -- त, थ, द, ध ऐं न .
पो चपनि सां उचारियल उचार -- प, फ, ब, ॿ, भ ऐं म .
पो गसिणा उचार -- स, श ऐं अधु सुर -- व ऐं य .
जॾहिं त अरबी ऐं फ़ारसी लिपीअ जे अखरनि जा रूप ॻाल्हायल अखरनि जे आधार ते ठहियल कोन्हंनि ऐं सिलसिलो बि अखिरी रूपनि जी हिक - जेढ़ाईअ वारो बेढंगो आहे .
अरबी सिन्धी लिपीअ में सुरनि जा अलॻि रूप (सूरतूं) कोन्हंनि, छड़ो लाकिनाऊं (ऐराब) -- ज़ेरि, ज़बर ऐं पेशु वगेरह आहिनि . हीअ सिन्धी न पर पराई अरबी लिपी आहे, इन्हं करे हिन जे अखिरी रूपनि खे सिन्धी उचारनि - आवाज़नि वांगरु सही सही लिखी ऐं पढ़ी बि न सघिबो आहे .
प्रेमु तनवाणी
साभार : डॉ लाल थदानी पूर्व अध्यक्ष राजस्थान सिंधी अकादमी जयपुर ।
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