सिख धर्म के विविध सम्प्रदाय
सिख धर्म के सम्प्रदाय से आशय उन परम्पराओं एवं सम्प्रदायों से है जिनका सिख धर्म की मुख्यधारा से निकट सम्बन्ध रहा है किन्तु गुरुओं की किसी अन्य शृंखला को मानते हैं या जो सिख धर्मग्रन्थों का अलग तरह से अर्थ करते हैं, या किसी जीवित गुरु का अनुसरण करने में विश्वास रखते हैं। [1][2] हरजोत ओबेराय के अनुसार, सिख धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय ये हैं- उदासी सम्प्रदाय, निर्मल, नानकपन्थी, खालसा, सहजधारी, नामधारी कूका, निरंकारी, और सरवरिया हैं। [3]
प्राचीनतम सिख सम्प्रदायों में उदासी सम्प्रदाय और मीणे थे जो क्रमशः श्री चन्द एवं पृथी चन्द द्वारा स्थापित किए गए थे। बाद में गुरु हर राय के पुत्र राम राय ने देहरादून में अपना अलग ही सम्प्रदाय चलाया जिनके अनुयायी 'रमरैया' कहलाते हैं। [4] गुरु हर किशन के देहान्त के पश्चात तथा गुरु तेग बहादुर के राज्याभिषेक की अवधि में अनेकों सिख सम्प्रदाय बने। इन सम्प्रदायों की आपस में बहुत मतभिन्नता थी।
सन्दर्भ
- ↑ Hardip Singh Syan (2014). Pashaura Singh and Louis E. Fenech (संपा॰). The Oxford Handbook of Sikh Studies. Oxford University Press. पपृ॰ 170–180. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-969930-8. मूल से 4 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 नवंबर 2018.
- ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;Takhar2014p350
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ Harjot Oberoi (1994). The Construction of Religious Boundaries: Culture, Identity, and Diversity in the Sikh Tradition. University of Chicago Press. पपृ॰ 24–25. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-226-61592-9.
- ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;FenechMcLeod2014p260
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।