सिक्खों की मिसलें
मिसलें (1716-1799) सिख्ख सम्प्रभु राज्य थे।
मुगल बादशाह बहादुशाह (1707-1712) की 10 दिसम्बर 1710 को प्रसारित एक राजाज्ञा से बड़े पैमाने पर सिक्खों का उत्पीड़न आरंभ हुआ। फर्रुखसियर ने भी इस आदेश को दोहरा दिया। लाहौर के गवर्नर अब्दुस्समद खाँ और उसके पुत्र तथा उत्तराधिकारी जकरिया खाँ (1726-45) ने भी सिक्खों को पीड़ित करने के लिये अनेक उपाय किए।
अतएव सिक्खों ने अपने को दो दलों में संगठित किया- (1) बुड्ढा दल और (2) तरुण दल। बुड्ढा दल का नेतृत्व कपूर सिंह और तरुणदल का नेतृत्व दीपसिंह के हाथों में था। ये दोनों दल जब तब अपने छिपने के स्थानों से निकलकर स्थानीय अधिकारियों को परेशान करते थे। इन्होंने अपनी बिखरी हुई शक्ति को संगठित किया। तरुण दल पाँच जत्थों में विभाजित किया गया जिनके निम्नलिखित नेता थे-
(1) दीपसिंह शहीद
(2) करमसिंह और धरमसिंह, अमृतसर
(3) खानसिंह और विनोद सिंह, गोइंदवाल
(4) दसौंधा सिंह, कोट बुड्ढा
(5) बीरू सिंह और जीवनसिंह।
जब अफगानिस्तान से अहमदशाह दुर्रानी के पंजाब पर आक्रमण हुए तो सिक्खों को अपने को दृढ़तर आधार पर संगठित करने का अच्छा अवसर मिल गया। उन्होंने सरहिंद (जनवरी 14, 1764) और लाहौर (अप्रैल 16,1765) पर अधिकार कर लिया।
1748 और 1765 के बीच बुड्ढा और तरुण दलों के पाँचों जत्थों ने द्रुत गति से अपना प्रसार किया और अनेक राज्यसंघ बने जो मिसलें कहलाई। निम्नलिखित 12 मिसलें मुख्य थीं :
(1) भंगी- इसे छज्जासिंह ने स्थापित किया, बाद में भन्नासिंह और हरिसिंह ने भंगी मिसल का नेतृत्व किया। इसके केन्द्र अमृतसर, रावलपिंडी और मुलतान आदि स्थानों में थे।
(2) अहलूवालिया- जस्सासिहं अहलूवालिया के नेतृत्व में स्थापित हुई। इसका प्रधान केंद्र कपूरथला था।
(3) रामगढ़िया- इस समुदाय को नंदसिंह संघानिया ने स्थापित किया। बाद में इसका नेतृत्व जस्सासिंह रामगढ़िया ने किया इसके क्षेत्र बटाला, दीनानगर तथा जालंधर दोआब के कुछ गाँव थे।
(4) नकई- लाहौर के दक्षिण-पश्चिम में नक्का के हरिसिंह द्वारा स्थापित।
(5) कन्हैया- कान्ह कच्छ के जयसिंह के नेतृत्व में गठित इस मिसलश् के क्षेत्र गुरदासपुर, बटाला, दीनानगर थे। यह रामगढ़िया मिसल में मिला जुला था।
(6) उल्लेवालिया- गुलाबसिंह और तारासिंह गैवा के नेतृत्व में यह मिसल थी। राहों तथा सतलुज के उत्तर-दक्षिण के इलाके इसके मुख्य क्षेत्र थे।
(7) निशानवालिया- इसके मुखिया संगतसिंह और मोहरसिंह थे। इसके मुख्य क्षेत्र अंबाला तथा सतलुज के दक्षिण और दक्षिण पूर्व के इलाके थे।
(8) फ़ैजुल्लापुरिया (सिंहपुरिया)- नवाब कपूर सिंह द्वारा स्थापित, जालंधर और अमृतसर जिले इसके क्षेत्र थे।
(9) करोड़सिंहिया- 'पंज गाई' के करोड़ सिंह द्वारा स्थापित। बाद में बघेलसिंह इसके मुखिया हुए। कलसिया के निकट यमुना के पश्चिम और होशियारपुर जिले में इस मिसल के क्षेत्र थे।
(10) शहीद- दीपसिंह इस मिसल के अगुआ थे। बाद में गुरुबख्शसिंह ने उत्तराधिकार ग्रहण किया। दमदमा साहब और तलवंडी साबो इस मिसल के मुख्य केन्द्र थे।
(11) फूलकियाँ- पटियाला, नाभा और जींद के सरदारों के पूर्वज फूल के नाम पर स्थापित। ये सरदार इसके तीन गुटों के मुखिया थे।
(12) सुक्करचक्किया- चढ़तसिंह ने अपने पूर्वजों के निवास ग्राम सुक्करचक के नाम पर स्थापित किया। महत्व में चढ़तसिंह का स्थान नवाब कपूरसिंह और जस्सासिंह अहलूवालिया के स्थानों के बाद आता था। उसका मुख्य क्षेत्र गुजराँवाला और आसपास के इलाके थे। चढ़तसिंह के पुत्र महासिंह ने अपने पिता का उत्तराधिकार संभाला और उसके बाद उसके पुत्र शेरेपंजाब रणजीतसिंह ने।
मिसलों का संविधान बिल्कुल सरल था। मिसल के सरदार के नीचे पट्टीदार होते थे जो अपने अनुयायियों के भरण-पोषण के लिये सरदार के साथ गाँवों और भूमि का प्रबंध करते थे। घुड़सवारी और अस्त्रशस्त्रों के प्रयोग में दक्षता सरदारों, पट्टीदारों और उनके सहायकों की मुख्य योग्ताएँ मानी जाती थीं। मिसलों का रूप गणतंत्रवादी था। जीत और लूट की सामग्री का दशम भाग सरदार के लिये नियत रहता था। शेष उसी अनुपात में छोटे सरदारों और उनके अनुयायियों में बाँटा जाता था। एक सरदार से प्राप्त गाँव और भूमि छोड़कर अन्य मिसल में सम्मिलित होना संभव था। सरदार से भूमि प्राप्त करनेवाले जागीरदारों को जागीर की सुरक्षा के लिये एक निश्चित संख्या में घोड़े और सिपाही उपलब्ध थे। छोटे सरदारों या जागीरदारों की मिसल विरुद्ध गतिविधियों पर उनकी संपत्ति जब्त करने का अधिकार सरदार को होता था। सरदारों के निजी नौकर तावेदार कहे जाते थे और अवज्ञा या विद्रोह करने पर उनकी भूमि जब्त हो सकती थी।
सभी मिसलों का समूह दल 'खालसा' कहलाता था। वे गुरु के नाम पर युद्ध करते थे और सरबत्त खालसा के नाम पर संधियाँ करते थे। मिसलों की व्यापक समस्याओं पर पंथ की साधारण सभा द्वारा विचार किया जाता था। यह अमृतसर में वर्ष भर में दो बार वैशाखी और दीवाली के अवसरों पर बैठती थी। गुरु ग्रंथ साहब की उपस्थिति में बहुमत से प्रस्ताव (गुरुमत) पारित करके निर्णय लिया जाता था। न्याय बहुत जल्दी होता था। कानून और व्यवस्था कायम रखने का उत्तरदायित्व छोटे सरदारों पर था और न्याय की व्यवस्था पंचायतों के माध्यम से होती थी। पंचायतों के विरुद्ध निर्णय सुनने का अधिकार सरदार को था और अंत में, पर प्राय: बहुत कम, पंथ या साधारण सभा में अपील की जाती थी। उनके यहाँ मृत्युदंड का विधान नहीं था। चोरियों के मामलों में पदचिह्नान्वेषक जिस गाँव में चोरों के पदचिह्नों को खोज लेते थे, उस गाँव के मुखिया को या तो वे पदचिह्न गाँव के बाहर की ओर जाते हुए दिखाने पड़ते थे या हानि के बराबर द्रव्य देना पड़ता था।
सिखों द्वारा लड़े गये युद्ध
- रोहिल्ला का युद्ध
- कर्तारपुर का युद्ध
- अमृतसर का युद्ध (१६३४)
- लहिरा का युद्ध
- Battle of Bhangani
- Battle of Nadaun
- Battle of Basoli
- आननदपुर का प्रथम युद्ध
- निर्मोहगढ़ का युद्ध (१७०२)
- आनन्दपुर का द्वितीय युद्ध
- Second Battle of Chamkaur (1704)
- मुक्तसर का युद्ध
- सोनीपत का युद्ध
- अम्बाला का युद्ध
- Battle of Samana
- Battle of Chappar Chiri
- Battle of Sadhaura
- Battle of Rahon (1710)
- Battle of Lohgarh
- जम्मू का युद्ध
- Kapuri expedition
- जलालाबाद का युद्ध (१७१०)]]
- Siege of Gurdaspur or Battle of Gurdas Nangal
- Siege of Ram Rauni
- Skirmish of Gohalwar
- लहौर का युद्ध (१७५९)
- सियालकोट का युद्ध (१७६१)
- Battle of Gujranwala (1761)
- Sikh Occupation of Lahore[1]
- Sikh holocaust of 1762 or Battle of Kup
- Battle of Harnaulgarh
- Skirmish of Amritsar (1762)
- Battle of Sialkot (1763)
- Battle of Sirhind (1764)
- Rescue of Hindu Girls (1769)
- Sikh Occupation of Delhi (1783)
- Battle of Amritsar(1797)
- Gurkha-Sikh War
- Battle of Attock
- मुल्तान का युद्ध
- शोपियाँ का युद्ध
- पेशावर का युद्ध (१८३४)]]
- Battle of Jamrud
- Sino-Sikh War
- Battle of Mudki
- Battle of Ferozeshah
- Battle of Baddowal
- Battle of Aliwal
- Battle of Sobraon
- Battle of Chillianwala
- रामनगर का युद्ध
- Siege of Multan
- गुजरात का युद्ध
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
- ↑ Mehta, J. L. (2005). Advanced study in the history of modern India 1707–1813. Sterling Publishers Pvt. Ltd. पृ॰ 303. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-932705-54-6. मूल से 14 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-09-23.