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सायटिका

गृध्रसी (सायटिका)
अन्य नामSciatic neuritis, sciatic neuralgia, lumbar radiculopathy
इस चित्र में सायटिक तंत्रिका का मार्ग, दाएँ पैर में जाते हुए, दिखाया गया है।
उच्चारण
विशेषज्ञता क्षेत्रOrthopedics, neurology
लक्षणPain going down the leg from the lower back, weakness or numbness of the affected leg
जटिलताLoss of bowel or bladder control
उद्भव40s–50s
अवधि90% of the time less than 6 weeks
कारणSpinal disc herniation, spondylolisthesis, spinal stenosis, piriformis syndrome, pelvic tumor
निदानStraight-leg-raising test
विभेदक निदानShingles
चिकित्साPain medications, शल्यचिकित्सा
आवृत्ति2–40% of people at some time

डा0 श्री प्रकाश बरनवाल राष्ट्रीय अध्यक्ष एकयुप्रेशर काउंसिल नेचुआ जलालपुर गोपालगंज बिहार ने हजारों सायटिका रोगियों को ठीक करने के बाद सायटिका उन्मूलन कार्यक्रम के संस्थापक डा0 श्रीप्रकाश बरनवाल के अनुसार कमर से संबंधित नसों में से अगर किसी एक में भी सूजन आ जाए तो पूरे पैर में असहनीय दर्द होने लगता है, जिसे गृध्रसी या सायटिका (Sciatica) कहते हैं। यह तंत्रिकाशूल (Neuralgia) का एक प्रकार है, जो बड़ी गृघ्रसी तंत्रिका (sciatic nerve) में सर्दी लगने से या अधिक चलने से अथवा मलावरोध और गर्भ, अर्बुद (Tumour) तथा मेरुदंड (spine) की विकृतियाँ, इनमें से किसी का दबाव तंत्रिका या तंत्रिकामूलों पर पड़ने से उत्पन्न होता है। कभी-कभी यह तंत्रिकाशोथ (Neuritis) से भी होता है|

पीड़ा नितंबसंधि (Hip joint) के पीछे प्रारंभ होकर, धीरे धीरे तीव्र होती हुई, तंत्रिकामार्ग से अँगूठे तक फैलती है। घुटने और टखने के पीछे पीड़ा अधिक रहती है। पीड़ा के अतिरिक्त पैर में शून्यता (numbness) भी होती है। तीव्र रोग में असह्य पीड़ा से रोगी बिस्तरे पर पड़ा रहता है। पुराने (chronic) रोग में पैर में क्षीणता और सिकुड़न उत्पन्न होती है। रोग प्राय: एक ओर तथा दुश्चिकित्स्य होता है। उपचार के लिए सर्वप्रथम रोग के कारण का निश्चय करना आवश्यक है। नियतकालिक (periodic) रोग में आवेग के २-३ घंटे पूर्व क्विनीन देने से लाभ होता है। लगाने के लिए ए. बी. सी. लिनिमेंट तथा खाने के लिए फिनैसिटीन ऐंटीपायरीन दिया जाए। बिजली, तंत्रिका में ऐल्कोहल की सुई तथा तंत्रिकाकर्षण (stretching) से इस रोग में लाभ होता है। परंतु तंत्रिकाकर्षण अन्य उपाय बेकार होने पर ही किया जाना चाहिए।

बड़ी उम्र में हड्डियों तथा हड्डियों को जोड़ने वाली चिकनी सतह के घिस जाने के कारण ही व्यक्ति इस समस्या का शिकार बनता है।

‘सायटिका’ का आगमन

आमतौर पर यह समस्या 50 वर्ष की उम्र के बाद ही देखी जाती है। व्यक्ति के शरीर में जहां-जहां भी हड्डियों का जोड़ होता है, वहां एक चिकनी सतह होती है जो हड्डियों को जोड़े रखती है। जब यह चिकनी सतह घिसने लगती है तब हड्डियों पर इसका बुरा असर होता है जो असहनीय दर्द का कारण बनता है।

सायटिका की समस्या मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी व कमर की नसों से जुड़ी हुई है जिसका सीधा संबंध पैर से होता है। इसीलिए सायटिका में पैरों में तीव्र दर्द उठने लगता है।

कारण

नसोंपर दबाव का मुख्य कारण प्रौढ़ावस्था में हड्डियों तथा चिकनी सतह का घिस जाना होता है। मुख्य रूप से इस परेशानी का सीधा संबंध उम्र के साथ जुड़ा है। अधिक मेहनत करने वाले या भारी वजन उठाने वाले व्यक्तियों में यह परेशानी अधिकतर देखी जाती है क्योंकि ऐसा करने से चिकनी सतह में स्थित पदार्थ पीछे की तरफ खिसकता है। ऐसा बार-बार होने से अंतत: उस हिस्से में सूखापन आ जाता है और वह हिस्सा घिस जाता है। क्या होता है?

सायटिका में पैरों में झनझनाहट होती है तथा खाल चढ़ने लगती है। पैर के अंगूठे व अंगुलियां सुन्न हो जाती हैं। कभी-कभी कुछ पलों के लिए पैर बिल्कुल निर्जीव से लगने लगते हैं। इस समस्या के लगातार बढ़ते रहने पर यह आंतरिक नसों पर भी बुरा असर डालना प्रारंभ कर देती है।[1]

निदान

पैरों को सीधा रखते हुए ऊपर उठाना : कमर की डिस्क के बहिसरण ( lumbar herniated disc) का पता लगाने की सरल विधि

इस प्रकार के रोग का निदान एक्स-रे से सम्भव नहीं। इसलिए एमआरआई कराना आवश्यक होता है। उपचार की बात करें तो सही उपचार पद्धति से लगभग 85-90 प्रतिशत लोगों को सायटिका से निजात मिल जाती है। फिर भी इसमें पूरी तरह ठीक होते-होते 4 से 6 हफ्तों का समय लग ही जाता है।

बड़े पैमाने पर 4-5 दिनों के पूर्ण शारीरिक आराम और दवाओं व इंजेक्शन की मदद से दर्द नियंत्रण में लाया जा सकता है। अगर बहुत ज्यादा दर्द हो रहा हो तो ‘स्टेराइड’ का उपयोग भी करना पड़ता है और कभी-कभी कमर के अंदर तक इंजेक्शन द्वारा दवाओं को पहुंचाना पड़ता है।

इसके अलावा कसरत और फिजियोथैरेपी से भी बहुत आराम मिलता है। इस तरह की तमाम प्रक्रियाओं के बाद भी अगर दर्द की समस्या लगातार बनी रहे तो फिर व्यक्ति के पास एकमात्र विकल्प ही शेष रह जाता है और वह है-ऑपरेशन। ऑपरेशन को लेकर आपको घबराने की जरूरत नहीं है।

नई चिकित्सा पद्धति अर्थात दूरबीन या माइक्रोसर्जरी से किए गए ऑपरेशन के बाद मरीज दूसरे दिन ही घर जा सकता है और दैनिक कार्य कर सकता है। इस चिकित्सा पद्धति में एक छोटा सा ही चीरा लगाना होता है जिससे मरीज को अस्पताल में सिर्फ एक-दो दिन ही रुकना पड़ता है।

बचाव

इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रकृति के नियम को कभी बदला नहीं जा सकता। अर्थात बढ़ती उम्र पर किसी भी व्यक्ति का बस नहीं है। अत: उम्र से जुड़ी ‘सायटिका’ जैसी समस्या को भी रोक पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। हां, लेकिन इसके लिए सुरक्षात्मक उपाय जरूर अपनाएं जा सकते हैं, जिससे कि समस्या विकराल रूप न धारण कर सके।

लंबे समय तक एक ही जगह पर बैठे रहने से बचें। हर आधे-एक घंटे में कुछ देर के लिए खड़े रहने की कोशिश करें। इससे कमर की हड्डियों को आराम मिलता है।

झुककर भारी वस्तुओं को उठाने की आदत से भी बचने की कोशिश करें। इससे रीढ़ की हड्डियों के जोड़ों पर अधिक जोर पड़ता है।

भारी वजन उठाकर लंबी दूर तय न करें। अगर ऐसा करना जरूरी हो भी तो बीच-बीच में कहीं बैठकर थोड़ी देर के लिए आराम कर लें।

अगर आपका पेशा ऐसा हो कि आपको घंटों कुर्सी पर बैठा रहना पड़ता हो या कंप्यूटर पर काफी देर तक काम करना पड़ता हो तो कुर्सी में कमर के हिस्से पर एक छोटा सा तकिया लगा लें व सीधे बैठने की कोशिश करें।

चिकित्सक से सलाह लेकर कमर और रीढ़ की हड्डी से संबंधित कसरत नियमित रूप से करें।

चिकित्सक की सलाह अनुसार कमर का बेल्ट भी उपयोग कर सकते हैं। याद रखें कि लंबे समय तक बेल्ट पहनने से कमर का स्नायु तंत्र कमजोर होता है। इसलिए बेल्ट का उपयोग यदा-कदा ही करें।

सन्दर्भ

  1. नस में दर्द Archived 2018-05-05 at the वेबैक मशीन - दा इंडियन वायर

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