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सामाजिक कीट

चींटे

कीटों में सामाजिक जीवन अपने उच्च शिखर पर होता है, जो अन्यत्र केवल मनुष्यों को छोड़कर कहीं नहीं पाया जाता है। कीटों ने संसार में सर्वप्रथम पूर्ण विकसित सामाजिक जीवन का उदाहरण प्रस्तुत किया है।

कीटों की संख्या सभी प्राणियों से अधिक है। कीट वर्ग, आर्थोपोडा (Arthropoda) संघ में आता है। अब तक ज्ञात स्पीशीज़ (Species) की संख्या आठ लाख से भी अधिक है और आधिकारिक अनुमानों के अनुसार अगर इनकी सभी जातियों की खोज की जाय, तो उनकी संख्या 60 लाख से भी अधिक होगी। इनमें बहुत सी ऐसी जातियाँ हैं जिनके प्राणियों की संख्या अरबों में है। इससे कीट वर्ग की बृहद् राशि की कल्पना की जा सकती है।

कीटों के अनेक वर्गों में सामाजिक संगठन का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ है। ऐसे कीटों के उदाहरण हैं, सामाजिक ततैया, सामाजिक मधुमक्खियाँ एवं चींटियाँ। ये सभी हाइमेनॉप्टेरा (Hymenoptera) गण में आते हैं। दीमक आइसॉप्टेरा (Isoptera) गण में आती हैं। इन कीटों में सामुदायिक संगठन का विकास सर्वोच्च हुआ है। इन संगठनों में विभिन्न सदस्यों के कार्यों का वर्गीकरण पूरे समुदाय के हित के लिये किया जाता है। सभी सामाजिक कीट बहुरूपी होते हैं, अर्थात्‌ एक स्पीशीज़ में कई स्पष्ट समूह होते हैं। प्रत्येक समूह में जनन जातियाँ, (नर, मादा, राजा, रानी, इमैगी आदि) रचना तथा कार्य की दृष्टि से, बाँझ जातियों (सेवककर्मी सैनिक आदि) से भिन्न होती हैं। बाँझ जातियों में केवल जनन अंग के अवशेष ही पाए जाते हैं, परंतु सामाजिक हाइमेनॉप्टेरा की बाँझ जातियों के अंसेचित अंडों से केवल मादाएँ उत्पन्न होती हैं, जो बाँझ होती हैं। असंसेचित अंडे के अनिषेकजनन (pathenogensis) से क्रियात्मक नर विकसित होते हैं।

उपसामाजिक कीट

वास्तविक सामाजिक कीटों की उत्पत्ति उपसामाजिक कीटों से हुई। इनमें लैंगिक एवं पारिवारिक समंजन के साथ साथ प्रौढ़ एवं युवकों के बीच कार्यों का वर्गीकरण भी हुआ। पर एक ही लिंग के प्रौढों के बीच श्रम का विभाजन नहीं हुआ है। इस प्रकार सामाजिक ततैयों की उत्पत्ति संभवत: एकमात्र परभक्षी ततैये से हुई होगी, जो यूमिनीज़ (Eumenes) एवं बेस्पिडी कुल के ऑडीनीरस (Odynerus) से संबंधित है। ये दोनों ही गड्ढों या अपने बनाए गए छत्रों में अपने लार्वो के लिये भोजन या तो रखते हैं, अथवा उन्हें शक्तिहीन इल्लियाँ खिलाते हैं। सामाजिक मधुमक्खियों का विकास एकल मधुमक्खियों के स्पीसिडी (Specidae) कुल की एकल ततैयों से हुआ। फॉरमिसिडी (Formicides) कुल में चींटियाँ आती हैं। इस कुल के सभी सदस्य सामाजिक होते हैं।

वास्तविक सामाजिक कीट

चींटियाँ

हाइमेनॉप्टेरा की सभी जातियों में चींटियों का सामाजिक संगठन सर्वोच्च होता है। सभी चींटियाँ विभिन्न अंशों तक सामाजिक होती हैं। इनमें रानी, मजदूर और सैनिक चीटियां भी होती है। सभी अपने-अपने जुम्मे का काम बखूबी निभाती है। (देखें चींटी)।

मधुमक्खियाँ

इनकी दस हजार से अधिक जातियाँ आज जीवित हैं, जिनमें लगभग 100 जातियाँ ठीक ठीक सामाजिक हैं। मक्खियों में सर्वोच्च सामाजिक जीवन का विकास मधुमक्खियों या घरेलू छत्तेवाली मक्खियों में हुआ है। ये मधुमक्खियाँ एपिस (Apis) वंश की हैं। इनकी केवल चार स्पीशीज़ हैं : यूरोप की एपिस मेलिफिका (Apis mellifica), उष्ण कटिबंधी पूर्व देश की एपिस डॉरसेटा (Apis dorsata), एपिस इंडिका (A. indica) और एपिस फ्लोरिया (A. florea)।

मधुमक्खियाँ भी त्रिरूपी होती हैं और इनके तीनों रूप अधिक स्पष्ट होते हैं। इनकी सरलता से विभेदित किया जा सकता है। पुंममधुप (Drone) अपने भुथरे उदर तथा बड़ी बड़ी आँखों के कारण मादा से विभेदित होता है। रानी अपने बड़े उदर से जो बंद पंखों के पीछे तक फैला होता है तथा पैरों पर पराग की छोटी टोकरी से पहचानी जाती है। वह एक दिन में 3,000 अंडे दे सकती है। श्रमिक बाँझ मादाएँ होती हैं, जिनमें प्रारंभिक अंग और पैरों पर पराग ले जानेवाली रचनाएँ (पराग की टोकरी) पाई जाती है। श्रमिक मधुमक्खियाँ कभी कभी अंडे देती हैं, पर वे निषेचित नहीं होतीं और उनमें केवल पुंमधुप ही उत्पन्न होते हैं।

मधुमक्खियों के निवह चिरस्थायी होते हैं और इनमें रानी के साथ साथ श्रमिकों का समूह रहता है। एक जीवित निवह में श्रमिकों की संख्या 50,000 से 80,000 तक रह सकती हैं। छत्ता श्रमिकों की उदरग्रंथि के स्राव से उत्पन्नश् मोम का बना होता है। प्रत्येक छत्ता बड़ी संख्या में षट्कोणीय कोष्ठिकाओं का बना होता है। ये कोष्ठिकाएँ आगे पीछे दो श्रेणियों में बनी होती है। अनेक छत्ते ऊर्ध्वाधर, समांतर लटके होते हैं, ताकि उनके बीच में श्रमिकों के आने जाने के लिए पर्याप्त स्थान रहे। मधुपुर कोष्ठिका से अलग वह स्थान होती है-

(1) छोटी कोष्ठिका श्रमिकों के लिए,

(2) पहले से कुछ बड़ी कोष्ठिका पुंमधुपों के लिए और

(3) बहुत प्रशस्त कोष्ठिका रानी के लिए।

पुमधुप वाली कोष्ठिकाएँ कम संख्या में और रानी वाली कोष्ठिकाएँ बहुत ही कम संख्या में होती हैं।

मकरंद (nectar) और पराग के अतिरिक्त मधुमक्खियाँ मोम (propolis) नामक एक चिपचिपा पदार्थ भी एकत्र करती हैं, जो जोड़ने के काम आता है। रानी मधुपूर कोष्ठिकाओं (brood cells) में अंडे देती है। निषेचित अंडे पुंमधुप कोष्ठिकाओं में दिए जाते हैं। अंडे लगभग तीन दिनों में फूटते हैं, श्रमिक लगभग तीन सप्ताह में, पुंमधुप इससे कुछ अधिक दिनों में तथा मादाएँ 16 दिनों में विकसित होती हैं। इसे रॉयल जेली (Royal jelly) कहते हैं, परंतु तीसरे या चौथे दिन के बाद इसे रानी के लार्वों को प्यूपीकरण (pupation) तक दिलाया जाता है, जब कि अन्य सभी को मधु एवं पराग का बना मिश्रण, जिसे बी ब्रेड (Bee bread) कहते हैं, खिलाया जाता है।

मधुमक्खियों में मादा का निर्धारण अन्य सामाजिक कीटों से उनके आहार द्वारा अधिक स्पष्ट होता है। पोआ छोड़ने (swarming) के अंत में जब रानी निषेचित हो जाती है, तब श्रमिक मधुमक्खियाँ पुंमधुप को भोजन न देकर, उन्हें छत्ते से निकाल देती हैं और कभी-कभी सीधे मार डालती हैं।

सामाजिक मधुमक्खियों में सबसे अधिक आदिम (primitive) बंबिडी (Bombidae) कुल की मधुमक्खी है। दंशरहित मधुमक्खियों के दो वंशों में मेलिपोना (Melipona) अमरीका में ही सीमित हैं, चब कि बड़ा वंश ट्राइगोना श् (Trygona) संसार के सभी उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। मधुमक्खियों में एक असाधारण संचारतंत्र का आविष्कार के. वान फ़िश ने सन्‌ 1950 ई. में किया। एक मैदानी स्काउट (scout) श्रमिक भोजन के पराबैंगनी (ultraviolet) रंग के क्षेत्र पहचानना सीख सकता है, लेकिन सिंदूरी लाल (scarlet red) रंग के क्षेत्र को नहीं।

सामाजिक ततैया (Social Wasp)

सामाजिक ततैयों की एक हजार जातियाँ हैं। ये सभी वेस्पिडी (Vespidae) कुल में आती हैं। इनका विकास विभिन्न आदिम तथा एकल ततैयों से हुआ है। प्रारंभ में ततैया परभक्षी होती हैं, यद्यपि वे मकरंद, फलों तथा अन्य मीठे पदार्थों को भी खा सकती हैं। छत्ते साधारणतया कागज के, जो चर्वित लकड़ी को लार के साथ मिलाकर बना होता है, बने होते हैं। प्रमुख सामाजिक ततैयों का निवह एक जनन योग्य मादा (रानी) से, जो जाड़ा शीत निष्क्रियता (hibernation) में व्यतीत कर चुकी होती है, प्रारंभ होता है। वसंत में वह कुछ कोष्ठिकाओं का छोटा छत्ता बनाना प्रारंभ करती है।

छत्ते मिट्टी में बने गड्ढों या खोखले पेड़ों पर बनाए जाते हैं, या शाखाओं से लटके रहते हैं। सब श्रमिक अंडों से निकलते हैं, तब छत्ते के विस्तार में सहायता करते हैं, ताकि उसमें अंडे रखे जा सकें। ये छत्ते एक या एक से अधिक छत्रकों (Coombs) के बने होते हैं। साधारणतया कोष्ठिका षट्कोणीय होती है। मधुपुर कोष्ठिकाएँ (broad cells) नीचे की ओर खुलती हैं, जो सामाजिक ततैयों की विशिष्टता है। ग्रीषम में नर तथा मादा एक-दूसरे के संसर्ग में आते हैं। सामान्यत: वर्ष के अंत में संगम होने के बाद पूरा निवह नष्ट हो जाता है। केवल कुछ गर्भवती मादाएँ शीत निष्क्रियता में चली जाती हैं।

पूर्वीय वंश के स्टेनोगैस्टर (Stenogaster) की कुछ आदिम सामाजिक जातियाँ क्षेतिज स्थित कोष्ठिकाओं द्वारा छोटे छत्तों का निर्माण करती हैं। मादा लार्वा को, जो अत्यंत बंद कोष्ठिका में ही प्यूपा (pupa) बन जाते हैं, उत्तरोत्तर खिलाती-पिलाती है। संतति ततैया (daughter wasp) निर्गमन के बाद भी माँ के साथ रहती है।

सुपरिचित सामाजिक ततैयों की शीतोष्ण जातियाँ पोलिस्टीज़ (Polistes), वेस्पा (Vespa), वेस्पुला (Vespula) और डोलिको वेस्पुला (Dolicoh vespula) हैं।

दीमक

दीमक अपने सामाजिक जीवन में चींटियों की ओर असाधारण समाभिरूपता प्रदर्शित करती हैं, अत: इन्हें गलती से सफेद चींटियाँ, कहते हैं। दीमक की 2,000 से अधिक जातियाँ ज्ञात हैं, जो आदिम जाति के कीटों के आइसोप्टेश (Isoptera) वर्ग की है। सभी दीमक सामाजिक होती हैं, यद्यपि उनका सामाजिक संगठन विभिन्न क्रम का, साधारण से जटिल प्रकार तक का, होता है।

अधिकांश सामाजिक कीटों में एक अत्यधिक आकर्षक घटना प्रौढ़ों और युवकों में पोषण के पारस्परिक विनियोग की है, जो सामाजिक पारस्परिक लेन-देन को सरल कर देती है। युवा ततैये, चींटियाँ तथा दीमक स्राव उत्पन्न करती हैं, जो उनकी उपचारिकाओं द्वारा उत्सुकता से चाट लिया जाता है और ये उपचारिकाएँ ऐसे एकत्रित भोजन, स्राव तथा कभी-कभी उत्सर्ग को बच्चों को खिलाती हैं। भोज्य पदार्थों के विनियोग, स्पर्श, या रासायनिक उद्दीपन द्वारा सामाजिक सरलीकरण को ट्रोफीलैक्सिस(Tropholaxis) कहते हैं और यह समस्त सामाजिक कीटों की विशेषता है। परिचारिकाओं को आकर्षित करने के लिए मधुमक्खियों के लार्वे स्राव उत्पन्न नहीं करते।।

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