सरगुजा के दर्शनीय स्थल
दर्शनीय स्थल
यहां अनेक जल प्रपात हैं:-
अम्बिकापुर- रायगढ राजमार्ग़ पर 15 किमी की दुरी पर चेन्द्रा ग्राम स्थित हैं। इस ग्राम से उत्तर दिशा में तीन कि॰मी॰ की दुरी पर यह जल प्रपात स्थित हैं। इस जलप्रपात के पास ही वन विभाग का एक नर्सरी हैं, जहां विभिन्न प्रकार के पेड-पौधों को रोपित किया गया हैं। इस जल प्रपात में वर्ष भर पर्यटक प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लेने जाते हैं। यहां पर एक तितली पार्क भी विकसित किया जा रहा है।
ओडगी विकासखंड में बिहारपुर के निकट बलंगी नामक स्थान के समीप स्थित रेंहड नदी पर्वत श्रृखला की उंचाई से गिरकर रकसगण्डा जल प्रपात का निर्माण करती है जिससे वहां एक संकरे कुंड का निर्माण होता हैं यह कुंड अत्यंत गहरा है। इस कुंड से एक सुरंग निकलकर लगभग 100 मीटर तक गई है। यह सुरंग जहां समाप्त होता है, वहां एक विशाल जलकुंड बन गया है। रकसगण्डा जल प्रपात अपनी विलक्षणता एवं प्राकृतिक सौंन्दर्य के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। रियासत काल में अंग्रेज यहां मछलियों क शिकार करने जाया करते थे।
कुसमी चान्दो मार्ग पर तीस किमी की दुरी पर ईदरी ग्राम है। ईदरी ग्राम से तीन किमी जंगल के बीच भेडिया पत्थर नामक जलप्रपात है। यहां भेडिया नाला का जल दो पर्वतो के सघन वन वृक्षो के बीच प्रवाहित होता हुआ ईदरी ग्राम के पास हजारो फीट की उंचाई पर पर्वत के मध्य में प्रवेश कर विशाल चट्टानो. के बीच से बहता हुआ 200 फीट की उंचाई से गिरकर अनुपम प्राकृतिक सौदर्य निर्मित करता है। दोनो सन्युक्त पर्वत के बीच बहता हुआ यह जल प्रपात एक पुल के समान दिखाई देता है। इस जल प्रपात के जलकुंड के पास ही एक प्राकृतिक गुफा है, जिसमे पहले भेडिये रहा करते थे। यही कारण है कि इस जल प्रपात को भेडिया पत्थर कहा जाता है।
कुसमी- सामरी मार्ग पर सामरीपाट के जमीरा ग्राम के पूर्व -दक्षिण कोण पर पर्वतीय श्रृंखला के बीच बेनगंगा नदी का उदगम स्थान है। यहाँ साल वृक्षो के समूह में एक शिवलिंग भी स्थापित है। वनवासी लोग इसे सरना का नाम देते है और इस स्थान को पूजनीय मानते है। सरना कुंज के निचले भाग के एक जलस्त्रोत का उदगम होता है। यह जल दक्षिण दिशा की ओर बढता हुआ पहाडी के विशाल चट्टानो के बीच आकार जल प्रपात का रूप धारण करता है। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण सघन वनों, चट्टानों को पार करती हुयी बेनगंगा की जलधारा श्रीकोट की ओर प्रवाहित होती है। गंगा दशहारा पर आस -पास के ग्रामीण एकत्रित होकर सरना देव एवं देवाधिदेव महादेव की पूजा - अर्चना करने के बाद रात्रि जागरण करते है। प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण यह स्थान पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।
अम्बिकापुर- रायगढ मार्ग पर अम्बिकापुर से 45 कि.मी की दूरी पर सेदम नाम का गांव है। इसके दक्षिण दिशा में दो कि॰मी॰ की दूरी पर पहाडियों के बीच एक सुन्दर झरना प्रवाहित होता है। इस झरना के गिरने वाले स्थान पर एक जल कुंड निर्मित है। यहां पर एक शिव मंदिर भी है। शिवरात्री पर सेदम गांव में मेला लगता है। इस झरना को राम झरना के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर्यटक वर्ष भर जाते हैं।
- कई अन्य रोचक स्थल भी हैं
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मैनपाट अम्बिकापुर से 75 किलोमीटर दुरी पर है इसे छत्तीसगढ का शिमला कहा जाता है। मैंनपाट विन्ध पर्वत माला पर स्थित है जिसकी समुद्र सतह से ऊंचाई 3781 फीट है इसकी लम्बाई 28 किलोमीटर और चौडाई 10 से 13 किलोमीटर है अम्बिकापुर से मैंनपाट जाने के लिए दो रास्ते है पहला रास्ता अम्बिकापुर-सीतापुर रोड से होकर जाता और दुसरा ग्राम दरिमा होते हुए मैंनपाट तक जाता है। प्राकृतिक सम्पदा से भरपुर यह एक सुन्दर स्थान है। यहां सरभंजा जल प्रपात, टाईगर प्वांइट तथा मछली प्वांइट प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। मैनपाट से ही रिहन्द एवं मांड नदी का उदगम हुआ है।
इसे छत्तीसगढ का तिब्बत भी कहा जाता हैं। यहां तिब्बती लोगों का जीवन एवं बौध मंदिर आकर्षण का केन्द्र है। यहां पर एक सैनिक स्कूल भी प्रस्तावित है। यह कालीन और पामेरियन कुत्तो के लिये प्रसिद्ध है।
अम्बिकापुर नगर से 12 किलोमीटर की दुरी पर दरिमा हवाई अड्डा हैं। दरिमा हवाई अड्डा के पास बड़े - बड़े पत्थरों का समुह है। इन पत्थरों को किसी ठोस चीज से ठोकने पर आवाजे आती है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि ये आवाजे विभिन्न धातुओ की आती है। इनमे से किसी - किसी पत्थर खुले बर्तन को ठोकने के समान आवाज आती है। इस पत्थरों में बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज में कोइ अंतर नहीं पड़ता है। एक ही पत्थर के दो टुकडे अलग-अलग आवाज पैदा करते है। इस विलक्षणता के कारण इस पत्थरों को अंचल के लोग ठिनठिनी पत्थर कहते है।
अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किलोमीटर पर स्थित सामरबार नामक स्थान है, जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है। इसे परम पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरू जी नें पहाडी चटटानो को तराशंकर निर्मित करवाया है। महाशिवरात्रि पर विशाल मेंला लगता है। इसके दर्शनीय स्थल गुफा निर्मित शिव पार्वती मंदिर, बाघ माडा, बधद्र्त बीर, यज्ञ मंड्प, जल प्रपात, गुरूकुल संस्कृत विद्यालय, गहिरा गुरू आश्रम है।
अम्बिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर अम्बिकापुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर राजमार्ग से दो फलांग पश्चिम दिशा में एक गर्म जल स्रोत है। इस स्थान से आठ से दस गर्म जल के कुन्ड है। इस गर्म जल के कुन्डो को सरगुजिया बोली में तातापानी कहते है। ताता का अर्थ है- गर्म। इन गर्म जलकुंडो में स्थानीय लोग एवं पर्यटक चावल ओर आलु को कपडे में बांध कर पका लेते है तथा पिकनिक का आनंद उठाते है। इन कुन्डो के जल से हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गन्ध आती है। एसी मान्यता है कि इन जल कुंडो में स्नान करने व पानी पीने से अनेक चर्म रोग ठीक हो जाते है। इन दुर्लभ जल कुंडो को देखने के लिये वर्ष भर पर्यटक आते रहते है।
अम्बिकापुर - बनारस रोड पर 40 किलोमीटर पर भैंसामुडा स्थान हैं। भैंसामुडा से भैयाथान रोड पर 15 किलोमीटर की दूरी पर महान नदी के तट पर सारासौर नामक स्थान हैं। यहां पर महान नदी दो पहाडियों के बीच से बहने वाली जलधारा के रूप में देखी जा सकती हैं। इस जलधारा के मध्य एक छोटा टापू है, जिस पर भव्य मंदिर निर्मित है जिंसमे देवी दुर्गा एवं सरस्वती की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को गंगाधाम के नाम से जाना जाता है।
अम्बिकापुर से भैयाथान से अस्सी कि.मी की दूरी पर ओडगी विकासखंड है, यहां से 15 किलोमीटर की दुरी पर पहाडियों की तलहटी में बांक ग्राम बसा है। इसी ग्राम के पास रिहन्द नदी वन विभाग के विश्राम गृह के पास अर्द्ध चन्द्राकार बहती हुई एक विशाल जल कुंड का निर्माण करती है। इसे ही बांक जल कुंड कहा जाता है। यह जल कुंड अत्यंत गहरा है, जिसमें मछलियां पाई जाती है। यहां वर्ष भर पर्यटक मछलियों का शिकार करने एवं घुमनें आते हैं।