सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय
सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय | |
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Farzand-i-Khas-i-Daulat-i-Inglishia, Shrimant Maharaja Sir , Sena Khas Khel Shamsher Bahadur Maharaja Gaekwad of Baroda, GCSI, GCIE, KIH | |
King of Baroda | |
शासनावधि | 10 April 1875 – 6 February 1939 |
राज्याभिषेक | 10 April 1875 (in Baroda) |
पूर्ववर्ती | Malhar Rao Gaekwad Madhav Rao Thanjavurkar (de facto) |
उत्तरवर्ती | Pratap Singh Rao Gaekwad |
जन्म | 11 मार्च 1863 |
निधन | 6 फ़रवरी 1939[1] | (उम्र 75)
संगिनी | Chimnabai of Tanjore Lakshmibai Mohite |
संतान | Shrimant Maharajkumari Bajubai Gaekwad Shrimant Maharajkumari Putlabai Gaekwad Yuvaraj Sahib Fatehsinhrao Gaekwad Shrimant Maharajkumar Jaisinghrao Gaekwad Shrimant Maharajkumar Shivajirao Gaekwad Maharani Indira Devi Shrimant Maharajkumar Dhairyashilrao Gaekwad |
राजवंश | Gaekwad |
पिता | Kashirao Gaekwad |
धर्म | हिन्दू धर्म |
हस्ताक्षर |
सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (मूल नाम : श्रीमन्त गोपालराव गायकवाड ; 11 मार्च, 1863 – 6 फरवरी, 1939) सन १८७५ से १९३९ तक बड़ोदा रियासत के महाराजा थे। वे एक दूरदर्शी एवं विद्वान शासक थे। उन्होने अपने शासनकाल में वडोदरा की कायापलट कर दी थी। इनको भारतीय पुस्तकालय आंदोलन का जनक भी माना गया है। इन्होने इस आन्दोलन की शुरुआत सन 1910 मे की थी। इन्होंने ही भीमराव अम्बेडकर को विदेश पढ़ने जाने के लिए छात्रवृति प्रदान की थी। महाराजा सयाजीराव विजया बैंक (अब बैंक ऑफ़ बड़ौदा) के संस्थापक भी थे। उन्हें भारत का अंतिम आदर्श राजा कहा जाता है। वे आधुनिक भारत की निर्मिति प्रक्रिया के एक शिल्पी माने जाते हैं।
राज्य चलाना एक शास्त्र है, इसलिए राजा का ज्ञानसम्पन्न होना अत्यधिक आवश्यक है, इसे जानकर सयाजीराव ने स्वयं ज्ञान पाया। उन्होंने विश्वभर की शासन पद्धतियों का अध्ययन किया। सुशासन और जनता के ज्ञानात्मक प्रबोधन कार्य से जनकल्याण का व्रत हाथ में लिया। शिक्षण और विज्ञान ही प्रगति तथा परिवर्तन का साधन है, इसे महाराजा ने अच्छी तरह जाना था। इसलिए मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, सुशासन, विधि-न्याय, खेती, उद्योगों को मदद, सामाजिक-धार्मिक सुधार, जाति-धर्मों के बीच की ऊँच-नीच को समाप्त करके समता, मानवता और सर्वधर्म समभाव के मार्ग को चुना था।
महाराजा सयाजीराव शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वाङ्मयीन कलाओं के आश्रयदाता थे। देश के अनेक युगपुरुषों और संस्थाओं को उन्होंने सहायता प्रदान की जिनमें दादाभाई नौरोजी, नामदार गोखले, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, न्यायमूर्ति रानडे, महात्मा फुले, राजर्षि शाहू, डॉ. आम्बेडकर, मदनमोहन मालवीय, कर्मवीर भाऊराव, वीर सावरकर, महर्षि शिंदे का नामोल्लेख किया जा सकता है। अनेक संस्थाओं और व्यक्तियों को महाराजा की ओर से करोड़ों रुपयों की सहायता मिली. महाराज सयाजीराव गायकवाड़ मराठा कुनबी (कुर्मी) जाती के थे। महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ स्वतंत्रता सेनानियों के समर्थक और प्रतिभाशाली लेखक थे, उनके व्यक्तित्व की यह नई पहचान बनी थी। उनकी किताबें, भाषण, पत्र, आदेश और दैनंदिनी देश का अनमोल खजाना है। सुशासन और जनकल्याण में मुक्ति की खोज करनेवाले सयाजीराव का बलशाली भारत ही सपना था।
जीवनी
गोपाल राव गायकवाड़ का जन्म 11, मार्च 1863 को नासिक के कुल्वाने गांव में हुआ। उनका मूल नाम गोपालराव था। इनके पिता काशी नाथ का बड़ौदा राजपरिवार से दूर का सम्बन्ध था। बड़ौदा के महाराज मल्हार राव गायकवाड़ की निःसंतान मृत्यु के बाद उनकी विधवा पत्नी महारानी जमुना बाई ने गोपाल राव को 27 मई 1875 को गोद ले लिया और नाम रखा सयाजी राव गायकवाड़। महारानी ने अपने दत्तक पुत्र का राज्याभिषेक 18 वर्ष की आयु में 28, नवम्बर,1881 को कराया ।
अपने कार्यकाल 1881 से 1939 के दौरान उन्होंने एक कर्तव्यतत्पर तथा पूरोगामी संस्थानिक के तौर पर अपनी अमिट छवि बनाई। बडोदा संस्थान का कारोबार उन्होंने 28.12.1881 से वास्तव में शुरू किया। सर्वप्रथम बड़ौदा रियासत की आर्थिक स्थिति में सुधार किया। प्रशासन का विकेंद्रीकरण कर उन्होंने कारोबार की प्रणाली में सरलता का सूत्रपात किया। सन 1883 में सलाहकारों को नियुक्त कर जनकल्याणकारी योजनाएं बनाई। न्याय व्यवस्था में विशेष सुधार किया। सन 1904 में ग्राम पंचायत का पुनरुज्जीवन किया। 1893 में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया। 1906 में इस योजना को पूरे राज्य में लागू कराया। जरूरतमंद तथा गरीब विद्यार्थियों को छात्रवृति देकर उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान किए। उद्योग का प्रशिक्षण उपलब्ध कराने कलाभुवन संस्था स्थापित की। सयाजी साहित्यमाला तथा सयाजी बाल ज्ञानमाला के माध्यम से उच्चतम ग्रंथों का अनुवाद प्रकाशित किया। प्रत्येक ग्राम में ग्रंथालय का निर्माण किया और साथ-साथ चलते फिरते ग्रंथालयों की भी सुविधा उपलब्ध करायी। सामाजिक क्षेत्र में उनका बड़ा योगदान रहा। पर्दा पद्धति पर रोक, कन्या विक्रय पर रोक, मिश्र जाति विवाह को समर्थन, महिलाओं को वारिस अधिकार, अस्पृश्यता निवारण, विधवा विवाह और तलाक के अधिकार का कानून बनाए।
सन 1882 में अछूतों के लिए 18 पाठशालाएं खोली। सत्यशोधक समाज से एवं सत्यशोधक समाज के कार्यकर्ताओं से उनका गहरा नाता रहा। 1885 में महाराज की भेंट पूना में ज्योतिबा राव फुले से हुई और महाराज उनके ‘सत्य शोधक समाज’ के कार्यों से बहुत प्रभावित हुए। 1904 में सामाजिक सुधारों में उनका प्रत्यक्ष योगदान देखते हुए ही उन्हें राष्ट्रीय सामाजिक परिषद का अध्यक्ष बनाया गया।
बड़ौदा में उनके द्वारा सुन्दर वास्तु, राजमहल, वस्तु संग्रहालय, कलाविधि, श्री सयाजी रुग्णालय, नजरबाग राजवाड़ा, महाविद्यालयों की इमारते आदि निर्माणों से बड़ौदा नगरी कलापूर्ण तथा प्रेक्षणीय बनी है। उन्हें पर्यटन की विशेष रुचि थी। उन्होंने दुनिया भर में यात्रा की जहाँ-जहाँ जो-जो उन्हें अच्छा लगा उन्होंने अपने संस्थान के विकास हेतु उसका उपयोग और प्रयोग किया। लन्दन के प्रथम तथा द्वितीय गोलमेज परिषद में भी वे उपस्थित रहे। ज्ञानवृद्धि, समाजसुधार और अनुशासन में वे सफल रहे।