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समान नागरिक संहिता

1930 में जवाहरलाल नेहरू, हालांकि उन्होंने एक समान नागरिक संहिता का समर्थन किया, उन्हें वरिष्ठ नेताओं द्वारा विरोध का सामना करना पड़ा
1930 में जवाहरलाल नेहरू, हालांकि उन्होंने एक समान नागरिक संहिता का समर्थन किया, उन्हें वरिष्ठ नेताओं द्वारा विरोध का सामना करना पड़ा

समान नागरिक संहिता (अंग्रेज़ी: Uniform Civil Code, यूनिफॉर्म सिविल कोड; UCC) एक सामाजिक मामलों से संबंधित कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये विवाह, तलाक, भरण-पोषण, विरासत व बच्चा गोद लेने आदि में समान रूप से लागू होता है।[1] दूसरे शब्दों में, अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' की मूल भावना है।[2] यह किसी भी पंथ जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है।

फिलहाल समान नागरिक संहिता भारत में नागरिकों के लिए एक समान कानून को बनाने और लागू करने का एक प्रस्ताव है जो सभी नागरिकों पर उनके धर्म, लिंग और यौन अभिरुचि की परवाह किए बिना समान रूप से लागू होगा। वर्तमान में, विभिन्न समुदायों के व्यक्तिगत कानून उनके धार्मिक ग्रंथों द्वारा शासित होते हैं।[3] पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करना भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी द्वारा किए गए विवादास्पद वादों में से एक है। यह भारतीय राजनीति में धर्मनिरपेक्षता के संबंध में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और शरिया और धार्मिक रीति-रिवाजों की रक्षा में भारत के राजनीतिक वामपंथी, मुस्लिम समूहों और अन्य रूढ़िवादी धार्मिक समूहों और संप्रदायों द्वारा विवादित बना हुआ है। अभी व्यक्तिगत कानून सार्वजनिक कानून से अलग-अलग हैं। इस बीच, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25-28 भारतीय नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है और धार्मिक समूहों को अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है, संविधान का अनुच्छेद 44 भारतीय राज्य से अपेक्षा करता है कि वह राष्ट्रीय नीतियां बनाते समय सभी भारतीय नागरिकों के लिए राज्य के नीति निर्देशक तत्व और समान कानून को लागू करे।[4][5]

इतिहास

ब्रिटिश भारत (1858 - 1947)

व्यक्तिगत कानून पहली बार ब्रिटिश राज के दौरान मुख्य रूप से हिंदू और मुस्लिम नागरिकों के लिए बनाए गए थे। अंग्रेजों को समुदाय के नेताओं के विरोध का डर था और इसलिए वे इस घरेलू क्षेत्र में आगे हस्तक्षेप करने से बचते थे। भारतीय राज्य गोवा जो उस समय पुर्तगाल के औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत होने के कारण ब्रिटिश भारत से अलग था, वहाँ एक समान पारिवारिक कानून को बरकरार रखा गया जिसे गोवा नागरिक संहिता के रूप में जाना जाता था और इस प्रकार यह आज तक समान नागरिक संहिता वाला भारत का एकमात्र राज्य है। भारत की आजादी के बाद, हिंदू कोड बिल पेश किया गया, जिसने बौद्ध, हिंदू, जैन और सिख जैसे भारतीय धर्मों के विभिन्न संप्रदायों में बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध किया व उनमें सुधार भी किया, लेकिन इसने ईसाइयों, यहूदियों, मुसलमानों और पारसियों को छूट दी, जिन्हें हिंदुओं से अलग समुदायों के रूप में पहचाना गया।[6]

प्रक्रिया की शुरुआत 1882 के हैस्टिंग्स योजना से हुई और अंत शरिअत कानून के लागू होने से हुआ।[7] हालाँकि समान नागरिकता कानून उस वक्त कमजोर पड़ने लगा, जब तथाकथित सेक्यूलरों ने मुस्लिम तलाक और विवाह कानून को लागू कर दिया। 1929 में, जमियत-अल-उलेमा ने बाल विवाह रोकने मुसलमानों को अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने की अपील की। इस बड़े अवज्ञा आंदोलन का अंत उस समझौते के बाद हुआ जिसके तहत मुस्लिम जजों को मुस्लिम शादियों को तोड़ने की अनुमति दी गई।[]

भारतीय संविधान और समान नागरिक संहिता

मैं व्यक्तिगत रूप से समझ नहीं पा रहा हूं कि किसी धर्म (मजहब) को यह विशाल, व्यापक क्षेत्राधिकार क्यों दिया जाना चाहिए। ऐसे में तो धर्म, जीवन के प्रत्येक पक्ष पर हस्तक्षेप करेगा और विधायिका को उस क्षेत्र पर अतिक्रमण से रोकेगा। यह स्वतंत्रता हमें क्या करने के लिये मिली है? हमारी सामाजिक व्यवस्था असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरी है। यह स्वतंत्रता हमे इसलिये मिली है कि हम इस सामाजिक व्यवस्था में जहाँ हमारे मौलिक अधिकारों के साथ विरोध है वहाँ वहाँ सुधार कर सकें।[8]-- बी आर अम्बेडकर

समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग ४ के अनुच्छेद ४४ में है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा।[9] सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है।[10][11]

विचार

विधि आयोग

विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में समान नागरिक संहिता से संबंधित मुद्दों के समग्र अध्ययन हेतु एक विधि आयोग का गठन किया गया। विधि आयोग ने कहा कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा मूल अधिकारों के तहत अनुच्छेद 14 और 25 के बीच द्वंद्व से प्रभावित है। आयोग ने भारतीय बहुलवादी संस्कृति के साथ ही महिला अधिकारों की सर्वोच्चता के मुद्दे को इंगित किया। पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा की जा रही कार्यवाहियों को ध्यान में रखते हुए विधि आयोग ने कहा कि महिला अधिकारों को वरीयता देना प्रत्येक धर्म और संस्थान का कर्तव्य होना चाहिये। विधि आयोग के विचारानुसार, समाज में असमानता की स्थिति उत्पन्न करने वाली समस्त रुढ़ियों की समीक्षा की जानी चाहिये। इसलिये सभी निजी कानूनी प्रक्रियाओं को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता है जिससे उनसे संबंधित पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी तथ्य सामने आ सकें। वैश्विक स्तर पर प्रचलित मानवाधिकारों की दृष्टिकोण से सर्वमान्य व्यक्तिगत कानूनों को वरीयता मिलनी चाहिये। लड़कों और लड़कियों की विवाह की 18 वर्ष की आयु को न्यूनतम मानक के रूप में तय करने की सिफारिश की गई जिससे समाज में समानता स्थापित की जा सके।[]

भारत व अन्य देशों में स्थिति

विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं। जैसे कि अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की , इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट, जैसे कई देश हैं जिन्होंने समान नागरिक संहिता लागू किया है।[]

भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है, बल्कि भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं।[12] हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के लिये एक व्यक्तिगत कानून है, जबकि मुसलमानों और इसाइयों के लिए अपने कानून हैं। मुसलमानों का कानून शरीअत पर आधारित है; अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित हैं।[]

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. "समान नागरिक संहिता: पहल न होने के असल कारण". BBC News हिंदी. मूल से 2 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 अप्रैल 2020.
  2. "Triple Talaq: Ban this un-Islamic practice and bring in a uniform civil code". Hindustan Times. 22 नव॰ 2017. मूल से 6 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 अप्रैल 2020. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. "Has the Supreme Court set the ball rolling for a Uniform Civil Code?". Hindustan Times (अंग्रेज़ी में). 15 मार्च 2021. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2023.
  4. Shimon Shetreet; Hiram E. Chodosh (December 2014). Uniform Civil Code for India: Proposed Blueprint for Scholarly Discourse. Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0198077121. अभिगमन तिथि 2020-08-22.
  5. "Article 44 in the Constitution of India 1949". अभिगमन तिथि 2020-08-22.
  6. Rina Verma Williams (2006). Postcolonial Politics and Personal Laws. Oxford University Press. पपृ॰ 18, 28, 106, 107, 119. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0195680146.
  7. "Occasional Paper 7: Islamic Law and the Colonial Encounter in British India | Women Reclaiming and Redefining Cultures". www.wluml.org. मूल से 18 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 अक्तूबर 2016.
  8. "Ambedkar with UCC". Outlook India. मूल से 14 अप्रैल 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 August 2013.
  9. "How Muslim fears were allayed, and the UCC became a directive principle | India News - Times of India". The Times of India. मूल से 4 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 अप्रैल 2020.
  10. "सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता पर मोदी सरकार की खोली आंखें, कहा- एक देश एक कानून की दिशा में बढ़ो आगे". Dainik Jagran. मूल से 26 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 सितंबर 2019.
  11. "देश में समान नागरिक संहिता के लिए नहीं हुए प्रयास: सुप्रीम कोर्ट | DD News". ddnews.gov.in.
  12. Modern Indian Family Law Archived 2013-10-15 at the वेबैक मशीन - by Werner Menski