समयमापन
जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानांतरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल (प्रतीक्षानुभूति) को समय कहते हैं। समय नापने के यंत्र को घड़ी अथवा घटीयंत्र कहते हैं। इस प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि समय वह भौतिक तत्व है जिसे घटीयंत्र से नापा जाता है।
सापेक्षवाद के अनुसार समय दिग्देश के सापेक्ष है। अत: इस लेख में समयमापन पृथ्वी की सूर्य के सापेक्ष गति से उत्पन्न दिग्देश के सापेक्ष समय से लिया जाएगा। समय को नापने के लिए सुलभ घटीयंत्र पृथ्वी ही है, जो अपने अक्ष तथा कक्ष में घूमकर हमें समय का बोध कराती है; किंतु पृथ्वी की गति हमें दृश्य नहीं है। पृथ्वी की गति के सापेक्ष हमें सूर्य की दो प्रकार की गतियाँ दृश्य होती हैं, एक तो पूर्व से पश्चिम की तरफ पृथ्वी की परिक्रमा तथा दूसरी पूर्व बिंदु से उत्तर की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर जाकर, कक्षा का भ्रमण। अतएव व्यावहारिक दृष्टि से हम सूर्य से ही काल का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
समय मापन का इतिहास
नक्षत्र घड़ी को ठीक करने की विधि
नक्षत्र घड़ी की अशुद्धि को जानने के लिए याम्योत्तर यंत्र (transit instrument) द्वारा सूर्य अथवा तारों का वेध करके, क्रोनोमीटर नामक यंत्र की सहायता से, उनके याम्योत्तर लंघन का नक्षत्र समय जान लिया जाता है। (transit instrument) द्वारा सूर्य अथवा तारों का वेध करके, क्रोनोमीटर नामक यंत्र की सहायता से, उनके याम्योत्तर लंघन का नक्षत्र समय जान लिया जाता है।
नाक्षत्र घड़ी से मिलाकर, याम्योत्तर यंत्र के दूरदर्शी में ग्रह या तारे के बेध के नक्षत्र समय को क्रोनोमीटर का स्विच दबाकर जान लिया जाता है। इस समय से यांत्रिक अशुद्धियों को निकाल देने पर जो समय प्राप्त होता है, वही ग्रह या तारे के याम्योत्तर के ऊध्र्व बिंदु के लंघन का समय होता है। यदि नाक्षत्र पड़ी ठीक है, तो यह ग्रह या तारे के विषुवांश के तुल्य होगा और अंतर घड़ी की अशुद्धि है। इस प्रकार नक्षत्र घड़ी को शुद्ध रखकर उससे माध्य सूर्य घड़ियों को शुद्ध किया जाता है। याम्योत्तर यंत्र द्वारा वेध करने में व्यक्तिगत अशुद्धि की अधिक संभावना है। इसलिए तारों के याम्योत्तर लंघन के नक्षत्र समय को कैमरा लगे खमध्य दूरदर्शकों (zenith tubes) से भी जाना जाता है।
इस प्रकार यद्यपि माध्य समय की घड़ियों को ठीक रखा जाता है, तथापि उनमें दैनिक संशोधन करना एक समस्या थी। इसलिए आजकल घड़ियों के सेकंड सूचक उपकरण क्वार्टं्ज के क्रिस्टलों (quartz crystals) से बनाए जाते हैं। क्वार्टं्ज के क्रिस्टलों पर उष्णता का प्रभाव बहुत कम पड़ता है। अतएव ये घड़ियाँ बहुत शुद्ध समय देती हैं। इनमें सेकंड के हजारवें भाग तक की अशुद्धि जानी जा सकती है। साथ इस घड़ी को उस तरह की दूसरे स्टेशनों पर रखी घड़ियों के समय संकेतक, पिप्, को सुनकर, मिलाया जा सकता है तथा इससे समय संकेतक (time signals) पिप् भेजे भी जा सकते हैं। इस प्रकार की एक घड़ी काशी की प्रस्तावित, राजकीय संस्कृत कालज वेधशाला के लिए सन् 1953 में मँगवाई गई थी, जो अब राजकीय वेधशाला नैनीताल में है। इस प्रकार की घड़ियों से देश की मुख्य घड़ियों को ठीक करके, रेडियो के समय सकेंतक "पिप्" से सब माध्य सूर्यं घड़ियाँ ठीक रखी जाती हैं।
आजकल प्रत्येक देश में मध्यरात्रि के समय को शून्य मानकर, वहीं से दिन का प्रारंभ मानते हैं। दिन रात के 24 घंटों को दो 12 घंटों में, (1) रात के बारह बजे से 12 घंटों तक पूर्वाह्नकाल तक तथा (2) दिन के 12 बजे से रात्रि के 12 बजे तक अपराह्नकाल में, बाँट दिया जाता है। हमारी घड़ियाँ यहीं समय बतलाती हैं। इन 24 घंटों को नागरिक दिन कहते हैं। दिन में 24 घंटे, 1 घंटे में 60 मिनिट तथा एक मिनट में 60 सेकंड होते हैं। विज्ञान की अंग्रेजी मापन प्रणाली फुट सेकंड में तथा अंतरराष्ट्रीय प्रणाली सेंटीमीटर ग्राम सेकंड में सेकंड ही समय की इकाई है।
मानक समय (Standard Time)
समय का संबंध किसी निश्चित स्थान के याम्योत्तरवृत्त से रहता है। अत: वह उस स्थान का स्थानीय समय होगा। किसी बड़े देश में एक जैसा समय रखने के लिए, देश के बीचोबीच स्थित किसी स्थान के याम्योत्तर वृत्त का मानक याम्योत्तर वृत्त (standard meridian) मान लिया जाता है। इसके सापेक्ष माध्य-सूर्य का समय उस देश का मानक समय कहलाता है।
विश्व-समय-मापन
विश्व का समय नापने के लिए ग्रिनिच के याम्योत्तर वृत्त को मानक याम्योत्तर मान लेते हैं। इसके पूर्व में स्थित देशों का समय ग्रिनिच से, उनके देशांतर के प्रति 15रू पर एक घंटे के हिसाब से, आगे होगा तथा पश्चिम में पीछे। इस प्रकार भारत का मापक याम्योत्तर ग्रिनिच के याम्योत्तरवृत्त से पूर्व देशांतर 82 है। अत: भारत का माध्य समय ग्रिनिच के माध्य समय से 5 घंटे 30 मिनिट अधिक है। इसी प्रकार क्षेत्रीय समय भी मान लिए गए हैं। ग्रिनिच के 180रू देशांतर की रेखा तिथिरेखा है। इसके आरपार समय में 1 दिन का अंतर मान लिया जाता है। तिथिरेखा सुविधा के लिए सीधी न मानकर टेढ़ी मेढ़ी मानी गई है।
वर्ष तथा कैलेंडर
पृथ्वी की गति के कारण जब सूर्य वसंतपात की एक परिक्रमा कर लेता है, तब उसे एक आर्तव वर्ष कहते हैं। यह 365.24219879 दिन का होता है। यदि हम वसंतपात पर स्थित किसी स्थिर बिंदु अथवा तारे से इस परिक्रमा को नापें, तो यह नाक्षत्र वर्ष होगा। यह आर्तव वर्ष से कुछ बड़ा है। ऋतुओं से ताल मेल रखने के लिए संसार में आर्तव वर्ष प्रचलित है। संसार में आजकल ग्रेग्रेरियनी कैलेंडर प्रचलित है, जिसे पोप ग्रेगोरी त्रयोदश ने 1582 ई. में संशोधित किया था। इसमें फरवरी को छोड़कर सभी महीनों के दिन स्थिर हैं। साधारण वर्ष 365 दिन का होता है। लीप वर्ष (फरवरी 29 दिन) 366 दिन का होता है, जो ईस्वी सन् की शताब्दी के आरंभ से प्रत्येक चौथे वर्ष में पड़ता है। 400 से पूरे कट जानेवाले ईस्वी शताब्दी के वर्षों को छोड़कर, शेष शताब्दी वर्ष लीप वर्ष नहीं होते। ऐतिहासिक घटनाओं तथा ज्योतिष संबंधी गणनाओं के लिए जूलियन दिन संख्याएँ (Julian day numbers) प्रचलित हैं, जो 1 जनवरी 4713 ई. पू. के मध्याह्न से प्रारंभ होते हैं।