सफला एकादशी
सफला एकादशी | |
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आधिकारिक नाम | सफला एकादशी व्रत |
अनुयायी | हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी |
प्रकार | Hindu |
तिथि | पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी |
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
पद्मपुराणमें पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले-बडे-बडे यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। इसलिए एकादशी-व्रत अवश्य करना चाहिए। पौषमास के कृष्णपक्ष में सफला नाम की एकादशी होती है। इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी कल्याण करने वाली है। एकादशी समस्त व्रतों में श्रेष्ठ है।[1]
विधान
सफलाएकादशी के दिन श्रीहरिके विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए फलों के द्वारा उनका पूजन करें। धूप-दीप से देवदेवेश्वरश्रीहरिकी अर्चना करें। सफला एकादशी के दिन दीप-दान जरूर करें। रात को वैष्णवों के साथ नाम-संकीर्तन करते हुए जगना चाहिए। एकादशी का रात्रि में जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता।
व्रत विधान के विषय में जैसा कि श्री कृष्ण कहते हैं दशमी की तिथि को शुद्ध और सात्विक आहार एक समय लेना चाहिए. इस दिन आचरण भी सात्विक होना चाहिए. व्रत करने वाले को भोग विलास एवं काम की भावना को त्याग कर नारायण की छवि मन में बसाने हेतु प्रयत्न करना चाहिए. एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर माथे पर श्रीखंड चंदन अथवा गोपी चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें. संध्या काल में अगर चाहें तो दीप दान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के पश्चात कर्मकाण्डी ब्राह्मण को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात भोजन करें.
जो भक्त इस प्रकार सफला एकादशी का व्रत रखते हैं व रात्रि में जागरण एवं भजन कीर्तन करते हैं उन्हें श्रेष्ठ यज्ञों से जो पुण्य मिलता उससे कहीं बढ़कर फल की प्राप्ति होती है। व्रत में सिर्फ फलाहार, गौ का दूध ले सकता है, साबूदाना नहीं। चावल हर प्रकर का वरजीत है।
कथा
पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें सफला एकादशी के व्रत की कथा विस्तार से वर्णित है।[2] इस एकादशी के प्रताप से ही पापाचारी लुम्भकभव-बन्धन से मुक्त हुआ। सफलाएकादशी के दिन भगवान विष्णु को ऋतुफलनिवेदित करें। जो व्यक्ति भक्ति-भाव से एकादशी-व्रत करता है, वह निश्चय ही श्रीहरिका कृपापात्र बन जाता है। एकादशी के माहात्म्य को सुनने से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
उद्देश्य
सफला एकादशी का व्रत अपने नामानुसार मनोनुकूल फल प्रदान करने वाला है। भगवान श्री कृष्ण इस व्रत की बड़ी महिमा बताते हैं। इस एकादशी के व्रत से व्यक्तित को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात विष्णु लोक को प्राप्त होता है (ब्रम्हवैवर्त पुराण, पद्म पुराण). यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है (ब्रम्हवैवर्त पुराण, पद्म पुराण)
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ वेबदुनिया Archived 2009-02-05 at the वेबैक मशीन पर
- ↑ "सफला एकादशी व्रत कथा विधि". मूल से 21 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 जून 2009.
बाहरी कड़ियाँ
- सफला एकादशी व्रत कथा विस्तार से
- हरि ॐ समूह आसाराम बापू जी की वेबसाइट