सतनाम
सतनाम= सत्नाम, सत्तनाम, परमात्मा का सच्चा--अविनाशी या अपरिवर्तनशील नाम, आदिनाद।[1]
सतनाम या 'सतिनाम' (गुरुमुखी: ਸਤਿ ਨਾਮੁ) गुरु ग्रन्थ साहिब में प्रयुक्त प्रधान शब्द है। यह मूल मंत्र में भी है। सतनाम शब्द भारत के विभिन्न समाज में प्रचलित है। छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज मे यह शब्द अभिवादन के रूप में प्रयोग होता है। सतनामी समाज का मुख्य इष्ट गुरु, गुरुघासीदास है।
अन्य नाम
सारशब्द, ब्रह्मनाद, चुंबक ध्वनि, गुरुनाम, अनाहत शब्द, शब्दब्रह्म, आदि। विशेष जानकारी के लिए देखें।[2]
कबीर वाणी में सतनाम
सुकृत नाम अगुवा भये, सत्तनामकी डोर।
मूल शब्द पर बैठिके, निरखो वस्तू अंजोर।।
सत्तनाम है सबते न्यारा। निर्गुन सर्गुन शब्द पसारा।। निर्गुन बीज सर्गुन फल फूला। साखा ज्ञान नाम है मूला।।8।। दोहा - नाम सत्त संसार में, और सकल है पोच। कहना सुनना देखना, करना सोच असोच।।3।। सबही झूठ झूठ कर जाना। सत्तनाम को सत कर माना।। निस बासर इक पल नहिं न्यारा। जाने सतगुरु जानन हारा।।10।। अंस नामतें फिर फिर आवै। पूर्ण नाम परमपद पावै।। नहिं आवै नहिं जाय सो प्रानी। सत्यनामकी जेहि गति जानी।।12।। सत्तनाममें रहै समाई। जुग जुग राज करै अधिकाई।। सतलोकमें जाय समाना। सत पुरुषसों भया मिलाना।।13।। नाम दान अब लेय सुभागी। सतनाम पावै बड़ भागी। मन बचन कर्म चित्त निश्चय राखै। गुरुके शब्द अमीरस चाखै।।17।। झूठा जान जगत सुख भोगा। साँचा साधू नाम सँजोगा।। यह तन माटी इन्द्री छारी। सतनाम सांचा अधिकारी।।19।। नाम प्रताप जुगै जुग भाखाी। साध संत ले हिरदे राखी।। कहँ कबीर सुन धर्मनि नागर। सत्यनाम है जगत उजागर।।20।। अक्षर आदि जगतमें, जाका सब विस्तार।सतगुरु दया सो पाइये, सतनाम निजसार।।112।। सतगुरुकी परतीति करि, जो सतनाम समाय। हंस जाय सतलोक को, यमको अमल मिटाय।।117।।[3]
सतनाम संकीर्तन
यदि गुरु मर्यादा में रहते हुए सत्यनाम जपते-2 भक्त प्राण त्याग देता है, सारनाम प्राप्त नहीं हो पाता, उसको भी सांसारिक सुख सुविधाएँ, स्वर्ग प्राप्ति और लगातार कई मनुष्य जन्म भी मिल सकता हैं और यदि पूर्ण संत न मिले तो फिर चैरासी लाख योनियों व नरक में चला जाता है। यदि अपना व्यवहार ठीक रखते हुए गुरु जी को साहेब का रूप समझ कर आदर करते हुए सतनाम प्राप्त कर लेता है। वह प्राणी जीवन भर मन्त्र का जाप करता हुआ तथा गुरु वचन में चलता रहेगा। फिर गुरु जी सारनाम देगें। वह सत्यलोक अवश्य जाएगा। जो कोई गुरु वचन नहीं मानेगा। अर्थात् झूठ, चोरी, नशा, हिंसा और व्यभिचार का त्याग नहीं करेगा। नाम लेकर भी अपनी चलाएगा, वह गुरु निन्दा करके नरक में जाएगा और गुरु द्रोही हो जाएगा। गुरु द्रोही को कई युगों तक मानव शरीर नहीं मिलता। वह चैरासी लाख जूनियों में भ्रमता रहता है।
संदर्भ
- ↑ "P77, What is Sankirtan technique? "भजो सत्तनाम सत्तनाम सत्तनाम ए।...." शब्दार्थ देखें।". संतवाणी अर्थ सहित. अभिगमन तिथि 2020-01-11.
- ↑ "P05, Praise and attention of ॐ, "अव्यक्त अनादि अनन्त अजय,... महर्षि मेंहीं पदावली भजन भावार्थ सहित". संतवाणी अर्थ सहित. अभिगमन तिथि 2020-01-11.
- ↑ कबीर पंथी शब्दावली . पपृ॰ (पृष्ठ नं. 266.267).