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संस्करण

संस्करण संस्कृत की "कृ" धातु में (जिसका अर्थ है 'करना') सम् उपसर्ग मिलकर यह शब्द बनता है। संस्करोति, जिसका साधारण भाषा में अर्थ है 'भली प्रकार करना'। इसी से संस्कार या संस्करण बने जिनका अर्थ है भली प्रकार किया हुआ कार्य या परिष्कृत कार्य।

प्रकाशन व्यवसाय के संबंध में संस्करण का अर्थ है मुद्रित वस्तु का एक बार प्रकाशन। वास्तव में प्रकाशन व्यवसाय के संदर्भ में भी संस्करण का परिष्कृत कार्यवाला अर्थ सटीक बैठता है। किसी भी पांडुलिपि को जब प्रकाशित किया जाता है तो मुद्रित पुस्तक का रूप पांडुलिपि के रूप से कहीं भिन्न होता है, अधिक सुंदर और आकर्षक तथा अपने समग्र रूप में अधिक परिष्कृत होता है। पांडुलिपि का संपादन होता है आवश्यकतानुसार चित्र बनते हैं, प्रेस में मुद्रण होता है, आकर्षक आवरण में भी ग्रंथ सज्जित किया जाता है, तब कहीं जाकर उसका प्रकाशन होता है। पुस्तक का "संस्करण" अपने अर्थ को सचमुच सार्थक करता है। संस्करण का प्रयोग कई अर्थों में किया जाता है। जैसे- राज संकरण, सामान्य संस्करण और अब पाकेट बुक्स (या सस्ता) संस्करण। राज संस्करण में पुस्तक में कागज अच्छा लगाया जाता है, जिल्दबंदी ऊँचे किस्म की होती है और उसका मूल्य भी अधिक होता है सामान्य संस्करण, जैसा नाम से स्पष्ट है, सामान्य ही होता है और आम खरीदार को ध्यान में आमदनी को ध्यान में रखते हुए (क्योंकि मध्य वर्ग ही पुस्तकों का सबसे बड़ा पाठक है) अच्छी, महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध पुस्तकों के सस्ते संस्करण प्रकाशित करने की प्रथा चल पड़ी है, जो समय के साथ साथ खूब फूली फली है। विदेशों में जिन पुस्तकों के सामान्य संस्करण की 3000-10000 प्रतियाँ बिकती हैं, उन्हीं के सस्ते संस्करण की 100000 से 200000 प्रतियाँ तक आसानी से बिक जाती हैं। लेखक और प्रकाशक दोनों को ही इससे अधिक लाभ होता है। हमारे देश में भी अब पाकेट बुक्स का प्रकाशन प्रारंभ हो गया है और द्रुत गति से आगे बढ़ रहा है। पुस्तकों का यह संस्करण सर्वाधिक उपयोगी है और पाठक जनता तक इसी की सर्वाधिक पहुँच है, इसीलिए बड़े से बड़े लेखक अपनी पुस्तकों के सस्ते संस्करण प्रकाशित कराने में आनंदित होते हैं।

पहली बार प्रकाशित हो जाने के बाद जब किसी पुस्तक की सारी प्रतियाँ बिक जाती हैं तो कहा जाता है कि पुस्तक का एक संस्करण समाप्त हो गया। यदि पुस्तक की माँग हो तो उसे पुन: प्रकाशित किया जाता है। पुस्तक को यदि ज्यों का त्यों प्रकाशित कर दिया जाए तो उसे "पुनर्मुद्रण" कहते हैं, किंतु यदि उसे कुछ संशोधन, परिवर्तन, परिवर्धन के साथ प्रकाशित किया जाए तो उसे "नवीन संस्करण" कहा जाता है।

दैनिक पत्रों के भी संस्करण होते हैं; जैसे, नगर संस्करण, पहला डाक संस्करण, दूसरा डाक संस्करण, सायं संस्करण आदि। प्रत्येक संस्करण में पत्र का रूप कुछ बदला हुआ रहता है। नगर संस्करण में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समाचारों, स्थायी स्तंभों, तथा अन्य प्रमुख समाचारों के साथ-साथ स्थानीय समाचारों को प्रमुखता दी जाती है। डाक संस्करण अलग अलग समय पर निकलते हैं और जिन नगरों या क्षेत्रों को भेजे जाने होते हैं उनसे संबंधित समाचारों पर उनमें जोर दिया जाता है। अनेक पत्रों के प्रात: और सायं संस्करण प्रकाशित होते हैं। पत्रों के संस्करणों में जो समाचार पुराने पड़ते जाते हैं वे पिछले पृष्ठों में क्रमश: डाल दिए जाते हैं और उनका स्थान नए प्रमुख समाचार लेते चले जाते हैं - यही क्रम चलता जाता है और चौबीस घंटे बाद वह समाचार अखबार से बाहर चला जाता है, बासी हो जाता है। उदाहरणत: यदि एक समाचार प्रात: संस्करण में दिया गया तो अगले दिन प्रात: से पहले के संस्करण तक में ही वह होगा, प्रात: संस्करण में नहीं। अनेक पत्रों के अंतरराष्ट्रीय संस्करण निकलते हैं। ये विशेष पतले कागज पर छापे जाते हैं और आजकल हवाई डाक से भेजे जाते हैं। अनेक दैनिक पत्रों के एक सप्ताह के प्रमुख समाचारों के सार संक्षेप में पुन: एक विशेष संस्करण में प्रकाशित करके विक्रीत होते हैं।