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संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र का ध्वज
संयुक्त राष्ट्र का ध्वज
मुख्यालयमैनहैटन टापू, न्यूयॉर्क नगर, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका
सदस्य वर्ग193 सदस्य देश
अधिकारी भाषाएंअरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ़्रांसीसी, रूसी, स्पेनी
अध्यक्षमहासचिव एंटोनियो गुटेरेस
जालस्थलhttp://www.un.org

संयुक्त राष्ट्र एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, संक्षिप्त रूप से इसे कई समाचार पत्र संरा भी लिखते हैं। जिसके उद्देश्य में उल्लेख है कि यह अन्तर्राष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शान्ति के लिए कार्यरत है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 25 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई।

द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र को अन्तरराष्ट्रीय संघर्ष में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से स्थापित किया था। वे चाहते थे कि भविष्य में फिर कभी द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह के युद्ध न उभर आए। संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सुरक्षा परिषद वाले सबसे शक्तिशाली देश (संयुक्त राज्य अमेरिका, फ़्रांस, रूस और यूनाइटेड किंगडम) द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत बहुत राष्ट्र थे।

वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में 193 राष्ट्र हैं, विश्व के लगभग सारे अन्तरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राष्ट्र शामिल हैं। इस संस्था की संरचना में महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय, अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय और संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद सम्मिलित है।

इतिहास

सैन फ्रैंसिसको की संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1929 में राष्ट्र संघ का गठन किया गया था। राष्ट्र संघ बहुत हद तक प्रभावहीन था और संयुक्त राष्ट्र का उसकी जगह होने का यह बहुत बड़ा लाभ है कि संयुक्त राष्ट्र अपने सदस्य देशों की सेनाओं को शान्ति संभालने के लिए तैनात कर सकता है।

संयुक्त राष्ट्र के बारे में विचार पहली बार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उभरे थे। द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी होने वाले देशों ने मिलकर प्रयास किया कि वे इस संस्था की संरचना, सदस्यता आदि के बारे में कुछ निर्णय कर पायें।

24 अप्रैल 1945 को, द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद, अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं की संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुई और यहाँ सारे 40 उपस्थित देशों ने संयुक्त राष्ट्र संविधा पर हस्ताक्षर किया। पोलैण्ड इस सम्मेलन में उपस्थित तो नहीं था, पर उसके हस्ताक्षर के लिए विशेष स्थान रखा गया था और बाद में पोलैण्ड ने भी हस्ताक्षर कर दिया। सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी देशों के हस्ताक्षर के बाद संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में आया।

सदस्य वर्ग

संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का वैश्विक मानचित्र

2006 तक संयुक्त राष्ट्र में 192 सदस्य देश है। विश्व के लगभग सभी मान्यता प्राप्त देश [1] सदस्य है। कुछ विषेश उपवाद तइवान (जिसका स्थान चीन को 1971 में दे दिया गया था), वैटिकन, फ़िलिस्तीन (जिसको पर्यवेक्षक का स्थान प्राप्त है) [2], तथा और कुछ देश। सबसे नए सदस्य देश है दक्षिणी सूडान, जिसको 11 जुलाई, 2011 को सदस्य बनाया गया।

मुख्यालय

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय

संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर में पचासी लाख डॉलर में खरीदी गयी भूसंपत्ति पर स्थापित है। इस इमारत की स्थापना का प्रबन्ध एक अन्तरराष्ट्रीय शिल्पकारों के समूह द्वारा हुआ। इस मुख्यालय के अलावा और अहम संस्थाएँ जिनेवा, कोपनहेगन आदि में भी है।
यह संस्थाएँ संयुक्त राष्ट्र से स्वतन्त्र तो नहीं हैं, परन्तु उनको बहुत हद तक स्वतन्त्रताएँ दी गयी हैं।

भाषाएँ

संयुक्त राष्ट्र ने 6 भाषाओं को "राजभाषा" के तौर पर स्वीकृत किया है (अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ़्रांसीसी, रूसी और स्पेनी), परन्तु इन में से केवल दो भाषाओं को संचालन भाषा माना जाता है (अंग्रेजी और फ़्रांसीसी)।

स्थापना के समय, केवल चार राजभाषाएँ स्वीकृत की गई थी (चीनी, अंग्रेजी, फ़्रांसीसी, रूसी) और 1973 में अरबी और स्पेनी को भी सम्मिलित किया गया। इन भाषाओं के बारे में विवाद उठता रहता है। कुछ लोगों का मानना है कि राजभाषाओं की संख्या 6 से घटा कर 1 (अंग्रेजी) कर देनी चाहिए, परन्तु इसके विरोधी मानते है कि राजभाषाओं को बढ़ाना चाहिए। इन लोगों में से कई का मानना है कि हिन्दी को भी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाया जाना चाहिये।

संयुक्त राष्ट्र अमेरिकी अंग्रेजी के स्थान पर ब्रिटिश अंग्रेजी का प्रयोग करता है। 1971 तक चीनी भाषा के परम्परागत अक्षर का प्रयोग चलता था क्योंकि तब तक संयुक्त राष्ट्र ताइवान के सरकार को चीन का अधिकारी सरकार माना जाता था। जब ताइवान की जगह आज के चीनी सरकार को स्वीकृत किया गया, संयुक्त राष्ट्र ने सरलीकृत अक्षर के प्रयोग का प्रारम्भ किया।

संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी

संयुक्त राष्ट्र में किसी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने के लिए कोई विशिष्ट मापदण्ड नहीं है। किसी भाषा को संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल किए जाने की प्रक्रिया में संयुक्त राष्ट्र महासभा में साधारण बहुमत द्वारा एक संकल्प को स्वीकार करना और संयुक्त राष्ट्र की कुल सदस्यता के दो तिहाई बहुमत द्वारा उसे अन्तिम रूप से पारित करना होता है। [3]

भारत बहुत लम्बे समय से यह प्रयास कर रहा है कि हिन्दी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में शामिल किया जाए। भारत का यह दावा इस आधार पर है कि हिन्दी, विश्व में बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा है और विश्व भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है। भारत का यह दावा आज इसलिए और अधिक मजबूत हो जाता है क्योंकि आज का भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने के साथ-साथ चुनिन्दा आर्थिक शक्तियों में भी शामिल हो चुका है।[4]

2015 में भोपाल में हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन के एक सत्र का शीर्षक ‘विदेशी नीतियों में हिन्दी’ पर समर्पित था, जिसमें हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा में से एक के तौर पर पहचान दिलाने की सिफारिश की गई थी। हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के तौर पर प्रतिष्ठित करने के लिए फरवरी 2008 में मॉरिसस में भी विश्व हिन्दी सचिवालय खोला गया था।

संयुक्त राष्ट्र अपने कार्यक्रमों का संयुक्त राष्ट्र रेडियो वेबसाईट पर हिन्दी भाषा में भी प्रसारण करता है। कई अवसरों पर भारतीय नेताओं ने संरा में हिन्दी में वक्तव्य दिए हैं जिनमें 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी का हिन्दी में भाषण, सितम्बर 2014 में 69वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का वक्तव्य, सितम्बर 2015 में संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास शिखर सम्मेलन में उनका सम्बोधन, अक्तूबर, 2015 में विदेश मन्त्री सुषमा स्वराज द्वारा 70वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधन [5] और सितम्बर, 2016 में 71वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा को विदेश मन्त्री द्वारा सम्बोधन शामिल है।

उद्देश्य

संयुक्त राष्ट्र के मुख्य उद्देश्य हैं: युद्ध रोकना, मानवाधिकारों की रक्षा करना, अन्तरराष्ट्रीय कानूनी प्रक्रिया , सामाजिक और आर्थिक विकास [6] उभारना, जीवन स्तर सुधारना और बिमारियों की मुक्ति हेतु इलाज, सदस्य राष्ट्र को अन्तरराष्ट्रीय चिन्ताएँ स्मरण कराना और अन्तरराष्ट्रीय मामलों को संभालने का मौका देना है। इन उद्देश्य को निभाने के लिए 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा प्रमाणित की गई।

मानव अधिकार

द्वितीय विश्वयुद्ध के जातिसंहार के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों को बहुत आवश्यक समझा था। ऐसी घटनाओं को भविष्य में रोकना अहम समझकर, 1948 में सामान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत किया। यह अबन्धनकारी घोषणा पूरे विश्व के लिए एक समान दर्जा स्थापित करती है, जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ समर्थन करने का प्रयास करेगी।

15 मार्च 2006 को, समान्य सभा ने संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकारों के आयोग को त्यागकर संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद की स्थापना की।

आज मानव अधिकारों के सम्बन्ध में सात संघ निकाय स्थापित है। यह सात निकाय हैं:

  1. मानव अधिकार संसद
  2. आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का संसद
  3. जातीय भेदबाव निष्कासन संसद
  4. नारी विरुद्ध भेदभाव निष्कासन संसद
  5. यातना विरुद्ध संसद
  6. बच्चों के अधिकारों का संसद
  7. प्रवासी कर्मचारी संसद

संयुक्त राष्ट्र महिला (यूएन वूमेन)

विश्व में महिलाओं के समानता के मुद्दे को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विश्व निकाय के भीतर एकल एजेंसी के रूप में संयुक्त राष्ट्र महिला के गठन को 4 जुलाई 2010 को स्वीकृति प्रदान कर दी गयी। वास्तविक तौर पर 1 जनवरी 2011 को इसकी स्थापना की गयी। इसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयार्क शहर में बनाया गया है। यूएन वूमेन की वर्तमान प्रमुख चिली की पूर्व प्रधानमन्त्री सुश्री मिशेल बैशलैट हैं। संस्था का प्रमुख कार्य महिलाओं के प्रति सभी तरह के भेदभाव को दूर करने तथा उनके सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास करना होगा। उल्लेखनीय है कि 1953 में 8वें संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव भारत की विजयलक्ष्मी पण्डित को प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र के 4 संगठनों का विलय करके नई इकाई को संयुक्त राष्ट्र महिला नाम दिया गया है। ये संगठन निम्नवत हैं:

शान्तिरक्षा

संयुक्त राष्ट्र के शांन्तिरक्षक वहाँ भेजे जाते हैं जहाँ हिंसा कुछ देर पहले से बन्द है ताकि वह शान्ति संघ की शर्तों को लगू रखें और हिंसा को रोककर रखें। यह दल सदस्य राष्ट्र द्वारा प्रदान होते हैं और शान्तिरक्षा कर्यों में भाग लेना वैकल्पिक होता है। विश्व में केवल दो राष्ट्र हैं जिनने हर शान्तिरक्षा कार्य में भाग लिया है: कनाडा और पुर्तगाल। संयुक्त राष्ट्र स्वतन्त्र सेना नहीं रखती है। शान्तिरक्षा का हर कार्य सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित होता है।

संयुक्त राष्ट्र के संस्थापकों को ऊँची उम्मीद थी की वह युद्ध को हमेशा के लिए रोक पाएँगे, पर शीत युद्ध (1945 - 1991) के समय विश्व का विरोधी भागों में विभाजित होने के कारण, शान्तिरक्षा संघ को बनाए रखना बहुत कठिन था।

संघ की स्वतन्त्र संस्थाएँ

संयुक्त राष्ट्र संस्थाएँ

संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने कई कार्यक्रमों और एजेंसियों के अलावा 14 स्वतन्त्र संस्थाओं से इसकी व्यवस्था गठित होती है। स्वतन्त्र संस्थाओं में विश्व बैंक, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व स्वास्थ्य संगठन शामिल हैं। इनका संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग समझौता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की अपनी कुछ प्रमुख संस्थाएँ और कार्यक्रम हैं।[7] ये इस प्रकार हैं:

संयुक्त राष्ट्र और भारत

भारत, संयुक्त राष्ट्र के उन प्रारम्भिक सदस्यों में शामिल था जिन्होंने 01 जनवरी, 1942 को वाशिंग्टन में संयुक्त राष्ट्र घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे तथा 25 अप्रैल से 26 जून, 1945 तक सेन फ्रांसिस्को में ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र अन्तरराष्ट्रीय संगठन सम्मेलन में भी भाग लिया था। संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य के रूप में भारत, संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धान्तों का पुरजोर समर्थन करता है और चार्टर के उद्देश्यों को लागू करने तथा संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट कार्यक्रमों और एजेंसियों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

अंग्रेजों से स्वतन्त्र होने के पश्चात भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अपनी सदस्यता को अन्तरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बनाए रखने की एक महत्वपूर्ण गारण्टी के रूप में देखा। भारत, संयुक्त राष्ट्र के उपनिवेशवाद और रंगभेद के विरूद्ध संघर्ष के अशान्त दौर में सबसे आगे रहा। भारत औपनिवेशिक देशों को स्वतन्त्रता दिये जाने के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र की ऐतिहासिक घोषणा 1960 का सह-प्रायोजक था जो उपनिवेशवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों को बिना शर्त समाप्त किए जाने की आवश्यकता की घोषणा करती है। भारत राजनीतिक स्वतन्त्रता समिति (24 की समिति) का पहला अध्यक्ष भी निर्वाचित हुआ था जहाँ उपनिवेशवाद की समाप्ति के लिए उसके अनवरत प्रयास रिकार्ड पर हैं

भारत, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद और नस्लीय भेदभाव के सर्वाधिक मुखर आलोचकों में से था। वस्तुतः भारत संयुक्त राष्ट्र (1946 में) में इस मुद्दे को उठाने वाला पहला देश था और रंगभेद के विरूद्ध आम सभा द्वारा स्थापित उप समिति के गठन में अग्रणी भूमिका निभाई थी।

गुट निरपेक्ष आंदोलन और समूह-77 के संस्थापक सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था में भारत की हैसियत, विकासशील देशों के सरोकारों और आकांक्षाओं तथा अधिकाधिक न्यायसंगत अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना के अग्रणी समर्थक के रूप में मजबूत हुई।

भारत सभी प्रकार के आतंकवाद के प्रति 'पूर्ण असहिष्णुता' के दृष्टिकोण का समर्थन करता रहा है। आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक व्यापक कानूनी रूपरेखा प्रदान करने के उद्देश्य से भारत ने 1996 में अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद के सम्बन्ध में व्यापक कन्वेंशन का मसौदा तैयार करने की पहल की थी और उसे शीघ्र अति शीघ्र पारित किए जाने के लिए कार्य कर रहा है।

भारत का संयुक्त राष्ट्र के शान्ति स्थापना अभियानों में भागीदारी का गौरवशाली इतिहास रहा है और यह 1950 के दशक से ही इन अभियानों में शामिल होता रहा है। अब तक भारत 43 शान्ति स्थापना अभियानों में भागीदारी कर चुका है।

भारत, परमाणु हथियारों से संपन्न एक मात्र ऐसा राष्ट्र है जो परमाणु हथियारों को प्रतिबन्धित करने और उन्हें समाप्त करने के लिए परमाणु अस्त्र कन्वेंशन की स्पष्ट रूप से माँग करता रहा है। भारत समयबद्ध, सार्वभौमिक, निष्पक्ष, चरणबद्ध और सत्यापन योग्य रूप में परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है जैसा कि सन् 1998 में आम सभा के निरस्त्रीकरण से सम्बन्धित विशेष अधिवेशन में पेश की गई राजीव गांधी कार्य योजना में प्रतिबिम्बित होता है।

आज भारत स्थायी और अस्थायी दोनों वर्गों में सुरक्षा परिषद के विस्तार के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुधारों के प्रयासों में सबसे आगे है ताकि वह समकालीन वास्तविकताओं को प्रदर्शित कर सके।

जून 2020 में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना गया है। यह भारत का दो साल का कार्यकाल 1 जनवरी 2021 से प्रारम्भ होगा। संयुक्‍त राष्‍ट्र के इतिहास में भारत आठवीं बार प्रतिष्ठित सुरक्षा परिषद के लिए निर्वाचित हुआ है। [8] इससे पूर्व 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12 में भारत सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रहा है।

भारत में संयुक्त राष्ट्र

भारत में संयुक्त राष्ट्र के 26 संगठन सेवाएँ दे रहे हैं। स्थानीय समन्वयक (रेज़िडेंट कॉर्डिनेटर), भारत सरकार के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव के मनोनीत प्रतिनिधि हैं। संयुक्त राष्ट्र भारत को रणनीतिक सहायता देता है ताकि वह गरीबी और असमानता मिटाने की अपनी आकाँक्षाएँ पूरी कर सके तथा वैश्विक स्तर पर स्वीकृत सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप सतत् विकास को बढ़ावा दे सके। संयुक्त राष्ट्र, विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को तेज़ी से बदलाव और विकास प्राथमिकताओं के प्रति महत्वाकाँक्षी संकल्पों को पूरा करने में भी समर्थन देता है।

भारत और सतत् विकास लक्ष्य

सतत् विकास लक्ष्य सहित 2030 के एजेंडा के प्रति भारत सरकार के दृढ़ संकल्प का प्रमाण राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय बैठकों में प्रधानमन्त्री और सरकार के वरिष्ठ मन्त्रियों के वक्तव्यों से मिलता है। भारत के राष्ट्रीय विकास लक्ष्य और समावेशी विकास के लिए “सबका साथ सबका विकास” नीतिगत पहल सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप है और भारत दुनियाभर में सतत् विकास लक्ष्यों की सफलता निर्धारित करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा। स्वयं प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा है, ” इन लक्ष्यों से हमारे जीवन को निर्धारित करने वाले सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं के बारे में हमारी विकसित होती समझ की झलक मिलती है।”

आलोचना

भूमिका

सद्दाम हुसैन शासन के अन्तर्गत इराकी उकसावे के प्रति संयुक्त राष्ट्र की अनिश्चितता का जिक्र करते हुए फरवरी 2003 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू. बुश ने कभी-कभी गलत उद्धृत बयान में कहा कि "स्वतन्त्र राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र को एक अप्रभावी, अप्रासंगिक बहस करने वाले समाज के रूप में इतिहास में मिटने नहीं देंगे।"[9][10][11]

2020 में, राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने संस्मरण ए प्रॉमिस्ड लैण्ड में उल्लेख किया, "शीत युद्ध के बीच में, किसी भी आम सहमति तक पहुँचने की संभावना कम थी, यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र बेकार खड़ा था क्योंकि सोवियत टैंक हंगरी या अमेरिकी विमानों वियतनामी ग्रामीण इलाकों में नैपलम गिरा रहे थे। शीत युद्ध के बाद भी, सुरक्षा परिषद के भीतर विभाजन ने संयुक्त राष्ट्र की समस्याओं से निपटने की क्षमता को बाधित करना जारी रखा। इसके सदस्य राज्यों के पास सोमालिया जैसे असफल राज्यों के पुनर्निर्माण के लिए या श्रीलंका जैसी जगहों पर जातीय वध को रोकने के लिए या तो साधन या सामूहिक इच्छाशक्ति की कमी थी।"[12][13]

इसकी स्थापना के बाद से, संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए कई आह्वान किए गए हैं लेकिन इसे कैसे किया जाए, इस पर बहुत कम सहमति है। कुछ चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र विश्व मामलों में अधिक या अधिक प्रभावी भूमिका निभाए, जबकि अन्य चाहते हैं कि इसकी भूमिका मानवीय कार्यों में कम हो।

सन्दर्भ

  1. UN News Centre (२०१५). "UN News - Compelling moments from 2015, told by UN human rights experts". मूल से 15 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १० दिसम्बर २०१५.
  2. यूएनएफसीसीसी (२०१५). "Draft Paris Outcome" (PDF). मूल से 10 दिसंबर 2015 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि १० दिसम्बर २०१५.
  3. "प्रश्न सं.1028 संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी". मूल से 28 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  4. [1][मृत कड़ियाँ]
  5. "अटल जी के बाद सुषमा का यादगारी भाषण". मूल से 28 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 जनवरी 2018.
  6. यूएन न्यूज़ सेंटर (२०१५). "On Anti-Corruption Day, UN says ending 'corrosive' crime can boost". मूल से 11 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १० दिसम्बर २०१५.
  7. संयुक्त राष्ट्र - एक परिचय Archived 2014-01-16 at the वेबैक मशीन। बीबीसी-हिन्दी
  8. चीन से तनाव के बीच आठवीं बार भारत बना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य
  9. Greene, David L. (14 February 2003). "Bush implores U.N. to show 'backbone'". The Baltimore Sun. मूल से 12 January 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 January 2014.
  10. Singh, Jasvir (2008). Problem of Ethicity: Role of United Nations in Kosovo Crisis. Unistar Books. पृ॰ 150. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788171427017. मूल से 16 November 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 January 2014.
  11. Normand, Roger; Zaidi, Sarah (13 February 2003). Human Rights at the UN: The Political History of Universal Justice. Indiana University Press. पृ॰ 455. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0253000118. मूल से 16 November 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 January 2014.
  12. "UN failed to prevent 'ethnic slaughter in Sri Lanka' – Barack Obama". Tamil Guardian. 22 November 2020. अभिगमन तिथि 25 November 2020.
  13. "Obama's best seller refers to 'ethnic slaughter in SL'". The Sunday Times (Sri Lanka). 29 November 2020. अभिगमन तिथि 29 November 2020.

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