संयुक्त राज्य संविधान
संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान, संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च कानून है। 'नई दुनिया' की स्वतंत्रता की घोषणा के उपरांत जिस संविधान का निर्माण हुआ उसने न सिर्फ अमेरिकी जनता और राष्ट्र को एक सूत्र में बांधा बल्कि विश्व के समक्ष एक आदर्श भी स्थापित किया। अमेरिकी संविधान विश्व का पहला लिखा हुआ संविधान है जिसमें राज्य के स्वरूप, नागरिकों के अधिकार शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त तथा न्यायिक पुनरावलोकन (judicial review) जैसे पहलू शामिल किये गये।
अमेरिका का संविधान एक लिखित संविधान है। सन् 1789 में लागू होने से लेकर आज तक यह बदलते परिवेश व आवश्यकताओं के अनुरूप निरन्तर परिवर्तित तथा विकसित होता रहा हैं। चार्ल्स ए. बीयर्ड के मतानुसार " अमेरिका का संविधान एक मुद्रित दस्तावेज है जिसकी व्याख्या न्यायिक निर्णयों, पूर्व घटनाओं और व्यवहारों द्वारा की जाती है और जिसे समझ और आकांक्षाओं द्वारा आलोकित किया जाता है।
17 सितंबर 1787 में, संवैधानिक कन्वेंशन फिलाडेल्फिया (पेनसिलवेनिया) और ग्यारह राज्यों में सम्मेलनों की पुष्टि के द्वारा संविधान को अपनाया गया था। यह 4 मार्च 1789 को प्रभावी हुआ।
संविधान को अपनाने के बाद में भी उसमें सत्ताइस (27) बार संशोधन किया गया है। पहले दस संशोधनों (बाकी दो के साथ जो कि उस समय मंजूर नहीं हुए) 25 सितंबर 1789 को कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित किए गए थे और 15 दिसंबर, 1791 पर अमेरिका की आवश्यक तीन चौथाई द्वारा पुष्टि की गई। ये पहले दस संशोधन 'बिल ऑफ राइट्स' के नाम से जाने जाते हैं।
अमेरिकी संविधान का महत्व
अमेरिका के संविधान का महत्व इस बात से ही स्पष्ट हो जाता है कि इसका जन्म उस वक्त हुआ जब फ्रांस "राजतंत्र" रोम में "पवित्र साम्राज्य" पेकिंग में "स्वर्ग के आदेश" और "संत साम्राज्य" का अस्तित्व था। कालान्तर में राज्य शनैं-शनैं अतीत के गर्भ में समाहित होते गये और अमरीकी संविधान तमाम संघर्षों व टकराव के बावजूद आज भी जीवंत हैं और एक आदर्श हैं।
अमेरिकी संविधान [1] के निर्माण ने विश्व को लिखित एवं प्रजातंत्रिक सरकार का आधार प्रदान किया। विश्व के अनेक देशों ने अपने संविधान के निर्माण में इसे आधार बनाया। नागरिकों को अधिकार देने वाले लिखित विधानों में अमेरिका का संविधान सबसे प्रमुख स्रोत है। संविधान में शक्ति के पृथक्करण सिद्धान्त महत्वपूर्ण है। संघीय सरकार की स्थापना तथा न्यायपालिका की सर्वोच्चता आधुनिक राजनीतिक प्रणाली की आधारशिला है। विश्व की प्रमुख शक्ति बनाने में अमेरिका के संविधान का महत्वपूर्ण योगदान है।
अमेरिकी संविधान का निर्माण
अमेरिका में जिस संविधान का निर्माण हुआ वह कई चरणों एवं वाद-विवाद से गुजरा। अमेरिकी संविधान की विशेषताओ को समझने से पहले संविधान निर्माताओं के समक्ष चुनौतियों को जानना वांछनीय होगा।
- संविधान निर्माताओं के समक्ष चुनौतियां
- (१) राष्ट्र निर्माण का जो कार्य स्वतंत्रता प्राप्ति से शुरू हुआ था उसे पूर्णता तक पहुंचाना अर्थात् विषमतावादी समाज को एकसूत्र में बनाए रखते हुए विकास को प्रोत्साहित करना।
- (२) राज्य का स्वरूप कैसा हो-प्रजातांत्रिक अथवा संघीय।
- (३) वाद-विवाद का एक विषय केन्द्र बनाम राज्यों की सर्वोच्च प्रभुसत्ता को लेकर तो था ही इसके अतिरिक्त कुद अन्य मुद्दे भी थे। जैसे सभी राज्यों को समानता का दर्जा दिया जाए या नहीं, संघ में राज्यों का प्रतिनिधित्व किस प्रकार हो।
- प्रजातांत्रिक सरकार के समर्थकों का मत
प्रजातंत्र की परम्परा में विश्वास रखने वाले लोग यह मानते थे कि सरकार का कार्यक्षेत्र एवं शक्ति सीमित होनी चाहिए अर्थात् राज्यों की तुलना में केन्द्र कम शक्तिशाली हो क्योंकि केन्द्र यदि अत्यधिक शक्तिशाली होगा तो नागरिकों की स्वतंत्रता बाधित होगी और राज्यों की पहचान खत्म हो जाएगी। आर्थिक मुद्दे पर इस वर्ग का मानना था कि संपत्ति केवल कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में संचित न रहे तथा आय के न्यायोचित वितरण के लिए बड़े-बड़े कृषि फार्मों के स्थान पर छोटे-छोटे कृषि फार्म हों। पश्चिमी क्षेत्र की भूमि का वितरण अलग-अलग ऐसे परिवारों में होना चाहिए जो इन क्षेत्रों में बस सके और स्वयं की खेती कर सके। इस वर्ग का नेतृत्व अमेरिका में थॉमस जैफरसन कर रहा था।
- कुलीनतंत्री सरकार के समर्थकों का मत
- अमेरिका में भूपतियों, व्यापारियाें एवं महाजनों द्वारा कुलीनतंत्र में विश्वास रखने वाला दूसरा वर्ग था। इस वर्ग का प्रमुख प्रवक्ता हैमिल्टन था। इस वर्ग की मान्यता थी कि बहुमत पर आधारित प्रजातांत्रिक शासन से व्यक्तिगत अधिकारों का हनन होगा। इस वर्ग का विश्वास था कि वास्तविक शक्ति जनसाधारण में नहीं होनी चाहिए बल्कि उच्च एवं बौद्धिक वर्ग में निहित होनी चाहिए क्योंकि जनसाधारण अज्ञानी तथा अनुशासहीन होते है।
- कुलीन वर्गीय लोग एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार चाहते थे क्योंकि उनका विश्वास था कि शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार ही औद्योगिक तथा व्यापारियों के हितों की रक्षा कर सकेगी।
- आर्थिक मुद्दे पर कुलीन वर्ग का विचार था कि संपति के अधिकार की गारंटी होनी चाहिए तथा सरकार ऋण देने वालों को सुरक्षा प्रदान करें। सरकार व्यापारियों, महाजनों एवं अन्य पूंजी लगाने वालो की सहायता करे। पश्चिम क्षेत्र की भूमि संबंध में यह वर्ग भूमि का सट्टा करने वाले धनिक वर्ग के स्वार्थों की रक्षा करना चाहता था।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
संविधान निर्माण को लेकर चले विवादों के उपरांत 1776 ई. में महाद्वीपीय कांग्रेस के प्रत्येक उपनिवेश से एक-एक सदस्य लेकर एक समिति का गठन हुआ। उसका प्रमुख कार्य एक ऐसे परिसंघ के संविधान पर विचार करना था जिसके अंतर्गत एकजुट होकर सभी उपनिवेश स्वाधीनता संग्राम या स्वतंत्रता संग्राम का अभियान जारी रख सके। 1781 ई. में सभी उपनिवेशों ने संविधान को स्वीकार कर लिया। इसे ही अमेरिका का प्रथम संविधान अथवा युद्धकालीन अल्पकालिक संविधान कहा जाता है।
- युद्धकालीन संविधान की विशेषताएं
- पहली बार उपनिवेशों के संघ के लिए “संयुक्त राज्य अमेरिका” अर्थात The United States of America नाम दिया गया।
- सरकार का स्वरूप संघीय था अर्थात् केन्द्रीय सरकार की स्थापना की गई जिसके अधिकार निश्चित और सीमित थे। संघीय कार्यों के संचालन हेतु एक सदनीय “कांगे्रस” की स्थापना की गई।
- इस कांग्रेस में प्रत्येक राज्य प्रतिवर्ष 2-7 प्रतिनिधियों को भेजेगा किन्तु प्रत्येक राज्य का मत मूल्य एक ही होगा।
- किसी प्रस्ताव की स्वीकृति के लिए 13 राज्यों में से 9 का बहुमत आवश्यक होगा।
- कांग्रेस को अन्य राष्ट्रों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने, मुद्रा जारी करने, ऋण लेने, युद्ध घोषणा तथा संधि करने, मुद्रा एवं ऋण संंबंधी नीतियों के निर्माण का अधिकार दिया गया।
- राज्यों को केन्द्र की तुलना में अधिक शक्तिशाली बनाया गया और कहा गया कि जो शक्तियां स्पष्ट शब्दों में कांगे्रस को प्रत्योजित न की गई हो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में निहित रहेंगी। राज्यों को कर लगाने तथा बाह्य सरकार के मामले में अत्यधिक अधिकार मिले थे।
- सीमाएं
- कमजोर केन्द्र की स्थापना एवं शक्तिशाली राज्यों के स्वरूप से राज्य अपने को अलग स्वतंत्र इकाई के रूप में समझने लगे।
- कांगे्रस राज्यों के पारस्परिक व्यापार-वाणिज्य नियमित नहीं कर सकती थी।
- राज्यों की इच्छा पर निर्भर था कि वे कांगे्रस के निर्णय को अपने क्षेत्र में लागू करें या न करें।
इस प्रकार युद्ध के दौरान तो यह संविधान चलता रहा परन्तु युद्ध समाप्ति के बाद राज्यों के मतभेद उभरकर सामने आने लगे। संविधान की उपेक्षा होने लगी और संघीय व्यवस्था के सफल संचालन में बाधा आने लगी। अतः युद्धकालीन निर्मित संविधान में संशोधन की बात की जाने लगी। जेम्स मेडीसन, बेंजामिन फ्रैकलिन, जॉर्ज वाशिगंटन जैसे बुद्धिजीवियों और राजनीतिक नेताओं ने एक मजबूत संघीय व्यवस्था के तहत् एक शक्तिशाली सरकार की वकालत की। इसी संदर्भ में 1787 ई. में फिलाडेल्फिया में 12 राज्यों के 55 प्रतिनिधियों का सम्मेलन संपन्न हुआ (रोड आइलैण्ड नहीं शामिल हुआ)। इस सम्मेलन की अध्यक्षता जॉर्ज वाशिगंटन ने की। इस सम्मेलन में वर्जीनिया योजना, के माध्यम से संविधान की धाराओं में संशोधन कर नया संविधान की धाराओं में संशोधन कर नया संविधान बना जो आज तक लागू है।वर्जीनिया योजना में संघीय शासन को और अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रावधान था तथा केन्द्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था की बात की गई थी।
अमेरिकी संविधान की विशेषताएँ
संयुक्त राज्य अमरीका ने अपनी परिस्थितियों के अनुरूप जिस संविधान को अपनाया है, उसकी अपनी कुछ विशेषताएं हैं जिनका उल्लेख निम्न रूपों में किया जा सकता :
निर्मित और लिखित संविधान
संयुक्त राज्य अमरीकी के संविधान का निर्माण 1787 ई. में हुआ और यह विश्व का प्रथम लिखित संविधान है। ब्रिटिश संविधान की भांति इसका क्रमिक विकास नहीं हुआ, वरन् संविधान के मूल ढांचे का फिलाडेल्फिया सम्मेलन द्वारा निर्माण किया गया है। यह एक निश्चित समय की कृति है। यद्यपि न्यायिक व्याख्याओं, प्रशासनिक कार्यों और परंपराओं के आधार पर संविधान का निरंतर विकास होता रहा है, किंतु संविधान की अधिकांश धाराएं और उनका मूल ढांचा लिपिबद्ध है, अमेरिका ने लिखित संविधान की उपयोगिता स्पष्ट कर विश्व के अन्य राज्यों को इसे अपनाने की ओर प्रेरित किया हैं।
सर्वाधिक संक्षिप्त संविधान
अमेरिकी संविधान विश्व के लिखित संविधानों में सर्वाधिक संक्षिप्त प्रलेख है। मुनरो के अनुसार, “संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में केवल 4,000 शब्द हैं, जो 10 या 12 पृष्ठों में मुद्रित हैं और जिन्हें आधे घंटे में पढ़ा जा सकता है”। अमेरिकी संविधान में केवल सात अनुच्छेद हैं।
संविधान की सर्वोच्चता
फिलाडेल्फिया सम्मेलन द्वारा निर्मित प्रलेख संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च कानून है और राष्ट्रपति, कांग्रेस, सर्वोच्च न्यायालय तथा संघ की इकाइयां सब इसके अधीन हैं और किसी के भी द्वारा इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।
कठोर संविधान
संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान कठोर है। अर्थात् अमेरिकी कांग्रेस के द्वारा जिस प्रक्रिया के आधार पर सामान्य कानूनों का निर्माण किया जाता है उसी प्रक्रिया के आधार पर संवैधानिक कानूनों का निर्माण अर्थात् संविधान में संशोधन का कार्य नहीं किया जा सकता। संवैधानिक संशोधन के लिए साधारण कानूनों के निर्माण से भिन्न प्रक्रिया को अपनाया जाना आवश्यक है। संघात्मक शासन व्यवस्था स्थापित किये जाने के कारण अमेरिका के लिए कठोर संविधान को अपनाना आवश्यक भी था। अमेरिकी संविधान न केवल पारिभाषित दृष्टि से कठोर है, वरन् व्यवहार में भी संविधान में परिवर्तन किया जाना बहुत अधिक कठिन है।
गणतंत्र की स्थापना
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान द्वारा अमेरिका में गणतंत्र की स्थापना की गयी है जिसका तात्पर्य यह है कि अमेरिकी लोकतंत्र का अध्यक्ष ब्रिटेन के प्रधान (सम्राट) की भांति उत्तराधिकार के आधार पर अपना पद ग्रहण नहीं करता है, वरन् वह निर्वाचित है। संयुक्त राज्य अमेरिका के संघ का अध्यक्ष राष्ट्रपति हैं जो जनता द्वारा निर्वाचित निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा चुना जाता है। न केवल संघ वरन् इकाइयों में भी गणतंत्र की स्थापना की गयी है। संविधान की धारा 4 के चौथे अनुबंध में कहा गया है कि संयुक्त राज्य की संघीय सरकार इस संघ के प्रत्येक राज्य में गणतन्त्रीय सरकार की स्थापना की गारंटी देगी।
संघात्मक शासन की स्थापना
1787 में फिलाडेल्फिया सम्मेलन द्वारा निर्मित संविधान के द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका में एक संघ राज्य की स्थापना की गयी। 1787 के विधान द्वारा एक परिसंघ की स्थापना की गयी थी, किंतु शीघ्र ही परिसंघ की निर्बलता स्पष्ट हो गयी और नवीन संविधान के द्वारा एकता और सुदृढ़ता प्राप्त करने के लिए परिसंघ के स्थान पर संघ को अपनाया गया। 1789 में इस अमेरिकी संघ की 13 इकाइयां या राज्य थे, किन्तु नवीन राज्यों ने संघ में प्रवेश किया और आज अमेरिकी संघ में 50 इकाईयांया राज्य हैं। संविधान के द्वारा विश्व के प्रथम और पूर्ण संघ राज्य की स्थापना की गयी है और संघ राज्य के सभी प्रमुख लक्षण इसमें विद्यमान हैं।
प्रतिनिध्यामक लोकतंत्र की स्थापना
लोकतन्त्रात्मक शासन के दो भेद होते हैं: (1) प्रत्यक्ष लोकतंत्र, और (2) अप्रत्यक्ष या प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र। अमेरिकी संविधान-निर्माता इस तथ्य से परिचित थे कि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विशाल राज्य में प्रत्यक्ष लोकतंत्र को अपनाना संभव नहीं हो सकता। इसलिए उनके द्वारा प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र को ही अपनाया गया जिसके अंतर्गत सामान्य जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन कार्य में भाग लेती हैं।
न्यायिक सर्वोच्चता
सभी संघात्मक राज्यों के अंतर्गत एक सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की जाती है जिसका कार्य संविधान की व्याख्या एंव रक्षा करना होता है। संयुक्त राज्य अमरीका में संघात्मक व्यवस्था को अपनाने के कारण स्वाभाविक रूप से न्यायिक सर्वोच्चता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। इस प्रकार ब्रिटेन में जहाँ संसद की सर्वोच्चता है, वहां अमरीका में न्यायिक सर्वोच्चता है। न्यायिक सर्वोच्चता का तात्पर्य यह है कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान का उल्लंघन करने वाले कांग्रेस के कानूनों, राष्ट्रपति की आज्ञाओं अथवा राज्य सरकारों के कानूनों और कार्यों को अवैध घोषित कर सकता है। इसी को ‘न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार’ भी कहते हैं। इसी शक्ति के माध्यम से सर्वोच्च न्यायलय केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों को अपने-अपने क्षेत्रों तक सीमित रखता है।
अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था
प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र के भी दो भेद होते हैं- (I) संसदात्मक या मंत्रिमंडलात्मक शासन, और (ii) अध्यक्षात्मक शासन। अमेरिकी संविधान के निर्माता लॉक और माण्टेस्क्यू के दर्शन से प्रभावित थे और शक्ति विभाजन के सिद्धांत को नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा का साधन मानते थे, इसलिए उनके द्वारा ब्रिटेन जैसी संसदात्मक व्यवस्था के स्थान पर अध्यक्षात्मक व्यवस्था को अपनाया गया है जिसके अंतर्गत कार्यपालिका विभाग व्यवस्थापन विभाग से सर्वथा पृथक होता है, कार्यपालिका विभाग के प्रधान का कार्यकाल निश्चित होता है और वह अपनी नीति तथा कार्यों के लिए व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होता।
सीमित शासन का सिद्धान्त
अमरीकी संविधान-निर्माताओं ने स्वयं ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज तृतीय के अत्याचारों को सहन किया था और वे चाहते थे कि आने वाली पीढ़ियों को अमर्यादित शासन भी बुराइयों से बचाने के लिए आवश्यक प्रयत्न किये जायें। इसके अतिरिक्त वे लॉक के व्यक्तिवादी दर्शन से प्रभावित थे और शासन को एक न्यास मात्र मानते थे। जेम्स बेक के मतानुसार संविधान-निर्माता सरकार की शक्ति से अत्यन्त सशंक थे। उनका विश्वास था कि “शक्ति जितनी अधिक असीमित होगी उसके दुरुपयोग का उतना ही अधिक खतरा होगा”। अतः उनके दारा अनेक उपाय किये गये हैं, यथा संविधान की सर्वोच्चता, अधिकार-पत्र की व्यवस्था, शक्ति-पृथक्करण, न्यायपालिका की स्वतंत्र सत्ता, आदि।
मौलिक अधिकारों की व्यवस्था
शासन को सीमित रखने और नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा के उपाय के रूप में अमेरिकी संविधान में मौलिक अधिकारों को अपनाया गया है। फिलाडेल्फिया सम्मेलन द्वारा निर्मित संविधान के मूल प्रलेख में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था नहीं की गई थी, लेकिन संविधान में अनुसमर्थन हेतु विविध पक्षों के बीच जो परस्पर समझौता हुआ। उस समझौते के अंग के रूप में संविधान में 1791 में प्रथम 10 संशोधन करते हुए मौलिक अधिकारों को अपनाया गया। संविधान का 13वाँ, 14वाँ और 15वाँ संशोधन भी नागरिक अधिकारों से ही संबंधित है।
दोहरी नागरिकता
संयुक्त राज्य अमरीका के संविधान में संघात्मक व्यवस्था को अपनाने के साथ-साथ दोहरी नागरिकता को अपनाया गया है। वहां प्रत्येक नागरिक दोहरी नागरिकता प्राप्त हैं। प्रथम, संयुक्त राज्य अमरीका की नागरिकता और द्वितीय, उस राज्य की नागरिकता जिसमें वह निवास करता है।
व्यक्तिवादी दर्शन पर आधारित संविधान
जिस प्रकार पूर्व सोवियत संघ का संविधान और राज्य साम्यवादी दर्शन पर आधारित था, उसी प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान को व्यक्तिवादी दर्शन पर आधारित सबसे प्रमुख संविधान और राज्य कहा जा सकता है। फिलाडेल्फिया सम्मेलन के सदस्य लॉक के व्यक्तिवादी दर्शन से अत्यधिक प्रभावित थे।
शक्ति विभाजन और नियन्त्रण तथा संतुलन के सिद्धान्त पर आधारित
अमरीकी संविधान की अंतिम, लेकिन सबसे अधिक विशिष्ट विशेषता यह है कि यह संविधान शक्ति विभाजन और नियंत्रण तथा संतुलन के सिद्धांत पर आधारित है। अमेरिकी संविधान के निर्माता अमेरिका में एक सीमित शासन की स्थापना करना चाहते थे और इस बात के लिए प्रयत्नशील थे कि शासन अत्यधिक शक्तिशाली होकर नागरिक स्वतंत्रताओं को आघात न पहुंचा सके। इस हेतु उनके द्वारा न केवल 3संघीय शासन व्यवस्था को अपनाया गया और संविधान के प्रथम 10 संशोधन करते हुए मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गयी, वरन् अपने संविधान को शक्ति विभाजन पर आधारित किया गया।
सीमाएं
- स्त्रियों को मताधिकार नहीं दिया गया।
- स्वतंत्रता की घोषणा दासों पर लागू नहीं होती थी अर्थात् दास प्रथा को बनाए रखा गया। आगे चलकर इस दास-प्रथा के मुद्दे ने अमेरिका को गृहयुद्ध की ओर धकेल दिया।
- संविधान निर्माण में धनी वर्ग का प्रभाव।
- राष्ट्रपति के निर्वाचन की जटिल प्रक्रिया।
संविधान एक आर्थिक दस्तावेज के रूप में
चार्ल्स बेयर्ड ने निबंध 'An Economic Interpretation of the Constitution of the United States' के माध्यम से संविधान निर्माताओं पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने इस संविधान के माध्यम से अपने आर्थिक वर्ग के निहित स्वार्थों को आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया है। उसने बताया कि सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों की सामाजिक संरचना कुछ इस तरह थी कि वे आर्थिक लाभों को अपने पक्ष में करना चाहते थे। इनमें 24 प्रतिनिधि साहूकार वर्ग के, 15 प्रतिनिधि उत्तरी क्षेत्र के और दासों के मालिक थे, 14 प्रतिनिधि भूमि का सौदा व सट्टेबाजी के व्यवसाय से संबंधित, 11 प्रतिनिधि व्यवसायी व जहाज निर्माता थे। सम्मेलन में कारीगरों, छोटे किसानों एवं गरीबों का कोई प्रतिनिधि नहीं था। इस तरह सम्मेलन में शामिल साहूकार, व्यापारी, व्यवसायी जैसे वर्गों ने शक्तिशाली संघ की स्थापना की बात की। यह शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार समय-समय पर विभिन्न करों को आरोपित कर सकेगी।
चार्ल्स बेयर्ड की इस स्थापना को कई इतिहासविदों ने चुनौती दी। फॉरेस्ट मैकडोनाल्ड ने अपनी पुस्तक "We the People : The Eco- nomic Origins of Constitutions (1958)" में बताया कि यह मान्यता किसी तरह से प्रमाणित नहीं होगी कि व्यक्तिगत संपत्ति के हितों की रक्षा ही वह मुख्य तत्व था जिसने संविधान निर्माण की दिशा बदल दी। जिन लोगों ने संविधान का प्रारूप (Draft) तैयार किया उसे अंगीकृत करने में प्रत्यक्ष सहायता दी उन प्रतिनिधियों की पृष्ठभूमि कैसी भी रही हो एक बार जब उन्होंने सम्मेलन में भागीदारी निभाना शुरू किया तो वे व्यक्तिगत वर्ग न रहकर एक एकीकृत आर्थिक समूह बन गए। जहां तक यह कहना कि किसानों ने संविधान का विरोध किया यह बात इसलिए भी ठीक नहीं लगती कि न्यूजर्सी, मेरीलैंड, जॉर्जिया जैसे मुख्यतः कृषि आधारित राज्यों में भी संविधान आसानी से स्वीकृत हुआ। इस दृष्टि से चार्ल्स बेयर्ड के द्वारा प्रतिपादित संविधान के स्वरूप की आर्थिक दस्तावेज के रूप में व्याख्या को पूर्णतः स्वीकार नहीं किया जा सकता। फिर भी उसके मत का विशिष्ट योगदान इस बात में निहित है कि उसने अमेरिका के संविधान के स्वरूप की ओर ध्यान दिया तथा अन्य इतिहासविदों को उसके बारें में सोचने के लिए पे्ररित किया। उसने जो बुनियाद मुद्दे उठाए वे समय की कसौटी पर इस रूप में खरे उतरे कि लोगों का ध्यान संविधान के स्वरूप और उसमें किस बात पर बल दिया जाता है या दिया जाना चाहिए, इस ओर उनका ध्यान आकृष्ट कर सकें।
अमेरिकी संविधान की रचना को प्रभावित करने वाले तत्व एवं कारक
स्वतंत्रता के पश्चात् राष्ट्र निर्माण को पूर्णता तक पहुंचाने के लिए, विषमरूपी तथा बहुलवादी विभिन्न रीति-रिवाज से युक्त समाज को एकसूत्र में बांधने हेतु संविधान की जरूरत थी। इतना ही नहीं जिन मुद्दों को लेकर उपनिवेशों ने क्रांति की थी उन्हें भी संविधान के माध्यम से दूर किया जाना था। निम्नलिखित तत्वों एवं कारकों ने संविधान की रचना को प्रभावित किया-
- 1. देश को गणतंत्र का स्वरूप प्रदान करना : विश्व के अनेक देशों में उस काल में राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली थी और संसद की मौजूदगी के बावजूद भी राजा निरंकुश हो जाता था। फलतः नागरिक स्वतंत्रता बाधित होती थी। उसको दूर करने के लिए जरूरी था कि एक गणतंत्रात्मक सरकार का गठन हो इसलिए अमेरिका संविधान में गणतंत्र के स्थापना की बात की गई।
- 2. संघीय व्यवस्था को अपनाया जाना : क्रांति के दौरान सभी तेरह अमेरिकी उपनिवेशों ने निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए एकजुट होकर कार्य किया था। अब मुद्दा यह था कि “अनेक ऐ एक” (One out of many)कैसे हुआ जाए। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए संघीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई। राज्यों के समान हितों की रक्षा के लिए जो महासंघ अस्तित्व में आया उसे USA नाम दिया गया। महासंघ की स्थापना से तेरहों उपनिवेश एकता के सूत्र में बंध गए और हर राज्य के नागरिकों को वे ही अधिकार और कर आदि से छूटे मिली जो अन्य राज्य के नागरिकों को प्राप्त थी।
- 3. एक शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना : एक शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना की गई ताकि राज्य अपने निहित स्वार्थों के कारण आगे चलकर स्वतंत्र होने का प्रयास न कर सके। दूसरी तरफ राज्यों की पहचान बनाए रखने का भी प्रावधान किया गया। यही वजह है कि अमेरिका संविधान में लिखा गया-““अविनाशी राज्यों का अविनाशी संघ””। राज्यों के आपसी विवादों तथा उनके बीच व्यापारिक संबंधों के नियमन हेतु भी एक मजबूत केन्द्र की स्थापना की गई संघीय शासन को चलाने हेतु एक राष्ट्रीय विधायिका का निर्माण किया गया जिसमें दो सदन थे-एक उच्च सदन (सीनेट) तथा दूसरा निम्न सदन (प्रतिनिधि सभा)। चूंकि स्वतंत्रता के दौरान उपनिवेशों ने प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं का नारा दिया था इस बात को ध्यान में रखते हुए सीनेट में समानता के सिद्धान्त को बनाए रखा गया और प्रत्येक राज्य से दो/दो सदस्यों के चुने जाने का प्रावधान किया गया।
- 4. शक्ति का पृथक्करण सिद्धान्त : सरकार की शक्ति किन्हीं एक हाथों में पड़कर निरंकुश न हो जाए तथा कार्यपालिका ही सर्वशक्तिमान न हो जाय और व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा नागरिक अधिकारों का हनन न हो इसलिए संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन का सिद्धान्त अपनाया गया।
- 5. संविधान संशोधन में राज्यों की भूमिका : राज्यों को पर्याप्त महत्व देने हुए कानून के निर्माण में उनकी सहभागिता को महत्व देना जरूरी था। अतः संविधान संशोधन प्रक्रिया में यह प्रावधान किया गया कि प्रत्येक सदन के दो/तिहाई मतों के आधार पर कांग्रेस संविधान में संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकेगी या राज्यों की कुल संख्या में से दो तिहाई राज्यों की विधायिका में से आवेदन प्राप्त होने पर संशोधन प्रस्तावित करने के लिए सम्मेलन बुलाएगी।
- 6. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना : राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को वाणिज्यिक सौदागरों के चंगुल से मुक्त कर एक स्वतंत्र आर्थिक नीति का निर्माण करना जरूरी था। अतः सिक्के ढालने, सरकारी नोट जारी करने, विदेशों के साथ ऋण प्राप्त करने तथा ऋणों का भुगतान करने आदि से संबंधित अधिकार संघ को दिए गए।
बाहरी कड़ियाँ
राष्ट्रीय अभिलेखागार
- National Constitution Center
- The National Archives Experience—Constitution of the United States*
- National Constitution Center's "Interactive Constitution"[मृत कड़ियाँ]
अमेरिकी सरकार के स्रोत
- Constitution and related resources: Library of Congress
- Analysis and Interpretation of the Constitution of the United States: Annotated constitution, with descriptions of important cases (official publication of U.S. Senate)
गैर-सरकारी जालघर
- U.S. Constitution Online
- Mobile friendly version of the Constitution
- Audio reading of the Constitution in MP3 format provided by the University of Chicago Law School
- Annotated Constitution by the Congressional Research Service of the U.S. Library of Congress (hyperlinked version published by Cornell University)