संचार माध्यम
संचार (विश्लेषणात्मक संचार अध्ययन के सामान्य सेटिंग पर परिचयात्मक नोट)
यहाँ संचार शब्द का प्रयोग बहुत व्यापक अर्थ में किया जाएगा, जिसमें वे सभी प्रक्रियाएँ शामिल होंगी जिनके द्वारा एक मन दूसरे को प्रभावित कर सकता है। इसमें, बेशक, केवल लिखित और मौखिक भाषण ही नहीं, बल्कि संगीत, चित्रात्मक कलाएँ, रंगमंच, बैले और वास्तव में सभी मानवीय व्यवहार शामिल हैं। कुछ मामलों में संचार की और भी व्यापक परिभाषा का उपयोग करना वांछनीय हो सकता है, अर्थात्, जिसमें वे प्रक्रियाएँ शामिल होंगी जिनके माध्यम से एक तंत्र (जैसे कि एक हवाई जहाज़ को ट्रैक करने और इसकी संभावित भविष्य की स्थिति की गणना करने के लिए स्वचालित उपकरण) दूसरे तंत्र (जैसे कि इस हवाई जहाज़ का पीछा करने वाली एक निर्देशित मिसाइल) को प्रभावित करता है।
इस ज्ञापन की भाषा अक्सर भाषण के संचार के विशेष, लेकिन फिर भी बहुत व्यापक और महत्वपूर्ण क्षेत्र को संदर्भित करती हुई प्रतीत होगी; लेकिन व्यावहारिक रूप से कही गई हर बात लागू होती है यह पत्र तीन मुख्य खंडों में लिखा गया है। पहले और तीसरे में, डब्ल्यू. डब्ल्यू. विचारों और रूप दोनों के लिए जिम्मेदार है। मध्य भाग, अर्थात् "2), लेवल ए की संचार समस्याएँ" बेल टेलीफोन प्रयोगशालाओं के डॉ. क्लाउड ई. शैनन द्वारा गणितीय पत्रों की व्याख्या है। डॉ. शैनन का काम, जैसा कि वॉन न्यूमैन ने बताया है, बोल्ट्ज़मैन के अवलोकन से जुड़ा है, जो सांख्यिकीय भौतिकी (1894) पर उनके कुछ काम में था, कि एन्ट्रॉपी "लापता सूचना" से संबंधित है, क्योंकि यह उन विकल्पों की संख्या से संबंधित है जो किसी भौतिक प्रणाली के लिए संभव रहते हैं, उसके बारे में सभी मैक्रोस्कोपिक रूप से अवलोकन योग्य जानकारी दर्ज होने के बाद। एल. सिज़लार्ड (ज़श. एफ. फिज. वॉल्यूम. 53, 1925) ने इस विचार को भौतिकी में सूचना की सामान्य चर्चा तक बढ़ाया, और वॉन न्यूमैन (गणित. क्वांटम मैकेनिक्स का फाउंडेशन, बर्लिन, 1932, अध्याय. V) ने क्वांटम यांत्रिकी और कण भौतिकी में सूचना का इलाज किया। डॉ. शैनन का काम एच. निक्विस्ट और आर. वी. एल. हार्टले द्वारा बीस साल पहले विकसित किए गए कुछ विचारों से सीधे तौर पर जुड़ता है, दोनों बेल प्रयोगशालाओं के हैं; और डॉ. शैनन ने खुद इस बात पर जोर दिया है कि संचार सिद्धांत अपने मूल दर्शन के लिए प्रोफेसर नॉर्बर्ट वीनर का बहुत बड़ा ऋणी है। दूसरी ओर, प्रोफेसर वीनर बताते हैं कि स्विचिंग और गणितीय तर्क पर शैनन का प्रारंभिक कार्य इस क्षेत्र में उनकी अपनी रुचि से पहले का है; और उदारतापूर्वक कहते हैं कि शैनन निश्चित रूप से इस सिद्धांत के ऐसे मौलिक पहलुओं के स्वतंत्र विकास के लिए श्रेय के हकदार हैं जैसे कि एन्ट्रॉपी विचारों की शुरूआत। शैनन स्वाभाविक रूप से इंजीनियरिंग संचार के अनुप्रयोगों को आगे बढ़ाने के लिए विशेष रूप से चिंतित रहे हैं, जबकि वीनर जैविक अनुप्रयोग (केंद्रीय तंत्रिका तंत्र घटनाएँ, आदि) के साथ अधिक चिंतित रहे हैं। [NRPATELGUJSUR009]
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Introductory Note on the General Setting of the Analytical Communication Studies'
1.1. Communication
The word communication will be used here in a very broad sense to include all of the procedures by which one mind may affect another. This, of course, involves not only written and oral speech, but also music, the pictorial arts, the theatre, the ballet, and in fact all human behavior. In some connections it may be desirable to use a still broader definition of communication, namely, one which would include the procedures by means of which one mechanism (say automatic equipment to track an airplane and to compute its probable future positions) affects another mechanism (say a guided missile chasing this airplane).
The language of this memorandum will often appear to refer to the special, but still very broad and important, field of the communication of speech; but practically everything said applies This paper is written in three main sections. In the first and third, W. W. is responsible both for the ideas and the form. The middle section, namely "2), Communication Problems of Level A" is an interpretation of mathematical papers by Dr. Claude E. Shannon of the Bell Telephone Laboratories. Dr. Shannon's work roots back, as von Neumann has pointed out, to Boltzmann's observation, in some of his work on statistical physics (1894), that entropy is related to "missing information," inasmuch as it is related to the number of alternatives which remain possible to a physical
system after all the macroscopically observable information concerning it has been recorded. L. Szilard (Zsch. f. Phys. Vol. 53, 1925) extended this idea to a general discussion of information in physics, and von Neumann (Math. Foundation of Quantum Mechanics, Berlin, 1932, Chap. V) treated information in quantum mechanics and particle physics. Dr. Shannon's work connects more directly with certain ideas developed some twenty years ago by H. Nyquist and R. V. L. Hartley, both of the Bell Laboratories; and Dr. Shannon has himself emphasized that communication theory owes a great debt to Professor Norbert Wiener for much of its basic philosophy. Professor Wiener, on the other hand, points out that Shannon's early work on switching and mathematical logic antedated his own interest in this field; and generously adds that Shannon certainly deserves credit for independent development of such fundamental aspects of the theory as the introduction of entropic ideas. Shannon has naturally been specially concerned to push the applications to engineering communication, while Wiener has been more concerned with biological application (central nervous system phenomena, etc.).
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संचार माध्यम (Communication Medium) से आशय है | संदेश के प्रवाह में प्रयुक्त किए जाने वाले माध्यम। संचार माध्यमों के विकास के पीछे मुख्य कारण मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना है। वर्तमान समय में संचार माध्यम और समाज में गहरा संबन्ध एवं निकटता है। इसके द्वारा जन सामान्य की रूचि एवं हितों को स्पष्ट किया जाता है। संचार माध्यमों ने ही सूचना को सर्वसुलभ कराया है। तकनीकी विकास से संचार माध्यम भी विकसित हुए हैं तथा इससे संचार अब ग्लोबल फेनोमेनो बन गया है।
संचार माध्यम, अंग्रेजी के "मीडिया" (मिडियम का बहुवचन) से बना है, जिसका अभिप्राय होता है दो बिंदुओं को जोड़ने वाला। संचार माध्यम ही संप्रेषक और श्रोता को परस्पर जोड़ते हैं। हेराल्ड लॉसवेल के अनुसार, संचार माध्यम के मुख्य कार्य सूचना संग्रह एवं प्रसार, सूचना विश्लेषण, सामाजिक मूल्य एवं ज्ञान का संप्रेषण तथा लोगों का मनोरंजन करना है।
संचार माध्यम का प्रभाव समाज में अनादिकाल से ही रहा है। परंपरागत एवं आधुनिक संचार माध्यम समाज की विकास प्रक्रिया से ही जुड़े हुए हैं। संचार माध्यम का श्रोता अथवा लक्ष्य समूह बिखरा होता है। इसके संदेश भी अस्थिर स्वभाव वाले होते हैं। फिर संचार माध्यम ही संचार प्रक्रिया को अंजाम तक पहुँचाते हैं।
संचार
संचार शब्द अंग्रेजी के कम्युनिकेशन का हिन्दी रूपांतर है जो लैटिन शब्द कम्युनिस से बना है, जिसका अर्थ है सामान्य भागीदारी युक्त सूचना। चूंकि संचार समाज में ही घटित होता है, अत: हम समाज के परिप्रेक्ष्य से देखें तो पाते हैं कि सामाजिक संबन्धों को दिशा देने अथवा निरंतर प्रवाहमान बनाए रखने की प्रक्रिया ही संचार है। संचार समाज के आरंभ से लेकर अब तक के विकास से जुड़ा हुआ है।
- परिभाषाएं-
प्रसिद्ध संचारवेत्ता डेनिस मैक्वेल के अनुसार, " एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अर्थपूर्ण संदेशों का आदान प्रदान है।
डॉ॰ मरी के मत में,
"संचार सामाजिक उपकरण का सामंजस्य है।"
लीगैन्स की शब्दों में,
"निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया निरंतर अन्तक्रिया से चलती रहती है और इसमें अनुभवों की साझेदारी होती है।"
राजनीति शास्त्र विचारक लुकिव पाई के विचार में, "सामाजिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण ही संचार है।"
इस प्रकार संचार के संबन्ध में कह सकते हैं कि इसमें समाज मुख्य केन्द्र होता है जहाँ संचार की प्रक्रिया घटित होती है। संचार की प्रक्रिया को किसी दायरे में बांधा नहीं जा सकता। फिर संचार का लक्ष्य ही होता है- सूचनात्मक, प्रेरणात्मक, शिक्षात्मक व मनोरंजनात्मक।
संचार माध्यमों की प्रकृति
भारत में प्राचीन काल से ही के दुनिया में सबसे अच्छा नीतीश है का अस्तित्व रहा है। यह अलग बात है कि उनका रूप अलग-अलग होता था। भारत में संचार सिद्धान्त काव्य परपंरा से जुड़ा हुआ है। साधारीकरण और स्थायीभाव संचार सिद्धान्त से ही जुड़े हुए हैं। संचार मुख्य रूप से संदेश की प्रकृति पर निर्भर करता है। फिर जहाँ तक संचार माध्यमों की प्रकृति का सवाल है तो वह संचार के उपयोगकर्ता के साथ-साथ समाज से भी जुड़ा होता है। चूंकि हम यह भी पाते हैं कि संचार माध्यम समाज की भीतर की प्रक्रियाओं को ही उभारते हैं। निवर्तमान शताब्दी में भारत के संचार माध्यमों की प्रकृति व चरित्र में बदलाव भी हुए हैं लेकिन प्रेस में मुख्यत: तीन-चार गुणात्मक परिवर्तन दिखाई देते हैं-
पहला:
शताब्दी के पूर्वाद्ध में इसका चरित्र मूलत: मिशनवादी रहा, वजह थी स्वतंत्रता आंदोलन व औपनिवेशिक शासन से मुक्ति। इसके चरित्र के निर्माण में तिलक, गांधी, माखनलाल चतुर्वेदी, विष्णु पराडकर, माधवराव सप्रे जैसे व्यक्तित्व ने योगदान किया था।
दूसरा:
15 अगस्त 1947 के बाद राष्ट्र के एजेंडे पर नई प्राथमिकताओं का उभरना। यहाँ से राष्ट्र निर्माण काल आरंभ हुआ और प्रेस भी इसके संस्कारों से प्रभावित हुआ। यह दौर दो दशक तक चला।
तीसरा:
सातवें दशक से विशुद्ध व्यावसायिकता की संस्कृति आरंभ हुई। वजह थी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का विस्फोट।
चौथा:
अन्तिम दो दशकों में प्रेस का आधुनिकीकरण हुआ, क्षेत्रीय प्रेस का एक `शक्ति` के रूप में उभरना और पत्र-पत्रिकाओं से संवेदनशीलता एवं दृष्टि का विलुप्त होना।
इसके इतर आज तो संचार माध्यमों की प्रकृति अस्थायी है। इसके अपने वाजिब कारण भी हैं हालांकि इसके अलावा अन्य मकसद से भी संचार माध्यम बेतुकी ख़बरें व सूचनाएं सनसनीखेज तरीके से परोसने लगे हैं।
इन्हें भी देखें
Black Day 14 February को मनाया जाता है ।