श्रम का विभाजन
जब किसी बड़े कार्य को छोटे-छोटे तर्कसंगत टुकड़ों में बाँटककर हर भाग को करने के लिये अलग-अलग लोग निर्धारित किये जाते हैं तो इसे papa श्विभाजन (Division of labour) या विशिष्टीकरण (salization) कहते हैं। श्रम विभाजन बड़े कार्य को दक्षता पूर्वक करने में सहायक होता है। ऐतिहासिक रूप से श्रम-विभाजन व्यापार की वृद्धि, सम्पूर्ण आउटपुट की वृद्धि, पूंजीवाद का उदय तथा औद्योगीकरण की जटिलता में वृद्धि से जुड़ा रहा है। परिष्कृत होकर धीरे-धीरे श्रम-विभाजन वैज्ञानिक प्रबन्धन के स्तर तक जा पहुँचा। मोटे तौर पर यह कार्यकारी-समाज है जिसके अलग-अलग भाग भिन्न-भिन्न काम करते हैं। जैसे- कुछ लोग कृषि करते हैं और कुछ लोग हलवाई करते हैं। भारत की वर्णाश्रम व्यवस्था मूलत: श्रम-विभाजन का ही रूप है।
श्रम विभाजन के लाभ
श्रम विभाजन से उत्पादकता में वृद्धि होती है; चाहे वह सूई का निर्माण हो, न्यायिक कार्य हो या स्वास्थ्य-सेवा या कुछ और हो। उत्पादकता में यह वृद्धि विविध प्रकार से आती है-
- श्रमिकों को उनके लिये निर्धारित कार्यांश पर अपना ध्यान केन्द्रित करने की आजादी मिल जाती है। श्रमिक को वही काम करना होता है जिस काम को करने में वह सबसे अच्छा होता है।
- काम को सीखने में कम समय लगता है।
- एक ही काम बार-बार करने से उस काम को जल्दी करने के तरीके निकल आते हैं।
- श्रमिक कम समय में अपना काम सीख जाता है अत: जल्दी उत्पादन में लगाया जा सकता है।
- एक काम के बाद दूसरे काम में जाने में होने वाली समय की बर्बादी कम हो जाती है।
- उत्पादन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है क्योंकि कार्यका प्रत्येक भाग अत्यन्त कुशल श्रमिकों द्वारा सम्पन्न किया गया होता है।
श्रम विभाजन से हानियाँ
- ऐसा सम्भव है कि श्रमिक अपने आप को कटा-कटा महसूस करे और अन्तिम परिणाम के लिये अपने को उत्तरदायी न माने।
- श्रमिकों में मोटिवेशन की कमी आ सकती है।
- प्रक्रम आरम्भ करने के लिये आवश्यक धन अधिक लगेगा।
- प्रक्रम में लचीलापन की कमी रहती है। श्रमिकों का ज्ञान सीमित होता है इसलिये उनको काम मिलने में कठिनाई आने की सम्भावना है।
- एक ही काम बार-बार करने से अनेक रोग पैदा होते हैं। (Repetitive motion disorder)
इन्हें भी देखें
- कार्य विभाजन (division of work)
- संगठन
- विशिष्टीकरण