शैवालीकरण
जैव उर्वरक (biofertilizer) के रूप में बड़े स्तर पर नील हरित शैवाल की वृद्धि करने की प्रक्रिया को शैवालीकरण कहते हैं। इस संकल्पना का प्रारम्भ भारत में हुआ था लेकिन इस तकनीक का वास्तविक रूप में विकास जापान में किया गया। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वर्ष 1990 में शैवालीकरण के लिए उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल तथा नई दिल्ली में एक विशेष कार्यक्रम किया गया था।[1]
शैवालों की प्रकृति पर्यावरण-मित्र होती है जिसके कारण शैवालों को जैव उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। शैवालों के इस्तेमाल से खासकर धान की उपज में काफी वृद्धि देखी गयी है।
सन्दर्भ
- ↑ "शैवाल (भारत डिस्कवरी)". मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 अगस्त 2013.
बाहरी कड़ियाँ
- टिकाऊ खेती में उपयोगी जैव उर्वरक
- जैविक खेती और जैव उर्वरक (पर्यावरण डाइजेस्ट)