शीतलाप्रसाद त्रिपाठी
शीतलाप्रसाद त्रिपाठी ( ?? - जनवरी, १८९५) भारतेंदु के सहयोगी, साहित्यसेवी विद्वान् तथा हिंदी के प्रथम अभिनीत नाटक 'जानकीमंगल' के रचयिता थे। वे ग्रियर्सन के भी सहयोगी थे।
परिचय
शीतलाप्रसाद जी काशी के गोवर्धनसराय मुहल्ले के निवासी देवीदयाल त्रिपाठी के पुत्र तथा पटना कालेज के संस्कृत अध्यापक और अनेक हिंदी-संस्कृत-ग्रंथों के प्रणेता छोटूराम त्रिपाठी के अग्रज थे। इन्होंने भारतेन्दु द्वारा संस्कृत से अनूदित नाटकों का संशोधन तथा परिष्कार कर उनके अनेक साहित्यिक कार्यों में हाथ बँटाया था। ये स्वयं अच्छे कवि, वैयाकरण, धर्मशास्त्री, ज्योतिषी और नाटककार थे। खड्गविलास प्रेस के स्वामी रामदीन सिंह के अनुरोध पर इन्होंने हिंदी का बृहत् व्याकरण लिखना आरम्भ किया था किंतु असामयिक निधन के कारण उसे पूरा न कर सके।
उस समय जब व्यावसायिक नाटक कंपनियों का जोर था, बाबू ऐश्वर्यनारायण सिंह, उर्फ लरवर बबुआ के प्रयत्न से काशी में 'बनारस थियेटर' के मंच पर चैत्र शुक्ल एकादशी, सं. १९२५ वि. को, काशीनरेश महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह के आदेश से त्रिपाठी जी द्वारा रचित 'जानकीमंगल' सबसे पहले खेला गया। भारतेंदु जी ने इस अभिनय में लक्ष्मण की भूमिका प्रस्तुत की थी जिसका विवरण ८ मई, १८६८ के 'इंडिया मेल' में प्रकाशित हुआ था। यद्यपि हिंदी की पद्यप्रधान नाट्य परंपरा का निर्वाह करने के कारण इससे अभिनय नाट्य प्रणाली तथा कलात्मक उपलब्धि की आशा करना व्यर्थ है, तथापि खड़ी बोली गद्य की प्रधानता तथा अभिनेयता की दृष्टि से इसका ऐतिहासिक महत्व है। कथावस्तु, संवादयोजना आदि पर तुलसी का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है अनेक प्रसंग या तो रामचरितमानस, विनयपत्रिका और गीतावली के उद्धरणों पर आधारित हैं या वे कुछ घटा बढ़ाकर ज्यों के त्यों स्वीकार कर लिए गए हैं। इसकी नाटकीयता तथा रोचकता का श्रेय वस्तुत: 'मानस' की नाटकीय संवादयोजना को है।
जानकीमंगल के अतिरिक्त त्रिपाठी जी ने 'रामचरितावती' (१८८५ ई. में प्रकाशित), 'सावित्रोचरित्र' (१८९५ ई.), 'नलदमयंती', 'विनयपुष्पावली' और 'भारतोन्नति स्वप्न' 'करुणत्रिंशतिका' (१८९४) आदि पुस्तकें रची हैं। संभव है, भारतेंदुकृत 'नाटक' में उल्लिखित 'प्रबोधचंद्रोदय' के हिंदी अनुवादक पं. शीतलाप्रसाद भी यही हों। रामदीन सिंह की डायरी के अनुसार इनकी मृत्यु जनवरी, १८९५ में हुई।
सन्दर्भ ग्रन्थ
- शिवनंदन सहाय : सचित्र भारतेंदु, खड्गविलास प्रेस, १९०५
- सोमनाथ गुप्त : हिंदी नाटक साहित्य का इतिहास
- रामदीन सिंह की डायरी; श्रीवेणी पुस्तकालय, तारणपुर, पुनपुन, पटना में सुरक्षित
- शिवनंदन सहाय : साहबप्रसाद सिंह की जीवनी
- रामचंद्र शुक्ल : हिंदी साहित्य का इतिहास
- ग्रियर्सन : मार्डन वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑव हिंदुस्तान
- भारतेंदु हरिश्चंद्रकृत नाटक निबंध
- श्यामसुंदरदास : रूपक रहस्य