शिवा बावनी
शिवा बावनी भूषण द्वारा रचित बावन (52) छन्दों का काव्य है जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है। इसमें इस बात का वर्णन है कि किस प्रकार उन्होंने हिन्दू धर्म और राष्ट्र की रक्षा की।
शिवा बावनी की कुछ कविताएँ:
- साजि चतुरंग बीररंग में तुरंग चढ़ि।
- सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है॥
- भूषन भनत नाद विहद नगारन के।
- नदी नद मद गैबरन के रलत हैं॥
- ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल गैल,
- गाजन की ठेल-पेल सैल उसलत है।
- तारा सों तरनि घूरि धरा में लगत जिमि,
- थारा पर पारा पारावार यों हलत है॥
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- पीरा पयगम्बरा दिगम्बरा दिखाई देत,
- सिद्ध की सिधाई गई, रही बात रब की।
- कासी हूँ की कला गई मथुरा मसीत भई
- शिवाजी न होतो तो सुनति होती सबकी॥
- कुम्करण असुर अवतारी औरंगजेब,
- कशी प्रयाग में दुहाई फेरी रब की।
- तोड़ डाले देवी देव शहर मुहल्लों के,
- लाखो मुसलमाँ किये माला तोड़ी सब की॥
- भूषण भणत भाग्यो काशीपति विश्वनाथ
- और कौन गिनती में भुई गीत भव की।
- काशी कर्बला होती मथुरा मदीना होती
- शिवाजी न होते तो सुन्नत होती सब की ॥
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- बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के,
- नाहीं ठहराने राव राने देस देस के।
- नग भहराने ग्रामनगर पराने सुनि,
- बाजत निसाने सिवराज जू नरेस के ॥
- हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के,
- भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के।
- दल के दरारे हुते कमठ करारे फूटे,
- केरा के से पात बिगराने फन सेस के ॥
इन्हें भी देखें
बाहऱी कड़ियाँ
- शिवाबावनी (आर्काइव_डॉट_ओआरजी)