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शिक्षा

शिक्षा का मतलब ज्ञान,सदाचार,उचित आचरण,तकनीकी शिक्षा तकनीकी दक्षता, विद्या आदि को प्राप्त करने की प्रक्रिया को कहते हैं। डा0 श्री प्रकाश बरनवाल राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रबुद्ध सोसाइटी का कहना है कि शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यवसायों एवं [तंत्रिका विकास मानसिक] , नैतिक विकास और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है। श्री सौरभ खरे पन्ना मध्यप्रदेश के अनुसार "शिक्षा एक प्रक्रिया है; जो कि ज्ञान प्राप्ति, विद्या प्राप्ति आदि को सुगम बनाती है।" "Education means developing the positive creativity in human minds"- Master santosh kumar शिक्षित होना, मतलब अक्षरो या शब्दकोशों को समझ, पढ़ या लिख लेना नही है? मानवीय मर्म या कर्म को समझना ही वास्तव मे शिक्षित होना है। क्योंकि जीवन मे अक्सर अनपढ़ जीव भी हमे बहुत कुछ सिखा देते है। जैसे- एक छोटी चिड़ियाँ घोसलों के बुनाई से, नन्हीं सी चिटीं अपने काम से....

शिक्षा, समाज एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है।

शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया।

श्री सौरभ खरे पन्ना मध्यप्रदेश के अनुसार यह मनुष्य में ही नहीं बल्कि सभी प्राणिमात्र में चलने वाली प्रक्रिया है; मनुष्य में निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है तथा यह आत्मा का विषय है अर्थात् यह अमूर्त अवधारणा है।

जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय) में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा विद्यार्थी निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर संबंधित परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है।

शिक्षा पर विद्वानों के विचार

समाजशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों व नीतिकारों ने शिक्षा के सम्बन्ध में अपने विचार दिए हैं। शिक्षा के अर्थ को समझने में ये विचार भी हमारी सहायता करते हैं। कुछ शिक्षा सम्बन्धी मुख्य विचार यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैंः -

  • शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। (महात्मा गांधी)
  • मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। (स्वामी विवेकानंद)
  • शिक्षा व्यक्ति की उन सभी भीतरी शक्तियों का विकास है जिससे वह अपने वातावरण पर नियंत्रण रखकर अपने उत्तरदायित्त्वों का निर्वाह कर सके। (डॉ लवी गौतम प्रदेश संयोजक उत्तर प्रदेश DARYS)
  • शिक्षा व्यक्ति के समन्वित विकास की प्रक्रिया है। (तथागत बुद्ध)
  • शिक्षा का अर्थ अन्तःशक्तियों का बाह्य जीवन से समन्वय स्थापित करना है। (हर्बट स्पैन्सर)
  • शिक्षा मानव की सम्पूर्ण शक्तियों का प्राकृतिक, प्रगतिशील और सामंजस्यपूर्ण विकास है। (पेस्तालॉजी)
  • शिक्षा राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक विकास का शक्तिशाली साधन है, शिक्षा राष्ट्रीय सम्पन्नता एवं राष्ट्र कल्याण की कुंजी है। (डॉ लवी गौतम प्रदेश संयोजक उत्तर प्रदेश DARYS) [
  • शिक्षा बच्चे की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन है। ('[[सभी के लिए शिक्षा' पर विश्वव्यापी घोषणा, 1990]

डॉ लवी गौतम जी के द्वारा शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ‘मुक्ति’ की चाह रही है ( सा विद्या या विमुक्तये / विद्या उसे कहते हैं जो विमुक्त कर दे )। बाद में जरूरतों के बदलने और समाज विकास से आई जटिलताओं से शिक्षा के उद्देश्य भी बदलते गए।

शिक्षा जीवित प्राणियों को अजीवित प्रकृति से अलग करती है क्योंकि यह जीवित प्राणियों में चलने वाली प्रक्रिया है; शिक्षा जन्तुओं और वनस्पतियों में अंतर स्पष्ट करती है क्योंकि शिक्षा यह केवल जन्तुओं में चलने वाली प्रक्रिया है न कि वनस्पतियों में और सभी जन्तुओं के द्वारा अपनी-अपनी प्रकृति के अधीन गुणों के आधार पर व्यवस्था के अंतर्गत कुछ न कुछ सीखा जाता है एवं इसके साथ ही साथ मनुष्य एवं अन्य प्राणियों के मध्य शिक्षा के स्तर से ही स्पष्टीकरण होता है तथा मनुष्यों के मध्य भी शिक्षा का स्तर ही उनके व्यक्तित्व को स्पष्ट करता हैं(श्री सौरभ खरे पन्ना मध्यप्रदेश)

शिक्षा के प्रकार

व्यवस्था की दृष्टि से देखें तो शिक्षा के तीन रूप होते हैं -

(1) औपचारिक शिक्षा (2) निरौपचारिक शिक्षा (3) अनौपचारिक शिक्षा (4) भौतिक और नूतन शिक्षा

औपचारिक शिक्षा

वह शिक्षा जो विद्यालयों, महाद्यालयों और विश्वविद्यालयों में चलती हैं, औपचारिक शिक्षा कही जाती है। इस शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियाँ, सभी निश्चित होते हैं। यह योजनाबद्ध होती है और इसकी योजना बड़ी कठोर होती है। इसमें सीखने वालों को विद्यालय, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय की समय सारणी के अनुसार कार्य करना होता है। इसमें परीक्षा लेने और प्रमाण पत्र प्रदान करने की व्यवस्था होती है। इस शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। यह व्यक्ति में ज्ञान और कौशल का विकास करती है और उसे किसी व्यवसाय अथवा उद्योग के लिए योग्य बनाती है। परन्तु यह शिक्षा बड़ी व्यय-साध्य होती है। इससे धन, समय व ऊर्जा सभी अधिक व्यय करने पड़ते हैं।

निरौपचारिक शिक्षा

वह शिक्षा जो औपचारिक शिक्षा की भाँति विद्यालय, महाविद्यालय, और विश्वविद्यालयों की सीमा में नहीं बाँधी जाती है। परन्तु औपचारिक शिक्षा की तरह इसके उद्देश्य व पाठ्यचर्या निश्चित होती है, फर्क केवल उसकी योजना में होता है जो बहुत लचीली होती है। इसका मुख्य उद्देश्य सामान्य शिक्षा का प्रसार और शिक्षा की व्यवस्था करना होता है। इसकी पाठ्यचर्या सीखने वालों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निश्चित की गई है। शिक्षणविधियों व सीखने के स्थानों व समय आदि सीखने वालों की सुविधानानुसार निश्चित होता है। प्रौढ़ शिक्षा, सतत् शिक्षा, खुली शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा, ये सब निरौपचारिक शिक्षा के ही विभिन्न रूप हैं।

इस शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके द्वारा उन बच्चों/व्यक्तियों को शिक्षित किया जाता है जो औपचारिक शिक्षा का लाभ नहीं उठा पाए जैसे -

  • वे लोग जो विद्यालयी शिक्षा नहीं पा सके (या पूरी नहीं कर पाए),
  • प्रौढ़ व्यक्ति जो पढ़ना चाहते हैं,
  • कामकाजी महिलाएँ,
  • जो लोग औपचारिक शिक्षा में ज्यादा व्यय (धन समय या ऊर्जा किसी स्तर पर खर्च) नहीं कर सकते।

इस शिक्षा द्वारा व्यक्ति की शिक्षा को निरन्तरता भी प्रदान की जाती है, उन्हें अपने-अपने क्षेत्र के नए-नए अविष्कारों से परिचित कराया जाता है और तत्कालीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education)

वह शिक्षा जिसकी कोई योजना नहीं बनाई जाती है; जिसके न उद्देश्य निश्चित होते हैं न पाठ्यचर्या और न शिक्षण विधियाँ और जो आकस्मिक रूप से सदैव चलती रहती है, उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं। यह शिक्षा मनुष्य के जीवन भर चलती है और इसका उस पर सबसे अधिक प्रभाव होता है। मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षण में इस शिक्षा को लेता रहता है, प्रत्येक क्षण वह अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों व वातावरण से सीखता रहता है। बच्चे की प्रथम शिक्षा अनौपचारिक वातावरण में घर में रहकर ही पूरी होती है। जब वह विद्यालय में औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने आता है तो एक व्यक्तित्त्व के साथ आता है जो कि उसकी अनौपचारिक शिक्षा का प्रतिफल है।

व्यक्ति की भाषा व आचरण को उचित दिशा देने, उसके अनुभवों को व्यवस्थित करने, उसे उसकी रुचि, रुझान और योग्यतानुसार किसी भी कार्य विशेष में प्रशिक्षित करने तथा जन शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार के लिए हमें औपचारिक और निरौपचारिक शिक्षा का विधान करना आवश्यक होता है।

औपचारिक शिक्षा की प्रणालियाँ

शिक्षा प्रणालियों शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, अक्सर बच्चों और युवाओं के लिए स्थापित की जाती है एक पाठ्यक्रम छात्रों को क्या पता होना चाहिए, बोध और शिक्षा के परिणाम के रूप में करने के लायक समझ को परिभाषित करता है। अध्यापन का पेशा, सीख प्रदान करता है जो विद्या प्राप्ति और नीतियों की एक प्रणाली, नियमों, परीक्षाओं, संरचनाओं और वित्तपोषण को सक्षम बनाता है और वित्तपोषण शिक्षकों को अपनी प्रतिभा के उच्चतम् क्षमता से पढ़ाने में सहायता करता है। कभी कभी शिक्षा प्रणाली सिद्धांतों या आदर्शों एवं ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए प्रयोग की जाती है जिसे सामाजिक अभियंत्रिकी कहा जाता है विशेषतः अधिनायकवादी राज्यों और सरकार में यह व्यवस्था के राजनीतिक दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है।

  • शिक्षा एक व्यापक माध्यम है, जो छात्रों में कुछ सीख सकने के सभी अनुभवों का विकास करता है।
  • अनुदेश शिक्षक अथवा अन्य रूपों द्वारा वितरित शिक्षण को कहते है जो अभिज्ञात लक्ष्य की विद्या प्राप्ति को जान बूझ कर सरल बनने को लिए हो।
  • शिक्षण एक असल उपदेशक की क्रियाओं को कहते है, जो शिक्षण को सुझाने के लिए आकल्पित की गयी हो।
  • प्रशिक्षण विशिष्ट ज्ञान, कौशल, या क्षमताओं की सीख के साथ शिक्षार्थियों को तैयार करने की दृष्टि से संदर्भित है, जो कि तुरंत पूरा करने पर लागू किया जा सकता है।

शिक्षण के स्तर

शिक्षण को हम तीन स्तरों में बांट सकते हैं :- [1]

  1. 1. स्मृति स्तर (Memory Level)
  2. 2. बोध स्तर (Understanding Level)
  3. 3. चिंतन स्तर (Reflective Level)

स्मृति स्तर

प्रवर्तक हरबर्ट स्मृति स्तर में ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की जाती है, जिससे छात्र पढ़ाई की विषय वस्तु को (Content) आत्मसात कर सकें । इस स्तर पर प्रत्यास्मरण क्रिया पर जोर दिया जाता है । स्मृति शिक्षण में संकेत अधिगम (Signal Learning), शृंखला अधिगम (Chain Learning) पर महत्व दिया जाता है

बोध स्तर पर शिक्षण

बोध स्तर के शिक्षण में शिक्षक छात्रों के समक्ष पाठ्यवस्तु को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि छात्रों को बोध के लिए अधिक से अधिक अवसर मिले और छात्रों में आवश्यक सूझबूझ उत्पन्न हो। इस प्रकार के शिक्षण में छात्रों की सहभागिता बनी रहती है । यह शिक्षण उद्देश्य केन्द्रीय तथा सूझबूझ से युक्त होता है।

बोध स्तर का शिक्षण विचारपूर्ण होता है।बोध स्तर के प्रतिमान के जन्मदाता हेनरी सी. मरिसन है।

चिन्तन स्तर पर शिक्षण

चिंतन स्तर में शिक्षक अपने छात्रों में चिंतन तर्क तथा कल्पना शक्ति को बढ़ाता है ताकि छात्र दोनों के माध्यम से अपनी समस्याओं का समाधान कर सके । चिंतन स्तर पर शिक्षण समस्या केंद्रित होता है । इस स्तर में अध्यापक बच्चों के सामने समस्या उत्पन्न करता है और बच्चों को उस पर अपने स्वतंत्र चिंतन करने का समय देता है । इस स्तर में बच्चों में आलोचनात्मक तथा मौलिक चिंतन उत्पन्न होता है। [2]

बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका

बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। बच्चों की शिक्षा केवल स्कूल और अध्यापकों की जिम्मेदारी नहीं होती, बल्कि इसमें माता-पिता का योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।[3] यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं जो बताते हैं कि बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका क्या होती है:

माता-पिता शिक्षक के रूप में:

  • पहले शिक्षक: माता-पिता अपने बच्चों के पहले शिक्षक होते हैं। वे जन्म से ही बच्चों को भाषा, व्यवहार और सामाजिक कौशल सिखाना शुरू करते हैं।
  • पढ़ने-लिखने में मदद: माता-पिता बच्चों को पढ़ने-लिखने में मदद कर सकते हैं, उनके साथ गृहकार्य कर सकते हैं और उन्हें नई चीजें सीखने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • सीखने का माहौल बनाना: माता-पिता घर पर एक ऐसा माहौल बना सकते हैं जो सीखने के लिए अनुकूल हो। इसमें किताबें और अन्य शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराना, बच्चों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करना और उन्हें सवाल पूछने के लिए प्रेरित करना शामिल है।

माता-पिता मार्गदर्शक और प्रेरक के रूप में:

  • सपनों का समर्थन: माता-पिता अपने बच्चों के सपनों और लक्ष्यों का समर्थन कर सकते हैं। उन्हें प्रोत्साहन दे सकते हैं और कठिन समय में उनका साथ दे सकते हैं।
  • नैतिक मूल्यों की शिक्षा: माता-पिता अपने बच्चों को सही और गलत के बीच अंतर करना सिखा सकते हैं और उन्हें अच्छे नैतिक मूल्यों का पालन करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
  • आत्मविश्वास बढ़ाना: माता-पिता अपने बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं और उन्हें अपनी क्षमताओं पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।

माता-पिता रोल मॉडल के रूप में:

  • सकारात्मक व्यवहार: माता-पिता अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल होते हैं। वे अपने बच्चों को दिखा सकते हैं कि कैसे अच्छा व्यवहार करना है, दूसरों का सम्मान कैसे करना है और जिम्मेदारी कैसे लेनी है।
  • समय और स्नेह: माता-पिता को अपने बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए और उन्हें प्यार और स्नेह देना चाहिए।
  • संवाद: माता-पिता को अपने बच्चों से खुलकर बातचीत करनी चाहिए और उनकी बातों को ध्यान से सुनना चाहिए।

सन्दर्भ

  1. Mark. "Levels of Teaching". Learning Classes Online. मूल से 18 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 अगस्त 2019.
  2. LCO. "Shikshan ka satar". Learning Classes Online. मूल से 18 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 अगस्त 2019.
  3. "बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका". 25 अक्टूबर 2023. मूल से 25 जून 2024 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जून 2024.

इसे भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ