शर्विलक
शर्विलक | |
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[[चित्र:|]] शर्विलक | |
लेखक | रसिकलाल छोटालाल पारीख |
देश | भारत |
भाषा | गुजराती भाषा |
शर्विलक गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार रसिकलाल छोटालाल पारीख द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1960 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1] सन १०६६ में इसका हिन्दी में अनुवाद प्रकाशित हुआ था।
शर्विलक, दो संस्कृत रचनाओं शूद्रक द्वारा रचित मृच्छकटिकम् और भासकृत 'दरिद्र चारुदत्त' पर आधारित है जिसमें शर्विलक नामक एक चोर है। मृच्छकटिकम् में चोरी का एक प्रकरण है, जिसमें चोरी के धन्धे से जीवनयापन करने वाले चोर के मन में घुप अंधेरी रात में सेंध लगाते समय क्या-क्या विचार उपजते हैं इसका वर्णन किया गया है। शर्विलक नामक वह चोर स्वयं से कहता है कि समाज में चोरी की निःसंदेह निंदा की जाती है, लेकिन वह इस मत को अस्वीकार करता है, क्योंकि याचक की भांति किसी की चाकरी करने से भला तो स्वतंत्र होकर चोरी करना है। लोग कुछ भी मानें, मैं तो इसी कार्य में लगना ठीक मानता हूँ।
- कामं नीचमिदं वदन्तु पुरुषाः स्वप्ने तु यद्वर्द्धते
- विश्वस्तेसु च वञ्चनापरिभवश्चौर्यं न शौर्यं हि तत् ।
- स्वाधीना वचनीयतापि हि वरं वद्धो न सेवाञ्जलिः
- मार्गो ह्येष नरेन्द्रसौप्तिकवधे पूर्वं कृतो द्रोणिना ॥ -- (मृच्छकटिकम्, तृतीय अंक, 11)
- (अर्थ – जो लोगों की निद्रावस्था में किया जाता है, अनिष्ट के प्रति अशंकित लोगों का जिस चोरी से तिरस्कार हो जाता है, उसे किसी शूरवीर का कार्य तो नहीं माना जा सकता है। लोग इस कार्य की निन्दा करते रहें, परन्तु मैं तो निन्द्य होने के बावजूद स्वतंत्र वृत्ति होने के कारण इसे श्रेष्ठ मानता हूँ; यह किसी के समक्ष सेवक की भाँति बधे हाथ होने से तो बेहतर है। इतना ही नहीं, पहले भी इस मार्ग को द्रोणाचार्य-पु़त्र ने महाराज के पुत्रों के बध हेतु अपनाया था।
सन्दर्भ
- ↑ "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.