सामग्री पर जाएँ

शम्भू सिंह

महाराणा शंभू सिंहजी
HH महाराणा सर श्री शंभू सिंहजी
HH महाराणा सर श्री शंभू सिंहजी
महाराणा का चित्र भाला फेंकते हुए, 1866
उदयपुर के महाराणा
शासनावधि1866–74
पूर्ववर्तीHH महाराणा सर श्री स्वरूप सिंहजी
उत्तरवर्तीमहाराणा सर श्री सज्जन सिंहजी
जन्म22 दिसम्बर 1847
निधन7 अक्टूबर 1874(1874-10-07) (उम्र 26)
जीवनसंगीHH महारानीजी सा चौहानजी इंद्र कंवरजी पुत्री राव रतन सिंहजी चौहान गढ़ी-बांसवाड़ा HH महारानीजी सा झालीजी दौलत कंवरजी पुत्री राज राणा कीर्ति सिंहजी द्वितीय बड़ी सादड़ी-मेवाड़
पिताबागोर के महाराज शार्दुल सिंहजी
मातारानी राठौड़जी (बिकावतजी) नंद कँवरजी बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंहजी की बुआ
मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक
(1326–1948 ईस्वी)
राणा हम्मीर सिंह(1326–1364)
राणा क्षेत्र सिंह(1364–1382)
राणा लखा(1382–1421)
राणा मोकल(1421–1433)
राणा कुम्भ(1433–1468)
उदयसिंह प्रथम(1468–1473)
राणा रायमल(1473–1508)
राणा सांगा(1508–1527)
रतन सिंह द्वितीय(1528–1531)
राणा विक्रमादित्य सिंह(1531–1536)
बनवीर सिंह(1536–1540)
उदयसिंह द्वितीय(1540–1572)
महाराणा प्रताप(1572–1597)
अमर सिंह प्रथम(1597–1620)
करण सिंह द्वितीय(1620–1628)
जगत सिंह प्रथम(1628–1652)
राज सिंह प्रथम(1652–1680)
जय सिंह(1680–1698)
अमर सिंह द्वितीय(1698–1710)
संग्राम सिंह द्वितीय(1710–1734)
जगत सिंह द्वितीय(1734–1751)
प्रताप सिंह द्वितीय(1751–1754)
राज सिंह द्वितीय(1754–1762)
अरी सिंह द्वितीय(1762–1772)
हम्मीर सिंह द्वितीय(1772–1778)
भीम सिंह(1778–1828)
जवान सिंह(1828–1838)
सरदार सिंह(1838–1842)
स्वरूप सिंह(1842–1861)
शम्भू सिंह(1861–1874)
उदयपुर के सज्जन सिंह(1874–1884)
फतेह सिंह(1884–1930)
भूपाल सिंह(1930–1948)
नाममात्र के शासक (महाराणा)
भूपाल सिंह(1948–1955)
भागवत सिंह(1955–1984)
महेन्द्र सिंह(1984–वर्तमान)

HH महाराजधिराज महाराणा सर श्री शंभु सिंहजी ( 1847 - 1874 ई . ) मेवाड, राजस्थान के सूर्यवंशी के शासक थे। महाराणा स्वरूप सिंहजी के कोई पुत्र नहीं होने के कारण उन्होंने अपने भाई के पौत्र शंभु सिंहजी को दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया जो 17 नवम्बर , 1861 को मेवाड़ के राजसिंहासन पर बैठे ।

महाराणा की अवयस्कता के कारण पॉलिटिकल एजेंट मेजर टेलर की अध्यक्षता में रीजेंसी कौंसिल ( पंचसरदारी ) का गठन कर शासन प्रबंध किया जाने लगा । इनके काल में सती प्रथा व दास प्रथा , बच्चों के क्रय - विक्रय आदि कुप्रथाओं पर कठोर प्रतिबंध लगाये गये एवं ' शंभु पलटन ' नाम से नई सेना का गठन किया गया । इनके काल में पॉलिटिकल एजेंट के एक आदेश से शहर की महाजन जनता भड़क गई और 1 जनवरी , 1864 को चंपालाल की अध्यक्षता में महाजन लोगों ने शहर में हड़ताल कर हजारों लोग पॉलिटिकल एजेंट की कोठी पर इकट्ठे हो गये । यह हड़ताल कई दिन रही । इनके शासन काल में एक ओर तो भयंकर अकाल पड़ा तथा दूसरी ओर हैजा महामारी फैल गई । हजारों लोग मारे गये । इन्होंने अकाल पीड़ितों की बहुत सहायता की व खैरातखाना खोल दिया । अंग्रेजी सरकार ने इन्हें GCSI ( Grand Commandor of The Star of India ) का खिताब देने की सूचना दी तो इन्होंने कहा कि उदयपुर के महाराजा तो प्राचीन समय से ही ' हिन्दुआ सूरज ' कहलाते हैं , अतः उन्हें स्टार की जरूरत नहीं है । परन्तु बाद में पॉलिटिकल एजंट के समझाने पर ये राजी हो गये । 16 जुलाई , 1874 को महाराणा का निधन हो गया । इनके साथ किसी भी रानी को सती नहीं होने दिया गया । मेवाड़ में यह पहले शासक थे जिनके साथ कोई सती नहीं हुई ।