शंकर-एहसान-लॉय
शंकर-एहसान-लॉय | |
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पृष्ठभूमि | |
शंकर-एहसान-लॉय(अंग्रेजी: Shankar–Ehsaan–Loy) भारतीय संगीतकार तिकड़ी है, यह तिकड़ी शंकर महादेवन, एहसान नूरानी और लॉय मेंडोंसा से मिल कर बनी है और कई भारतीय फिल्मों के लिए संगीत प्रदान करती है। ये बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय और समीक्षकों के द्वारा बहुप्रशंसित संगीत निर्देशकों में एक हैं। उन्होंने कई फिल्मों के लिए प्रसिद्द कार्य किये जैसे मिशन कश्मीर(2000), दिल चाहता है (2001),कल हो ना हो (2003), बंटी और बबली (2005), कभी अलविदा ना कहना (2006), डॉन- द चेस बिगिन्स अगेन (2006), तारे ज़मीं पर (2007), रोक ऑन !! (2008), वेक अप सिड (2009), माय नेम इस खान (2010), कार्तिक कॉलिंग कार्तिक (2010) , हाउसफुल(2010) और सूरमा (2018)।
प्रारंभिक जीवन
शंकर महादेवन एक अर्हताप्राप्त सॉफ्टवेयर इंजिनियर हैं जिन्होंने ओरेकल के छठे संस्करण पर काम किया और पश्चिमी, हिन्दुस्तानी और कर्नाटकी शास्त्रीय का अध्ययन किया। वे पुकार, सपने और बीवी नंबर 1 के प्रमुख प्लेबैक सिंगर (गायक) हैं, उन्होंने ब्रेथलेस की भी रचना की।
एहसान नूरानी ने लॉस एंजिल्स में म्युज़िशियंस इंस्टीट्युट में संगीत का अध्ययन किया और रोनी देसाई और लूइस बैंक्स के साथ काम किया। उन्होंने एलीन डिज़ायर की रचना की, कई जिंगल्स किये और लॉय की तरह, वे ब्लूस-एंड-एसिड जेज़ बैंड का हिस्सा थे। लॉय मेंडोंसा पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित हैं और उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत का आरंभिक ज्ञान भी प्राप्त किया। उन्होंने कई बैंड समूहों के साथ काम किया, कई नाटक किये (गोडस्पेल, वेस्ट साइड स्टोरी, जीसस क्राइस्ट सुपरस्टार) और जिंगल्स की रचना की और कई धुनें बनायीं (फौजी, द वर्ल्ड दिस वीक।)[1]
एक साथ काम करने से पहले एहसान जिंगल्स कर रहे थे और लॉय दिल्ली में थे। उस समय लॉय टेलिविज़न के लिए लिखते थे। शो 'क्विज टाइम' उनका पहला काम था और सिद्धार्थ बसु ने उन्हें पहला ब्रेक दिया।
उसके बाद उन्होंने प्रणय राय की की 'द वर्ल्ड दिस वीक' की। साथ ही कई और शो भी आये और उन्होंने थियेटर और शाहरुख खान की फौजी भी की। लॉय ने ए॰ आर॰ रहमान के साथ कीबोर्ड वादक के रूप में भी किया और शंकर ने उनके लिए कई प्रसिद्द ट्रैक गाये हैं। उसके बाद वे बोम्बे आ गाये और जिंगल्स करना शुरू कर दिया। वे एहसान के साथ जुड़ गाये और उन्होंने संगीत पर काम करना शुरू किय। एहसान ने हिट सिटकोम शांति के लिए भी संगीत दिया था। फिर शंकर आये और भारतीय बिट पर कुछ काम किया। तब से आज तक वे एक तिकड़ी के रूप में काम कर रहें हैं।[2]
तिकड़ी के रूप में कैरियर
शंकर-एहसान-लॉय ने कम्पोज़र के रूप में पहली बार मुकुल आनंद की फिल्म दस में काम किया। आनंद की मृत्यु के बाद फिल्म अधूरी रह गयी, हालांकि, एल्बम जो बाद में रिलीज़ हुई थी, बड़े पैमाने पर लोकप्रिय हुई। इसके बाद उन्होंने दो फिल्मों के लिए संगीत की रचना की, रोकफोर्ड और भोपाल एक्सप्रेस, लेकिन इस काम पर ध्यान नहीं दिया गया। विधु विनोद चोपड़ा की मिशन कश्मीर के साथ उन्होंने सिनेमा की मुख्यधारा में प्रवेश किया, इसका संगीत हिट रहा और इसके साथ ही उन्हें बॉलीवुड फिल्म उद्योग में एक तिकड़ी का स्थान मिल गया। उन्हें इसके लिए आइफा (IIFA) में भी नोमिनेट किया गया।[3] संगीत निर्देशक के रूप में दिल चाहता है के साथ उनके कैरियर में एक मोड़ आया, जो निर्देशक के रूप में फरहान अख्तर की पहली फिल्म थी। समीक्षकों के द्वारा इस फिल्म की बहुत अधिक प्रशंसा की गयी और दर्शकों ने भी इसे सराहा.[4] इसने एक्सेल एंटरटेनमेंट के साथ इस तिकड़ी के दीर्घकालिक सम्बन्ध की शुरुआत की।
दिल चाहता है के बाद, उनकी अगली बड़ी फिल्म थी धर्मा प्रोडक्शन की कल हो ना हो, जिसके निर्देशक निखिल अडवाणी थे। इस एलबम ने सबसे ज्यादा बिकने वाली एलबम के पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। इसके संगीत की समीक्षों ने बहुत प्रशंसा की, व्यावसायिक रूप से इसकी सराहना की गयी और सर्वोत्तम संगीत निर्देशन के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड सहित इसने कई अवार्ड जीते।[5] तब से, उन्होंने धर्मा प्रोडक्शन और इसके मालिक और निर्देशक करन जोहर के साथ कई बार काम किया है,[6][7][8] इसमें उनकी कभी अलविदा ना कहना भी शामिल है। इसके साउंडट्रैक ने कल हो ना हो का रिकॉर्ड तोड़ दिया और एक बार फिर से वे बॉलीवुड संगीत के सर्वश्रेष्ठ विक्रेता बन गये।
शैली
इस समूह में तिकड़ी के प्रत्येक सदस्य की प्रतिभा और अनुभव का संयोजन देखने को मिलता है, यह तिकड़ी कर्नाटकी और हिन्दुस्तानी गायन परम्परा (शंकर), पश्चिमी रॉक (एहसान) और इलेक्ट्रॉनिक सिंथेसाइज़र में महारत सहित संलयन की गहरी सूझ बुझ (लॉय) का संयोजन प्रस्तुत करती है। वे बॉलीवुड के संगीत की एक आम परंपरा को जारी रखे हुए हैं, कि संगीतकारों के बीच की यह साझेदारी उनकी व्यक्तिगत क्षमता को सशक्त बनाती है और उसमें योगदान देती है, कभी कभी हिन्दुस्तानी का गहरे ज्ञान (उत्तर भारतीय) या कर्नाटकी (दक्षिण भारतीय) शास्त्रीय संगीत और तकनीकी विशेषज्ञता का संयोजन इन संगीतकारों और आर्केस्ट्रा वादकों में दिखाई देता है। शंकर-एहसान-लॉय, संगीतकारों की संभवतया पहली तिकड़ी है जो अपने चार्ट-टॉपिंग संगीत से बॉलीवुड के दर्शकों का मनोरंजन करती है।[9] वे धीरे धीरे बॉलीवुड संगीत के 'अमर-अकबर-एंथोनी' के रूप में लोकप्रिय होते जा रहे हैं।
बॉलीवुड के संगीतकारों का लक्ष्य उन युवा दर्शकों में रूचि पैदा करना है जो पश्चिमी संगीत और प्रभावों से अधिक प्रेरित होते हैं। चूंकि एक फिल्म का संगीत (साउंडट्रैक) बहुत प्रभावी होता है और व्यवसायिक और आलोचनात्मक सफलता प्राप्त करने में जटिल महत्वपूर्ण अवयव की भूमिका निभाता है, कभी कभी बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर जाता है। 'एक फिल्म की डिलीवरी' को लेकर इस तथ्य ने हमेशा से संगीतकारों को ऐसी धुनें बनाने के लिए प्रेरित किया है जो सर्वोत्तम पारंपरिक भारतीय संगीत और लोकप्रिय पश्चिमी या अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव का संयोजन हो, बॉलीवुड की अधिकांश लोकप्रिय संगीत रचना शास्त्रीय भारतीय राग के आधार पर की गयी है (संस्कृत में "राग" का शाब्दिक अर्थ है "रंग" या "मूड")। शंकर-एहसान-लॉय ने सफलतापूर्वक इस रिक्त स्थान को भरा है। उन्होंने समीक्षात्मक और व्यवसायिक सफलता के साथ साथ बॉलीवुड प्रेस और मेग्जीन्स, टीवी चैनलों से कई अवार्ड्स जीते हैं और लगातार जीत रहे हैं। उन्होंने एक नेशनल फिल्म अवार्ड (कल हो ना हो, 2003) भी जीता है[]। उनकी सफलता में कई कारकों ने योगदान दिया है, जिसमें उनके आर्केस्ट्रा पैलेट के रूप में रुचिकर संगीत उपकरणों और ध्वनि को अपनाया जाना, लोकप्रिय टीवी संगीत प्रतिभा शो में नयी आवाजों को शामिल करना और गाने से पहले आने वाले फिल्म के दृश्य में संगीत के सही 'अहसास' को डालना शामिल है।
अक्सर साथ काम करने वाले
शंकर एहसान लॉय ने फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी के द्वारा स्थापित, एक्सेल एंटरटेनमेंट के द्वारा बनायी गयी अधिकांश फिल्मों के लिए संगीत रचना की है। उन्होंने करन जोहर के धर्मा प्रोडक्शन के लिए भी काफी काम किया है। इसके आलावा उन्होंने कई उल्लेखनीय निर्देशकों जैसे निखिल अडवाणी, शाद अली, श्रीराम राघवन और साजिद खान के साथ भी काम किया है।
गीतकार जावेद अख्तर के साथ उनके काम को, भारतीय सिनेमा के सबसे सफल कार्यों में से एक माना जाता है। हालांकि इस तिकड़ी के द्वारा रचित अधिकांश गाने जावेद अख्तर के द्वारा लिखे गये हैं, वे कई अन्य गीतकारों से भी जुड़े रहें हैं जैसे गुलज़ार, समीर और प्रसून जोशी।
सम्मान और पुरस्कार
इस तिकड़ी ने कई अवार्ड जीते जिसमें फिल्मफेयर अवार्ड्स (बंटी और बबली, कल हो ना हो), आर डी बर्मन अवार्ड (दिल चाहता है) और स्टार स्क्रीन अवार्ड्स (मिशन कश्मीर, बंटी और बबली, दिल चाहता है) शामिल हैं। वे 2004 में, हो के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीता।
पुरस्कार और सम्मान की संक्षिप्त सूची
- आरडी सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए बर्मन पुरस्कार (२००१) - दिल चाहता है
- राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए के लिए फ़िल्म पुरस्कार (२००४) - कल हो ना हो
- सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार - कल हो ना हो (२००४) और (बंटी और बबली (२००६)
- IIFA सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक - कल हो ना हो (२००४) और (बंटी और बबली (२००६)
- २०११ में जैक दानिएल येअर्स ऑफ़ एक्स्सल्लेंस पुरस्कार - पिछले दो दशकों में उनके संगीत में योगदान के लिए
सन्दर्भ
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 7 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 दिसंबर 2010.
- ↑ साक्षात्कार: वाट वर यू गाय्स डूइंगबिफोर दिस?
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 7 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 दिसंबर 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 24 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 दिसंबर 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 10 सितंबर 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 दिसंबर 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 जुलाई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 दिसंबर 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 दिसंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 दिसंबर 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 दिसंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 दिसंबर 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 7 जुलाई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जुलाई 2012.