शंकरदेव
श्रीमन्त शंकरदेव | |
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श्रीमन्त शंकरदेव का काल्पनिक चित्र (विष्णु प्रसाद राभा द्वारा चित्रित[1] | |
जन्म | 26 सितम्बर 1499 बरदौवा, नगाँव, असम, भारत |
मृत्यु | 24 August 1570 , Tuesdayभेलदोंगा, कूच बिहार, पश्चिम बंगाल |
खिताब/सम्मान | "महापुरुष" |
कथन | सभी वस्तुओं को ऐसे समझो जैसे वे स्वयं भगवान हों। ब्राह्मण और चाण्डाल की जाति न पूछो।[2] |
धर्म | हिन्दू |
दर्शन | एकशरण |
श्रीमन्त शंकरदेव (असमिया: শ্ৰীমন্ত শংকৰদেৱ) असमिया भाषा के अत्यन्त प्रसिद्ध कवि, नाटककार, सुगायक, नर्तक, समाज संगठक, तथा हिन्दू समाजसुधारक थे। उन्होने नववैष्णव अथवा एकशरण धर्म का प्रचार करके असमिया जीवन को एकत्रित और संहत किया।
जीवनचरित
श्रीमन्त शंकरदेव का जन्म असम के नौगाँव जिले की बरदौवा के समीप अलिपुखुरी में हुआ। इनकी जन्मतिथि अब भी विवादास्पद है, यद्यपि प्राय: यह 1371 शक मानी जाती है। जन्म के कुछ दिन पश्चात् इनकी माता सत्यसंध्या का निधन हो गया। 21 वर्ष की उम्र में सूर्यवती के साथ इनका विवाह हुआ। मनु कन्या के जन्म के पश्चात् सूर्यवती परलोकगामिनी हुई।
शंकरदेव ने 32 वर्ष की उम्र में विरक्त होकर प्रथम तीर्थयात्रा आरम्भ की और उत्तर भारत के समस्त तीर्थों का दर्शन किया। रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी से भी शंकर का साक्षात्कार हुआ था। तीर्थयात्रा से लौटने के पश्चात् शंकरदेव ने 54 वर्ष की उम्र में कालिंदी से विवाह किया। तिरहुतिया ब्राह्मण जगदीश मिश्र ने बरदौवा जाकर शंकरदेव को भागवत सुनाई तथा यह ग्रंथ उन्हें भेंट किया। शंकरदेव ने जगदीश मिश्र के स्वागतार्थ "महानाट" के अभिनय का आयोजन किया। इसके पूर्व "चिह्लयात्रा" की प्रशंसा हो चुकी थी। शंकरदेव ने 1438 शक में भुइयाँ राज्य का त्याग कर अहोम राज्य में प्रवेश किया। कर्मकांडी विप्रों ने शंकरदेव के भक्ति प्रचार का घोर विरोध किया। दिहिगिया राजा से ब्राह्मणों ने प्रार्थना की कि शंकर वेद-विरुद्ध मत का प्रचार कर रहा है। कतिपय प्रश्नोत्तर के पश्चात् राजा ने इन्हें निर्दोष घोषित किया। हाथीधरा कांड के पश्चात् शंकरदेव ने अहोम राज्य को भी छोड़ दिया। पाटवाउसी में 18 वर्ष निवास करके इन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की। 67 वर्ष की अवस्था में इन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की। 97 वर्ष की अवस्था में इन्होंने दूसरी बार तीर्थयात्रा आरम्भ की। उन्होंने कबीर के मठ का दर्शन किया तथा अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस यात्रा के पश्चात् वे बरपेटा वापस चले आए। कोच राजा नरनारायण ने शंकरदेव को आमंत्रित किया। कूचबिहार में 1490 शक में वे वैकुंठगामी हुए।
शंकरदेव के वैष्णव संप्रदाय का मत एक शरण है। इस धर्म में मूर्तिपूजा की प्रधानता नहीं है। धार्मिक उत्सवों के समय केवल एक पवित्र ग्रंथ चौकी पर रख दिया जाता है, इसे ही नैवेद्य तथा भक्ति निवेदित की जाती है। इस संप्रदाय में दीक्षा की व्यवस्था नहीं है।
शंकरदेव वंश वृत्तान्त | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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रचनाएँ
शंकरदेव द्वारा रचित प्रथम कविता निम्नलिखित है-
- करतल कमल कमल दल नयन।
- भबदब दहन गहन बन शयन॥
- नपर नपर पर सतरत गमय।
- सभय मभय भय ममहर सततय॥
- खरतर बरशर हत दश बदन।
- खगचर नगधर फनधर शयन॥
- जगदघ मपहर भवभय तरण।
- परपद लय कर कमलज नयन॥
काव्य
- हरिश्चन्द्र उपाख्यान
- अजामिल उपाख्यान
- रुक्मिणी हरण काव्य
- बलि छलन
- अमृत मन्थन
- गजेन्द्र उपाख्यान
- कुरुक्षेत्र
- गोपी-उद्धव संवाद
- कृष्ण प्रयाण - पाण्डव निर्वारण
भक्तितत्त्व प्रकाशक ग्रन्थ
- भक्ति प्रदीप
- भक्ति रत्नाकर (संस्कृत में)
- निमि-नव-सिद्ध संवाद
- अनादि पातन
अनुवादमूलक ग्रन्थ
- भागवत प्रथम, द्वितीय
- दशम स्कन्धर आदिछोवा
- द्बादश स्कन्ध
- रामायणर उत्तरकाण्ड
नाटक
- पत्नी प्रसाद
- कालिय दमन
- केलि गोपाल
- रुक्मिणी हरण
- पारिजात हरण
- राम विजय
गीतः
- बरगीत[3]
- भटिमा (देवभटिमा, नाटभटिमा, राजभटिमा)
- टोटय
- चपय
नाम-प्रसंग ग्रन्थ
- कीर्तन
- गुणमाला
- मार्कण्डेयपुराण के आधार पर शंकरदेव ने 615 छंदों का हरिश्चंद्र उपाख्यान लिखा।
- भक्तिप्रदीप में भक्तिपरक 308 छंद हैं। इसकी रचना का आधार गरुड़पुराण है।
- हरिवंश तथा भागवतपुराण की मिश्रित कथा के सहारे इन्होंने रुक्मिणीहरण काव्य की रचना की।
- शंकरकृत कीर्तनघोषा में ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण तथा भागवतपुराण के विविध प्रसंगों का वर्णन है।
- वामनपुराण तथा भागवत के प्रसंगों द्वारा अनादिपतनं की रचना हुई।
- अजामिलोपाख्यान 426 छंदों की रचना है।
- अमृतमंथन तथा बलिछलन का निर्माण अष्टम स्कंध की दो कथाओं से हुआ है।
- आदिदशम कवि की अत्यंत लोकप्रिय रचना है जिसें कृष्ण की बाललीला के विविध प्रसंग चित्रित हुए हैं।
- कुरुक्षेत्र तथा निमिमनसिद्धसंवाद और गुणमाला उनकी अन्य रचनाएँ हैं।
- उत्तरकाण्ड रामायण का छंदोबद्ध अनुवाद उन्होंने किया।
- विप्रपत्नीप्रसाद, कालिदमनयात्रा, केलिगोपाल, रुक्मिणीहरण नाटक, पारिजात हरण, रामविजय आदि नाटकों का निर्माण शंकरदेव ने किया।
- असमिया वैष्णवों के पवित्र ग्रंथ भक्तिरत्नाकर की रचना इन्होंने संस्कृत में की। इसमें संप्रदाय के धार्मिक सिद्धांतों का निरूपण हुआ है।
सन्दर्भ
- ↑ This portrait, created by Bishnu Rabha in the 20th-century, is generally accepted as the "official" portrait of Sankardev, whose likeness in pictorial form is not available from any extant form A Staff Reporter (14 October 2003). "Portrait of a poet as an artist". The Telegraph. मूल से 19 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 May 2013.
- ↑ "Kirttana Ghosa – Translations". मूल से 28 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 October 2012.
- ↑ बिपुलज्योति डट इन
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- Srimanta Sankaradeva Sangha Home Page - contains an excellent introduction to the Mahapurusiya Dharma - its main tenets, principles, etc - as well as other very nice articles.
- The Srimanta Foundation Website - contains crisp, concise and informative articles on various facets of Sankari culture.
- कृष्ण भक्ति का आलम (वेबदुनिया)
- समाज-सुधारक थे श्रीमद् शंकरदेव[मृत कड़ियाँ] (अमर उजाला)
- atributetosankaradeva.org - The Religion, Philosophy, Literature, Art, Culture (and more) of Mahapurusha Srimanta Sankaradeva
- Songs Of Devotion A scholarly article on 'Bargeet' by Birendranath Dutta
- Majuli-The epitome of satriya culture
- The Satras of Assam - By BK Barua and HV Sreenivasa Murthy, pages from hindubooks.org
- Forum for Sankaradeva Studies- A research-oriented institution-established in 1988- dedicated to promoting the message of the Sankaradeva Movement.