वेटिंग फ़ॉर गोडोट
वेटिंग फॉर गोडोट ( GOD-oh) शमूएल बेकेट द्वारा रचित एक बेतुका नाटक है, जिसमें दो मुख्य पात्र व्लादिमीर और एस्ट्रागन एक अन्य काल्पनिक पात्र गोडोट के आने की अंतहीन व निष्फल प्रतीक्षा करते हैं। इस नाटक के प्रीमियर से अब तक गोडोट की अनुपस्थिति व अन्य पहलुओं को लेकर अनेक व्याख्यायें की जा चुकी हैं। इसे "बीसवीं सदी का सबसे प्रभावशाली अंग्रेजी भाषा का नाटक" भी बुलाया जा चुका है।[1] असल में वेटिंग फॉर गोडोट बेकेट के ही फ्रेंच नाटक एन अटेंडेंट गोडोट का उनके स्वयं के द्वारा ही किया गया अंग्रेजी अनुवाद है तथा अंग्रेजी में इसे दो भागों की त्रासदी-कॉमेडी का उप-शीर्षक दिया गया है".[2] फ्रेंच मूल रचना 9 अक्टूबर 1948 व 29 जनवरी 1949 के बीच की गई।[3] इसका स्टेज प्रीमियर 5 जनवरी 1953 को पेरिस के थियेटर डि बाबिलॉन नामक थियेटर में हुआ। इसके निर्माता रॉजर ब्लिन थे, जिन्होनें इसमें पोज़ो की भूमिका भी अदा की.
कथानक
भाग 1
वेटिंग फॉर गोडोट दोनों मुख्य पात्रों के जीवन के दो दिनों का वर्णन है, जहां वे दोनों किसी गोडोट नाम के व्यक्ति के आगमन की व्यर्थ व निष्फल प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे कहते हैं कि वे उसे जानते हैं परन्तु स्वयं ही कह जाते हैं कि यदि वह आया तो उसे पहचान नहीं पायेंगें, इससे साबित हो जाता है कि वह उसे नहीं पहचानते. इस प्रतीक्षा में खुद को व्यस्त रखने के लिए वे खाना, सोना, वाद-विवाद करना, खेल-खेलना, व्यायाम करना, आपस में हैट बदलना और यहाँ तक कि आत्महत्या का विचार करना जैसे सभी कार्य कर डालते हैं अर्थात् ऐसा कुछ भी कार्य जिससे उस "भयावह सन्नाटे को दूर रखा जा सके".[4]
नाटक की शुरुआत में एस्ट्रागन अपने पाँव से जूता निकालने का विफल प्रयास कर रहा है। हार कर वह बुदबुदाता है "करने को कुछ नहीं है". इस वाक्य को पकड़कर व्लादिमीर विचार करने लगता है, मानो 'कुछ नहीं' वास्तव में कोई बड़ा कार्य है जिसे उन्हें सारे नाटक के दौरान करना है।[5] जब एस्ट्रागन जूता निकालने में सफल हो जाता है तो वह उसके भीतर झांकता है, तथा वहां कुछ नहीं पाता. इससे ठीक पूर्व व्लादिमीर अपने हैट में झांकता है। यह प्रतिमान सारे नाटक के दौरान दोहराया गया है।
दोनों मुख्य पात्र नाटक के दौरान पश्चाताप की बात करते हैं, जिसमें वे प्रभु यीशु के साथ क्रॉस पर टांगे गए दोनों चोरों का जिक्र करते हैं। साथ ही यह भी चर्चा करते हैं कि चार में से केवल एक एवंजलिस्ट ने बताया कि दो में से एक चोर को बचा लिया गया था। यह चर्चा नाटक के दौरान बाइबिल से संबंधित अनेक चर्चाओं में से एक थी, जो नाटक में प्रत्यक्ष होती है। इससे यह आभास होता है कि नाटक का मूल व छिपा हुआ विषय ईश्वर-मिलन व निर्वाण है। जब-जब दोनों मुख्य पात्रों को लगता है गोडोट निकट हैं तो वे खुशी से चिल्ला उठते हैं, 'हम बच गए'.
व्लादिमीर समय-समय पर एस्ट्रागन की संवाद अकुशलता से क्रोधित होता है। उदाहरण के लिए वह कहता है "अरे गोगो तुम कम से कम एक बार तो गेंद वापस मेरी ओर भेज सकते हो?" भाव से वह एस्ट्रागन अथवा गोगो को अपनी संवाद काला सुधारने को प्रेरित कर रहा है। गोगो सारे नाटक में संवाद कला में संघर्ष करता प्रतीत होता है तथा व्लादिमीर उनके आपसी व अन्य लोगों, दोनों के बीच संवादों में उससे अग्रणी रहता है। बीच-बीच में व्लादिमीर गोगो के प्रति अपना आपा भी खो देता है, परन्तु अधिकतर दोनों में घनिष्ठता रहती है जिसका प्रमाण उनके मैत्रीपूर्ण आलिंगन व एक दूसरे का समर्थन करने में प्रत्यक्ष हो जाता है।
एस्ट्रागन दर्शक दीर्घा की ओर देखता है ओर कहता है कि क्या बेरंग माहोल है। वह वहां से दूर जाना चाहता है, परन्तु उसे याद दिलाया जाता है कि वे प्रतीक्षा कर रहे हैं। हालांकि दोनों पात्र इस बात पर सहमत नहीं हो पाते कि गोडोट के मिलने का नियत समय व स्थान आज और अब ही है। उनको यहाँ तक स्पष्ट नहीं है कि आज कौन सा दिन है। पूरे नाटक में समय या तो बाधित है या खंडित, अथवा उसका अस्तित्व ही नहीं है।[6] सारे उपलक्ष्य में उन्हें केवल एक बात का पूर्णज्ञान है कि वे एक पेड़ के निकट मिलने वाले हैं। वह पेड़ निकट ही विद्यमान है।
एस्ट्रागन सो जाता है परन्तु व्लादिमीर उसे नहीं उठाता क्योंकि वह नहीं चाहता कि गोगो उठ कर अपने सपनों के वृत्तांत से उसे बोर करे. एस्ट्रागन उठता है और किसी वेश्याघर वाला कोई पुराना हास्यास्पद किस्सा सुनना चाहता है जिसे व्लादिमीर सुनाना शुरू करता है परन्तु बीच में ही उसे प्रसाधन व्यवधान लेना पड़ता है। वापस आने पर वह यह किस्सा मध्य में ही त्याग देता है और एस्ट्रागन से पूछता है कि वह समय व्यतीत करने के लिए और क्या करें. एस्ट्रागन प्रस्ताव देता है कि वे सूली पर लटक सकते हैं, परन्तु यह विचार यह सोच कर त्याग दिया जाता है कि यदि दोनों में से एक बच गया तो एक का जीवन अति कष्टमय होगा. अंत में दोनों कुछ न करने का सुरक्षित मार्ग चुनते हैं। एस्ट्रागन कहता है "यही सुरक्षित मार्ग है",[7] और पूछता है जब गोडोट आयगा तो वह क्या करेगा. इस पर एक बार के लिए व्लादिमीर को भी कुछ नहीं सूझता और वह केवल इतना ही कह पाता हैं: "कुछ पक्का नहीं है".[7]
जब एस्ट्रागन कहता है कि उसे भूख लगी है तो व्लादिमीर उसे एक गाजर देता है। एस्ट्रागन को वह अधिक पसंद तो नहीं आती परन्तु खा लेता है। समय व्यतीत करने का यह उपाय भी समाप्त हो जाता है और एस्ट्रागन कह उठता है हमारे पास करने को अभी कुछ नहीं है।
दोनों पात्रों के इंतजार में एक नया मोड़ आता है जब पोजो व उसका भार से लदा दास लकी वहां से गुजरते हैं। "एक दर्दपूर्ण रुदन "[8] के साथ लकी के आगमन की घोषणा होती है। उसकी गर्दन में रस्सी बंधी है। वह आधी स्टेज पार कर जाता है जिसके बाद दूसरा छोर पकड़े पोजो नजर आता है। पोजो अपने दास लकी पर खूब चिल्लाता है तथा उसे "सूअर" कहकर पुकारता है, परन्तु वह एस्ट्रागन और व्लादिमीर के प्रति सभ्य है। यह दोनों पहले पोजो को ही गोडोट समझ बैठते हैं और उसके हठी व असभ्य व्यवहार की ओर ध्यान नहीं देते. गोडोट समझे जाने पर पोजो थोड़ा चिढ़ जाता है। वह उनको बताता है कि "सड़क पर सभी का समान अधिकार" है।[9]
इसके बाद पोजो चिकन व शराब का सेवन करके विश्राम का विचार करता है। जब वह खाकर हड्डियां फेंकने लगता है तो एस्ट्रागन उनकी ओर लपकता है। इससे व्लादिमीर अत्यंत ग्लानी का अनुभव करता है। पोजो कहता है कि यह हड्डियां लकी के लिए है तथा एस्ट्रागन को लकी से पूछना होगा. एस्ट्रागन लकी से पूछता है और लकी चुप रहकर मुंह झुका लेता है। इसे "ना" मानकर एस्ट्रागन हड्डियां ग्रहण कर लेता है।
व्लादिमीर पोजो को लकी के प्रति निर्दयतापूर्ण व्यवहार के लिए प्रताड़ित करता है, परन्तु पोजो उस पर ध्यान नहीं देता. दोनों मुख्य पात्र लकी से पूछते हैं कि जब पोजो उससे कोई और कार्य नहीं करवा रहा होता तो लकी अपना बोझ नीचे क्यों नहीं रख देता. यह सुनकर पोजो कहता है कि लकी उसे प्रसन्न करने की चेष्टा में है, ताकि वह उसे पुनः न बेच दे. यह सुनकर लकी रोने लगता है। पोजो उसे रूमाल थमाता है, परन्तु जब एस्ट्रागन उसके आंसू पोंछने की कोशिश करता है, लकी उसके टखनों पर चोट मारता है।
जाने से पहले पोजो कहता है कि उसका मन बहलाने के लिए वह उनको क्या दे सकता है। एस्ट्रागन धन मांग लेता है जिस पर व्लादिमीर थोड़ा क्रोधित होकर कहता है कि पोजो लकी को थोड़ा सोचने और नाच करने की अनुमति देगा.
लकी का नाच पूर्ण तथा अव्यवस्थित होता है। व्लादिमीर द्वारा सिर पर टोपी रखे जाने से शुरू हुई उसकी "सोच-प्रक्रिया" केवल एक अचानक नींद से जाग्रत हुए व्यक्ति का व्यर्थ संवाद है।[10] लकी का एकालाप आरंभ में तो कुछ ठीक होता है परन्तु बाद में पूर्णतया समझ से परे हो जाता है और वह तभी हो सकता है जब व्लादिमीर अपनी हैट उसके सिर से हटा लेता है।
लकी वापस दास बन जाता है और आदेशानुसार सामान समेटने लगता है। पोजो और लकी चले जाते हैं। नाटक के दोनों भागों के अंत में एक लड़का आता है जो कि गोडोट का दूत मान्य किया जाता है। वह कहता है कि "गोडोट आज शाम नहीं पर कल अवश्य आएगा."[11] वार्तालाप में व्लादिमीर लड़के से पूछता है कि क्या वह कल भी आया था, जिससे पता चलता है कि दोनों पात्र अनंत समय से गोडोट के इंतजार में हैं और यह भविष्य में भी अनंत समय तक चलता रहेगा. लड़के के जाने के बाद वह भी जाने का सोचते हैं परन्तु इस प्रति कोई प्रयास नहीं करते. ऐसा दोनों भागों के अंत में होता है, पर्दा गिरता है।
भाग दो
दूसरे भाग का आरंभ व्लादिमीर के द्वारा गीत गुनगुनाने से होता है जो कि एक कुत्ते से संबंधित है और जिससे नाटक के उद्देश्य का व्यापक ज्ञान होता है। इस गीत से यह भी पता चलता है कि नाटक में परंपरागत संगीत, मनोरंजन व उत्सव का वातावरण है। इस नाटक में कुककुर जाति से संबंधित संदर्भों एवं उदाहरणों में से केवल एक है। इससे यह भी मालूम हो जाता है कि व्लादिमीर को इस आशय का आभास है कि जिस दुनिया में वह उलझा है, वह उत्सवमय है (या उसमें उत्सवों का आभास है). वह यह समझाने लगता है कि यद्यपि उसकी दुनिया में निश्चित समरूप विकास के कुछ प्रमाण हैं तथापि वह मूलतः निजी जीवन के दिवसों को तथावत दोहरा रहा है। व्लादिमीर के गीत के विषय में यूजीन वेब ने लिखा है:[12] "गीत का काल समरूप से गतिशील तो नहीं है, परन्तु वह उस अंतहीन स्थिति के प्रति सांकेतिक है जिसका एकमात्र शाश्वत अंत हैं: मृत्यु".[13]
एक बार पुनः एस्ट्रागन कहता है कि उसने रात एक खाई में बिताई और "10 लोगों ने"[14] पीटा - ऊपर से हालांकि उसे कोई चोट का निशान नहीं है। व्लादिमीर उसको वृक्ष में हो रहे मौसमी बदलावों के बारे में बताता है और पिछले दिन की गतिविधियों के विषय में भी, परन्तु एस्ट्रागन को कुछ अधिक याद नहीं आता. व्लादिमीर पोजो और लकी का नाम लेता है परन्तु एस्ट्रागन को केवल हड्डियां और टखने का दर्द ही याद आता है। व्लादिमीर को ध्यान आता हैं कि यदि एस्ट्रागन अपनी टांग दिखाए तो उसे याद आ सकता है। बड़ी मुश्किल से एस्ट्रागन टांग दिखाता है जिस पर घाव अब गहरा हो चला है। व्लादिमीर को अहसास होता है कि एस्ट्रागन ने कोई जूते नहीं पहने हुए हैं।
गाजर तो समाप्त हो चली है सो व्लादिमीर एस्ट्रागन को शलजम तथा मूली का चुनाव करने को कहता है। एस्ट्रागन मूली चुनता है परन्तु काला होने की वजह से लौटा देता है। फिर एस्ट्रागन सोने का प्रयास करता है ठीक पिछले दिन वाली भ्रूण के समकक्ष अवस्था में. व्लादिमीर उसे लोरी सुनाता है।
व्लादिमीर को लकी वाली हैट नजर आती है और वह उसे पहनने की सोचता है। इससे एक हैट परिवर्तन प्रक्रिया शुरू हो जाती है। वे पोजो और लकी का अनुसरण करने की कोशिश करते हैं, परन्तु एस्ट्रागन को कुछ भी याद नहीं आता कि वह पोजो व लकी से मिला भी था कि नहीं. वह बस केवल व्लादिमीर के आदेशों का पालन करता जाता है। वे दोनों एक दूसरे को गालियाँ देते हैं और फिर सुलह भी कर लेते हैं। उसके बाद वे कुछ शारीरिक झटके व एक योगासन करने का प्रयास करते हैं परन्तु दोनों विफल हो जाते हैं।
पोजो और लकी का आगमन फिर होता है। पोजो अंधा हो चुका है और कहता है कि लकी गूँगा है। रस्सी अब काफी छोटी हो गई है और पोजो की बजाय अब लकी अग्रणी मार्गदर्शक भूमिका में है। पोजो समय का आभास खो चुका है तथा कहता है कि उसे नहीं याद कि वह पिछले दिन एस्ट्रागन व व्लादिमीर से मिला था। वह यह भी कहता है कि आज की गतिविधियां भी उसे कल याद नहीं रहेंगी.
एक समय तो सभी एक के ऊपर एक गिर पड़ते हैं। एस्ट्रागन सोचता है कि और खाना निकलवाने या लकी द्वारा मारे जाने का बदला लेने का यही मौका है। इस पर लंबी चर्चा होती है। पोजो उनको धन देने की पेशकश करता है परन्तु व्लादिमीर सोचता है कि उन दोनों (पोजो व लकी) के रहने से मन बहला रहता है और वे दोनों भी गोडोट की लंबी प्रतीक्षा में साथ देने में मजबूर हो जाते हैं। अंत में हालांकि सब उठ खड़े होते हैं।
भाग 1 में पोजो एक दंभी व्यक्ति था परन्तु अब अंधेपन के बाद वह थोड़ा परिपक्व हो गया है। उसके जाने के बाद व्लादिमीर उसके अंतिम शब्दों की व्याख्या करता है: "जन्म का स्थान भी किसी शवगृह के पास ही होता है, एक क्षण की रोशनी होती है फिर रात हो जाती है".[15]
लकी और पोजो चले जाते हैं। वही लड़का (गोडोट का दूत) फिर आता है और दोहराता है आज गोडोट की प्रतीक्षा ना करें परन्तु कल वह अवश्य आएगा. इस पर निराशा में दोनों एस्ट्रागन की बेल्ट से लटक कर आत्महत्या का प्रयास करते हैं परन्तु दोनों के भार से वह टूट जाती है। एस्ट्रागन की पेंट गिर जाती है परन्तु उसे तब तक पता नहीं चलता जब तक व्लादिमीर उसे नहीं बताता. वे निर्णय करते हैं कि वे कल मजबूत रस्सी लायेंगे और पुनः आत्महत्या का प्रयास करेंगे, यदि गोडोट नहीं आता.
वे फिर जाने का निर्णय करते हैं परन्तु इसका कोई प्रयास नहीं करते.
चरित्र
बेकेट ने नाटक की धारा के अलावा चरित्रों के विषय में कुछ विशेष प्रकाश नहीं डाला है। बेकेट ने कहा था कि एक बार जब सर राल्फ रिचर्डसन ने अपने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से पोजो, व्लादिमीर व अन्य पात्रों के विषय में विस्तृत जानकारी मांगी थी। तब उन्होंने सिर्फ इतना कहा था।... कि इनके बारे में जो नाटक में लिखा है वे केवल वही जानते हैं। "अधिक जानना होता तो पहले ही नाटक में लिख देता और यह बात सभी पात्रों पर लागू है।"[16]
व्लादिमीर और एस्ट्रागन
जब बेकेट ने नाटक लिखना शुरू किया तब उसके मस्तिष्क में व्लादिमीर व एस्ट्रागन की कोई छवि नहीं थी। न ही उसने कहीं उनको निम्न बताया या दिखाया है। रोजर ब्लिन ने बताया: "बेकेट उनकी आवाजें सुनता था, मगर अपने पात्रों को विवरणित नहीं कर पाता था।[17]वह कहता था]: 'कि मुझे केवल एक बात पता है कि दोनों मुख्य पात्र बॉलर हैं।"'[18] "बॉलर हैट बेकेट के गृह नगर फॉक्सरॉक में पुरुषों का एक प्रचलित परिधान था। बचपन में उसकी माँ उसको बेरेट (चपटी गोल टोपी) पहनने पर टोकती थी तथा बॉलर हैट पहनने को प्रेरित करती थी जो बेकेट के पिता भी पहना करते थे।"[19]
दोनों पात्रों की शारीरिक संरचना के विषय में भी कुछ भी नहीं लिखा गया है; हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि व्लादिमीर दोनों में अधिक भारी था। बॉलर हैट व अन्य हास्यास्पद पहलुओं के कारण आधुनिक दर्शक उनकी तुलना लॉरेल व हार्डी का प्रभाव साफ़ हो जाता है। 'दी कॉमिक माइंड: कॉमेडी एंड दी मूवीज (शिकागो यूनिवर्सिटी प्रकाशन, द्वितीय संस्करण 1979) नामक लेख में गेरॉल्ड मास्ट ने इस बारे में लिखा 'सच्चाई को परोक्ष रूप में दिखाने के लिए नए प्रारूप का प्रयोग'. बाद में बेकेट के 1953 में छपे अपने अन्य उपन्यास वाट में लॉरेल व हार्डी पर विशेष टिप्पणी की. उस उपन्यास में बेकेट ने एक स्वस्थ झाड़ी को 'एक हार्डी लॉरेल' या 'एक मजबूत लॉरेल' कह कर संबोधित किया।
व्लादिमीर लगभग सारे नाटक में खड़ा रहता है जब कि एस्ट्रागन अक्सर बैठ जाता है व सो भी जाता है। "एस्ट्रागन शांत है जब कि व्लादिमीर बेचैन."[20] व्लादिमीर आकाश की ओर देखकर धार्मिक व दार्शनिक विषयों के बारे में सोचता है। उधर एस्ट्रागन साधारण पुरुषों की तरह रोजमर्रा की बातों में उलझा रहता है।[21] वह खाने व दर्द दूर करने जैसी बातों से ज्यादा ऊपर नहीं जा पाता. वह थोड़ा भुलक्कड़ भी है परन्तु व्लादिमीर के याद दिलाने पर उसे याद भी आ जाता है। उदाहरण के लिए व्लादिमीर ने उससे पूछा "क्या तुम्हें गॉस्पेल याद है?"[22] इस पर एस्ट्रागन कहता है उसे उस पवित्र स्थान के रंगीन नक़्शे याद है और वह अपना मृत सागर पर अपना हनीमून मानाने वाला था। वास्तव में उसकी लघु अवधि की स्मृति कमजोर थी और शायद वह अल्जहाईमर से पीड़ित था।[23] उधर अल अल्वारेज़ लिखता हैं: "शायद यही भुलक्कड़पन दोनों की दोस्ती बने रहने में सहायक हुआ। एस्ट्रागन भूलता है, व्लादिमीर याद दिलाता है तथा इस तरह समय व्यतीत हो जाता है।[24] ये दोनों पचास साल से साथ हैं परन्तु पोजो के पूछने पर उन्होंने अपनी आयु बताने से इंकार कर दिया.
व्लादिमीर के जीवन में भी अनेक कष्ट हैं परन्तु वह दोनों में सख्त जान है। "व्लादिमीर का दर्द हालांकि मानसिक है। इसीलिए वह लकी से भी अपना हैट बदल लेता है क्योंकि वह दूसरों से विचार विमर्श करना चाहता है।"[25]
पूर नाटक के दौरान दोनों एक दूसरे को "डीडी" व "गोगो" कह कर संबोधित करते हैं, हालांकि एक लड़के ने व्लादिमीर को भी "मिस्टर एल्बर्ट" कह कर पुकारा. बेकेट ने आरंभ में एस्ट्रागन के लिए लेवी नाम चुना था, परन्तु पोजो के पूछने पर वह अपना नाम "माग्रागोर आद्रे"[26] बताता है। साथ ही वह फ्रेंच नाम "कटूले " या "कटूलस" भी बुलाया जाता रहा, खासकर पहले "फाबर संस्करण" में. अमेरिकी संस्करण में यह "एडम" बन गया। बेकेट ने केवल इतना कहा कि वे "कटूलस से ऊब" गए थे।[27]
विवियन मर्सर नामक एक आलोचक ने कहा कि वेटिंग फॉर गोडोट नाटक ने एक असंभव लगने वाली बात को संभव करने का कीर्तिमान स्थापित किया है। एक नाटक जिसमें कुछ नहीं घटता, मगर फिर भी दर्शक एकाग्र होकर इसे देखते हैं। यही नहीं, इसमें दूसरा भाग पहले भाग का ही थोड़ा भिन्न रूप है, अतः बेकेट ने यह अजूबा लिख डाला है जहां दो बार कुछ नहीं होता." (आयरिश टाइम्स, 18 फ़रवरी 1956, पृष्ठ 6.)[28] - अखबार ने अपने इस संस्करण में दोनों मुख्य पात्रों की भाषा पर सवाल उठाये थे और लिखा था कि "शायद बेकेट ने कटाक्ष किया, आप कैसे कह सकते हैं कि वे पी.एच.डी. नहीं हैं? 'तुम कैसे जानते हो कि उन्होंने पी.एच.डी. नहीं किया हैं?' उनका जवाब था "[29] उनका अतीत अच्छा रहा होगा, हालांकि केवल इतना ज्ञात है, वे एक बार एफिल टॉवर गए थे, व एक बार राइज़ नदी के किनारे अंगूर तोड़ने. पहले नाट्य मंचन, जिस पर बेकेट ने स्वंय नजर रखी थी, में दोनों मुख्य पात्रों के वस्त्र गंदे तो नहीं, मगर थोड़े साधारण है। उधर एस्ट्रागन द्वारा बैग व हड्डियां मांगने पर व्लादिमीर थोड़ा भड़क जाता है जिससे ज्ञात होता है कि उसे व्यवहार उचित होने का आभास रहता था।"[30]
पोजो और लकी
हालांकि बेकेट ने पात्रों की पृष्ठभूमि के विषय में कुछ नहीं लिखा परन्तु नाटक में काम करने वाले अभिनेताओं ने अपनी-अपनी प्रेरणा तलाश ली है। जीन मार्टिन की एक डॉक्टर मित्र मार्थे गॉटियर, साल्पेट्रियरे अस्पताल में काम करती थी तथा मार्टिन ने उससे पूछा: "'सुनो, मार्थ्र, इस नाटक में एक खास तरह की आवाज का जिक्र है उसका विवरण और व्याख्या कहाँ मिल सकती है?' [उसने] बताया: इस बिमारी में मरीज के हाथ, पैर कांपने लगते है और धीरे-धीरे वह कांपे बिना बोल भी नहीं पाता. मैंने तब कहा मुझे यही चाहिए. बेकेट व राजर थोड़े कम आश्वस्त थे मगर फिर भी तैयार हो गए।[31] "जब मार्टिन ने बेकेट से कहा कि वे लकी के पात्र को एक पार्किसन्स मरीज की तरह करेंगे तो बेकेट ने कहा "अवश्य".[32] बेकेट ने यह जिक्र भी किया कि मार्को की यही बीमारी थी। परन्तु फिर अतिशीघ्र ही विषय बदल दिया."[33]
जब बेकेट से पूछा गया कि लकी का नाम ऐसा क्यों रखा गया तो उन्होंने कहा कि वह "लकी भाग्यशाली है कि उसकी कोई आकांक्षाएं रोल नहीं है"[34]
कुछ आकलनों में यहाँ तक भी कहा गया कि क्योंकि "डीडी और गोगो का रिश्ता पूर्णतया विवरणित या स्थापित नहीं था", लकी व पोजो उन्हीं का एक प्रारूप हैं।[35] पोजो और लकी के रिश्ते में पोजो का प्रभुत्व असल में बेमानी था। ध्यान से देखने पर ज्ञात होता है कि लकी का प्रभाव सदा ही अधिक था। वह नाचता था और पोजो के खालीपन को दूर करने को सोचता भी था। इसलिए प्रथम बार से ही पोजो ही असल में लकी का गुलाम था।[25] यह बात पोजो भी स्वीकार करता है कि लकी ने उसे संस्कृति, विनय और तर्कशीलता प्रदान की है। उसमें वक्रपटुता स्वाभाविक रूप से आ गई। पोजो का पार्टी वृत्तांत एक अच्छा उदाहरण है: जब उसकी स्मृति जाती रहती है तो वह इस वक्रपटुता को भी खो देता है।
पोजो के विषय में केवल इतना ज्ञात हुआ है कि वह अपने दास लकी को बेचने मेले में जा रहा था। वह स्वंय को उच्च कोटि का जमींदार मानता है जब कि वह केवल एक घमंडी व स्वार्थी व्यक्ति है जो दूसरों से असभ्य व्यवहार करता है। उसका पाइप डबलिन की सबसे मशहूर तंबाकू कंपनी कैप एंड पीटरसन का बना है, (जिनका नारा था 'एक बुद्धिमान व्यक्ति का पाइप'). पोजो अपनी पाइप को "ब्रायर" कहता था जबकि एस्ट्रागन उसे "डुडीन" और इसी से दोनों के सामाजिक व आर्थिक अंतर का पता चलता था। पोजो अपनी स्मृति कुछ कमजोर मानता था परन्तु ऐसा इसलिए था क्योंकि वह स्वलीन रहता था। बेकेट के शब्दों में "पोजो असुरक्षित मानसिकता से ग्रस्त था। इसीलिए वह हर विषय में बढ़ चढ़ कर वाद-विवाद करता था और हर कार्य में भी ऐसा ही व्यवहार करता था।[36]
पोजो लकी को एक लंबी रस्सी से नियंत्रित करता था और लकी के तनिक भी धीरे होने पर रस्सी को जोर जोर से झटके देता था। लकी पूर्णतया उसके कब्जे में था तथा एक "वफादार कुत्ते की तरह" उसकी नैकरी बजाता था।"[37] पीठ पर भारी बोझ उठाने में वह नहीं हिचकिचाता था। सारे नाटक में लकी सिर्फ एक बार बोलता है, वह भी तब जब पोजो उसे व्लादिमीर व एस्ट्रागन के लिए सोचने को कहता है। पोजो और लकी साठ सालों से साथ हैं और इस अंतराल में उनका रिश्ता काफी बिगड़ गया है। लकी सदा पोजो से बुद्धिमान था परन्तु आयु के साथ वह घृणा का पात्र बन गया। उसकी "सोच-प्रक्रिया" उसकी बुद्धि तथा उसका घटिया "नाच" वृद्धावस्था का क्रूर परिचायक है। पोजो के क्रूर व्यवहार के बावजूद लकी सदा उसका वफादार रहा. दूसरे भाग में भी जब पोजो अचानक अंधा हो जाता है, लकी उसका साथ नहीं छोड़ता और मार्गदर्शक बनता है। उनका रिश्ता मान एक रस्सी के जोड़ से कहीं बढ़कर है ठीक जैसे डीडी और गोगो "गोडोट के काल्पनिक" माध्यम से जुड़े हैं।[38] अमेरिकी निर्देशक एलन श्नीडर को बेकेट ने यही कहा था: "[पोजो] एक मनोरोगी है और उसका पात्र अभिनीत करने के लिए अभिनेता को थोड़ा पागलपन का पुट निहित करना होगा."[20]
"नाटक के [अंग्रेजी] अनुवाद में... बेकेट के सभी फ्रेंच चीजों को निहित करने का सतत प्रयास किया और सभी अंग्रेजी नामों व स्थानों को लकी से जोड़ दिया. बेकेट का मानना था कि लकी नाम का अंग्रेजी से गहन नाता है।"[39]
वह लड़का
पात्रों में केवल एक लड़के का जिक्र है।
पहले भाग में एक स्थानीय लड़का व्लादिमीर को आश्वस्त करता है कि वह डीडी को पहली बार देख रहा है और वह कल नहीं आया था। वह बताता है कि वह मिस्टर गोडोट के लिए बकरियां चराता है। यह भी कहता है कि उसका भाई जिसे गोडोट खूब पीटता है, भेड़ चराता है। हालांकि गोडोट दोनों को भोजन प्रदान करता है व अपने चारागाह में रहने की अनुमति भी देता है।
भाग दो में लड़का व्लादिमीर को आश्वस्त करता है कि पिछले दिन आने वाला व्यक्ति वह नहीं था, यह उसका पहला आगमन है। जब व्लादिमीर उससे पूछता है कि गोडोट क्या करता है तो लड़का कहता है, "महाशय, कुछ नहीं."[40] लड़का यह भी कहता है कि शायद गोडोट की सफ़ेद दाढ़ी है। बातों में लड़के के एक बीमार भाई का भी जिक्र आता है परन्तु यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि यह भाई भाग एक वाला ही लड़का है या कोई अन्य.
गोडोट
गोडोट की पहचान पर अनेकों वाद विवाद हुए हैं। "जब कॉलिन डकवर्थ ने बेकेट से सीधे पूछा कि क्या पोजो ही गोडोट है तो बेकेट ने उत्तर दिया: 'नहीं. ऐसा प्रतीत होता है परन्तु यह असत्य है।"'[41][42]
"जब रोजर ब्लिन ने पूछा कि गोडोट के पात्र का क्या पर्याय है तो बेकेट ने कहा कि इसका उद्गम जूतों के लिए फ्रेंच अपशब्द गोडिल्लो, गोडासे से हुआ है क्योंकि पैरों का नाटक में अहम स्थान है। बेकेट अधिकतर गोडोट के विषय में यही व्याख्या करते थे।"[43]
"एक बार बेकेट ने पीटर वुडथोर्प से कहा कि वे पात्र को गोडोट नाम देने पर अब थोड़ा पछता रहें हैं क्योंकि बहुत से दर्शकों ने इसे गॉड अथवा भगवान से जोड़ कर अनेकों भ्रांतियां उत्पन्न कर दी है।[44] "मैने [राल्फ] रिचर्डसन से कहा कि अगर मेरा आशय भगवान से होता तो मैं गॉड ही नाम रखता गोडोट नहीं. इससे रिचर्डसन बहुत निराश हुए."[45] लेकिन बेकेट ने एक बार यह भी माना, "यदि मैं कहूँ मैं गोडोट शब्द के अर्थ से वाकिफ नहीं हूँ तो यह विवेकहीन बात लगती है। मैं भली भांति जानता हूँ कि अनेक लोग इसे 'गॉड' या ईश्वर का ही रूप मानते हैं। मगर याद रहे कि मैंने यह नाटक फ्रेंच में लिखा था और यदि यह ख्याल मेरी उपचेतना में कहीं था भी तो प्रत्यक्ष में कभी नहीं आया।"[46] यह एक मजेदार कथन था क्योंकि बेकेट ने कई बार कहा था कि उपचेतना मन से लिखते हैं यहाँ तक कि लिखते हुए एक समाधि जैसी अवस्था में चले जाते हैं।[47]
बेकेट के अन्य कार्यों की तरह इस नाटक में कोई साइकिल नहीं हैपरन्तु हय केन्नर ने अपने निबंध "दी कार्टिसियन सेंटोर"[48] में लिखा है कि बेकेट ने एक बार गोडोट के विषय पर कहा था कि गोडोट एक वयोवृद्ध साइक्लिस्ट है तथा गंजा व सदा टिकने वाला व्यक्ति है। साथ ही वह राष्ट्रीय व नगर की प्रतिस्पर्धाओं में अक्सर एक अधिकारी के रूप में नजर आता है। उसका पहला नाम अज्ञात है परन्तु उपनाम गोडियू (Godeau) है जिसका उच्चारण गोडोट ही है। हालांकि यह नाटक ट्रैक साइकिल रेस के विषय में नहीं है परन्तु बेकेट फ्रेंच साइक्लिस्ट राजर गोडोट (1920-2000; जो 1943-1961 के बीच पेशेवर साइक्लिस्ट थे) के प्रशंसक थे तथा रूबेक्स के वेलोड्रोम में बाहर उसकी प्रतीक्षा कर चुके थे।
दोनों लड़कों में से एक ही पिटाई से बचा नजर आता है, "बेकेट भी मजाक में कहते हैं, एस्ट्रागन का एक पैर बच गया।"[49]
ब्रिटेन व आयरलैंड में गोडोट शब्द के उच्चारण में प्रथम शब्दांश पर जोर दिया जाता है, (GOD-oh); जबकि उत्तरी अमरीका में दूसरे शब्दांश पर, (gə-DOH). बेकेट हालांकि इंग्लैंड वाले उच्चारण को सही मानते थे।[50] इसमें टी (T) मूक है। आयरलैंड में जन्मे पले बेकेट को आयरिश भाषा का अच्छा ज्ञान था। आयरिश गौलिक में, "गो डियो" के दो अर्थ हैं "सदा के लिए" और "लंबे समय के लिए". लिखते समय शायद बेकेट ने इस शब्द का प्रयोग किंचित व्यंग्यात्मक कोण से किया है क्योंकि वह जानते थे कि अंग्रेज और फ्रेंच दर्शक शायद ही उन शब्दजाल को समझ पायेंगे.
सेटिंग
दोनों कृत्य में केवल एक ही दृश्य है। दो आदमी एक देशी सड़क पर एक पेड़ के पास इंतजार कर रहे हैं। पुरुष अनिर्दिष्ट मूल के हैं, हालांकि यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीयता की दृष्टि से वे अंग्रेज नहीं है (और अंग्रेजी भाषा की में फिल्मों को पारंपरिक रूप से आयरिश उच्चारण के साथ दिखाया जाता है). स्क्रिप्ट के अनुसार एस्ट्रागन एक निचले टीले पर बैठता है लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से - बेकेट के 1975 की जर्मन फिल्म की तरह - आम तौर पर यह एक पत्थर है। पहले अंक में पेड़ खाली है। दूसरे अंक में, कुछ पत्ते दिखाई देते हैं जबकि स्क्रिप्ट के अनुसार यह अगला दिन है। दिमाग के लिए बहुत कम विवरण उपलब्ध होते हैं "लियू वेग का विचार जो एक ऐसा स्थान है जिसका विस्तृत विवरण नहीं दिया जाना चाहिए".[51]
एक बार एलन श्नीडर ने नाटक को एक चक्कर में डालने का सुझाव दिया था - पोजो को अक्सर एक रिंगमास्टर के रूप में उल्लिखित किया गया है[52] - लेकिन बेकेट ने उनके विपरीत परामर्श दिया: "अपनी अनभिज्ञता की दृष्टि से मैं इस चक्र वाली बात से सहमत नहीं हूँ और मुझे लगता है कि गोडोट को एक बहुत ही बंद बक्से की जरूरत है।" उन्होंने एक बार "मंच के फर्श की सलाखों की धूमिल छाया" की भी अपेक्षा की थी लेकिन अंत में उन्होंने इस "प्रकटीकरण" के खिलाफ फैसला किया।[53] अपने 1975 के शिलर थिएटर प्रोडक्शन में कुछ हद तक जेम्स नोल्सन के विवरण में "[एक अदृश्य] जाल की रस्सियों में फंसी हुई पक्षियों की तरह" डीडी और गोगो कई बार उछालते हुए दिखाई देते हैं। डीडी और गोगो केवल इसलिए फंस जाते हैं क्योंकि वे अभी भी इस अवधारणा से चिपटे हुए हैं कि आजादी संभव है; आजादी कैद की तरह दिमाग की एक अवस्था है।
लेखन प्रक्रिया
बेकेट के अनुसार इस नाटक की प्रेरणा का एक स्रोत कैस्पर डेविड फ्रेडरिक की एक पेंटिंग थी। बेकेट के साथ 1824 की मैन एण्ड वुमन कंटेम्प्लेटिंग द मून नामक पेंटिंग को देखकर रूबी कोहन यादों में खो जाती हैं जिन्होंने "स्पष्ट रूप से घोषणा करते हुए कहा, 'आपको मालूम है, यही वेटिंग फॉर गोडोट का स्रोत था।'"[54][55]"हो सकता है कि वे दो पेंटिंगों को लेकर उलझन में पड़ गए हों क्योंकि दूसरे मौकों पर उन्होंने दोस्तों का ध्यान 1819 के टू मेन कंटेम्प्लेटिंग द मून की तरफ आकर्षित किया जिसमें लबादा पहने दो पुरुष एक सम्पूर्ण चाँद को देख रहे थे जो एक बड़े और बिना पत्तियों वाले पेड़ की काली शाखाओं से घिरा हुआ था।"[56] दोनों मामले में पेंटिंग काफी हद तक एक जैसी थी इसलिए उनका सक्ष्यांकन दोनों पर एक समान लागू हो सकती है। हालांकि कुछ स्रोत रुसिलोन में सुजेन डेस्चेवॉक्स-ड्यूमेस्निल और बेकेट के बीच हुई बातचीत को इस कार्य की प्रेरणा मानते हैं। बेकेट ने जेरी टॉलमर द्वारा लिए गए एक न्यूयॉर्क पोस्ट साक्षात्कार में इस बात को स्वीकार किया।[57]
रूबी कोहन बेकेट के नाटक लेखन का वर्णन "काल्पनिक त्रयी के उत्तरोत्तर निरंकुश आन्तरिकता के एक पलायन" के रूप में करती हैं - जिसके लिए वह बेकेट के मोलोय, मेलोन डाईज और द अननेमेबल का सन्दर्भ प्रस्तुत करती हैं; बेकेट ने दावा किया है कि उन्होंने "गोडोट के लेखन का आरम्भ उस समय स्वयं द्वारा लिखे जा रहे भयंकर गद्य से दूर जाने के लिए एक विश्राम के रूप में किया था।"[58]
व्याख्या
"चूंकि यह इतना निर्वस्त्र, इतना मौलिक है कि यह हर तरह की सामाजिक और राजनीतिक और धार्मिक व्याख्या को आमंत्रित करता है," नोर्मंड बर्लिंग ने शरद ऋतु 1999 के एक नाटक की एक श्रद्धांजलि में लिखा था, "जिसके साथ खुद बेकेट को विभिन्न संप्रदायों के विचारों, विभिन्न आन्दोलनों और विचारवादों से जोड़ा गया था। उनकी स्पष्ट व्याख्या करने के लिए किए गए प्रयास सफल नहीं हुए हैं लेकिन ऐसा करने की इच्छा स्वाभाविक है जब उनका सामना किसी लेखक से होता है जिनकी अल्पवादी कला मूलभूत वास्तविकता तक पहुँचती है। 'कम' हमें 'अधिक' की तलाश करने के लिए मजबूर करता है और गोडोट और बेकेट के बारे में बात करने की जरूरत के परिणामस्वरूप किताबों और लेखों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।"[59][60]
पूरे वेटिंग फॉर गोडोट में पाठक या दर्शक का सामना धार्मिक, दार्शनिक, पारंपरिक, मनोविश्लेषणात्मक और जीवन संबंधी - खास तौर पर युद्ध के समय के - सन्दर्भों से हो सकता है। कुछ ऐसे अनुष्ठानात्मक पहलू और तत्त्व हैं जिन्हें सीधे वाडेविल[61] से लिया गया है और वे जैसे हैं उनसे अधिक बनाने में खतरा है: अर्थात् केवल संरचनात्मक सुविधाएं, अवतार जिनमें लेखक अपने काल्पनिक पात्रों को स्थापित करता है। नाटक में "कई ठेठ रूपों और परिस्थितियों का इस्तेमाल किया गया है जिनमें से सभी अपने आपको हास्य और करुणा दोनों में समाहित करते हैं।"[62] बेकेट फिल्म के आरंभिक नोट्स में इस तथ्य को अच्छी तरह से स्पष्ट करते हैं: "उपरोक्त तथ्य से किसी भी सच्चाई का कोई लेनादेना नहीं है जिसे केवल संरचनात्मक और नाटकीय सुविधा का नाम दिया गया है।"[63] उन्होंने यह कहते हुए लॉरेंस हार्वे पर एक और महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि "उनका काम अनुभव पर निर्भर नहीं करता है - [यह] अनुभव का रिकॉर्ड नहीं है। बेशक आप इसका इस्तेमाल करते हैं".[64]
बेकेट "अनंत ग़लतफ़हमी" से तुरंत थक गए। बहुत पहले 1955 में उन्होंने टिप्पणी की थी कि "मुझे समझ में नहीं आता है कि लोग एक छोटी सी बात को इतना बड़ा क्यों बना देते हैं।"[65] वह गुप्त सुरागों से ज्यादा कुछ उम्मीद नहीं कर रहे थे, हालाँकि: "पीटर वुडथ्रोप [जिन्होंने एस्ट्रागन की भूमिका निभाई थी] ने एक दिन टैक्सी में उनसे पूछा कि नाटक किस बारे में था: "यह सहजीविता है, पीटर; यह सहजीविता है,' बेकेट ने जवाब दिया."[66]
बेकेट ने 1975 में शिलर थिएटर के लिए नाटक का निर्देशन किया। हालांकि उन्होंने कई प्रस्तुतियों की देखरेख की थी लेकिन ऐसा पहली हुआ था कि इस बार उन्हें सम्पूर्ण नियंत्रण प्राप्त हुआ था। वाल्टर एस्मस उनके ईमानदार युवा सहायक निर्देशक थे। यह प्रोडक्शन या प्रस्तुति प्राकृतिक नहीं था। बेकेट ने समझाया,
यह एक खेल है, सब कुछ एक खेल है। जब उनमें से चारों जमीन पर लेते हुए हों तब उसे प्राकृतिक ढंग से संभाला नहीं जा सकता. उसे कृत्रिम रूप से, बैलेट की तरह करना पड़ता है। नहीं तो सबकुछ एक नकल, वास्तविकता की एक नक़ल बन जाती है [...]. इसे स्पष्ट और पारदर्शी होना चाहिए, न कि सूखा. यह जीवित रहने के लिए खेला जाने वाला एक खेल है।"[67]
पिछले कई सालों में बेकेट ने स्पष्ट रूप से यह महसूस किया कि काफी हद तक गोडोट की कामयाबी इस बात से संबंधित थी कि यह तरह-तरह के पठन के लिए खुला था और यह अनिवार्य रूप से कोई बुरी चीज नहीं थी। बेकेट ने खुद " गोडोट के सबसे प्रसिद्ध मिश्रित जाति वाली प्रस्तुतियों में से एक की स्वीकृति दी थी जिसे यूनिवर्सिटी ऑफ केप टाउन के बैक्सटर थिएटर में प्रदर्शित किया था जिसका निर्देशन डोनाल्ड होवार्थ ने किया था [...] जिसमें दो काले अभिनेताओं जॉन कानी और विंस्टन नत्शोना ने डीडी और गोगो की भूमिका निभाई थी; पोजो (जिसने एक चेक शर्ट और गमबूट पहना हुआ था जो एक अफ्रिकानेर जमींदार की याद दिलाता था) और लकी ('सफ़ेद ट्रैश का एक शैंटी टाउन पीस'[68]) की भूमिका दो गोरे अभिनेताओं बिल फ्लिन और पीटर पिकोलो ने निभाई थी [...]. बैक्सटर प्रोडक्शन को अक्सर एक स्पष्ट राजनीतिक प्रस्तुति के रूप में चित्रित किया गया है जबकि वास्तव में इस पर बहुत कम जोर दिया गया था।[] हालाँकि ऐसी प्रतिक्रिया दिखाई गई थी कि नाटक को किसी भी तरह से एक राजनीतिक रूपक के रूप में नहीं लिया जा सकता लेकिन फिर भी उसमें कुछ ऐसे तत्त्व हैं जो किसी भी स्थानीय स्थिति के लिए प्रासंगिक है जिसमें एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा शोषित या प्रताड़ित किया जा रहा है।"[69]
रजनीतिक
"इसे शीत युद्ध के एक रूपक के रूप में देखा गया था"[70] या जर्मनों के प्रति फ़्रांसिसी प्रतिरोध के रूप में देखा गया था। ग्राहक हैसेल लिखते हैं कि, "ऐसा लगता है कि पोजो और लकी का प्रवेश [...] मुख्यभूमि ब्रिटेन के आयरलैंड के नजरिए के एक रूपक से अधिक कुछ नहीं है जहाँ समाज अब तक एक लालची सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग द्वारा अभिशप्त है जबकि मजदूर वर्ग को निष्क्रिय और हर बात से अनिभिज्ञ रखा गया है।"[71]
फिल्म परियोजना पर बेकेट की तरह जोड़ी को अक्सर आयरिश उच्चारण के साथ प्रदर्शित किया गया है। कुछ लोगों को लगता है कि यह बेकेट की लय और शब्द रचना का एक अनिवार्य परिणाम है लेकिन इसे पाठ में निर्दिष्ट नहीं किया गया है। किसी भी हाल में वे अंग्रेजी भंडार का हिस्सा नहीं हैं: नाटक में एक जगह एस्ट्रागन "शांत" शब्द का अंग्रेजी उच्चारण का मजाक उड़ाता है और वेश्यालय में अंग्रेज की कहानी" का आनंद लेता है।[72]
मानसिक
फ्रायडवादी
"बर्नार्ड ड्यूकोर डीडी, गोगो एण्ड द ऐबसेंट गोडोट में एक त्रयी सिद्धांत को विकसित करते हैं जो सिगमंड फ्रायड के द इगो एण्ड द इड (1923) में त्रिमूर्ति मानस विवरण और ओनोमैस्टिक तकनीक के उपयोग पर आधारित है। ड्यूकोर अभाव के आधार पर पात्रों को परिभाषित करते हैं" तर्कसंगत गो-गो अधूरे अहंकार को मूर्त रूप प्रदान करता है, लापता खुशी का सिद्धांत: (इ) गो-(इ) गो. डी-डी (इड-इड) - जो अधिक सहज प्रकृति का और तर्कहीन है - को तर्कसंगत सिद्धांत के पिछड़े इड या तोड़फोड़ के रूप में देखा जाता है। गोडोट महा-अहंकार या नैतिक मानकों के कार्य को पूरा करता है। पोजो और लकी मुख्य पात्रों के पुनरावृत्ति मात्र हैं। ड्यूकोर अंत में बेकेट की नाटक को मनुष्य के अस्तित्व की निरर्थकता के एक रूपक के रूप में देखता है जब एक बाहरी एंटिटी से मुक्ति की उम्मीद की जाती है और खुद के आत्मनिरीक्षण से नकार दिया जाता है।[73]
जन्गियन (कार्ल जंग, व्यक्तित्व अध्ययन / आचरणवादी)
"आत्मा के चार पहलुओं या चार ठेठ व्यक्तित्वों को दो जोड़ियों में वर्गीकृत किया गया है: अहंकार और छाया, व्यक्तित्व और आत्मा की छवि (एनिमस या एनिमा). छाया वह पात्र है जिसमें अहंकार के तले दबी हमारी सभी तुच्छ भावनाएं शामिल होती हैं। लकी, छाया निरंकुश पोजो, समृद्ध सामान्यता का प्रोटोटाइप, के ध्रुवीय विलोम के रूप में कार्य करता है जो उत्तरोत्तर अपने अधीनस्थ को नियंत्रित और तंग करता है, इस प्रकार यह निरंकुश अहंकार से अचेत छाया के उत्पीड़न का प्रतीक है। पहले अंक में लकी का एकालाप दमित अचेतना की एक धारा की एक मिसाल के रूप में दिखाई देता है क्योंकि उसे अपने मालिक के लिए "सोचने" की अनुमति है। सुगन्धित जड़ीबूटी टैरागोन के अलावा एस्ट्रागन के नाम का एक और मतलब है: "एस्ट्रागन" महिला हार्मोन एस्ट्रोजन का एक सजातीय है (कार्टर, 130). यह हमें व्लादिमीर की आत्मा की महिला छवि एनिमा (आत्मा) की पहचान करने के लिए प्रेरित करता है। यह एस्ट्रागन की काव्य प्रवृत्ति, उसकी संवेदनशीलता और सपनों, उसके तर्कहीन मिजाज के बारे में बताता है। व्लादिमीर पूरक मरदाना सिद्धांत की तरह या शायद तर्कसंगत व्यक्तित्व के मननशील प्रकार के रूप में दिखाई देता है।[74]
दार्शनिक
अस्तित्व
व्यापक तौर पर कहा जाता है कि अस्तित्ववादियों के विचार से कुछ ऐसे मौलिक प्रश्न हैं जिसका प्रत्येक मनुष्य से सामना होता है अगर वे अपने व्यक्तिपरक अस्तित्व को गंभीरता से लेते हैं। उन सवालों में मृत्यु, मानव अस्तित्व का अर्थ और उस अस्तित्व में ईश्वर का स्थान (या अभाव) जैसे सवाल शामिल हैं। काफी हद तक अस्तित्ववाद के सिद्धांत इस बात पर जोर देते हैं कि सचेतन वास्तविकता बहुत जटिल होती है और इसमें कोई "उद्देश्य" या सार्वभौमिक दृष्टि से ज्ञात मूल्य का अभाव होता है: व्यक्ति को इसे स्वीकार करके और छोड़कर, न कि बस इसके बारे में बात करके या मन में इसकी कल्पना करके, मूल्य का निर्माण करना चाहिए. यहाँ इस नाटक को इन सभी मुद्दों को स्पर्श करता हुए देखा जा सकता है।
गोडोट सहित बेकेट की ज्यादातर रचनाओं को दार्शनिक और साहित्यिक विद्वान थिएटर ऑफ द एब्सर्ड के आंदोलन का हिस्सा मानते हैं जो थिएटर का एक ऐसा रूप है जिसकी उत्पत्ति अलबर्ट कामू के निरर्थकवादी दर्शन से हुई थी। निरर्थकवाद खुद अस्तित्ववाद के पारंपरिक कथनों की एक शाखा है जिसके अग्रदूत सोरेन कीर्कगार्ड थे और जो यह मानता है कि ब्रह्माण्ड में निहित अर्थ के अच्छी तरह से मौजूद होने के बावजूद मानव जाति मानसिक या दार्शनिक सीमा के किसी रूप की वजह से इसका पता लगाने में अक्षम है। इस प्रकार मानवता द एब्सर्ड या आतंरिक उद्देश्य के अभाव में अस्तित्व की परम निरर्थकता का सामना करने के लिए अभिशप्त है।
नैतिक
ठीक डीडी और गोगो के विशेष रूप से स्वार्थी और कठोर होने के बाद लड़का यह बताने आता है कि गोडोट नहीं आ रहा है। लड़के (या लड़कों के जोड़े) को नम्रता और आशा का प्रतिनिधित्व करते हुए देखा जा सकता है जिसके बाद एक उभरते व्यक्तित्व और चरित्र द्वारा जानबूझकर दया के भाव का त्याग कर दिया जाता है और इस मामले में युवा पोजो और लकी शामिल हो सकते हैं। इस प्रकार गोडोट में दया का भाव है और वह अपने वादे के अनुसार प्रति दिन पहुंचने में विफल हो जाता है। किसी को इस बात की परवाह नहीं है कि एक लड़के को पीटा गया है।[75] इस व्याख्या में विडम्बना यह है कि केवल उनके दिलों को दयावान बनाकर ही पेड़ के पास इंतजार कर रहे पात्र आगे बढ़ सकते हैं और गोडोट का इंतजार करना बंद कर सकते हैं।
ईसाई
बेकेट की ल्यूक 23:39–43 की दो चोरों की कहानी के समावेश में बहुत कुछ पढ़ने को मिल सकता है और उसके बाद पछतावे पर चर्चा की जा सकती है। एकांत पेड़ को क्रिश्चियन क्रॉस के प्रतिनिधि के रूप में या वास्तव में जीवन वृक्ष के रूप में देखना आसान है। इसी तरह, चूंकि लड़का ईश्वर का वर्णन एक सफ़ेद दाढ़ी वाले ईश्वर के रूप में करता है और अगर लड़के के प्रमाण पर विश्वास किया जाए तो गोडोट की दाढ़ी भी सफ़ेद है जिससे कई लोग ईश्वर और गोडोट को एक रूप में देखते हैं और एक समान समझते हैं। व्लादिमीर के "मसीह ने हम पर दया दिखाई है!"[76] को इस बात का सबूत माना जा सकता है कि यह कम से कम वही बात है जिस पर उसे विश्वास है।
यह सब पढ़ने से पहले अंक के आरंभिक दृश्यों को अधिक बल मिलता है जब एस्ट्रागन व्लादिमीर से पूछता है कि उसने गोडोट से क्या अनुरोध किया है:
व्लादिमीर: ओह ... कुछ खास नहीं.
एस्ट्रागन: कोई प्रार्थना.
व्लादिमीर: कुछ हद तक.
एस्ट्रागन: एक अस्पष्ट विनती.
व्लादिमीर: बिल्कुल सही.[77]
नाटक के अधिकांश हिस्से का सम्बन्ध धर्म के विषय से है जो काफी हद तक लिखित संकेत से ओतप्रोत है। पूरा का पूरा नाटक एक पहाड़ी के ऊपर होता है जिसे कुछ लोग स्वर्ग की संज्ञा दे सकते हैं जिससे नाटक को एक धार्मिक दृष्टान्त होने का उद्देश्य प्राप्त होता है।
एंथोनी क्रोनिन के अनुसार, "[बेकेट] के पास हमेशा एक बाइबिल होता था, नाटक के अंत में उसके पास एक से अधिक संस्करण थे और बाइबिल की शब्दानुक्रमणिका हमेशा उसकी आलमारी में रखे सन्दर्भ पुस्तकों में होते थे।"[78] इस मुद्दे पर खुद बेकेट का खुला विचार था: "ईसाई धर्म एक पुराण है जिससे मैं पूरी तरह से परिचित हूँ इसलिए मैं स्वाभाविक रूप से इसका इस्तेमाल करता हूँ."[79] जैसा कि क्रोनिन (उनकी जीवनी लेखकों में से एक) बताते हैं, उनके बाइबिल सम्बन्धी सन्दर्भ "व्यंगपूर्ण या यहाँ तक कि व्यंगात्मक भी हो सकते हैं".[80]
"1937 (उसके चाचा द्वारा की गई एक परिवाद कार्यवाही के दौरान) में बचाव पक्ष के वकील द्वारा पूछे गए सवाल कि वे ईसाई थे या यहूदी या नास्तिक, के जवाब में बेकेट ने कहा, 'तीनों में से कोई नहीं'".[81] बेकेट की सम्पूर्ण कृति को देखने पर मेरी ब्रायडेन को पता चला कि "बेकेट के ग्रंथों से उभरने वाला काल्पनिक ईश्वर एक ऐसी हस्ती है जो अपने विकृत अनुपस्थिति के साथ-साथ अपनी चौकस मौजूदगी के लिए भी शापित है। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें पदच्यूत कर दिया जाता है, उन पर व्यंग्य किया जाता है या उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है लेकिन उन्हें और उनके प्रताड़ित बेटे को निश्चित रूप से कभी नहीं हटाया जाता है।[82]
एक प्रतीकात्मक स्तर पर, हम दो पात्रों एस्ट्रागन और व्लादिमीर को नाटक में उल्लिखित दो चोरों के रूप में देख सकते हैं। एस्ट्रागन को कुछ अज्ञात कारणों के लिए दण्डित किया जाता है जिसका मतलब हो सकता है कि वह वही चोर है जिससे मसीह को कोसने के लिए घृणा की जाती है। दूसरी ओर, व्लादिमीर वह चोर हो सकता है जो निंदा से बच निकला है हालाँकि यह केवल भौतिक है। इस प्रतिकार से बेकेट द्वारा दर्शाए गए मनमाने ईश्वर का पता चलता है।
आत्मकथात्मक
वेटिंग फॉर गोडोट का वर्णन "रूसिलोन में लंबी पैदल यात्रा के रूपक के रूप में किया गया है जब बेकेट और सुजेन दिन के समय घास के ढेर [...] में सो गए थे और जॉयस के लिए बेकेट के रिश्ते का लिहाज रखने के लिए रात [... या] होने तक चलते रहे."[83] आरंभिक मसौदे में महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सन्दर्भ शामिल हैं लेकिन उन्हें बाद में निकाल दिया गया।[]
सहकामुक
चूंकि नाटक में केवल पुरुष अभिनेताओं का सन्दर्भ मिलता है क्योंकि उसमें महिलाओं का सन्दर्भ शायद ही मिलता है इसलिए कुछ लोग व्लादिमीर और एस्ट्रागन के रिश्ते को अर्ध-वैवाधिक मानते हैं: "वे झगड़ते हैं, वे एक दूसरे को गले लगाते हैं, वे एक दूसरे पर निर्भर करते हैं [...] वे उन्हें एक शादीशुदा जोड़ी माना जा सकता है।"[84] पहले अंक में एस्ट्रागन अपने साथी के पास धीरे से जाकर उसके कंधे पर हाथ रखकर उस के साथ धीरे-धीरे बात करता है। बदले में उसका हाथ मांगने और उसे जिद न करने की सलाह देने के बाद वह उसे अचानक गले लगा लेता है लेकिन यह शिकायत करते हुए उसी तेजी के साथ पीछे हट जाता है कि "तुमसे लहसुन की बदबू आ रही है!"[85]
जब एस्ट्रागन बाइबिल में उसकी सामायिक दृश्यों की याद दिलाता है और याद करता है कि मृत सागर या डेड सी के मानचित्रों के रंग कितने सुन्दर थे तो वह टिप्पणी करता है कि "हम वहीं जाएंगे, मैं हमेशा यही कहा करता था कि हम अपने हनीमून के लिए वहीं जाएंगे. हम तैरेंगे. हमें मजा आएगा."[86] इसके अलावा, बिना महिलाओं वाले विश्व के सन्दर्भ में पोस्टमॉर्टम इरेक्शन पाने का लालच पैदा होता है। व्लादिमीर की तुलना में खास तौर पर एस्ट्रागन "बहुत ज्यादा उत्साहित" होता है जो इस मौके पर चीत्कार विशाखमूल के बारे में बात करने का विकल्प चुनता है।[85] अपने साथी की उत्तेजन के प्रति उसकी स्पष्ट उदासीनता को एक प्रकार के चंचल छेड़खानी के रूप में देखा जा सकता है।
सहकामुकता का एक अन्य संभावित उदाहरण उस खंड में देखा जा सकता है जिसमें एस्ट्रागन "इसके [अपने गाजर के] छोर को चूसता है[87] हालाँकि बेकेट का इसका वर्णन एक ध्येय की कार्यवाही के रूप में करता है।[87]
महिला कलाकारों के प्रति बेकेट की आपत्ति
बेकेट अपने कार्य के लिए सबसे अर्थपूर्ण दृष्टिकोण के लिए खुला नहीं था। उसने इस आपात्ति जगजाहिर है जब 1980 के दशक में कई महिलाओं के अभिनय वाली कंपनियों ने नाटक का मंचन शुरू किया। ""महिलाओं के पास प्रोस्टेट नहीं है," बेकेट ने कहा,[88] जो इस बात का एक सन्दर्भ थी कि व्लादिमीर को पेशाब करने के लिए बार-बार मंच छोड़कर जाना पड़ता था।
1988 में बेकेट ने इस मुद्दे पर मुकदमा लड़ने के लिए डे हार्लेम्से टोनील्शूर नामक एक डच थिएटर कंपनी का सहारा लिया। "बेकेट [...] अपना मुकदमा हार गया। लेकिन लिंग का मुद्दा उसके लिए इतना महत्वपूर्ण प्रतीत हुआ कि वह एक नाटककार के लिए एक अंतर बन गया जिस पर उसने इतनी क्रोधपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की कि नीदरलैंड में उसके सभी नाटकों के प्रकाशन पर प्रतिबन्ध लग गया।"[89] 1991 में, तथापि, "जज हुगुएट ले फोयेर डे ने फैसला सुनाया कि प्रकाशन की वजह से बेकेट की विरासत की अत्यधिक क्षति नहीं होगी" और प्रतिष्ठित एविगनन समारोह में ब्रुट डे बेटन के सभी महिला कलाकों द्वारा इस नाटक का विधिवत प्रदर्शन किया गया।[90]
2006 में इसी तरह के एक मुक़दमे में इतालवी पोंटेडेरा थिएटर फाउन्डेशन की जीत हुई जब इसने व्लादिमीर और एस्ट्रागन की भूमिकाओं में दो अभिनेत्रियों को प्रस्तुत किया हालाँकि पत्रों की पारंपरिक भूमिकाओं के रूप में पुरुष थे।[91] 1995 के एक्को समारोह में डायरेक्टर नोला चिल्टन ने लकी की भूमिका में डैनिएला मिशेली के साथ एक प्रस्तुति का मंचन किया[92] और 2001में इंडियाना विश्वविद्यालय की एक प्रस्तुति में पोजो और लड़के की भूमिका के लिए महिलाओं को प्रस्तुत किया गया।[]
प्रस्तुति का इतिहास
"17 फ़रवरी 1952 को ... क्लब डी'इस्साई डे ला रेडियो नामक स्टूडियो में नाटक के एक संक्षिप्त संस्करण का प्रदर्शन किया गया और उसे [फ्रांसिस] रेडियो पर प्रसारित किया गया ... हालाँकि उसने एक विनम्र नोट भेजा जिसे रोजर ब्लिन ने पढ़ा, लेकिन खुद बेकेट को वह नहीं मिला."[93] उसकी प्रस्तावना के एक हिस्से में लिखा हुआ था कि:
- मैं नहीं जानता कि गोडोट कौन है। मैं यह भी नहीं जानता (कुल मिलाकर कुछ नहीं मालूम है) कि उसका वजूद है भी कि नहीं. और मुझे नहीं मालूम कि उन्हें उस पर विश्वास है या नहीं - वे दोनों जो उसका इंतजार कर रहे हैं। अन्य दो लोग जो दोनों अंक के अंतिम पल में सामने से गुजरते हैं जो एकरसता को तोड़ने के लिए होना चाहिए. मैं जितना जानता था वह सब प्रदर्शित कर दिया. यह काफी नहीं है लेकिन यह काफी हद तक मेरे लिए काफी है। मेरा तो यह भी कहना है कि मैं इससे कम में भी संतुष्ट हो जाऊँगा. जहाँ तक सब कुछ ढूँढने की चाहता का सवाल है जैसे कि कार्यक्रम और एस्किमो पाई के साथ-साथ प्रदर्शन को आगे बढ़ाने का एक व्यापक और शानदार अर्थ, मुझे इसका महत्त्व समझ में नहीं आता. लेकिन इसे संभव होना चाहिए ... एस्ट्रागन, व्लादिमीर, पोजो, लकी, उनका समय और उनका स्थान, मैं उनके बारे में बहुत कम जान पाया, लेकिन जितना समझने की जरूरत थी उससे अधिक जान पाया। हो सकता है कि उन्हें तुम्हें स्पष्टीकरण देना चाहिए. उन्हें देने दो. मेरे बिना. वे और मैं हमेशा एक दूसरे के साथ हैं।[94]
मिनुइट संस्करण 17 अक्टूबर 1952 में मुद्रित रूप में नाटक के पहले पूर्ण नाटकीय प्रदर्शन से पहले दिखाई दिया. 4 जनवरी 1953 को "सार्वजनिक उद्घाटन से पहले एन अटेंडेंट गोडोट के जेनाराले के लिए तीस समीक्षक उपस्थित हुए ... परवर्ती पौराणिक कथा के विपरीत समीक्षक दयालु थे। .. दैनिक अख़बारों में कुछ दर्जन समीक्षाएँ सहिष्णु से लेकर उत्साहवर्द्धक थे। .. साप्ताहिक पत्रिकों में समीक्षाएँ लंबी और अधिक उत्कट थे; इसके अलावा, वे उस समय उस पहले तीस दिवसीय प्रदर्शन के लिए दर्शकों ललचाते हुए प्रतीत हुए"[95] जिसकी शुरुआत 5 जनवरी 1953 को पेरिस के थिएर्टर डे बेबीलोन में हुई थी। हालाँकि आरंभिक सार्वजनिक प्रदर्शन घटना रहित नहीं थे: एक प्रदर्शन के दौरान "लकी के एकालाप के बाद पर्दा गिरना पड़ा क्योंकि बीस सजे-धजे लेकिन असंतुष्ट दर्शकों ने उपहासपूर्ण ढंग से सिटी बजाना और हो-हल्ला करना शुरू कर दिया था। .. [यहाँ तक कि] उनमें से एक प्रदर्शनकारी ने ले मोंडे के लिए 2 फ़रवरी 1953 को एक निन्दापूर्ण पत्र भी लिख डाला."[96]
कलाकार समूह में पियरे लाटूर (एस्ट्रागन), लुसियन रायम्बर्ग (व्लादिमीर), जीन मार्टिन (लकी) और रोजर ब्लिन (पोजो) शामिल थे। इस नाटक में अभिनेता को पोजो की एक लाभकारी भूमिका मिली और इसलिए डायरेक्टर (निर्देशक) - जो वास्तविक जीवन में एक शर्मीला और दुबला-पतला आदमी है - को आगे बढ़ना पड़ा और अपने पेट में एक तकिया डालकर खुद एक मोटे बातूनी व्यक्ति का किरदार निभाना पड़ा. दोनों लड़कों की भूमिका सर्ज लेकोइंट द्वारा निभाई गई थी। सम्पूर्ण प्रस्तुति बहुत कम बजट में पूरा किया गया; मार्टिन के बड़ा और फटा बैग उदाहरण के तौर पर "थिएटर ड्रेसर के पति को शहर के कचरे में मिला था जब वह कचरे के डिब्बों की सफाई कर रहा था।"[97]
बेकेट के नजरिए से एक बहुत महत्वपूर्ण प्रोडक्शन जर्मनी के वुपर्टल के पास लुट्रिंगहासेन में हुआ था। एक कैदी ने फ़्रांसिसी प्रथम संस्करण की एक कॉपी हासिल की, उसे खुद जर्मन भाषा में अनुवाद किया और नाटक का मंचन करने की अनुमति प्राप्त की. पहली रात का मंचन 29 नवम्बर 1953 को किया गया था। उसने अक्टूबर 1954 में बेकेट को लिखा: "एक कैदी से अपने नाटक वेटिंग फॉर गोडोट के बारे में एक पत्र प्राप्त होने पर आपको आश्चर्य होगा जहाँ इतने सारे चोर, जालसाज, गुंडे, होमो, पागल लोग और हत्यारे अपनी बदतर जिंदगी को इंतजार करते हुए...सिर्फ इंतजार करते हुए बिताते हैं। किसका इंतजार किया जा रहा है? गोडोट? शायद."[98] बेकेट बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अंतिम प्रदर्शन को देखने के लिए उस कैदी से मुलाक़ात करने का इरादा किया लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। यह "जेल और कैदियों के साथ बेकेट के स्थायी सम्बन्ध के आरम्भ की निशानी थी।.. उन्होंने जेलों में प्रदर्शित होने वाले अपने नाटकों के प्रोडक्शन में काफी दिलचस्पी ली ... उन्होंने सैन क्वेंटिन के एक पूर्व कैदी रिक क्लची को कई सालों तक वित्तीय और नैतिक सहारा भी दिया."[99] सैन क्वेंटिन कैलिफोर्निया स्टेट प्रिजन के पूर्व गैलोज रूम में क्लची ने दो प्रस्तुतियों में व्लादिमीर का किरदार निभाया था जिसे 65 सीट वाले एक थिएटर में बदल दिया गया था और उससे पहले जर्मन कैदी की तरह उसकी रिहाई के बाद बेकेट के विभिन्न नाटकों पर काम करना जारी रखा. (वेटिंग फॉर गोडोट के 1953 के लुट्रिंगहासेन और 1957 के सैन क्वेंटिन प्रिजन के की प्रस्तुतियाँ 2010 की डॉक्यूमेंट्री फिल्म द इम्पॉसिबल इटसेल्फ का विषय थी जिसके निर्माता-निर्देशक जैकब एडम्स थे।)
अंग्रेजी भाषा में इसका प्रीमियर 3 अगस्त 1955 को लन्दन के आर्ट्स थिएटर में किया गया जिसका निर्देशन 24 वर्षीय पीटर हॉल ने किया था। प्रारंभिक रिहर्सल के दौरान हॉल ने कलाकारों से कहा कि "मेरे पास वास्तव में कोई अस्पष्ट विचार नहीं है जैसा कि कुछ लोग समझते हैं ... लेकिन अगर हम अपना काम बंद करके हर पंक्ति पर चर्चा करेंगे तो हम इसे कभी नहीं कर पाएंगे."[100] मुद्रित संस्करण ने एक बार फिर बाजी मार ली (न्यूयॉर्क: ग्रोव प्रेस, 1954) लेकिन फेबर के "विकृत" संस्करण को 1956 तक अमल में नहीं लाया गया। बाद में 1965 में एक "संशोधित" संस्करण का निर्माण किया गया। "सबसे सही पाठ थिएट्रिकल नोटबुक्स वन (संस्करण) डॉगल्ड मैकमिलन और जेम्स नोल्सन (फेबर और ग्रोव, 1993) में है। यह बेकेट के शिलर-थिएटर प्रोडक्शन (1975) और लन्दन सैन क्वेंटिन ड्रामा वर्कशॉप के लिए उनके संशोधनों पर आधारित है। जो शिलर प्रोडक्शन पर आधारित था लेकिन जिसे आगे चलकर रिवरसाइड स्टूडियोज (मार्च 1984) में संशोधित किया गया था।"[101]
बेकेट के सभी अनुवादों की तरह वेटिंग फॉर गोडोट एन अटेंडेंट गोडोट का एक शाब्दिक अनुवाद मात्र नहीं है। "छोटे-छोटे लेकिन महत्वपूर्ण अंतर फ़्रांसिसी और अंग्रेजी पाठ को अलग करते हैं। किसान के नाम (बोनेली[102]) को याद रखने की व्लादिमीर की असमर्थता जैसी कुछ बातों से इस बात का पता चलता है कि अनुवाद किस तरह अधिक अनिश्चित, उदासीन और स्मृति की हानि वाला अधिक स्पष्ट अनुवाद बना."[103] कई जीवनी विवरणों को निकाल दिया गया जिनमें से सभी पाठ की एक सामान्य "निरर्थकता"[104] को बढाते हैं जिसे उन्होंने अपनी बाकी जिंदगी भर संवारते रहे.
1950 के दशक में बेकेट के विस्मय की वजह से यूके में थिएटर पर सख्त प्रतिबन्ध लग गया क्योंकि वह इसे मुक्त भाषण का एक समर्थक मानते थे। लॉर्ड चैंबरलेन ने इस बात पर जोर दिया कि "इरेक्शन" शब्द को हटा दिया जाए, "'फार्टोव' 'पोपोव' बन गया और श्रीमती गोज़ो को 'क्लैप' के बजाय 'वार्ट्स' मिला."[105] वास्तव में नाटक पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास किया गया था। उदाहरण के लिए, लेडी डोरोथी होविट ने लॉर्ड चैंबरलेन को एक खत लिखा जिसमें लिखा हुआ था कि: "पूरे नाटक भर में चलने वाली कई विषयों में से एक विषय के तहत दो बूढ़े घुमक्कड़ों को अपने आप से मुक्त करने की लगातार इच्छा व्यक्त की गई है। इस तरह की शौचालय की आवश्यकताओं का नाटकीय रूपांतरण अपमानजनक है और ब्रिटिश शालीनता की सभी भावनाओं के खिलाफ है।"[106] "इंग्लैंड में गोडोट के पहले अप्रत्याशित संस्करण ... का प्रदर्शन 30 दिसम्बर 1964 को रॉयल कोर्ट में किया गया।"[107]
लन्दन प्रस्तुति घटना रहित नहीं थी। पोजो की भूमिका निभाने वाले अभिनेता पीटर बुल उस दिन पहली रात के प्रदर्शन को दर्शकों की प्रतिक्रिया को याद करते हुए कहते हैं कि:
- "रंगमंच पर दुश्मनी की लहरों की बौछार होने लगी और बड़े पैमाने पर भगदड़ मच गई जिससे इस रचना की प्रस्तुति की एक ऐसी विशेषता का निर्माण हुआ जिसकी शुरुआत पर्दा उठने के तुरंत बाद हुआ था। श्रव्य आहें भी काफी चिंताजनक थीं। .. हल्की वाहवाही के लिए पर्दा गिरा, हमने एक अल्प तीन कॉल किए (पीटर वुडथ्रोप केवल एक पर्दे के कॉल की रिपोर्ट देता है[108]) और एक निराशा और चरमोत्कर्ष विरोधी भावना हम सब पर टूट पड़ी."[109]
आलोचकों के मन में बहुत कम दया की भावना थी लेकिन "रविवार 7 अगस्त 1955 को द ऑब्जर्वर और द संडे टाइम्स में केनेथ टायनान और हैरोल्ड होब्सन की समीक्षाओं से सब कुछ बदल गया। बेकेट उन दो समीक्षकों के समर्थन के लिए सदा उनके आभारी थे। .. जिन्होंने उस रात के नाटक को कमोबेश लन्दन के क्रोध में तब्दील कर दिया था।"[110] "वर्ष के अंत में पहली बार इवनिंग स्टैण्डर्ड ड्रामा अवार्ड्स का आयोजन किया गया ... भावनाएँ ऊंची उड़ान भरने लगी और सर माल्कोम सार्जेंट के नेतृत्व में विपक्षियों ने गोडोट की जीत [द बेस्ट न्यू प्ले श्रेणी] होने पर इस्तीफा देने की धमकी दी. पुरस्कार के शीर्षक को बदलकर एक अंग्रेजी समझौते को कारगर बनाया गया। गोडोट को द मोस्ट कंट्रोवर्सियल प्ले ऑफ द इयर का ख़िताब दिया गया। यह एक ऐसा पुरस्कार है जिसे उसके बाद से कभी नहीं दिया गया है।"[111]
संयुक्त राज्य अमेरिका में इस नाटक की पहली प्रस्तुति 3 जनवरी 1956 को फ्लोरिडा के कोकोनट ग्रोव के कोकोनट ग्रोव प्लेहाउस में की गई थी।[112] इसमें टॉम इवेल ने व्लादिमीर का और बर्ट लाहर ने एस्ट्रागन की भूमिका निभाई थी। यह असफल रहा लेकिन लाहर, एक नए निर्देशक (हरबर्ट बर्गोफ़) और व्लादिमीर की भूमिका निभाने वाले ई. जी. मार्शल वाले एक ब्रॉडवे संस्करण को बहुत ज्यादा समर्थन प्राप्त हुआ। प्रस्तुति और इसकी समस्याओं का वर्णन जॉन लाहर की पुस्तक नोट्स ऑन ए कावर्डली लायन में किया गया है जिसमें उनके पिता के बारे में बताया गया है।
बेकेट ने इस नाटक पर फिल बनाने की पेशकश का विरोध किया हालाँकि इसे उनके जीवनकाल में टीवी पर दिखाया गया था (जिसमें 1961 का एक अमेरिकी टेलीकास्ट भी शामिल था जिसमें जेरो मोस्टल ने एस्ट्रागन और बर्गेस मेरेडिथ ने व्लादिमीर की भूमिका निभाई थी जिसका वर्णन न्यूयॉर्क टाइम्स थिएटर के आलोचक एल्विन क्लीन ने निम्न रूप में किया "आलोचकों को हैरत में डाल दिया और अब यह एक क्लासिक बन गया है").[100] जब कीप फिल्म्स ने बेकेट ने एक रूपांतरण पर फिल्म बनाने की पेशकश की जिसमें पीटर ओ'टूले को दिखाया जाएगा तो बेकेट ने संक्षेप में अपने फ़्रांसिसी प्रकाशक को उन्हें सलाह देने के लिए कहा: "मुझे गोडोट का कोई फिल्म नहीं चाहिए."[113] बीबीसी ने 26 जून 1961 को वेटिंग फॉर गोडोट की प्रस्तुति का प्रसारण किया जो रेडियो का एक संस्करण था जिसे 25 अप्रैल 1960 को पहले ही प्रसारित किया जा चुका था। बेकेट ने पीटर वुडथ्रोप के चेल्सी स्थित फ़्लैट में अपने कुछ करीबी दोस्तों के साथ वह कार्यक्रम देखा. उन्होंने जो कुछ देखा उससे वे नाखुश थे। उन्होंने कहा "मेरे नाटक को इस बक्से के लिए नहीं लिखा गया था। मेरे नाटक को एक बड़े स्थान में बंद छोटे लोगों के लिए लिखा गया था। यहाँ आप स्थान की दृष्टि से कभी बड़े हैं।"[114]
हालाँकि यह उनकी नाटकों में से पसंदीदा नाटक नहीं था - शायद इसलिए क्योंकि उन्होंने जो कुछ लिखा वह सब फीका पड़ गया था - यह एक ऐसी रचना थी जिसने बेकेट को प्रसिद्धी और वित्तीय स्थिरता प्रदान की और इसने उनके स्नेह में हमेशा एक लिए एक खास जगह बना ली. "जब पाण्डुलिपि और दुर्लभ पुस्तक डीलर हेनरी वेनिंग ने उनसे पूछा कि क्या वह उन्हें असली फ़्रांसिसी पाण्डुलिपि बेचेंगे तो बेकेट ने जवाब दिया: 'चाहे सही हो या गलत लेकिन मैंने गोडोट को कहीं भी न जाने देने का फैसला किया है। यह न तो कोई भावनात्मक और न ही कोई वित्तीय फैसला है, हो सकता है कि यह अभी बाजार में अपनी ऊँचाई पर है और फिर कभी ऐसी कोई पेशकश न मिले. "समझा नहीं सकता.'"[115][116]
लिंकन सेंटर का मित्ज़ी ई. न्यूहाउस थिएटर 1988 के पुनरुद्धार का साइट था जिसका निर्देशन माइक निकोल्स ने किया था और जिसमें रोबिन विलियम्स (एस्ट्रागन), स्टीव मार्टिन (व्लादिमीर), बिल इरविन (लकी) और एफ. मुरे अब्राहम (पोजो) को दिखाया गया था। केवल सात सप्ताह तक चलने वाला और सभी सितारों के अभिनय वाला यह नाटक आर्थिक दृष्टि से सफल रहा[117] लेकिन इस पर की गई आलोचनाएं खास तौर पर अनुकूल नहीं थी, द न्यूयॉर्क टाइम्स के फ्रैंक रिच ने लिखा, "दर्शक अभी भी उस उत्कृष्ट गोडोट का इंतजार कर रहे होंगे जबकि उनसे पहले बेकेट के अनंत ब्रह्माण्ड से होक गुजरने वाले अन्य कई लोगों की तरह लिंकन सेंटर के जोकर आए और चले भी गए।"[118]
इस नाटक को क्वींस थिएटर के लन्दन के वेस्ट एंड में लेस ब्लेयर द्वारा निर्देशित प्रस्तुति में पुनर्जीवित किया गया जिसका उद्घाटन 30 सितम्बर 1991 को किया गया।[119] नाटक के ब्रिटिश प्रीमियर के बाद से यह वेस्ट एंड का पहला पुनरुत्थान था। रिक मयाल ने व्लादिमीर की भूमिका निभाई और एड्रियन एडमंडसन ने एस्ट्रागन का किरदार निभाया जबकि फिलिप जैक्सन ने पोजो की और क्रिस्टोफर रयान ने लकी की भूमिका निभाई; लड़के की भूमिका डीन गैफ्नी और डंकन थोर्नली ने निभाई थी।[119] डेरेक जर्मन ने मैडेलीन मॉरिस के सहयोग से दृश्य डिजाइन का काम पूरा किया।[119]
वेस्ट एंड की एक अन्य प्रस्तुति का उद्घाटन 30 अप्रैल 2009 को थिएटर रॉयल हेमार्केट में हुआ। सर इयान मैक्केलेन ने एस्ट्रागन की भूमिका निभाई और सर पैट्रिक स्टीवर्ट ने व्लादिमीर का किरदार निभाया. उनके प्रदर्शन की काफी प्रशंसा की गई।[120] द डेली टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के अनुसार पैट्रिक स्टीवर्ट ने हेमार्केट में प्रदर्शन के दौरान जॉन बाल्डविन बकस्टोन के डैने वाले भूत को खड़े देखा था।[121] इस प्रस्तुति को 11 सप्ताह तक जनवरी 2010 में उसी थिएटर में पुनर्जीवित किया गया। 2010 में इसी प्रस्तुति के लिए अंतर्राष्ट्रीय दौरा किया गया जहाँ स्टीवर्ट की जगह रोजर रीस ने व्लादिमीर की भूमिका निभाई थी।
2009 में इस नाटक के एक ब्रॉडवे पुनरुत्थान को तीन टोनी अवार्ड्स: बेस्ट रिवाइवल ऑफ ए प्ले, बेस्ट परफॉर्मेंस बाई ए फीचर्ड एक्टर इन ए प्ले (जॉन ग्लोवर) और बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन ऑफ ए प्ले (जेन ग्रीनवुड) के लिए मनोनीत किया गया जिसमें नाथन लेन और बिल इरविन ने अभिनय किया था।[122] इसे अत्यधिक प्रशंसित समीक्षाएँ प्राप्त हुआ और यह राउंडअबाउट थिएटर के लिए एक बहुत बड़ी सफलता थी। वेराइटी ने इसे एक "विविध " प्रस्तुति कहा.
संबंधित रचनाएँ
- रेसीन का बेरेनिस एक ऐसा नाटक है "जिसमें पांच अंकों तक कुछ नहीं होता है।"[123] इस नाटक की प्रस्तावना में रेसीन लिखते हैं: "सारी रचनात्मकता कुछ नहीं से कुछ बनाने में शामिल है।" बेकेट 17वीं सदी के एक नाटककार के एक उत्सुक विद्वान थे और ट्रिनिटी में अपने समय में उन्होंने उन पर व्याख्यान दिया था। "रेसीन के नाटक की स्थिर गुणवत्ता का अत्यावश्यक तथ्य एक दूसरे से थोड़ी दूर पर बात करने वाले पात्रों की जोड़ी है।"[51]
- बाल्जाक के 1851 के नाटक मर्काडेट का शीर्षक पात्र अपने व्यवसाय साथी गोडियू से वित्तीय मुक्ति पाने के इंतजार में है जिसे उसने कभी नहीं देखा है। हालाँकि बेकेट बाल्जाक के गद्य से परिचित थे; लेकिन फिर भी उनकी यही जिद है कि उन्होंने वेटिंग फॉर गोडोट की रचना पूरी करने के बाद इस नाटक के बारे में सुना. संयोग से 1949 में बाल्जाक के नाटक को काफी बारीकी से द लवेबल चीट नामक फिल्म में रूपांतरित किया गया (जिसमें बस्टर कीटन ने अभिनय किया था जिसकी बेकेट ने काफी प्रशंसा की थी).
- क्लिफोर्ड ओडेट्स का 1935 का प्रसिद्ध नाटक वेटिंग फॉर ले फ्टी उन मजदूरों के बारे में था जो पूँजीवाद द्वारा प्रताड़ित थे और जो संघ के आयोजक लेफ्टी के नेतृत्व में मुक्ति प्राप्ति के इंतजार में थे। लेकिन नाटक के अंत में मजदूरों को पता चलता है कि लेफ्टी बिल्कुल नहीं आएगा (क्योंकि उसकी हत्या कर दी गई थी).
- मॉरिस मेटरलिंक ने 1894 में "द ब्लाइंड" लिखा जो अंधे लोगों के एक समूह के बारे में था जो जंगल में असहाय घूम रहे हैं जब द्वीप का दौरा करते समय उनके गाइड और एक पादरी की अचानक मौत हो जाती है। कुछ देर तक किसी को पता नहीं चलता है कि पादरी मर गया है या उसकी लाश बस कुछ फीट दूर है। वे सभी बैठकर उसके लौटने का इंतजार करते हैं। जब उसकी लाश का पता चलता है तब सारे लोग आतंकित और भयभीत हो जाते हैं और इस बात पर बहस करने लग जाते हैं कि वे कब और कैसे अपने अस्पताल वापस लौटेंगे. 'पादरी' की मौत के साथ नाटक को एक ऐसे समाज की एक गुम हो चुके कल्पित कहानी के रूप में देखा जा सकता है जिनका मार्गदर्शन करने के लिए और उनकी रक्षा करने के लिए ईश्वर गैरमौजूद है।
- स्थान की एकता, एक दलदल कि किनारे स्थित विशेष साइट जिसे दोनों घुमक्कड़ नहीं छोड़ सकते, से सार्त्रे के 1944 के नाटक नो एग्जिट में स्थान की एकता के अत्यधिक आकर्षक उपयोग की याद ताजा हो जाती है। सेकण्ड एम्पायर के लिविंग रूम की उपस्थिति में यह नरक है जिसे तीनों पात्र नहीं छोड़ सकते. प्रत्येक नाटक के पर्दे वाली पंक्ति स्थान की एकता को रखांकित करती है जिसकी स्थापना कैद है। लेट्स गो
! ऑफ गोडोट वेल से मेल खाता है, ठीक है, आइए इसे समझने की कोशिश करें...! नो एग्जिट का. सार्त्रे के नरक को एक बेडरूम के तमाशे के कुछ कमोबेश समान तत्वों के उपयोग द्वारा प्रस्तावित किया गया है जबकि अनाम पठार - थाल जैसे डीडी और गोगो को फ़्रांसिसी संस्करण में परोसा जाता है - एक खाली वाडेविल मंच की याद को ताजा करता है।
- कई आलोचक बेकेट के उपन्यास मर्सियर एण्ड कैमियर के मुख्या पात्रों को व्लादिमीर और एस्ट्रागन का प्रारूप मानते हैं। "अगर आप गोडोट की उत्पत्ति का पता लगाना चाहते हैं," उन्होंने एक बार कॉलिन डकवर्थ को बताया, "तो मर्फी को देखें."[124] यहाँ हम प्रताड़ित नायक को देखते हैं तो आत्म ज्ञान या कम से कम किसी भी कीमत पर सोचने की पूरी आजादी और मन और शरीर के विरोधाभास और बातचीत के लिए कष्ट उठा रहा है। यह एक ऐसी किताब भी है जो कुछ हद तक मानसिक बीमारी पर आधारित है जिसका गोडोट के सभी पात्रों पर असर पड़ता है। आलोचकों की रक्षा में मर्सियर और कैमियर बेवजह एक दलदली और बारिश के पानी से लथपथ द्वीप के बारे में सोचते हैं जिसका हालाँकि कोई स्पष्ट नाम नहीं है वह बेकेट का अपना आयरलैंड है। वे व्लादिमीर और एस्ट्रागन की तरह जटिल संवाद बोलते हैं, मौसम के बारे में मजाक करते हैं और पब में चैट करते हैं जबकि उनकी ओडिसी का उद्देश्य कभी स्पष्ट नहीं किया गया है। गोडोट का इंतजार उपन्यास की घुमक्कड़ी है। "काफी लंबी चौड़ी बातचीत की गई है जिसे उन्होंने बाद में सीधे गोडोट में स्थानांतरित कर दिया."[125]
लोकप्रिय संस्कृति में
- बीबीसी ने एक रिटायरमेंट होम के दो निवासियों पर आधारित वेटिंग फॉर गॉड नामक एक सिटकॉम का निर्माण किया।
- सेसेम स्ट्रीट के मॉन्स्टरपीस थिएटर में "वेटिंग फॉर एल्मो" नामक एक खंड शामिल था जिसमें ग्रोवर और टेली मॉन्स्टर कभी न खत्म होने वाले इंतजार पर पछताते हुए एक पेड़ के पास खड़े होकर एल्मो (जो कभी दिखाई नहीं देता है) का इंतजार करते हैं। नाटक की अतर्कसंगत प्रकृति का हवाला देते हुए पेड़ को जड़ से उखाड़ दिया जाता है और यह सोचते हुए उसे छोड़ दिया जाता है कि उन्होंने इसके बजाय म्यूजिकल ओकलाहोमा ! क्यों नहीं किया।[126]
- लाउडन वेनरिट थर्ड ने "रोड ओड" नामक एक गाना लिखा जिसकी एक आरंभिक पंक्ति में व्लादिमीर और एस्ट्रागन का नाम है।
- ऐस अटार्नी: ट्रायल्स एण्ड ट्रिब्यूलेशंस नामक गेम के एक पात्र का नाम भी गोडोट है।
- बार्नी और बैकयार्ड गैंग का वीडियो वेटिंग फॉर सैंटा इस नाटक एक शीर्षक सन्दर्भ है।
- टेलीविजन के "क्वांटम लीप" के मुख्य पात्र का नाम सैम बेकेट था जिसकी भूमिका स्कॉट बकुला ने निभाई थी।
- टीवी सीरीज मिस्ट्री साइंस थिएटर 3000 के गोर्गो एपिसोड में क्रो टी. रोबोट और टॉम सर्वो नामक पात्र "वेटिंग फॉर गोर्गो" नामक एक छोटे होस्ट-सेगमेंट स्केच का प्रदर्शन करते हैं जो गोडोट के पात्रों और परिस्थितियों का एक अनुकरण है जबकि उसमें 1961 की विज्ञान कल्पना पर आधारित फिल्म गोर्गो के राक्षस का भी मिश्रण है जिसे देखने के लिए उन्हें मजबूर किया जा रहा है।
- गैरी ट्रूडियो ने एक डूनेसबरी सिक्वेंस (28 नवम्बर से 5 दिसम्बर 1987) में वेटिंग फॉर गोडोट का इस्तेमाल किया जिसमें माइक डूनेसबरी और जोंकर हैरिस ने गोगो और डीडी (जोंकर ने बॉलर पहना था) की भूमिका निभाई थी। लड़के की भूमिका रूफुस ने निभाई थी। गोडोट का नाम बदलकर मारियो कर दिया गया जिसे जोड़ी ने मान लिया था उसे मॉस्को में रोक दिया गया। अंतिम स्ट्रिप में दोनों मंच छोड़कर चले जाते हैं जिससे इस बात का साफ़ पता चलता है उन्होंने इंतजार करना छोड़ दिया है और प्रत्याशित "मारियो"/गोडोट अंत में काफी देर बाद एक बालक के रूप में दिखाई देता है।
- हाउस एम.डी. के सीजन 1 एपिसोड 8 में डॉ विल्सन यह कहते हुए इस नाटक का सन्दर्भ देते हैं कि अस्पताल के बाहर किसी प्रयोगशाला में चिकित्सा परिणामों को भेजे जाने की तुलना में गोडोट को थोड़ा जल्दी पहुंचना होगा.
- द क्रिटिक के एक एपिसोड में रोजर एबर्ट वेटिंग फॉर गोडोट के एक काल्पनिक रीमेक का ट्रेलर दिखाते हैं जिसमें सिल्वेस्टर और फ्रैंक स्टालन ने अभिनय किया है जिसका शीर्षक "यो
! गोडोट! आई एम वेटिंग हियर!" है।
गोडोट द्वारा प्रेरित रचनाएँ
- आयरिश नाटककार मार्टिन मैक्डोनाफ द्वारा रचित 1997 के नाटक का शीर्षक ए स्कल इन कोनेमारा लकी के एकालाप की एक पंक्ति से प्रेरित हो सकता है ("हाय हाय परित्यक्त अधूरी खोपड़ी कोनेमारा में खोपड़ी...").
- 1966 में मायोड्रैग बुलाटोविक द्वारा एक अनधिकृत उत्तरकथा का लेखन किया गया था: गोडोट जे डोसाओ (गोडोट अराईव्ड). सर्बियाई भाषा से जर्मन (गोडोट इस्ट गेकोमेन) और फ़्रांसिसी भाषा में इसका अनुवाद किया गया था। नाटककार गोडोट को एक बेकर के रूप में प्रस्तुत करता है जिसका अंत चार मुख्य पात्रों द्वारा मौत की निंदा किए जाने के साथ होता है। उसके अविनाशी होने का पता चलने पर लकी उसे अस्तित्वहीन घोषित कर देता है। हालाँकि बेकेट प्रस्तुतियों की अनुमति न देने के लिए विख्यात थे जिसे उनके नाटकों से बहुत मामूली आजादी मिली थी फिर भी उन्होंने इसे बिना किसी घटना के आगे बढ़ने दिया लेकिन यह टिप्पणी रहित नहीं था। रूबी कोहन के अनुसार: "बुलाटोविक नाटक के अपने संस्करण के मुखपृष्ठ पर बेकेट को यह कहते हुए देखा गया है कि: 'मुझे लगता है कि यहाँ जो कुछ हैं उन सबका मुझसे कोई लेनादेना नहीं है।'"[128][129]
- एक तरह की एक अनधिकृत पूर्व कड़ी से इयान मैकडोनाल्ड के 1991 के उपन्यास किंग ऑफ मॉर्निंग, क्वीन ऑफ डे के दूसरे भाग का निर्माण हुआ था (जिसका लेखन आंशिक रूप से जॉयसियन स्टाइल में किया गया था). दो मुख्य पात्रों की मौजूदगी स्पष्ट रूप से असली व्लादिमीर और एस्ट्रागन के लिए हैं।
- 1990 के दशक के अंतिम दौर में डैनियल कर्ज़न द्वारा गोडोट अराईव्स नामक एक अनधिकृत उत्तरकथा की रचना की गई।
- बर्नार्ड पौट्राट द्वारा एक कट्टरपंथी रूपांतरण का लेखन किया गया है जिसका प्रदर्शन 1979-1980 में थिएटर नैशनल डे स्ट्रासबर्ग में किया गया था: इल्स एलायंट ओबस्क्युअर्स सूस ला नुइट सॉलिटेयर (डी'आप्रेस एन अटेंडेंट गोडोट डे सैमुएल बेकेट). इस रचना का प्रदर्शन एक एक अप्रयुक्त विमानशाला में किया गया था। "फैले हुए और इसलिए नाटकीय स्थान के पारंपरिक जमाव के विपरीत काफी शांत दिखने वाले इस स्थान का एनीमेशन केवल चार कलाकारों और पांचवें कलाकार की संक्षिप्त उपस्थिति द्वारा नहीं (जैसा कि बेकेट के नाटक में हुआ था) बल्कि दस कलाकारों द्वारा किया गया था। उनमें से चार कलाकारों के नाम गोगो, डीडी, लकी और पोजो थे। अन्य कलाकारों में शामिल थे: सिट्रोयन का मालिक, बारमैन, दूल्हा, दुल्हन, रिकार्ड के साथ एक आदमी [और] क्लब फूट के साथ एक आदमी. मूल संस्करण के व्यापक उद्धरणों वाली बातचीत को दस कलाकारों के बीच खण्डों के रूप में वितरित किया गया था, न कि आवश्यक रूप से मूल संस्करण के क्रम का अनुकरण किया गया था।[130]
- फ़्रांसिसी नाटककार मातेई विस्नीक (रोमानियन मूल के) ने वेटिंग फॉर गोडोट से प्रेरित होकर ओल्ड क्लाउन वांटेड नामक अपने मशहूर नाटक का लेखन किया।
- मातेई विस्नीक के नाटक द लास्ट गोडोट का अंत वेटिंग फॉर गोडोट की पहली पंक्तियों के साथ होता है जिसके पात्र सैमुएल बेकेट और गोडोट हैं।
- 1996 में बेकेट की कथा वस्तु पर आधारित दो फिल्मों को रिलीज किया गया। वेटिंग फॉर गुफ्मैन में गुफ्मैन नामक एक पात्र कभी नहीं पहुँचता है। और बिग नाईट में लुईस प्राइमा कभी नहीं पहुँचता है।
- Phoenix Wright: Ace Attorney - Trials and Tribulations में एक पात्र का नाम गोडोट है जो एक रहस्यमय पात्र है जिसका असली नाम, पहचान और उसकी पहली जिंदगी खेल के शुरू में अज्ञात है।
- जाने तू या जाने ना नामक एक बॉलीवुड फिल्म में एक हवाई अड्डे के बाहर एक आदमी एक कार्ड के साथ इंतजार कर रहा है जिस पर "गोडोट" लिखा हुआ है। वह एक बूढ़ा आदमी है जिससे इस बात का पता चलता है कि वह शायद काफी लंबे समय से इंतजार कर रहा है।
- के.डी. लैंग के "कंस्टेंट क्रेविंग" नामक गाने के संगीत वीडियो में वेटिंग फॉर गोडोट के 1950 के दशक की प्रस्तुति देखने वाली एक भीड़ को दिखाया जाता है।
- तुर्की नाटककार फरहान सेंसोय के नाटक गुले गुले गोडोट (बाय बाय गोडोट) में एक अनाम देश के लोगों के बारे में बताया जाता है जहाँ पानी की बहुत समस्या है और वहां एक दुष्ट गवर्नर है जिसका नाम गोडोट है। उस देश के लोग गोडोट के वहाँ से चले जाने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि वे एक ऐसा देश चाहते हैं जहाँ वे अपना गवर्नर खुद चुन सके.
- हांगकांग नाटक फ्लाई विथ मी में एक अस्पताल में एक नाश्ते की दुकान को दिखाया जाता है जिसका नाम गोडोट है। दुकान के मालिक के पास सालों से खोया हुआ एक छाता है और वह इसे ले जाने के लिए इसके मालिक के आने का इंतजार करता है।
- व्हीटन कॉलेज (व्हीटन, आईएल) में वेटिंग फॉर गोडोट की प्रस्तुति ने गॉड (ओट): साइकोमोर्फेजिकल वन नामक एक फाइन आर्ट फोटोग्राफी पुस्तक को प्रेरित किया।[131]
- अमेरिकी नाटककार मेरोन लैंग्स्नर की द गोडोट वेरिएशंस (वेटर्स फॉर गोडोट, कॉल वेटिंग फॉर गोडोट, व्हिनिंग फॉर गोडोट) नामक छोटी पैरोडियों के एक चक्र को स्मिथ एण्ड क्रौस के पद्य संग्रह 2010 बेस्ट टेन मिनट प्लेज में शामिल किया गया है। वेटर्स फॉर गोडोट को साहित्यिक पत्रिका लामिया इंक के 2003 के संस्करण में छापा गया था।
इन्हें भी देखें
- ले मोंडस 100 बुक्स ऑफ दी सेंचुरी
- अनदेखे पात्र
सन्दर्भ
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- ↑ Blurb.com
बाहरी कड़ियाँ
- Waiting for Godot (1977) (TV) इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर
- Waiting for Godot (2001) इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर
- टेक्स्ट ऑफ दी प्ले (एक्ट I)
- टेक्स्ट ऑफ दी प्ले (एक्ट II)
- Act I, part 1, कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन प्रोडक्शन (रियल ऑडियो) से[मृत कड़ियाँ]
- Act I, part 2, from कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन प्रोडक्शन (रियल ऑडियो) से[मृत कड़ियाँ]
- गोडोट कुओटेस एंड डायरेक्टर्स नोट्स ए कम्पेंडियम ऑफ क्योटेशंस गियर्ड टूवार्ड दी कॉन्सेप्ट ऑफ प्लेइंग गोडोट विथ ए स्लाईटली मोर लॉरेल एंड हार्डीसक्यू बेंट.
- बेकेट ऑन फिल्म
- बेकेट डायरेक्टस बेकेट दी सैन क्वेंटिन ड्रामा वर्कशॉप
- "वेटिंग फॉर गोडोट" फुल प्ले इन वीडियो (फआर)