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वीरांगना मुन्दर

वीरांगना मुन्दरबाई खातून सुल्तान झाँसी

झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई साहेब की अन्य सखीयों में से एक प्रिय सखी थी मुन्दर. जिनका नाम था मुंदरबाई खातून सुल्तान. वह एक मुस्लिम महिला थी. १८५७ में जब महारानी लक्ष्मीबाई का झाँसी पर शासन आरंभ हुआ तब रानी की महिला सेना दुर्गा दल में झलकारीबाई, सुंदराबाई, काशीबाई, मालतीबाई, जुहीदेवी, ललिताबेन ऐसी वीरांगनाओं ने अपनी अहम भुमिका निभाई. मुन्दर को इसी महिला सेना का सदस्य बनने का अवसर महारानी लक्ष्मीबाई ने प्रदान किया.

१८५८ में झांसी, कालपी, कोंच तथा ग्वालियर के युध्द में मुन्दर ने अपने शौर्य का अद्भुत परिचय दिया. १७ जून १८५८ को युद्ध में जब मुन्दर की छार्ती में गोली लगी तब महारानी लक्ष्मीबाई ने इतनी विषम परिस्थितीयों में होने के बावजूद स्वर्ण रेखा नदी के इस पार आयी और मुन्दर के हतियारों को मार डाला. अंततः महारानी लक्ष्मीबाई भी शहीद हुई थी. कहां जाता है मुन्दर का अंतिम संस्कार महारानी लक्ष्मीबाई के साथ ही १७ जून की रात को बाबा गंगादास की मठ मैं हुआ.

गवर्नर जनरल के एजंट रॉबर्ट हॅमिल्टन ने ३० अक्तूबर १८५८ को भारत सरकार के सचिव को पत्र लिखकर रानी लक्ष्मीबाई के मृत्यू की सुचना तब उसने मुन्दर का भी जिक्र किया था।

सर रॉबर्ट हॅमिल्टन ने लिखा की,

"Rani Lakshmibai was riding a horse. There was another Muslim woman Moondar riding with her, who used to be her servant as well as a companion for many years. Both fell down from the horse with the bullet wounds simultaneously."

31st October 1858

जॉन वेनेबल्स स्टर्ट, जो १८५७ के दौरान झाँसी के पास तैनात थे, उन्होंने दावा किया की,

Muslim woman accompanying Rani was Moondar and that only Moondar was martyred on the spot while Rani Lakshmibai could not be killed by the British bullets.

31st October 1858