विस्फोटक विज्ञान
भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थ मे अनेक युद्द का वर्णन आय है। वेदिक काल, उपनिशद काल रामायण तथा महाभारत काल मे भीषण युद्ध लडे गये। उन लोगों के युद्द मे विस्फोट हुवे इन सब को द्यान मे रख ते सुए आधुनिक इतिहास्कारों ने बारूद का ज्ञान चीन और भारत ईसा पूर्व बना दिया। आधुनिक युद्द में प्रयोग होने वाले विभिन्न पदार्थों मे, विस्फोटक सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदार्थ है। राइफल की साधारण गोली से लेकर हथ-गोला, सुरंग, बम, राकेट और मिसाइल सभी में विस्फोट्क पधर्थों का प्रयोग होता है। आज सिविल इंजीनियरी के क्षेत्र में विस्फोटकों का चमत्कारिक योगदान है। इस बांद के निर्मण से न केवल २० लाख एकड मरुस्थल हरे भरे मैदान में बदल गया, बल्कि इससे उत्प्पन होने वाली २० अरब किलोवट विद्युत उत्पादन से देश के औद्योगिक विकास को भी एक नइ दिशा मिली। विस्फोतकों का उप्योग धातु रचना, धतु वेल्डन, दुर्लब धतुवों के उत्पादन तथा अग्निशिल्प में व्यापक रूप से होता। विस्फोट प्रक्रुती के अनुसार तीन वर्गों मे रख सकते है।
यांत्रिक विस्फोट
इस प्रकार के विस्फोट न केवल सामान्य जीवन में अपितु प्रकर्ती में भी घटित होते है। २७ अगस्त १८८३ को क्राकाटोवा ज्वालामुखी विस्फोट इतिहास का सम्भव्ता: सब से बडा यांत्रिक वाष्पीय विस्फोट था। इसमें ताप अवयव एवं विस्फोटी चकती युक्त एक भारी कोल होता है। इस खोल मे उच्च दाब पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस भरी होती है। ताप अवयव की लिबलिबी दबाने पर कार्बन डइआक्सैइड का दबाव एक दम बहुत बड जाता है जिससे चकतीम्फट जाती है और विस्फोट हो जाता है।
नाभिकीय विस्फोट
यह विस्फोट शक्तिशाली और विनाशकारी होता है। यह न केवल उच्च ताप तथा दाब उत्पन्न कर्त है अपितु वायुमण्ड्ल में रेडियोधर्मी प्रभाव भी छोडता है जिस्का हानिकार प्रभाव बहुत समय तक बना रह्ता है। नाभिकिय विस्फोट दो दो प्रकार से उत्पन होसक्ता है -
नाभिकीय विखन्डन द्वारा
परमाणु नाभिकों का विख्ण्डन केवल भारी तत्वों में ही होता है जो कि अस्थिर या रेदियो सक्र्य होते है। विखण्डन में पदार्थ की कुछ मात्रा उर्जा में परिवर्तित हो जाती है और हलके तत्व प्राप्त होते है। उदाहर्ण: पर्र्माणु बम।
नाभिकीय संलयन द्वारा
नाबिकिया संलयन की क्रीया में भारी तत्व प्रप्त होते है। इस्मे प्दार्थ की मात्रा का लगभग 0.7 प्रतिशत ऊर्जा में बदल्ता है। उदाहरण : हाइद्रोजन बम।
रासायनिक विस्फोट
इस प्रकार के विस्फोट में रासायनिक क्रियायें होति है। रासायनिक विस्फोट की निम्न विशेषताएँ हैं -
तीव्र अभिक्रिया
विस्फोट के समय रासायनिक क्रिया बहुत तेज़ी के सात होती है।
ऊषमा उन्मोचन
रासयनिक विस्फोट में ऊष्मा क उत्पन्न होन एक अनिवार्य लक्षण है। विस्फोट के समय ताप ३००० दिग्री सेल्सियस से ४००० दिग्री सेल्सिय्स तक पहुंच जाता है।
गैंसों का उत्त्पन्न होना
कुछ उप्दौदों (जैसे कापरऐसिटीलाइड का विस्फोटी विघटन) को छोडकर शेष सभी रासयनिक विफोतों मे बडी मात्रा में जैसे उत्पन्न होती है। विस्फोती पाधर्त के मूल आयतन में १०००० से १५०००० गुन तक व्रुद्दि होती है। ये गैसें बहुत ते.ई के साथ फैलती है। इन की प्रसार गति ७००० से ८००० मीटर प्रति सेकिण्ड तक होती है।
प्रेरण विधी
रासायनियक विस्फोटी प्रक्रिया, यांत्रिक क्रियाओं जैसे - आघात, घर्ष्ण, उच्च्ताप या सीधी लौ द्वारा प्रारम्भ की जा सकती है। सम्पूर्ण विस्फोट प्रक्रिया सेकेण्ड के एक अंश में पूरी हो जाती है।
विस्फोट के साथ उच्च प्रगात, ताप तथा तीव्र द्वनि उत्पन्न होते है। पर्माणविक विस्फोटों को छोडकर शेष सभी मानव निर्मित विस्फोटक, रासयनिक विस्फोटकों की ही स्रेणी में आते है। युद्द तथा शाँति में रासायनिक विफोटकों का ही प्रयोग होता है। एक आदर्श प्राथमिक विस्फोटक में उपरोक्त उद्दिपकों के प्रति उच्च्कोटी की संवेदनशीलता होनी चाहिए लेकिन इतनी नही की यह हस्त्न या परिवहन में असुरक्षित हो। अन्य विस्फोटकों की तुलना में निम्न विलक्षणताएँ होती है।
- प्रेरण संवेदनशीलता : यह अन्य विस्फोटकों की अपेक्षा कम उर्जा/संघात (इम्पल्स) से अधिस्फोटित हो जाते है।
- शीघ्र अधिविस्फोटन : प्रेरक संघात लगने के बाद यह अत्यंत शीघ्र्ता से अधिविस्फोटन अवस्ता प्राप्त कर लेते है। निर्वात मेम भी इनका अधिस्फोटन होजाता है जबकि अन्य उच्च्विस्फोटक निर्वात में अधिविस्फोटित नही होते।
विस्फोटक तकनीक में प्राथमिक विस्फोट्कों का बहुत अधिक महत्व है। उच्चगौड विस्फोटक तथा नोदक, समान्य संघात या ऊष्मा के प्रभव से अधिविस्फोटित नहीं होते। अत: इन्हे अधिविस्फोटित करने के लिए प्राथामिक विस्फोटकों का प्रयोग किया जाता है। प्राथमिक विस्फोतटक सामान्य संघात से प्ररित होकर अन्य विस्फोट्कों को अधिविस्फोटित होनि के लिए पर्याप्त ऊजा प्रदान कर्ते है। मरकरीफल्मीनेट, लेड ऐजाइड, लेड स्टिफनेट, लेड डाइनाट्रोरेसार्सिनेट, फोतैशियम डाइनाइट्रोबेफ्युराक्सेन, बैरियम स्टिफनेट, ज़िरकोनियम पोटिशियम परक्लोरेट आदि महत्वपूर्ण है।
मरकरी फल्मीनेट Hg(ONC)2
यह फल्मीनिक अम्ल (HONC) का एक ऊष्माशोषी लवण है। इसे सर्वप्रथम कुन्केल ने १७०० में बनाया था। १८०० में एडवर्ड ने इसे बनाने की एक संतोषजनक विधि विकसित की। आज भी हावर्ड की विधि के आधार पर ही मरकरी फल्मीनेट तैयार किया जाता है। मरकरी फल्मीनेट को व्यावसाइक स्तर पर बनाने के लिए प्रत्येक बैच के लिए ५००-६०० ग्राम पारा लेते है तथा एक साथ कई बैच लगाते है।
बनाने की विधि : ४ ग्राम पारा एक १०० मिली लीटर आयतन के फ्लास्क में रखे हुए २६.५ मिलीलीटर नाईट्रिक अम्ल में बिना हिलाये घोलते है। इस अमलिय द्रव को एक ५०० मिलीलीटर फ्लास्क में रखे हुए ४० मिलीलीटर ऐल्कोहाँल (९०%) में उंडेल देते है। एक तीव्र प्रतिक्रिया होती है तथा मिश्रण का ताप ८० डिग्री सेल्सियस तक बढ जाता है। इस में से सफिद धूम निकल्ते है तथा मरकरी फ्ल्मीनेट के क्रिस्टल अवक्षएपित होना प्रारंभ हो जाते है। इस के बाद लाल धूम निकल्ते है और मरकरी फल्मीनेत तेज़ी के साथ अवक्षेपित होने लगता है। अंत में पुन: सफेद धूम निकलते है तथा अभिक्रिया की गति मंद हो जाति है। २० मिनट में अभिक्रिया पूरी हो जाती है। फ्लास्क को ठंडा करकें इस्में पानी मिलाते है तथा निथार्ने की विधि से अवक्षेप को कई बार धोकराम्ल रहित कर देते है। मरकरी फ्ल्मीनेट के छोटे पिराहिड आकार के भूरे धूसर रंग के क्रिस्तल प्राप्त होते है। क्रिस्टलों का रंग कोलायडी पारे के कारण होता है। शुद्ध सफेद क्रिसटल प्राप्त करने के लिए उतपाद को सान्द्र अमोनिया घोल में घोलकर ३०% ऐसिटिक अम्ल से पुन: अवक्षेपित कर्ते है। यदी अभिक्रिया मिस्रण में थोडी मात्रा में ताँबा और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल मिला दिया जाय तो भी शुद्ध सफेद अवक्षेप प्रप्त होता है। क्रिस्टलों को जल में ही संग्रह करते है तथा प्रयोग करने के पहले ४० दिग्री सेल्सियस पर इन्हें सुखा लेते है।
गुण
- भौतिक अवसथा : मरकरि फल्मीनेट सामान्यता भूरे-धूसर ठोस क्रिस्टलिय रूप में प्राप्त होता है। इसके सफेद क्रिस्टल भी प्राप्त किए जा सकते है।
- अणुभार : २८४.६
- घनत्व : ४.४२ ग्राम/सेंटीमीटर
- स्थूल घनत्व : १.७५ ग्राम
- उद्धनांक : १६५ दिग्री सेल्सियस
- विस्फोटी ऊष्मा : ३५५ कि. कैलोरी
- आक्सिजन संतुलन : -११.२ प्रतिशत
- विस्फोटी-विघटन : यह उप्युक्त परिरोदिक अवस्था में संघट्ट, घर्षण अथवा ऊष्मा के प्रभाव से अधिविस्फोटित होता है। विघटन को निम्न समीकरण से व्यक्त कर सकते है-
- Hg(ONC)2 --> Hg + 2CO + N2 + 118.5 कि.कैलोरी
लेड स्टिफनेट
लेड स्टिफोनेट (या ट्राइनाइट्रोरेसासिर्नेट), स्टिफ्निक अम्ल का सामान्य लवण है। इसमें जल का एक क्रिसस्टलीय अणु (मालीक्यूल ऑफ क्रिस्टलाइज़ेशन) होत है।
बनाने की विधि : लेडस्टिफनेट बनाने के लिए मैग्नीशियम स्टिफनेट घोल को लेड नाइट्रेट घोल में निशिचय ताप, pH तथा सान्द्रता पर विलोडन के साथ मिलाते है। अभिक्रिया पात्र में लेड स्टिफोनेट के क्रिस्टल अव्क्षेपित हो जाते है। हैग्नीशीयम स्टिफ्नेट को ७० दिग्री सेल्सियस पर अच्छीतरह विलोडित लेड ऐसिटेट में मिलाने से बेसिक लेड स्टिफनेट प्राप्त होत है। मिश्रण को १०-१५ मिनट विलोडित कर इसमें तनु नाइत्रिक अम्ल मिलाने से लेडस्टिफनेट अवक्षीपित होता है। इसे रेशम की छन्नी से छानकर शुष्कन कक्ष में ले जाते है जहँ इस्में कार्बन-डैआक्साइड रहित शुष्क वायु गुजार कर इसे सुखा लेते है। अवांछित लेड स्टिफनेट नष्ट करने के लिए इसे २०% नाइतट्रिक अम्ल में मिलाते है। छानकर निस्पंद (फिल्टेट) में सोडियम सल्फेट मिलाते है जिससे लेड अवक्षेपित हो जाता है।
गुण
- भौतिक अवस्था : लेड स्टिफनेट के क्रिस्टल नारण्गी पीले से गहरे भूरे रंग तक के होते है। इनका आकार छोटा, तुल्यचतुर्भुजी (राम्बिक) होता है।
- अणुभार : ४६८.३
- घनत्व : ३.० ग्राम
- उद्दहनांक : २७५-२८० दिग्री सेल्सियस
- विसफोटि ऊष्मा : ३७० कि. ग्राम
- संभवनपूर्ण ऊष्मा : -४३६.१ कि. ग्राम
- संभवन ऊजा : ४२६.१ कि. ग्रानम
- आक्सीजन संतुलन : -२२.२ प्रतिशत
- अधिस्फोटी वेग :२.९ ग्राम/सेंटीमीटर घन्त्व पर इस्का अधिस्फोटी वेग ५२०० मीटर/सेकेण्ड होता है।
उपयोग : इसे अधिस्फोटक तथा अन्य प्रेरकों में पहली (प्राइमरी) पर्त के अवयव के रूप में प्रयोग करते है। लेड स्टिफोट की एक पर्त लेड ऐज़ाइड के ऊपर रखने से यह शीघ्र ही प्रेरिट होकर लौ द्वारा लेड ऐज़ाइड को विफोतटित कर देता है। ए.एस.ए. मिश्रण (लेड स्टिफनेट+लेड ऐज़ाइड+ऐलुमिनियम चूर्ण), लौ तथा स्फुलिंग दोनों के द्वारा प्रेरित किया जा सकता है।
लेड ऐज़ोटेट्रोज़ोल
टेट्राज़ोल तथा इसके कई व्युत्पन्न विस्फोटि गुणों वाले पदार्थ होते हैं। ऐज़ोटेट्राज़ोल जो इसका एक व्युत्पन्न है, एक सामान्य तथा एक मोनोबेशिक लेड लवण देता है। यह दोनों लवण दो रूपों में प्राप्त होते है। मोनोबेसिक लेड लवण के दोनों ही रूपों में क्रिस्टलीकरण जल नही होता तथा इनकी ऊष्मीय स्थिरता अधिक होति है। मोनोबेसिक लेड लवण के दोनों रूप, अमोनिया युक्त लेड एसिटेट घोल को डाइसोडियम ऐज़ाटेट्राज़ोल के गर्म घोल में मिलाने से प्राप्त होते हैं। 'डी' टाइप बेसिक लेड लवण ही अधीक उपयोगी है। यह ९० दिग्री सेल्सियस पर अमोनिया युक्त लेड एसिटेट को डाइसोडियम लवण में धीरे-धिरे मिलाने से अवक्षेपित होता है। इसके क्रिस्टल पीले प्रिज्म आकार के होते है। डी मोनो बेसिक लेड लवण अनार्द्र्ताग्राही होता है तथा ६० दिग्री सेल्सियस पर ६ महीने तक भण्डार करने से इस मे परिवर्तन नही होता।
मरकरी5-नाइतट्रोटेज़ोल
यह एक संवेदनशील और शक्तिशाली विस्फोटक है। इसे ऐज़ोटेट्राज़ोल से निम्न क्रिया विधि के अनुसार बनाते है।
- Cu(NT)2HNT 4H2O+CuSO4+6HN2CH2CH2 NH2 ---> 3Cu(NH2CH2CH2NH2)2 (NT)2
- CU (NH2 CH2 CH2 NH2)2+HNO3---> CuNT2HNT
- CU NT2 HNT+Hg (NO3)2+cristal modifier---->Hg (NO)2
इस्में AT, एजोटेट्राज़ोल तथा NT, नाइट्रोटेट्राज़ोल के लिए प्रयोग किया गया है।
सोडियम नाइट्राइट तथा सल्फ्यूरिक अम्ल को सैंद्धांतिक मात्रा से क्रमस: १० और १५ प्रतिशत अधीक लेते है। तथा कापर सल्फेट का ५०% घोल प्रयोग करते है। इस विधि से ६०-६५% मरकरी ५-नाइट्रोटेट्राज़ोल की प्राप्ति होती है।
डाइज़ोनियम लावण : बर्तलो और वीले ने १८८३ के लगभग डाइज़ोनियम लवण, बेञीन डाइज़ोनियम नाइट्रेट बनाया तथा इसके गिणों का अध्ययन किया। यह लवण शुष्क अवस्था में घर्षण और आघात के प्रती अधिक संवेदनशील होते हैं।
बाहरी कड़ियाँ
* https://web.archive.org/web/20140302173338/http://www.dtic.mil/dtic/tr/fulltext/u2/124607.pdf