विपिनचंद्र पाल
बिपिन चन्द्र पाल | |
---|---|
जन्म | 07 नवम्बर 1858 हबीबगंज जिला, (वर्तमान बांग्लादेश), सिलहट क्षेत्र, ब्रिटिश भारत (अब बांग्लादेश) |
मौत | मई 20, 1932 | (उम्र 73)
शिक्षा की जगह | कलकत्ता विश्वविद्यालय |
पेशा | राजनीतिज्ञ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी |
राजनैतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
हस्ताक्षर |
बिपिन चंद्र पाल (बांग्ला:বিপিন চন্দ্র পাল) (७ नवंबर, १८५८ - २० मई १९३२) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी तथा भारत में क्रान्तिकारी विचारों के जनक थे। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में से एक विपिनचंद्र पाल राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ शिक्षक, पत्रकार, लेखक व वक्ता भी थे और उन्हें भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक भी माना जाता है। लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल (लाल-बाल-पाल) की इस तिकड़ी ने १९०५ में बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आंदोलन किया जिसे बड़े स्तर पर जनता का समर्थन मिला।[1][2] 'गरम' विचारों के लिए प्रसिद्ध इन नेताओं ने अपनी बात तत्कालीन विदेशी शासक तक पहुँचाने के लिए कई ऐसे तरीके अपनाए जो एकदम नए थे। इन तरीकों में ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज, औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि शामिल हैं।
उनके अनुसार विदेशी उत्पादों के कारण देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो रही थी और यहाँ के लोगों का काम भी छिन रहा था। उन्होंने अपने आंदोलन में इस विचार को भी सामने रखा। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गरम धड़े के अभ्युदय को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इससे आंदोलन को एक नई दिशा मिली और इससे लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जागरुकता पैदा करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उनका विश्वास था कि केवल प्रेयर पीटिशन से स्वराज नहीं मिलने वाला है।
जीवनी
७ नवंबर १८५८ को अविभाजित भारत के हाबीगंज जिले में (अब बांग्लादेश में) एक संपन्न बंगाली कायस्थ परिवार में पैदा विपिनचंद्र पाल सार्वजनिक जीवन के अलावा अपने निजी जीवन में भी अपने विचारों पर अमल करने वाले और स्थापित दकियानूसी मान्यताओं के खिलाफ थे। उन्होंने एक विधवा से विवाह किया था जो उस समय दुर्लभ बात थी। इसके लिए उन्हें अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ा। लेकिन धुन के पक्के पाल ने दबावों के बावजूद कोई समझौता नहीं किया। किसी के विचारों से असहमत होने पर वह उसे व्यक्त करने में पीछे नहीं रहते। यहाँ तक कि सहमत नहीं होने पर उन्होंने महात्मा गाँधी के कुछ विचारों का भी विरोध किया था।[3]
केशवचंद्र सेन, शिवनाथ शास्त्री जैसे नेताओं से प्रभावित पाल को अरविन्द के खिलाफ गवाही देने से इंकार करने पर छह महीने की सजा हुई थी। इसके बाद भी उन्होंने गवाही देने से इंकार कर दिया था।
वह ऐसे पहले व्यक्ति थे जिसने गांधी या उनके 'गांधी पंथ' की आलोचना करने का साहस किया था। इसी कारण पाल ने १९२० में गांधी के असहयोग आंदोलन का भी विरोध किया। गांधी जी के प्रति उनकी आलोचना की शुरुआत गांधी जी के भारत आगमन से ही हो गई थी जो १९२१ के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में भी दिखी जब उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में गांधी जी की "तार्किक" की बजाय "जादुई विचारों” की आलोचना करने लगे।
उन्होंने स्वैच्छिक रूप से १९२० में राजनीति से संन्यास ले लिया, हालांकि राष्ट्रीय समस्याओं पर अपने विचार जीवनभर अभिव्यक्त करते रहे। स्वतन्त्र भारत के स्वप्न को अपने मन में लिए वह २० मई १९३२ को स्वर्ग सिधार गए।
रचनाएं
पाल की कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं [1]:
- इंडियन नेस्नलिज्म
- नैस्नल्टी एंड एम्पायर
- स्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुएशन
- द बेसिस ऑफ़ रिफार्म
- द सोल ऑफ़ इंडिया
- द न्यू स्पिरिट
- स्टडीज इन हिन्दुइस्म
- क्वीन विक्टोरिया – बायोग्राफी
पत्रिकाओं का सम्पादन
विपिनचन्द्रपाल ने लेखक और पत्रकार के रूप में बहुत समय तक कार्य किया। १८८६ में उन्होने सिलहट से निकलने वाले 'परिदर्शक' नामक साप्ताहिक में कार्य आरम्भ किया। उनकी कुछ प्रमुख पत्रिकाएं इस प्रकार हैं[1]:
- परिदर्शक (1880)
- बंगाल पब्लिक ओपिनियन ( 1882)
- लाहौर ट्रिब्यून (1887)
- द न्यू इंडिया (1892)
- द इंडिपेंडेंट, इंडिया (1901)
- बन्देमातरम (1906, 1907)
- स्वराज (1908 -1911)
- द हिन्दू रिव्यु (1913)
- द डैमोक्रैट (1919, 1920)
- बंगाली (1924, 1925)
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ "विपिन चंद्र पाल". इट्स हिन्दी. मूल से 2 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि जून २०१७.
|access-date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ प्रभासाक्षी, सम्पादक (२० मई २०१६). "स्वदेशी आंदोलन को नई दिशा दी बिपिन चंद्र पाल ने". प्रभा साक्षी.[मृत कड़ियाँ]
- ↑ हरिदास, बिनोद. "विपिनचन्द्र पाल पर निबन्ध". एसेज़ इन हिन्दी.कॉम.