विद्युत उपकरण
विद्युत का उपयोग बहुत समय से होता आ रहा है और निरंतर अन्वेषण कार्य के फलस्वरूप आज के युग में अनेक प्रकार के विद्युत् उपकरणों (Electrical Instruments) का प्रयोग होने लगा है।
परिचय
किसी चालक में विद्युत् धारा बहने के लिए यह आवश्यक है कि चालक के दोनों सिरों के बीच कुछ विभवांतर हो जिसे वोल्ट (volt) में मापा जाता है। विद्युत् धारा के मापने की इकाई एम्पियर (Ampere) है। जब यह धारा किसी चालक में प्रवाहित होती है, तो दो प्रकार के प्रभाव दिखाई पड़ते हैं :
- (क) चालक के चारों और चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है और उसकी बलरेखाएँ चालक को वृत्ताकार रूप में घेरे रहती हैं। इस चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता धारा मान के समानुपाती होती है,
- (ख) धाराप्रवाह के कारण चालक के अणुओं में उद्वेग उत्पन्न होता है और फलस्वरूप चालक गरम हो जाता है। ऊष्मा की मात्रा धारामान के वर्ग की समानुपाती होती है। यदि चालक कोई द्रव यौगिक या विद्युत् अपघट्य पदार्थ (electrolyte) होता है, तो धारा उसके अणुओं को उनके अवयवों में विघटित कर देती है। इस कारण कभी द्रव से गैस उत्पन्न होती है और कभी धातु अलग होकर एकत्र हो जाती है। गैस या धातु की मात्रा धारामान और धाराप्रवाह के समय के समानुपाती होती है।
धारा के ये सभी प्रभाव धारामान मापने की विधियों में कई रूप से प्रयोग किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, यदि किसी चालक के पास चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हो या दो प्रकार के चालकों के संगम (तापयुग्म) को गरम किया जाए या कुछ रासायनिक क्रिया हो, तब विद्युद्वाहक बल उत्पन्न होता है। अनेक यंत्र इन सिद्धांतों पर निर्भर है। यदि किन्हीं दो चालक पिंडों के बीच विभवांतर हो तो उनके बीच आकर्षण होता है। विभवांतर की माप इस आकर्षण की नाप के द्वारा भी हो सकती है। यदि विद्युन्मय कण या इलेक्ट्रॉन निर्वात में प्रक्षेपित हो तो विद्युतीय या चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव से उनने पथ को मोड़ा जा सकता है। विद्युत् उपकरणों के एक विशेष वर्ग में प्रतिरोध मापने की युक्तियाँ हैं। किसी चालक के सिरों के विभवांतर को उसके प्रतिरोध से, जो ओम (ohm) में मापी जाती है भाग दिया जाए तो चालक से प्रवाहित धारा का मान ऐंपियर (ampere) में ज्ञात हो जाता है। इसे ओम (ohm) का नियम कहते हैं। किसी भी परिपथ (circuit) में किसी समय जितनी विद्युत शक्ति व्यय हो रही है उसका मान वाट (watt) में मापा जाता है और वह इस समय के विभवांतर (वोल्ट) और धारा (ऐंपियर) के गुणनफल के बराबर होती है। विद्युत् शक्ति वाटमापी (wattmeter) द्वारा मापी जाती है। साधारणतया ऊर्जा किलोवाट घंटा (kilowatt hour) या बोर्ड ऑव ट्रेड (Board of Trade) इकाई में मापी जाती है। शक्ति को किलोवाटों में (१ किलोवाट=१००० वाट) और समय को घंटों में मापने पर शक्ति मान उनके गुणफल के बराबर होता है। यह ऊर्जामापी (Energymeter) से मापा जाता है। यदि विद्युत् संभरण का विभवांतर नियत हो, तो धारा और समय के गुणनफल को मापना ही पर्याप्त होगा और जिसे विद्युत् मात्रामापी दर्शित कर सकेगा। यदि किसी परिपथ में धारा बदलती रहती हो और यह विशेष रूप से उच्च आवृत्ति (high frequency) की हो, तो प्रेरकत्व (inductance) तथा विद्युदधारिता (capacity) दो अन्य गुणों हैं जिन्हें जानना आवश्यक हो जाता है। प्रेरकत्व का मान चालक को घेरे हुए चुंबकीय अभिवाह (magnetic flux) के बराबर होता है। विद्युच्चुंबकीय (electromagnetic) नियम के अनुसार जब कभी यह धारा घटती, या बढ़ती है, तब चालक मे एक विद्युत्वाहक बल (electromotive force) उत्पन्न होता है, जो इस परिवर्तन को रोकना चाहता है। प्रेरकत्व की इकाई हेनरी (henry) है जो भौतिकी के विशेषज्ञ जोज़ेफ हेनरी के नाम पर है। यदि किसी चालक में धारा का मान एक ऐंपियर प्रति सेकंड बढ़े और उसमें इससे एक वोल्ट का विभवांतर उत्नन्न हो जाए तो इस चालक का प्ररेण एक हेनरी होता है। विद्युत्धारिता (capacity) का प्रभाव ठीक इसके विपरीत है, क्योंकि इसमें प्रत्यावर्ती धारा (alternating current) सुविधा से प्रवाहित नहीं हो पाती है और दिष्ट धारा (direct current) प्रवाहित नहीं हो सकती। धारिता की समानता एक लचीली कमानी से की जा सकती है, जो स्थिर बल के कारण थोड़ा बढ़कर रुक जाती है, परंतु परिवर्तनशील बल के प्रभाव में दोलित होती रहती है।
क्रम संख्या | विशिष्ट गुण, जिसको नापना है | व्यावहारिक इकाई | मापक यंत्र |
---|---|---|---|
१ | धारा | ऐंपियर | धारामापी, अमीटर |
२ | विभवांतर, विद्युत वाहक बल | वोल्ट | विभवमापी, विद्युत्मापी, वोल्टमापी |
३ | प्रतिरोध | ओम | ह्वीटस्टोन सेतु, ओममापी |
४ | शक्ति | वाट | शक्तिमापी, वाटमापी |
५ | मात्रा | कूलॉम | वॉल्टामीटर विद्युत्मात्रामापी |
६ | ऊर्जा | किलोवाटघंटा | ऊर्जामापी |
७ | प्रेरकत्व | हेनरी | प्राक्षेपिक धारामापी, मैक्सवेल सेतु, हेसेतु तथा अन्य प्रेरकत्वसेतु |
८ | धारिता | फैरड | प्राक्षेपिक धारामापी, शेंटिग सेतु, क्यिन सेतु तथा अन्य धारिता सेतु |
विद्युद्धारा के प्रधानत: तीन प्रभाव होते हैं- (१) चुंबकीय प्रभाव, (२) ऊष्मीय प्रभाव, तथा (३) रासायनिक प्रभाव। इन तीनों में से किसी भी प्रभाव को विद्युद्धारा की उपस्थिति और उसका मान ज्ञात करने के लिए काम में ला सकते हैं, परंतु यथार्थता और सरलता के कारण प्राय: सर्वत्र चुंबकीय प्रभाव ही काम में लाया जाता है। धारामापी दो प्रकार के होते हैं :
- (१) स्थिरकुंडल चलचुंबक प्रकार के - इनमें जिस कुंडली में धारा प्रवाहित होती है, वह स्थिर रहती है और उसके चुंबकीय प्रभाव से एक स्वतंत्र चुंबक में विक्षेप होता है,
- (२) स्थिर चुंबक चल कुंडल प्रकार के - इनमें चुंबक स्थिर रहता है, परंतु उसके प्रभाव से विद्युद्धारा ले जानेवाली कुंडली घूम जाती है।
स्पर्शज्या धारामापी (Tangent Galvanometer)
देखें : धारामापी
स्पर्शज्या धारामापी सबसे सरल और उपयोगी चलचुंबक धारामापी (moving magnetgalvanometer) है। इसमें किसी अचुंबकीय पदार्थ के ऊर्ध्वाधर ढाँचे पर विद्युतरोधी ताँबे के तार की एक वृत्ताकार कुंडली लगी रहती है। कुंडली में प्राय: ५५२ चक्कर होते हैं, जिसमें २, ५० और ५०० चक्करों के बाद संयोजक पेंच लगे रहते हैं। इनकी सहायता से आवश्यतानुसार कम या अधिक चक्करों से काम ले सकते हैं। वृत्ताकार कुंडली को ऊर्ध्वाधर अक्ष के चारों ओर घुमाया जा सकता है। कुंडली के केंद्र पर एक चुंबकीय सुई ऊर्ध्वाधर कीलक (pivot) पर सधी रहती है और सुई के लंबरूप एक ऐल्यूमिनियम का लंबा संकेतक लगा रहता है, जो सूई के साथ साथ क्षैतिज वृत्ताकार स्केल पर घूमता है और चुंबकीय सूई का विक्षेप बतलाता है। यह स्केल चार चतुर्थांशों में विभाजित रहता है और प्रत्येक चतुर्थांश में ० डिग्री से ९० डिग्री तक के चिह्न होते हैं। जब चुंबकीय सूई चुंबकीय याम्योत्तर (meridian) में होती है, तो संकेतक शून्य अंश पर रहता है।
चलकुंडल धारामापी (Moving Coil Galvanometer)
चुंबकीय क्षेत्र में रखी हुई किसी कुंडली में जब विद्युत्धारा प्रवाहित होती है, तो कुंडली पर एक बलयुग्म कार्य करने लगता है, जिसस वह घूमने लगती है। इस सिद्धांत को काम में लाकर जो धारामापी बनाए गए, हैं उन्हें चलकुंडल धारामापी कहते हैं।
इसमें एक आयताकार कुंडली होती है, जिसमें पतले और विद्युत्रोधित (insulated) ताँबे के तार के बहुत चक्कर होते हैं। यह कुंडली फास्फार ब्रांज की बहुत पतली पत्ती द्वारा एक पेंच से लटकी रहती है, कुंडली का एक सिरा इसी पत्ती से जुड़ा रहता है और पत्ती का संबंध धारामापी के ए संयोजक पेंच से होता है। इस पत्ती में एक वृत्ताकार समतल या नतोदर दर्पण भी लगा रहता है, जो पत्ती के साथ साथ घूमता है। कुंडली का दूसरा सिरा धातु की एक सर्पिल कमानी से जुड़ा रहता है, जिसका संबंध दूसरे संयोजक पेंच से होता है। यह कुंडली एक शक्तिशाली स्थायी नाल चुंबक के ध्रुवों के बीच में लटकी रहती है। चुंबक के ध्रुव नतोदर बेलनाकार आकृति में कटे रहते हैं। एक नर्म लोहे का छोटा सा बेलन दोनों ध्रुवखंडों के बीच में कुंडली के भीतर एक पेच द्वारा धारामापी की पीठ में कसा रहता है। ये सब वस्तुएँ एक अचुंबकीय बक्स में बंद रखी जाती हैं। बक्स के सामने के भाग में काँच लगा रहता है, जिससे दर्पण का विक्षेप लैंप तथा पैमाना विधि से नापा जा सके। जब कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तब कुंडली के दो भुजाओं पर बलयुग्म कार्य करता है और कुंडली को उसकी स्थिरावस्था से घुमा देता है, जिससे फॉस्फॉर ब्रांज की पत्ती और नीचे की सर्पिल कमानी में ऐंठन आ जाती है और ए ऐंठन बल युग्म कुंडली पर विपरीत दिशा में कार्य करने लगता है। जिससे कुंडली शीघ्र ही संतुलन में आ जाती है।
नर्म लोह धारामापी (Soft Iron Galvanometer)
देखें - अमीटर#चल लोह अमीटर
तप्त तार धारामापी (Hot Wire Galvanometer)
इस प्रकार के धारामापी विद्युत्धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर निर्भर होते हैं। जब धारा किसी चालक से प्रवाहित होती है, तब वह चालक तप्त हो जाता है। उत्पन्न ऊष्मा का मान (धारा)२ x (प्रतिरोध) के समानुपाती होता है। यदि धारा ऐंपियर में और प्रतिरोध ओम में हो, तो
ऊष्मा का मान धारामान के वर्ग के समानुपाती होता है, अर्थात् धारा की दिशा पर निर्भर नहीं हैं। इसलिए ऐसे धारामापी दिष्ट अथवा प्रत्यावर्ती धारा दोनों ही के नापने के प्रयोग में लाए जा सकते हैं।
विद्यत् डाइनेमोमीटर
देखें, डाइनेमोमीटर
आइनथोवन का डोर-धारामापी (Einthoven String Galvanometer)
यह यंत्र विशेष रूप से उच्च-आवृत्तिवाली बहुत क्षीण और क्षणिक प्रत्यावर्ती धारा को नापने के प्रयोग में लाया जाता है। इसमें साधारणत: चाँदी चढ़ा हुआ स्फटिक का तार, एक शक्तिशाली विद्युच्चुंबक के बीच तना रहता है। दोनों ध्रुव खंडों में गोल छिद्र बने रहते हैं, जिनसे एक समांतर प्रकाश किरणवलि एक ओर से दूसरी ओर निकलती है। एक ध्रुव खंड की ओर प्रकाश स्रोत और लैंस होता है और दूसरे ध्रुव खंड की ओर या तो दूरदर्शी होता है या फिल्म कैमरा। प्रकाश किरणावलि द्वारा दूरदर्शी की नेत्रिका (eyepiece) या कैमरा के फिल्म पर तने हुए तार की छाया पड़ती है। जब इस तार से कोई भी क्षीण और क्षणिक धारा प्रवाहित होती है, तब फ्लेमिंग (Fleming) के नियम के अनुसार तार पर एक बल कार्य करता है, जिसकी दिशा धारा तथा चुंबकीय क्षेत्र दोनों ही के लंबवत् होती है। इस बल के कारण तार अपनी जगह से हटती है और छाया भी हटती है। जब क्षणिक या प्रत्यावर्ती धारा का अभिलेख लेना होता है, तो कैमरा का फिल्म एक मीटर द्वारा चला दिया जाता है और धारा तार में प्रवाहित की जाती है। फोटो के फिल्म (Photo film) पर धारा का अभिलेख बन जाता है। जब क्षीण दिष्ट धारा नापनी होती है, तब कैमरा की जगह पर सूक्ष्ममापी नेत्रिका लगा दते हैं। दिष्ट धारा जब तार से प्रवाहित होती है, तब तार की छाया एक ओर हट जाती है। सूक्ष्ममापी नेत्रिका से छाया के विस्थापन को नाप लेते हैं जिससे धारा का मान निकल आता है। यह अत्यंत सुग्राही और उपयोगी धारामापी है।
डडेल दोलनलेखी (Duddell Oscillograph)
यह अधिकतर प्रत्यावर्ती विभव, या धारा का तरंग रूप, ज्ञान करने के प्रयोग में लाया जाता है। वस्तुत: यह एक मृतस्पंद (dead beat) धारामापी है, जिसकी प्राकृतिक दोलन आवृत्ति बहुत अधिक होती है और जिसके चलनशील भागों (moving system) का जड़त्व (intertia) बहुत कम होता है।
अमीटर (Ammeter)
दिष्ट धारा नापनेवाला अमीटर अधिकतर कोई चलकुंडल धारामापी होता है, जिसके समांतर एक पार्श्ववाही तार जुड़ा रहता है। पार्श्ववाही एक अल्प प्रतिरोधक होता है, इस कारण इस यंत्र का प्रतिरोध बहुत कम होता है और जब यह किसी परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है, तब धारामान को किंचित् भी नहीं बदलता। परिपथ की अधिकांश धारा पार्श्ववाही में होकर बहती है और कुछ थोड़ा भाग धारामापी की कुंडली में से। कुंडली ऐल्युमिनियम के ढाँचे पर बँधी रहती है और ढाँचा कीलक पर इस प्रकार आरोपित रहता है कि कुंडली सुगमता से शक्तिशाली चुंबक के ध्रुवखंडों के बीच घुम सके।
वोल्टमापी (Volmeter)
दिष्ट विभव नापनेवाला वोल्टमापी साधारणत: एक चलकुंडल धारामापी होता है, जिससे एक उच्च प्रतिरोधक श्रेणीबद्ध रहता है। वोल्टमापी किसी परिपथ के दो बिंदुओं के समांतर संबद्ध किया जाता है, इस कारण इसका प्रतिरोध उच्चतम होना आवश्यक है, अन्यथा इसमें अधिक धारा प्रवाहित होगी और बिंदुओं के बीच का विभव बदल जाएगा।
कैथोड किरण-दोलनलेखी (Chathode Ray Oscillograph)
जब लगभग ३,००० दोलन प्रति सेकंड से अधिक आवृत्तिवाली प्रत्यावर्ती धारा या विभव को नापने की आवश्यकता होती है, तो अन्य धारामापी और उनसे बने हुए दोलनलेखी का प्रयोग नहीं हो सकता। इस दशा में हमको इलेक्ट्रॉनिक (electronic) यंत्रों का प्रयोग करना आवश्यक हो जाता है। इस वर्ग के यंत्रों में सबसे अधिक उपयोगी और सरल कैथोड किरण दोलनलेखी (cathode ray oscillograph) है। यह समय के संगत विद्युत संकेत का परिमाण एक ग्राफ के रूप में पर्दे पर दिखाता है। आजकल कैथोड किरण दोलनकारी के स्थान पर अंकीय दोलनकारी (डिजिटल ऑसिलोस्कोप) प्रयुक्त होने लगे हैं जिनके पर्दे, आधुनिक एलसीडी, एलईडी, टच स्क्रीन आदि तकनीकी पर आधारित होते हैं।
वोल्टामीटर (Voltameter)
यदि विद्युत्धारा किसी विद्युद्विलेष्य द्रव से प्रवाहित हो, तो उस द्रव में आयनीकरण होता है। इसके फलस्वरूप धन आयन कैथोड पर और ऋण आयन ऐनोड पर अवसादित हो जाते हैं (बैठ जाते हैं)। फैराडे (Faraday) के नियमों के अनुसार आयनीकरण की मात्रा धारामान की समानुपाती होती है।
यहाँ धारा का मान आयनों की मात्रा और धाराप्रवाह के समय पर निर्भर है, जो मौलिक राशियाँ हैं। इसी के आधार पर अंतरराष्ट्रीय समिति ने अंतरराष्ट्रीय एकक की व्याख्या इस प्रकार की है :
- यदि कोई स्थिर धारा एक प्रामाणिक रजत विश्लेषण धारामापी से एक सेकंड तक प्रवाहित हो और कैथोड पर ०.००१११८ ग्राम चाँदी अवसादित करे तो उस धारा का मान एक अंतरराष्ट्रीय ऐंपियर होगा।
विभवमापी (Potentiometer)
दिष्ट धारा विभवमापी (Direct current Potentiometer)
यह यंत्र विभवांतर नापने के प्रयोग में तो लाया ही जाता है किंतु साथ ही साथ इससे धारामान एवं प्रतिरोध भी ज्ञात किया जा सकता है।
प्रत्यावर्ती धारा विभव मापी (Alternting Current Potentiometer)
दिष्ट धारा विभवमापी की भांति ही प्रत्यावर्त्ती धारा विभवमापी भी विभवांतर नापता है। दोनों प्रकार के यंत्रों में, अज्ञात विभावंतर को विभवमापी के मुख्य परिपथ के आंशिक विभवांतर से पूर्णतया संतुलित कर लिया जाता है, किंतु प्रत्यावर्ती धारा का विभवमापी में संतुलन से लाया हुआ विभव केवल परिमाण में ही बराबर नहीं होना चाहिए वरन् प्रावस्था (phase) में विपरीत दिशा में भी होना चाहिए और इसके लिए दो स्वतंत्र समंजन (adjustments) आवश्यक हैं। प्रत्यावर्ती धारा विभवमापी दो वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं जिन्हें ध्रुवीय (Polar) और निर्देंशांकी (Coordinate) कहते हैं।
पोस्ट आफिस बक्स (Post Office Box)
पोस्ट आफिस बक्स, ज्ञात प्रतिरोधों से युक्त एक बक्सा है। व्हीटस्टोन सेतु (Wheatstone bridge) के सिद्धान्त का उपयोग करते हुए किसी अज्ञात प्रतिरोध का मान निकाल्ने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था। पहले यह डाकखाने में तारों का प्रतिरोध ज्ञात करने में प्रयुक्त होता था, इसी कारण उसका नाम 'पोस्ट आफिस बक्स' पड़ गया।
ओममापी (Ohmmeter)
शीघ्र प्रतिरोध मापन की आवश्यकता पड़ने पर साधारण ओममापी का प्रयोग होता है। इसका सिद्धांत ओम नियम पर आधारित है :
- R = V / I
जहाँ R परिपथ का प्रतिरोध ओमों में, I इसमें प्रवाहित होने वाली धारा ऐंपियर में और V विभवांतर वोल्ट में है।
वाटमापी (Wattmeter)
किसी परिपथ में किसी समय जितनी विद्युत् शक्ति व्यय हो रही हो उसे मापनेवाले उपकरण को वाटमापी कहते हैं। विद्युत शक्ति का मान परिपथ के विभवांतर तथा धारामान के गुणनफल के बराबर होता है (१ वाट = १ वोल्ट x १ ऐंपियर)। इन उपकरणों का सिद्धांत विद्युत्-चुंबकीय, स्थिर वैद्युतीय या उष्मीयतापीय होता है। परंतु अधिकतर वाटमापी विद्युत् चुंबकीय सिद्धांत पर ही बनते हैं।
विद्युत संभरण ऊर्जामापी (Electric Supply Energy meter)
किसी परिपथ में एक निश्चित समय में कुल कितनी विद्युत ऊर्जा व्यय हुई है, इसे नापने के लिए ऊर्जामापी का प्रयोग होता है। यह उपकरण अनेक संख्या में प्रयोग होता है। यह मुख्यतया दो प्रकार का होता हैं :
- (क) मात्रामापी (Quantitymeter) या ऐंपियर घंटामापी (Ampere hourmeter) और
- (ख) ऊर्जामापी (Energy meter)।
स्थिरविद्युत्दर्शी (Electroscope)
इन उपकरणों का प्रयोग विद्युत् आवेश और विद्युत्विभव के संसूचन और मापन में होता है। विद्युत्दर्शी सबसे प्राचीन विद्युत उपकरण है। सन् १७८७ के पहले कई प्रकार के विद्युत्दर्शी बने जो मुख्यत: आवेशित पिथ गुट का (सरकंडे के गूदे की गोली) के प्रतिकर्षण का उपयोग करते थे। सन् १७८७ में ही ऐब्राहिम बेनेट (Abrahim Benett) ने स्वर्णपत्र विद्युत्दर्शी (Goldleaf electroscope) बनाया जिसका प्रयोग आज तक होता है।
विद्युत्मापी (Electrometer)
आकर्षित पट्टिका विद्युन्मापी (Attracted disc electrometer) या निरपेक्ष विद्युन्मापी (Absolute Electrometer)
इस उपकरण से दो आवेशित चालकों के बीच आकर्षण बल के मापन द्वारा आवेश, विभव इत्यादि का मापन होता है।
वृतपाद विद्युन्मापी (Quadrant Electroometer)
केल्विन (Kelvin) ने आकर्षित पट्टिका विद्युन्मापी से भी अधिक सुग्राही एक विद्युन्मापी बनाया जिसे वृत्त पाद-विद्युन्मापी कहते हैं। कुछ दिनों बाद डालेजेलेक (Dolezelk) ने इसमें सुधार किया जिससे इसकी सुग्राहिता और यथार्थता बहुत बए गई।
इलेक्ट्रानिकी विद्युन्मापी और निर्वात नलिका वोल्टमापी (Electronic Electrometer Vacuum Tube Voltmeter)
जब दो बिंदुओं के बीच का विभवांतर साधारण वोल्टमापी से नापा जाता है तो उनमें विद्युत्धारा बहती है और बिंदुओं के बीच आंतरिक प्रतिरोध के कारण वोल्टता कम हो जाती है। अत: साधारण वोल्टमापी विभव सर्वदा कम नापेगा। विशेष रूप से तब जब बिंदुओं के बीच उच्च प्रतिरोध हो। यह दोष विद्युन्मापी में नहीं है, परंतु इसका प्रयोग बहुत कठिन है। इससे शीघ्र मापन नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त यह उपकरण उच्च आवृत्तिवाले प्रत्यावर्ती विभव को नहीं नाप सकता। इलेक्ट्रानिकी विद्युन्मापी और निर्वात नलिका वोल्टमापी इन सभी दोषों से रहित और अत्यंत सुग्राही होते हैं। इलेक्ट्रॉन नली वोल्टमापी या विद्युन्मापी कई प्रकार के होते हैं, परंतु उनका मूल सिद्धांत ट्रायौड नली को संसूचक (Detector) रूप में प्रयोग करने पर निर्भर है।
धारिता मापन
किसी संघारित्र की धारिता और कुंडली के प्रेरकत्व मापन साधारणतया तुलनात्मक विधियों से होते हैं। तुलना के लिए प्रामाणिक संधारित्र अथवा प्रामाणिक अन्योन्य प्रेरण या स्वप्रेरण कुंडली की आवश्यकता पड़ती है।
धारिता कई प्रकार के सेतुओं की सहायता से नापी जाती है। इनमें से वीन का सेतु (Wien's bridge) और शेरिंग का सेतु (Schering's bridge) उल्लेखनीय है।
वीन सेतु (Wien's bridge)
इस सेतु का प्रयोग धारिता नापने में होता है। ह्वीटस्टोन सेतु (Wheatstone's bridge) के सिद्धांत के अनुसार जब परिचायक में कोई धारा नही बहती तब सेतु संतुलित होता है।
सूत्रों से संघारित्र की अज्ञात धारिता और क्षरण (leakage) मालूम हो जाते हैं।
शेरिंग सेतु (Schering bridge)
यह सेतु भी धारिता मापन के लिए प्रयोग में लाया जाता है। अपनी सुग्राहिता के कारण इसका उपयोग आजकल बहुत होने लगा है। इस सेतु में भी जब परिचायक में कोई धारा नहीं बहती तो संतुलित होता है।
दो प्रतिरोधियों के समंजन से हम संधारित्र की अज्ञात धारिता बड़ी सरलता से निकाल सकते हैं।
धारिता की भाँति ही किसी कुंडली का प्रेरकत्व हम कई प्रकार के सेतुओं की सहायता से ज्ञात कर सकते हैं। इनमें प्रमुख उल्लेखनीय मैक्सवेल-सेतु और हे-सेतु हैं।
मैक्सवेल सेतु
इस सेतु की सहायता से हम प्रेरकत्व बड़ी सरलता से नाप सकते हैं।
संधारित्र और प्रतिरोध के उचित समंजन से प्रेरकत्व का मान बड़ी ही सुगमता से ज्ञात हो जाता है।
हे-सेतु (Hay's bridge)
इस सेतु की विशेषता यह है कि कुंडली के प्रेरकत्व का मूल्य उसके क्रोड की भिन्न भिन्न चुंबकीय दशाओं में निकाला जा सकता है। क्रोड की चुंबकीय दशा बदलने के लिए कुंडली में दिष्ट धारा प्रवाहित की जाती है जिसका मूल्य दिष्ट धारामापी से ज्ञात होता है। जब संसूचक हेडफोन में धारा शून्य हो जाती है तब सेतु संतुलित होता है। प्राय: इन सेतुओं के सिद्धात पर बने बनाए उपकरण मिलते हैं। जिनमें केवल अज्ञात तत्व जोड़ना पड़ता है और आवश्यक घुंडियों को घुमाकर संसूचक की सहायता से सेतु संतुलित कर लिया जाता है। तब अज्ञात तत्वों का मूल्य डायल पर पढ़ लिया जाता है। इस प्रकार के उपकरण में कई सेतु एक ही साथ बने होते हैं जिस कारण एक ही उपकरण से प्रतिरोध, धारिता और प्रेरकत्व नापे जा सकते हैं।