विदेशी मुद्रा विनियम अधिनियम
विदेशी मुद्रा विनियम अधिनियम, १९७३ (अंग्रेज़ी:फ़ॉरेन एक्स्चेंज मैनेजमेंट ऍक्ट) भारत में विदेशी मुद्रा का नियामक अधिनियम है।
अधिनियम १९७३
भारत में सभी लेन देन, जिनमें विदेशी मुद्रा शामिल हैं, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेमा), १९७३ द्वारा विनियमित किए जाते थे। फेरा का मुख्य उद्देश्य देश के विदेशी मुद्रा संसाधनों का संरक्षण तथा उचित उपयोग करना था। इसका उद्देश्य भारतीय कंपनियों द्वारा देश के बाहर तथा भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा व्यापार के संचालन के कुछ पहलुओं को नियंत्रित करना भी है। यह एक आपराधिक विधान था, जिसका अर्थ था कि इसके उल्लंघन के परिणामस्वरूप कारावास तथा भारी अर्थ दंड के भुगतान की सजा दी जाएगी। इसके अनेक प्रतिबंधात्मक खंड थे जो विदेशी निवेशों पर रोक लगाते थे।[1]
अधिनियम १९९९
आर्थिक सुधारों तथा उदारीकृत, परिदृश्य के प्रकाश में फेरा को एक नए अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया जिसका नाम है विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), १९९९। यह अधिनियम भारत में निवासी किसी व्यक्ति के स्वामित्वाधीन या नियंत्रित भारत के बाहर सभी शाखाओं, कार्यालयों तथा अभिकरणों पर प्रयोज्य है। फेमा का आविर्भाव एक निवेशक अनुकूल विधान के रूप में हुआ है जो इस अर्थ में पूर्णतया सिविल विधान है कि इसके उल्लघंन में केवल मौद्रिक शास्तियों तथा अर्थदंड का भुगतान ही शामिल है, तथापि, इसके तहत किसी व्यक्ति को सिविल कारावास का दंड तभी दिया जा सकता है यदि वह नोटिस की तिथि से ९० दिन के भीतर निर्धारित अर्थदंड अदा न करे किन्तु ऐसा भी 'कारण बताओ नोटिस' तथा वैयक्तिक सुनवाई की औपचारिकताओं के पश्चात ही किया जाता है। फेमा में फेरा के अंतर्गत किए गए अपराधों के लिए एक द्विपक्षीय समाप्ति खंड की व्यवस्था भी की गई है जिसे एक 'कठोर' कानून से दूसरे 'उद्योग अनुकूल' विधान की ओर संचलन के लिए प्रदान की गई संक्रमण अवधि माना जा सकता है।[1]
उद्देश्य
फेमा के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं[1] :
- विदेशी व्यापार तथा भुगतानों को सुगम बनाना; तथा
- विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित विकास तथा अनुरक्षण का संवर्धन करना।
अधिनियम में फेमा के प्रशासन में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को एक महत्वपूर्ण भूमिका समनुदेशित की गई है। अधिनियम की अनेक धाराओं से संबंधित नियम, विनियम तथा मानदंड केन्द्र सरकार के परामर्श से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित किए गए हैं। अधिनियम में केन्द्र सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह अधिनियम के उल्लंघन से संबंधित जांच करने के लिए न्याय निर्णयन प्राधिकारियों के समतुल्य हो केन्द्र सरकार के अधिकारियों की नियुक्ति करे। न्याय निर्णयन प्राधिकारियों के आदेश के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिए एक या अधिक विशेष निदेशक (अपील) की नियुक्ति करने का प्रावधान भी किया गया है। केन्द्र सरकार न्याय निर्णय प्राधिकारियों तथा विशेष निदेशक (अपील) के आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिए एक विदेशी मुद्रा अपीलीय न्यायाधिकरण की नियुक्ति भी करेगा। फेमा में केन्द्र सरकार द्वारा एक प्रवर्तन निदेशालय की स्थापना की व्यवस्था भी की गई है जिसमें एक निदेशक तथा ऐसे अन्य अधिकारी या अधिकारी वर्ग होंगे जिन्हें वह इस अधिनियम के अंतर्गत उल्लंघनों की जांच पड़ताल करने के लिए उपयुक्त समझे।
नियम
इस अधिनियम में केवल अधिकृत व्यक्तियों को ही विदेशी मुद्रा या विदेशी प्रतिभूति में लेन देन करने की अनुमति दी गई है।[1] अधिनियम के अंतर्गत, ऐसे अधिकृत व्यक्ति का अर्थ है अधिकृत डीलर, मनी चेंजर, विदेशी बैंकिंग यूनिट या कोई अन्य व्यक्ति जिसे तत्समय रिजर्व बैंक द्वारा प्राधिकृत किया गया हो। इस प्रकार अधिनियम में किसी भी ऐसे व्यक्ति को प्रतिषिद्ध किया गया है जो :-
- किसी ऐसे व्यकित के साथ विदेशी मुद्रा या विदेशी प्रतिभूति का लेन देन करना या अंतरित करना जो अधिकृत व्यक्ति नहीं है;
- भारत के बाहर निवासी किसी व्यक्ति को या उसके क्रेडिट के लिए किसी भी तरीके से कोई भुगतान करना;
- भारत के बाहर निवासी व्यक्ति के आदेश से या उसकी ओर से किसी भी तरीके से कोई भुगतान अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से अन्यथा प्राप्त करना;
- भारत में कोई वित्तीय लेनदेन करना, जो भारत में निवासी किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा भारत के बाहर किसी परिसम्पत्ति को अधिगृहित करने के अधिकार के अधिग्रहण या सृजन अथवा अंतरण के लिए या उससे संबद्ध प्रतिफल के रूप में हो, जिसने भारत के बाहर अवस्थित कोई अचल सम्पत्ति या कोई विदेशी मुद्रा, अथवा विदेशी प्रतिभूति का अर्जन किया है, धारण किया है, स्वामित्व ग्रहण किया है या उसका अंतरण किया है।
यह अधिनियम दो प्रकार के विदेशी मुद्रा लेन देनों से संबंधित कार्रवाई करता है।
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ ई विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) Archived 2010-04-20 at the वेबैक मशीन। भारत सरकार आधिकारिक पोर्टल