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विज्ञापन अभियान

विज्ञापन आज के समय में अतिरंजित यथार्थ के अलावा कुछ भी नहीं है। वह लोगों को उकसा कर किसी खास उत्पाद को खरीदने के लिये प्रेरित करता है, लेकिन यह आसान काम नहीं है। बेहतर विज्ञापन प्रभाव पैदा करने के लिये विज्ञापन अभियान चलाया जाता है। यह असल में लक्षित-समूह को ध्यान में रख चलाया जाता है। फौजी अभियान की तरह एक सुव्यवस्थित रणनीति अपनाई जाती है।[1]

प्रकार

भय

लोगों का ध्यान चाहे किसी अन्य पत्र या लेख या छवि पर जाये या न जाये लेकिन किसी को अपने जान आदि का भय होने पर वह उस पर अवश्य ही ध्यान देता है। इस प्रकार के विज्ञापन अभियान में लोग किसी तरह का भय या डर दिखा कर अपनी विज्ञापन योजना को पूर्ण करते हैं। इसी तरह का विज्ञापन वर्ष 2007 में बोस्टन में बम से भय २००७ हुआ था, जिसमें बोस्टन के 10 शहरों में एक तरह का एलईडी रोशनी वाला उपकरण - जिसमें विज्ञापन हेतु उसकी छवि बनी हुई थी - लगाया गया था। इसे किसी आम नागरिक ने बम समझ कर पुलिस को फोन कर दिया और सभी समाचार वाले भी इस घटना को अपने अखबार या अन्य माध्यम में देने हेतु आ गए।

लालच

किसी भी सामान के साथ कुछ मुफ्त में देना एक प्रकार का विज्ञापन का ही हिस्सा है। इसमें कोई भी इस तरह का कोई सामान दे देता है, जिससे लोग उस सामान को खरीदना चाहे। जैसे कि किसी एक वस्तु को खरीदने पर आप जीत सकते हैं एक करोड़ का इनाम आदि। इससे कोई भी यह सोचता है कि वह इस वस्तु को कम दाम में खरीद लेगा और संभव हुआ तो इनाम भी मिल जाएगा। इस कारण कई बार लोग आवश्यकता से अधिक भी खरीद लेते हैं या कई बार अनावश्यक वस्तु भी खरीद लेते हैं।

आवश्यकता

किसी भी क्षेत्र में किसी न किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता रहती ही है। इसका लाभ विज्ञापन अभियान में उठाया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी को अपना कोई सामान बेचना है, तो वह देखेगा कि लोग किस वस्तु के पीछे जा रहे हैं। वह उस वस्तु को स्वयं अधिक संख्या में खरीद लेगा। जिसे जमा-खोरी भी कहते हैं। उसके बाद वह किसी विज्ञापन में कह देगा कि यदि आपको इस वस्तु को खरीदना है तो हमारे पास आयें। इस तरह के कुछ उदाहरण खाने के सामान में अधिक होते हैं। क्योंकि कोई भी खाने के सामान को हमेशा के लिए नहीं रख सकता है। इसकी सभी को दैनिक रूप से आवश्यकता पड़ती है। इस कारण कई कंपनी प्याज, टमाटर आदि जिसका उपयोग लोग सब्जी खाना बनाने में करते ही हैं, उसे स्वयं खरीद कर किसी जगह पर संग्रह कर देती हैं। इसके बाद जब वह वस्तु बाजार में कम हो जाती है तो उसके दाम बढ़ जाते हैं। इसके बाद जब वह समाप्त हो जाता है या उसके दाम बहुत बढ़ जाते हैं, तब कंपनी उसे बेचती है। लेकिन कभी कभी जमा-खोरी का पता न लग जाये इस कारण वह उसे अपने किसी वस्तु के साथ एक किलो मुफ्त आदि बोल कर बेचती है। जिससे किसी को भी लगता है कि इतनी महंगी वस्तु यदि मुफ्त में मिल रही है तो क्यों न ले। लेकिन इसके पीछे अन्य वस्तु में लगाने वाले पैसे की कोई भी नहीं सोचता है।

सन्दर्भ

  1. Belch, George, and Belch, Michael, eds. 2004. Advertising and Promotion: an integrated marketing communications perspective. MacGraw-Hill/Irwin.

बाहरी कड़ियाँ