विज्ञापन
किसी उत्पाद अथवा सेवा को बेचने अथवा प्रवर्तित करने के उद्देश्य से किया जाने वाला जनसंचार विज्ञापन (Advertising) कहलाता है। विज्ञापन विक्रय कला का एक नियंत्रित जनसंचार माध्यम है जिसके द्वारा उपभोक्ता को दृश्य एवं श्रव्य सूचना इस उद्देश्य से प्रदान की जाती है कि वह विज्ञापनकर्ता की इच्छा से विचार सहमति, कार्य अथवा व्यवहार करने लगे आज विकास का पर्याय बन गया है। उत्पादन बढ़ने के कारण यह आवश्यक हो गया है कि उत्पादित वस्तुओ को उपभोक्ता तक पहुँचाया ही नहीं जाय बल्कि उसे उस वस्तु की जानकारी भी दी जाय। वस्तुतः मनुष्य को जिन वस्तुओ की आवश्यकता होती है व उन्हें तलाश ही लेता इसके ठीक विपरीत उसे जिसकी जरूरत नहीं होती वह उसके बारे में सुनकर अपना समय खराब नहीं करना चाहता। इस अर्थ में विज्ञापन वस्तुओ को ऐसे लोगों तक पहुँचाने का कार्य करता है जो यह मान चुके होते है कि उन वस्तुओं की उसे कोई जरूरत नहीं है। आशय यह कि उत्पादित वस्तु को लोकप्रिय बनाने तथा उसकी आवश्यकता महसूस कराने का कार्य विज्ञापन करता है।
विज्ञापन अपने छोटे से संरचना में बहुत कुछ समाये होते है। आज विज्ञापन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है।
किसी भी तथ्य को यदि बार-बार लगातार दोहराया जाये तो वह सत्य प्रतीत होने लगता है - यह विचार ही विज्ञापनों का आधारभूत तत्व है। विज्ञापन जानकारी भी प्रदान करते है। उदाहरण के लिए कोई भी वस्तु जब बाजार में आती है, उसके रूप - रंग - सरंचना व गुण की जानकारी विज्ञापनों के माध्यम से ही मिलती है। जिसके कारण ही उपभोक्ता को सही और गलत की पहचान होती है। इसलिए विज्ञापन हमारे लिए जरूरी है।
जहाँ तक उपभोक्ता वस्तुओं का सवाल है, विज्ञापनों का मूल उद्देश्य ग्राहको के अवचेतन मन पर छाप छोड़ जाना है और विज्ञापन इसमें सफल भी होते है। यह 'कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना' का सा अन्दाज है।
विज्ञापन सन्देश आमतौर पर प्रायोजकों द्वारा भुगतान किया है और विभिन्न माध्यमों के द्वारा देखा जाता है जैसे समाचार पत्र, पत्रिकाओं, टीवी विज्ञापन, रेडियो विज्ञापन, आउटडोर विज्ञापन, ब्लॉग या वेब्साइट आदि। वाणिज्यिक विज्ञापनदाता अक्सर उपभोक्ताओं के मन में कुछ गुणों के साथ एक उत्पाद का नाम या छवि जोड़ जाते हैं जिसे हम "ब्रान्डिग" कहते है। ब्रान्डिग उत्पाद या सेवा की बिक्री बढाने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। गैर-वाणिज्यिक विज्ञापनों का उपयोग राजनीतिक दल, हित समूह, धार्मिक संगठन और सरकारी एजेंसियाँ करतीं हैं।
2015 में पूरे विश्व में विज्ञापन पर कोई 529 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये जाने का अनुमान है। [1]
अर्थ एवं परिभाषा
'विज्ञापन' शब्द 'वि' और 'ज्ञापन' से मिलकर बना है। 'वि' का आभिप्राय 'विशिष्ट' तथा 'ज्ञापन' का आभिप्राय सूचना से है। अर्थात विज्ञापन का अर्थ 'विशिष्ट सूचना' से है। आधुनिक समाज में 'विज्ञापन' व्यापार को बढ़ाने वाले माध्यम के रूप में जाना जाता है।
- विलियम वेलबेकर :
- विज्ञापन सूचनाएँ प्रचारित करने का वह साधन है जो कि किसी व्यापारिक केन्द्र अथवा संस्था द्वारा भुगतान प्राप्त तथा हस्ताक्षरित होता है और इस संभावना को विकसित करने की इच्छा रखता है कि जिनके पास यह सूचना पहुँचेगी वे विज्ञापनदाता की इच्छानुसार साचेंगे अथवा व्यवहार करेंगे।
- द न्यू एनसाईक्लापीडिया ब्रिटानिकाः
- विज्ञापन सम्प्रेषण का यह प्रकार है जो कि उत्पादक अथवा कार्य को उन्नत करने, जनमत को प्रभावित करने, राजनैतिक सहयोग प्राप्त करने, एक विशिष्ट कारण को आगे बढ़ाने अथवा विज्ञापनदाता द्वारा कुछ इच्छित प्रतिक्रियाओं को प्रकाशित करने का उद्देश्य रखता है।'
- बृहत हिन्दी कोशः
- विज्ञापन के पर्यायवाची के रूप में समझना सूचना देना, इश्तहार, निवेदन करना आदि शब्द दिए गए है।
विज्ञापन के कार्य
विज्ञापन के निम्नलिखित कार्य हैंः -
- 1. नवीन वस्तुओ और सेवाओ की सूचना देना।
- 2. किसी वस्तु की उपयोगिता एवं श्रेष्ठता बताते हुए उसकी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना।
- 3. उपभोक्ताओ में वस्तु के प्रति रुचि तथा विश्वास उत्पन्न करना।
- 4. उपभोक्ताओ की स्मृति को प्रभावित करना।
- 5. विशेष छूट आदि की जानकारी देते हुए उपभोक्ता-माँग में वृद्धि करना।
- 6. वस्तु को स्वीकार करने अपनाने और उसे खरीदने की प्रेरणा देना।
- 7. विज्ञापन अन्य उत्पाद कम्पनियो के उत्पादनो की तुलनात्मक जानकारी देता है।
- 8. बाजार में उत्पाद कम्पनियो को स्थिरता प्रदान करता है।
विज्ञापन के प्रकार -
तमाम आलोचनाओं के होते हुए भी विज्ञापन हमारे जीवन स्तर को सुधारनें तथा उत्पादन बढ़ाने का प्रभावी माध्यम है। आज हम विज्ञापन युग के सीमान्त पर आ खड़े हुए हैं। विज्ञापन को उत्पादित वस्तु बेचने अथवा प्रचारित करने की कला का सीमित उद्देश्य न मानकर जनचेतनायुक्त कलात्मक विज्ञापन को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
वर्तमान समय में विज्ञापन के कई रूप हमारे सामने आते है। इनको निम्नलिखित प्रकारो में रखा जा सकता है।
अनुनेय विज्ञापन (Persuasive advertisement):
विज्ञापन माध्यम से जनता अथवा उपभोक्ता तक पहुंचने उन्हे अपनी ओर आकर्षित करने, रिझाने, उत्पाद की प्रतिष्ठा तथा उसके मूल्य को स्थापित किया जाता है। इस प्रकार के विज्ञापन निर्माता तब प्रसारित करता है, जब उसका उद्देश्य ग्राहकों के मन में अपनी वस्तु का नाम स्थापित करना होता है और यह आशा की जाती है कि ग्राहक उसे खरीदेगा। विज्ञापन विभिन्न माध्यमों के आधार पर विशिष्ट उपभोक्ताओ को अपने उद्देश्य के लिये मनाने की इच्छा रखते है।
सूचनाप्रद विज्ञापन (Informational advertisement):
इस प्रकार का विज्ञापन सूचनाओं को प्रसारित करने की एवं व्यापारिक आभिव्यक्ति के रूप में सामने आता है। साथ ही इन विज्ञापनों का उद्ददेश्य जन-साधारण को शिक्षित करना, जीवनस्तर उंचा करना, सांस्कृतिक बौद्धि तथा आध्यात्मिक उन्नति करने का भाव निहित होता है। सामुदायिक विकास सुधार, अंतराट्रीय सद्भाव, वन्य प्राणी रक्षा, यातायात सुरक्षा आदि क्षेत्रों में जन-साधारण की भलाई के उद्देश्य से सूचना प्रदान कर जागरकता उत्पन्न करता है।
सांस्थानिक विज्ञापन (Institutional advertisement):
सांस्थानिक विज्ञापन व्यावसायिक संस्थानों द्वारा प्रकाशित व प्रचारित कराये जाते है।संस्थाओं के रूप में बड़े-बड़े उद्योग समूह अंतराष्ट्रीय अथवा राष्ट्रीय स्तर की कंपनियाँ आदि विज्ञापन प्रस्तुत कर राष्ट्रहित संबन्धी जनमत निर्माण करती है। विज्ञापन की विषय-वस्तु नितान्त जन-कल्याण से संबंधित होती है। किन्तु इसमें स्व-विज्ञापन भी निहित होता है।
औद्योगिक विज्ञापन (Industrial advertisement):
औद्योगिक विज्ञापन कच्चा माल, उपकरण आदि की क्रय में वृद्धि के उद्देश्य से किया जाता है, इस प्रकार के विज्ञापन प्रमुख रूप से औद्योगिक प्रक्रियाओं में प्रमुखता से प्रकाशित किये जाते है, इस प्रकार के विज्ञापनों का प्रमुख उद्देश्य सामान्य व्यक्ति को आकर्षित करना नहीं होता है वरन औद्योगिक क्षेत्र से संबंधित व्यक्तियों, प्रतिष्ठानों तथा निर्माताओं को अपनी ओर आकृष्ट करना होता है।
वित्तीय विज्ञापन (Financial advertisement):
वित्तीय विज्ञापन प्रमुख रूप से अर्थ से संबंधित होता है, विभिन्न कंपनियों द्वारा अपने शेअर खरीदने का विज्ञापन उपभोक्ताओं को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने संबंधित विज्ञापन इसी श्रेणी में आते है, कभी-कभी कंपनी अपनी आय व्यय संबंधित विवरण देने की अपनी आर्थिक स्थिति की सुदृढता को भी विज्ञापित करती है।
वर्गीकृत विज्ञापन (Classified advertisement):
इस प्रकार के विज्ञापन अत्यधिक संक्षिप्त सज्जाहीन एवं कम व्ययकारी होते हैं। शोक संवेदना, ज्योतिष विवाह, बधाई, क्रय-विक्रय, आवश्यकता, नौकरी, वर-वधू आदि से संबंधित इस प्रकार के विज्ञापन समाचार पत्र में प्रकाशित होते हैं।
अन्य विज्ञापन (Other advertisement):
उक्त प्रकार के विज्ञापनों के आतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार के विज्ञापन भी दृष्टिगत होते है।
- (अ) सम्मानक विज्ञापन (Prestige Advertisment): लोकमत अथवा जनमत तैयार करने के उद्देश्य से चुनापूर्ण घोषणापत्र विज्ञापित किया जाता है जिसे सम्मानक विज्ञापन की श्रेणी में रखा जाता है।
- (आ) स्मारिका विज्ञापन (Sovenier Advertisment) : किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम समाजसेवी संस्था आदि द्वारा आयोजित कार्यक्रम के अंतर्गत स्मारिका का प्रकाशन किया जाता है जिसमें सामान्य रूप से आधिक सहायता के रूप में विज्ञापन प्रकाशित किये जाते हैं। संस्था का परिचय, संस्था के प्रमुख कार्यक्रम, संस्था के पदाधिकारियों का विवरण आदि के साथ इन विज्ञापनों को भी प्रकाशित किया जाता है।
माध्यम के अनुसार वर्गीकरण
विज्ञापन के माध्यम के अनुसार वाणिज्यिक विज्ञापन, मीडिया भितिचित्र, होर्डिंग, सडक फर्नीचर घटकी, मुर्दित और रैक कार्ड, रेडियो, सिनेमा और टेलीविजन स्क्रीन, शॅपिंग कार्ट, वेब, बस स्टाप, बेंच आदि का शामिल कर सकते है।
टेलीविजन विज्ञापन एक ताजा अध्ययन बताता है कि सभी विज्ञापनों में अभी भी टेलीविजन विज्ञापन सबसे प्रभावी विज्ञापन का तरीका है। इस वाक्य का साभित हम देख सकते है जब लोकप्रिय घटनाओं के दौरान टेलीविजन चैनलों वाणिज्यिक समय के लिये उच्च कीमतों चार्ज करते है। संयुक्त राज्य अमेरिका में वार्षक "सूपर बाउल" फुटबाल खेल टेलीविजन पर सबसे प्रमुख विज्ञापन घटना के रूप में जाना जाता है।
- रेडियो विज्ञापन
रेडियो विज्ञापनों का प्रसारित ट्रांसमीटर एवं एंटीना नामक यंंत्रों द्वारा किया जाता है। एयरटाइम विज्ञापनों के प्रसारण के लिये विदेशी मुद्रा में एक स्टेशन या नेटवर्क से खरीदा जाता है। "आर्बिट्रान" नामक संस्थान के अनुसार अमेरिका के ९३%(93%) जनसंख्या रेडियो का इस्तेमाल करती है।
- ऑनलाइन विज्ञापन
ऑनलाइन विज्ञापन ग्राहकों को आकर्षित करने के लिये इंटरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब का उपयोग करते है। ऑनलाइन विज्ञापन एक विज्ञापन सर्वर द्वारा वितरित का उदाहरण, खोज इंजन परिणाम प्रष्ठों पर दिखाई देते हैं।
- छाप विज्ञापन
जो विज्ञापन समाचार पत्रों, पत्रिका, व्यापार पत्रिका में प्रकाशित किया जाता है, उसे हम छाप विज्ञापन कहते हैं। छाप विज्ञापन का पहला प्रपत्र वर्गीक्रुत विज्ञापन है। छाप विज्ञापन का दूसरा प्रपत्र प्रदर्शन विज्ञापन है। प्रदर्शन विज्ञापन में एक बड़ा विज्ञापन में एक बड़ा विज्ञापन को अखबार का एक लेख का रूप दिया जाता है।
- बिलबोर्ड विज्ञापन
बिलबोर्ड बड़े बोर्ड हैं जिनका उपयोग सार्वजनिक स्थानों किया जाता है। प्रायः बिलबोर्ड मुख्य सडकों के किनारे लगाये जाते हैं।
- दुकान में विज्ञापन
जो विज्ञापन दुकानों के अंदर स्थापित किया जाता है उसे हम दुकान में विज्ञापन या "इन स्टोर" विज्ञापन कहते है।
- हवाई विज्ञापन
विमान, हवाई गुब्बारा द्वारा प्रकाशित किये विज्ञापनों को हम हवाई विज्ञापन कहते हैं।
विज्ञापन के गुण
विज्ञापन उत्पाद वस्तु के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने का कार्य करते हैं। एक अच्छे विज्ञापन में निम्नलिखित गुण/विशेषताएँ होनी चाहिएः -
विज्ञापन में ध्यान आकर्षित करने की क्षमता हो
किसी भी विज्ञापन की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वह लोगों का (विशेष रूप से जिनसे उसका संबन्ध हो) ध्यान आकर्षित करे। विज्ञापन की प्रस्तुति, भाषा और स्थान ऐसा होना चाहिए जिससे लोगों की दृष्टि उस पर अवश्य पड़े। ऐसा न होने पर वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाएगा।
अभिनव एवं मौलिक साज-सज्जा
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित विज्ञापन हों अथवा होर्डिंग आदि के माध्यम से प्रस्तुत, उसकी साज-सज्जा इतनी मौलिक होनी चाहिए कि वह अपनी ओर लोगों की दृष्टि अपने-आप खींच ले। सामान्य से अलग कुछ विशेष आकर्षण होना विज्ञापन की शर्तं है।
- विज्ञापित वस्तु की मुख्य विशेषता पर बल हो
जिस उत्पाद अथवा वस्तु को विज्ञापित किया जा रहा है उसकी मुख्य विशेषता विज्ञापन में होनी चाहिए जिससे लोगों में उसके प्रति धारणा स्थापित करनें में रुकावट न पैदा हो। मुख्य बातें या केन्द्रिय बिंदु को आधार बनाकर विज्ञापन आधिक तर्कसंगत तथा प्रभावी बनाया जा सकता है।
विज्ञापन में सुबोधता हो
विज्ञापन बनाने वाली एजेंसी को चाहिए कि वह ऐसा विज्ञापन तैयार करे जो पढ़े-लिखे तथा अनपढ़, शहरी तथा गाँव, सभी के लिए सुबोध हो। जिस विज्ञापन को समझने में दर्शक को दिमाग लगाना पड़ेगा उसके प्रति वह जुड़ाव महसूस नहीं कर पाएगा। ऐसी स्थिती में जब लोग उसे समझ ही नहीं पाएँगे, उत्पाद को उपयोग में लाने की ओर कदम कैसे बढ़ाऐेंगे?
तथ्यों की तर्कपूर्ण प्रस्तुति
विज्ञापनदाता को चाहिए कि वह जिस उत्पाद को विज्ञापित करना चाहता है उससे जुड़े तमाम तथ्यों को क्रमवार प्रस्तुत करे। वस्तुतः विज्ञापन को बनाने की आवश्यकता ही इसलिए महसूस की गयी कि जिसे जरुरत न हो वह भी उसके प्रति आकर्षित हो। तथ्यों की तर्कपूर्ण प्रस्तुति से लोग विज्ञापन के प्रति खुलापन महसूस करते हैं।
=== गतिशीलता===
विज्ञापन में यह गुण होना चाहिए कि वह स्थिर होते हुए भी देखने अथवा पढ़ने वाले की सोच को गति प्रदान करे। इसके लिए उसमें गत्यात्मक संकेत होने आवश्यक हैं, जिससे विज्ञापन जहाँ समाप्त हो, देखने वाला उसके आगे को सोचकर उसके उपयोग के लिए अपना मन बनाए।
शीर्षक आकर्षक हो
विज्ञापन का शीर्षक आकर्षक होना चाहिए। वैसे चित्रात्मक विज्ञापन के लिए शीर्षक की आवश्यकता कम होती है फिर भी जहाँ आवश्यकता हो शीर्षक देने से परहेज नहीं करना चाहिए। उदाहरणस्करप 'अतुल्य भारत' आदि। इससे विज्ञापन के विषय का ज्ञान हो जाता है।
रुचिकर तथा मनोहारी
विज्ञापन के माध्यम से कम से कम समय में उत्पाद की जानकारी दी जाती है। लोगों के व्यस्त समय में से एक क्षण चुराकर विज्ञापन को उनके सामने प्रदर्शित किया जाता है। ऐसे में विज्ञापन यदि रुचिकर नहीं होगा तो अपने अन्य कामों में लगा हुआ व्यक्ति उसकी ओर ध्यान नहीं दे पाएगा। इसलिए यह आवश्यक है कि उत्पाद का उपयोग करने वालों तथा विज्ञापन देखने वाले दोनों की रुचि का ख्याल रखा जाय।
विज्ञापन का महत्व
आज तकनीकी विकास ने पूरे विश्व के लोगों को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया है। दूरियों का कोई मतलब नहीं रह गया है। इन सब कारणों ने मनुष्य को और आधिक महत्वाकांक्षी बना दिया है। वर्तमान समय के बाजार प्रधान समाज में उपभोक्तावादी संस्कृति का बोलबाला बढ़ रहा है। ऐसे में उपभोक्ता, समाज और उत्पादन के बीच संबन्ध स्थापित करने का कार्य विज्ञापन कर रहा है। उत्पादक के लाभ से उपभोक्ता की इच्छाओं की पूर्ति तथा उत्पादित वस्तु के उपयोग का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य विज्ञापन को पहचान प्रदान करता है। ऐसे में विज्ञापन का महत्व सर्वसिद्ध है। विज्ञापन के महत्व को रेखांकित करते हुए ब्रिटेने के पूर्व प्रधानमंत्री विलियम ग्लेडस्टोन ने कभी कहा था - व्यवसाय में विज्ञापन का वही महत्व है जो उद्योगक्षेत्र में बाष्पशक्ति के आविष्कार का। विस्टन चर्चिल ने इसकी आर्थिक उपयोगिता के महत्व को प्रतिपालित करते हुए कहा था - टकसाल के आतिरिक्त कोई भी बिना विज्ञापन के मुद्रा का उत्पादन नहीं कर सकता।
विज्ञापन के महत्व को हम निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत कर सकते है-
- उत्पादित वस्तु की जानकारी :
उद्योगों के माध्यम से नयी-नयी वस्तुओं का भी उत्पादन होता है और विज्ञापन से इन नवीन उत्पादों की जानकारी दी जाती है। सामान्य रूप से उपभोक्ता अथवा जनता पारंपारिक रूप से जिस वस्तु का उपयोग करती आयी है उसे छोड़कर नयी वस्तु के प्रति उसमें संदेह बना रहता है। विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ता में उत्पादित नयी वस्तु के प्रति रुचि पैदा की जाती है। केवल वस्तु ही नहीं, उत्पादनकर्ता, वस्तु की उपयोगिता तथा उसके गुणों की जानकारी देने का कार्यभी विज्ञापन करता है। इस तरह उपभोक्ता के पास एक जैसी वस्तुओं की तुलना, उनके मूल्यों का अन्तर आदि का विकल्प विज्ञापन के माध्यम से उपलब्ध होता है और वह अपनी सुविधा से अपने उपयोग की वस्तु का चयन कर उसे खरीदता है।
- विक्रेता का लाभ
विज्ञापन से केवल उपभोक्ता का ही लाभ नहीं प्राप्त होता बल्कि उसे बेचने वाले दुकानदार अर्थात विक्रेता को भी लाभ प्राप्त होता है। विज्ञापन विक्रेता काम इतना आसान कर देता है कि उसे नयी वस्तु के बारे में उपभोक्ताओं को बार-बार बताना नहीं पड़ता है। सच्चाई तो यह है कि विज्ञापन वस्तु के साथ ही साथ वह कहाँ-कहाँ उपलब्ध है, इसकी जानकारी मुहैया कराता है। अतः विज्ञापन से उपभोक्ता तथा विक्रेता दोनों को लाभ मिलता है।
- बाजार का निर्माण
विज्ञापन के माध्यम से नयी वस्तुआें के उत्पादन तथा उसकी उपयोगिता की जानकारी दी जाती है जिससे उपभोक्ताआें का ध्यान उस वस्तु के इस्तेमाल की ओर केन्द्रित होता है। इस प्रकार विज्ञापन बाजार का निर्माण करता है। आज हम देखते है कि कल तक जहाँ पहुँचना दुर्गम माना जाता था वहाँ भी लोगों की भीड़ पहुँच गई है। लोग अपने रहने के स्थान पर ही बाजार बनाते रहे हैं। पहले लोग किसी विशेष दिन समय निकालकर बाजार जाते थे, अब बाजार स्वयं उनके पास आ गया है। यह सब विज्ञापन के कारण ही संभव हो पाया है।
- राष्ट्रहित
विज्ञापन का योगदान राष्ट्रसेवा के लिए भी कम नहीं है। उत्पादन के प्रति लोगों को जागरक बनाकर विज्ञापन देश की अर्थव्यवस्था के विकास में विशेष सहयोग प्रदान करता है। इतना ही नहीं राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों, अन्तरराट्रीय समझौतों आदि को पारदर्शी रूप में प्रस्तुत कर विज्ञापनों ने पूरे वैश्विक परिदृश्य के हित का कार्य किया है। आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक मुद्दों के विज्ञापनों के द्वारा किसी भी देश के विचारों उसकी संस्कृति तथा विकासात्मक स्थिति को प्रस्तुत कर उनके कल्याणकारी कार्यो को जनता के बीच ले जाना भी राष्ट्रपति का कार्य है।
- मनोरंजन के लिए उपयोगी
विज्ञापन की रंग योजना, महिलाओं के भड़कीले चित्र, शब्द योजना, अश्लील चित्रों का प्रयोग, आकर्षक शैली इससे उपभोक्ताओं का मनोरंजन भी होता है। फिल्मों के प्रचार-प्रसार में विज्ञापन का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है। फिल्म मनोरंजन का सबसे बड़ा माध्यम है।
- जीवनस्तर को ऊँचा करने में सहायक
समाज कल्याण संबंधी प्रतिष्ठानों के विज्ञापनों का एक मात्र ध्येय जनता में विवेकशीलता उत्पन्न करना, उनको जीवनस्तर को ऊँचा करना, बौद्धिक तथा अध्यात्मिक विकास करना आदि रहा है। मुख्यतः विज्ञापन एक मार्ग लक्ष्य उत्पाद के संदर्भ में विश्वास पैदा करना उन्हें लेने के लिए मजबूर करना, उपभोक्ताओं के दिलों दिमाग पर छाप छोड़ना आदि से उपभोक्ता वस्तुओं की खरीदीकर सके। सर्व शिक्षा आभियान, नारी सशक्तिकरण आदि विज्ञापनों द्वारा लोग शिक्षा एवं नारी के विकास को अच्छे ढंग से समझ सकें हैं।
विज्ञापन और हिन्दी
विज्ञापन का क्षेत्र पूरी तरह से व्यावसायिक है। उसका कार्य तथा उपयोगिता व्यावसायिक लाभ से ही संबन्धित है। हिन्दी भारत में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली तथा समझने वाली भाषा है। इस अर्थ में विज्ञापन के माध्यम के रूप में सबसे महत्वपूर्ण हिन्दी भाषा है। विज्ञापन के विषय अथवा उत्पादित वस्तुओं के गुण तथा उसकी प्रस्तुति के आधार पर उसकी आन्तरिक एवं बाह्य आवश्यकताओं के अनुरूप भाषा की जरुरत होती है। आज हिन्दी विज्ञापन की आवश्यकता के अनुरूपरूप ग्रहण कर रही है। विज्ञापन के अनुसार हिन्दी भाषा में नित-नये प्रयोग हो रहे है। इससे भाषा का विकास हो रहा है और हिन्दी मात्र पुस्तकों की भाषा न होकर नए समय और समाज की जीवन्त भाषा बनती जा रही है।[2]
प्रत्येक भाषा की अपनी भाषा संस्कृति होती है। उसकी शब्दावली, वाक्य रचना, मुहावरे आदि विशेष होते है। हिन्दी का भी अपना भाषा संस्कार है। विज्ञापन के वर्तमान रूप में पारंपारिकता के त्याग तथा आधुनिकता के स्वीकार की स्थिती देखी जा सकती है। उसमें केवल उत्पादक, उत्पादित वस्तु और उपभोक्ता ही नहीं आता, बल्कि जनसंचार के सभी माध्यम और यातायत के साधन भी आते हैं, ये सभी विज्ञापन के प्रसार में सहायक होते है।
हिन्दी के क्रियापदों के प्रयोग से विज्ञापनों में आधिक कह देने की क्षमता पैदा होती है। बिकाऊ है, जररत है, चाहते हो, आते हैं, जाते हैं, आइए जैसे शब्दों के प्रयोग से विज्ञापनों की अर्थवत्ता बढ़ती है। पत्र-पत्रिकाओं जैसे मुद्रित विज्ञापनों में प्रयोग की जानेवाली हिन्दी-शब्दावली माध्यम के परिवर्तन के साथ बदल जाती है। रेडियों में जहाँ ध्वन्यात्मक शब्दों का महत्व होता है वहीं टेलिविजन तथा सिनेमा में दृश्यात्मक क्रियापदों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि मुद्रित रूप में ठंढी के दिनों में त्वचा को मुलायम रखने के लिए ’बोरोलीन लगाइए' जैसा विज्ञापन छपता है तो रेडियो के लिए - 'ठंडी ' की खुश्की दूर करे बोरोलीन' जैसे शब्द प्रयोग किए जाएँगे, लेकिन दूरदर्शन और दृक्-श्रव्य माध्यमों में दृश्यात्मक पदों जैसे ’देखा आपने? जाना आपने ?' आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
विज्ञापन की आलोचना
विज्ञापन को आर्थिक विकास के लिये देखा जा सकता है, कई लोग विज्ञापनों के सामाजिक लगत पर भी ध्यान देना चाहते है। इस आलोचन का प्रमुख उदाहरण इन्टरनेट विज्ञापन है। इन्टरनेट विज्ञापनों स्पेम जैसे रूपों में आकर कंप्यूटर को क्शति करते है। विज्ञापनों को अधिक आकर्षक बनाके, एक उपभोकता की इच्छाओं का शोषण कराता है।
विनियमन
जनता के हित की रक्षा के प्रयासों का ध्यान देने के लिये विज्ञापनों का विनियमन की गैइ है। उदाहरण: स्वीडिश सरकार १९९१ में टेलिविशन पर तंबाकू विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगाया गया है। अमेरिका में कैइ समुदायों का मानना है कि आउटडोर विज्ञापन बाहर सुन्दरता को नष्ट करते है।
संकेतिकता:
उपभोक्ताओं और बाजार के बीच दर्शाती संकेतो और प्रतीकोंं रोजमर्रा की वस्तूओं में इनकोड किय गया है। विज्ञापन में कैइ छिपा चिन्ह और ब्रांड नाम के भीतर अर्ध, लोगो, पैकेज डिजाइन, प्रिन्ट विज्ञापन और टीवी विज्ञापन है। अध्ययन और सन्देश की व्याख्या करने के लिये सान्केतिकता का उपयोग करते है। लोगों और विज्ञापनों दो स्तरों पर व्याख्या की जा सकती है: १) सतह के स्तर और २) अंतर्निहित स्तर
१) सतह के स्तर को अपने उत्पाद के लिये एक छवि या व्यक्तित्व बनाने के लिये रचनात्मक सन्केत का उपयोग करता है। ये सन्केत छवियों, शब्द, रंग या नारी ही सकता है।
२) अंतर्निहित स्तर छिपा अर्थ से बना है। छवियों का सन्योजन, शब्द, रंग और नारा दर्शकों या उपभोकता द्वारा व्याख्या की जानी चाहीये। लिंग के सांकेतिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। विपणन सन्चार के दो प्रकार होते है: उदेशय और व्यक्तिपरक।
विज्ञापनो में, पुरुषों स्वतन्त्र रूप में प्रतिनिधित्व किया जाता है।
विज्ञापन में परिवार:
परीवारों का उपयोग विज्ञापन में एक प्रमुख प्रतीक बन गया है और मुनाफा बढाने के लिये विपणन अभियानों में उपयोग किय जाता है।
विज्ञापन में परिवार के सदस्य
१) बीवी- पुराने जमाने में एक बीवी का अवतार सिर्फ एक घरवाली के रूप में दिख सखति थी। आजकल, लोगों के सोचविचार बदल चुका है, एक बीवी का उपयोग हर जगह में जरूरी है। एर्टेल के नैइ टेलिविशन विज्ञापन में बिवी को कंपनी में अप्ने पति से बड़ा सथान निभा रही है।
२) पति- विज्ञापनों में एक पती घर के बाहर काम के प्रदर्शन और परिवार के वित्त का ख्याल रखने के रूप में दिखाई देता है।
३) माता-पिता- इतिहास के दौरान माताओं के बच्चों की प्राथमिक शारीरिक देखबाल करने वालों के रूप में चित्रित किया गया है। शारीरिक देखबाल ऐसे स्तनपान और बदलते डायपर के रूप में कार्य भी शामिल है।
विज्ञापन रचना-प्रक्रिया
विज्ञापन तैयार करने से पहले उद्यमी के दिमाग में यह बात स्पष्ट होती है कि उसका उपभोक्ता कौन है? और अपने विज्ञापनों में उद्यमी /विज्ञापन एजेंसी उसी उपभोक्ता समूह को सम्बोधित करती है। उस समूह की रूचि, आदतों एवं महत्वाकांक्षाओं को लक्ष्य करके ही विज्ञापन की भाषा, चित्र एवं अखबार, पत्रिकाओं, सम्प्रेषण माध्यमों का चुनाव किया जाता है। उदाहरणार्थ - यदि कोई उद्यमी महिलाओं के लिए कोई वस्तु तैयार करता है तो उसकी शैली निम्न बातों के आधार पर निर्धारित होगी -
उपभोक्ता समूह - महिलाएँ
आर्थिक - मध्यम/ निम्न/ उच्च
शैक्षिक स्तर - साधारण/ उच्च
अपनी सलोनी त्वचा के लिए मैं कोई ऐसी- वैसी क्रीम इस्तेमाल नहीं करती।
(अब ये पंक्ति अति साधारण है, परन्तु उसमें कई छिपे अर्थ निहित है। अपनी सलोनी त्वचा के माध्यम से बेहतर दिखने की महत्वाकांक्षा को उभारा गया है, जबकि ऐसी - वैसी शब्द से भय उत्पन्न करता है कि सस्ती क्रीम निश्चय ही त्वचा के लिए हानिकारक होगी।)
यदि वस्तु की खरीददार मध्यम श्रेणी की महिलाएं हो तो विज्ञापन फुसफुसायेगा -
जिसका था आपको इंतजार............एक क्रीम जो आपकी त्वचा को कमनीय बनाये। ..... आपके पति आपको देखते रह जायें.....................
(जिसका आपको इंतजार था, यानी महंगी क्रीम आप चाहते हुए भी खरीद नहीं सकती हैं, परन्तु ये क्रीम आपकी पहंच में है।
ये ख्याल में रखकर कि अधिकांश निम्न मध्यम वर्ग की महिलाएँ घर में ही सिमटी होती हैं, पति का उल्लेख भी है।
यदि उपभोक्ता समूह निम्न आर्थिक वर्ग का हो तो विज्ञापन कुछ यूँ बात करेगा -
ये सस्ती और श्रेष्ठ है, इसीलिये तो राधा, माया, बसन्ती भी इसे इस्तेमाल करती है।
(लोग संस्ता माल चाहते हैं, घटिया माल कदापि नहीं। अतः श्रेष्ठ बताकर यह प्रकट किया गया कि यह ऐसी - वैसी नहीं है।
राधा-माया- बसन्ती इत्यादि नामों का उल्लेख यह सिद्ध करने के लिए किया गया है कि इस वर्ग के अन्य लोग भी इसे इस्तेमाल करते है, यानी कि यह एक अपनायी गयी एवं स्वीकृत वस्तु है।)
विजुअल्स/ चित्रांकन
भाषा एवं शैली ही नहीं, अपितु विजुअल्स या चित्राकंन भी विज्ञापन का महत्वपूर्ण अंग है। ये चित्र, ग्राफ्स इत्यादि भाषा के प्रभाव को और भी प्रबलता प्रदान करते है। ये सब भी उपभोक्ता समूह को मद्देनजर रखकर ही तैयार किये जाते है।
उदाहरण स्वरूप यदि काँलेज के विद्यार्थियों के लिए कोई वस्तु तैयार की गई है तो चुस्त- फुर्त युवक - युवतियों का समूह विज्ञापन में दर्शाया जायेगा या फिर एक खूबसूरत युवती को निहारते युवक दिखाये जायेंगे। .................. और स्लोगन धीमे से फुसफुसायेगा आपको कानों में -
जिसने भी देखा.......................देखता ही रह गया।............
एक युवक बाईक पर सवार उसे देखकर .................मुग्ध नवयौवनाएँ।
(विज्ञापन की कापी कहेगी............राजेश काँलेज का हीरा है।..............अब और कुछ कहा नहीं जा रहा है, परन्तु यह सुझाया जा रहा है कि बाईक महाविद्यालय में लोकप्रियता बढाती है।)
एक मशीनी चीता तेज रफ्तार से दौडते हुए आता है। उस पर बैठा व्यक्ति उसको नियंत्रित करता है। चीता एक बाईक में बदल गया।.................
(जो सुझाव है, वे इस तरह है।............ चीता रफ्तार का प्रतीक है, यानी ये बाईक तेज रफ्तार से दौड सकती है। मशीनी चीते की जटिलता उस उच्च तकनीक को प्रगट करती है, जिसके माध्यम से बाईक तैयार की गई। चीता शाक्ति का प्रतीक है।....... अतः यह मनुष्य की परिस्थितियों को नियंत्रित करने की इच्छा को उभारता है। सुझाव यह है कि एक शक्तिशाली बाईक को नियंत्रित करने वाला युवक अपने पौरूष को अभिव्यक्त करता है।)
अब आप समझ सकते हैं कि भाषा एवं चित्रों का यह गठबन्धन उपभोक्ताओं पर कितना गहरा असर डाल सकने में सक्षम है। ये श्रोताओं के मन में दबी - छुपी इच्छाओं को उभारते है। यही कारण है कि उपभोक्ता जब वस्तुएँ खरीदता है, तब वह सिर्फ पैकिंग में लिपटा माल ही नहीं खरीदता, अपितु अपनी प्रसुप्त इच्छाओं की पूर्ति भी करता है।
कोई महिला जब लक्स साबुन खरीदती है, तब वह सिर्फ स्नान के लिए साबुन नहीं क्रय करती है, अपितु फिल्म अभिनेत्रियों का सा- सौन्दर्य पाने की जो आकांक्षा है, उसकी कीमत भी अदा करती है। (क्राउनींग ग्लोरी की डिम्पल, सिन्थाल के साथ विनोद खन्ना भी इन्ही आकांक्षाओं को उभारने का साधन है)।
इस तरह एक छोटा सा विज्ञापन बहुत बडी ताकत अपने आप में छिपाये होता है। यह एक लक्ष्य को निर्धारित कर शुरू होता है। और चुपके से अपनी बात कह जाता है। विज्ञापन का मूल उद्देश्य किसी वस्तु विशेष को क्रय करने का सुझाव देना है। विज्ञापन कभी सिर पर चोट नहीं करता, वह तो हमारी पीठ में कोहनी मारता है। वह भाषा, शैली, ध्वनि, चित्र, प्रकाश के माध्यम से हमारे अवचेतन से बतियाता है। विज्ञापन सुझाव ऐसे देता है -
मैं सिन्थाल इस्तेमाल करता हूँ। (क्या आप करते है?)
हमको बिन्नीज माँगता (आपको क्या मांगता?)
फेना ही लेना।
जल्दी कीजिये.................सिर्फ तारीख तक।
कोई भी चलेगा मत कहिये .........................मांगिये।
विज्ञापन बार-बार वस्तु के नाम का उललेख करता है, जिससे कि उनका नाम आपको याद हो जाये। जब आप दुकान पर जाते है तो कुछ यूँ होता है।...........
आप कहते है साबुन दीजिये........
दुकानदार: कौन सा चाहिये, बहनजी?
बस यही वक्त है, जब आपके अवचेतन में पडे़ विज्ञापन अपना खेल खेलते हैं, वे कहते है।...............कोई भी चलेगा मत कहिये ............. क ख ग ही मांगिये।
या
मैं सिन्थाल इस्तेमाल करता हूँ - विनोद खन्ना
बरसों से फिल्म अभिनेत्रियँ लक्स इस्तेमाल करती है।
जो विज्ञापन आपकी प्रसुप्त इच्छाओं को पूरा करता है, वह बाजी मार जाता है।
सम्प्रेषण की कला
यह स्पष्ट है कि विज्ञापन प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कहता है। वह कभी हास्य के माध्यम से, कभी लय के माध्यम से, कभी -कभी भय उत्पन्न करके भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। विज्ञापन की कलात्मकता एवं सृजनात्मकता इस बात में निहित है कि यह परिस्थितियों को नये नजरिये से देखने की कोशिश करता है।
जिस तरह एक कवि बिम्बों के माध्यम से अपनी भावनाऒं को अभिव्यक्त करता है। उसी प्रकार एक विज्ञापन भी प्रतिकात्मक रूप से मानवीय इच्छाओं, भावनाओं एवं कामनाओं का स्पर्श करता है।
फूल सौन्दर्य और प्रेम के प्रतीक बन जाते हैं (जय साबून) तो दूसरी ओर हरे रंग का शैतान मनुष्य की ईष्र्या को व्यक्त करता है (ओनिडा)।
सोचिये
- किस वर्ग को विज्ञापन सम्बोधित कर रहा है?
- उसका भाषा एवं शैली क्या है?
- कौन से शब्द हैं, जो सुझाव दे रहे हैं?
- विज्ञान की चित्र एवं रंग व्यवस्था कैसी है?
- ये चित्र एवं रगं क्या अभिव्यक्त करना चाहते है?
- ध्वनि, लय एवं प्रकाश की कलात्मकता एवं उनमें निहित अर्थ को ग्रहण कीजियें।
इस तरह आप विज्ञापन का अन्दाज समझने लगेंगे। विज्ञापन फिर आपको बहका नहीं पायेंगे, अपितु अपने आसपास के परिदृश्य एवं मानव मन की आपकी समझ भी गहरी होगी। विज्ञापन सम्प्रेषण की एक संपूर्ण कला है।
सन्दर्भ
- ↑ In 2015, the world will spend about US$529 billion on advertising. Archived 2015-10-01 at the वेबैक मशीन Carat. 2015-09-22. Retrieved 2015-09-30.
- ↑ विज्ञापनों में हिन्दी (विश्वबन्धु)
इन्हें भी देखें
- [[विज्ञापन का yhj
Jm]]
- टीवी विज्ञापन
- अधिप्रचार (प्रोपेगैंडा)