विजय नाहर
विजय नाहर | |
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जन्म | 8 नवम्बर 1942 हरनावाँ,नागौर, राजस्थान,भारत |
भाषा | हिंदी |
निवास | पाली, राजस्थान, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | बांगड़ महाविद्यालय, पाली (एम. ए-इतिहास) |
विधा | संदर्भ पुस्तके, भारतीय इतिहास, जीवनी |
उल्लेखनीय कामs | स्वर्णिम भारत के स्वप्नद्रष्टा नरेंद्र मोदी, वसुंधरा राजे एवं विकसित राजस्थान, भारत के आधुनिक ब्रम्हर्षि-पं. दीनदयाल उपाध्याय,हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप,शीलादित्य सम्राट हर्षवर्द्धन एवं उनका युग, सम्राट मिहिर भोज, सम्राट भोज परमार, प्रारंभिक इस्लामिक आक्रमणों का भारतीय प्रतिरोध, युगपुरुष बप्पारावल |
जीवनसाथी | सायर नाहर |
बच्चे | 3 |
विजय नाहर (जन्म 8 नवम्बर 1942) भारतीय लेखक व इतिहासकार है जो अपनी भारतीय इतिहास एवं राजनेताओं पर लिखी संदर्भ पुस्तकों के लिए जाने जाते है।[1]
कार्यक्षेत्र
विजय नाहर 25 वर्षों तक हरियाणा व राजस्थान प्रान्त में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक रहे है।इनके लघुभ्राता धर्मचंद ने भी अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समर्पित किया।[2][3] वर्तमान में नाहर मरुधर विद्यापीठ समिति पाली के अध्यक्ष है। इन्होंने राजस्थान बनवासी कल्याण परिषद उदयपुर एवम राजस्थान प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र के संस्थापक मंत्री के पद पर कार्य किया है। [4] ये मीसाबंदी भी रहे है और 1975 में कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ आंदोलन भी किया है।[5] जयप्रकाश नारायण के 113 वे जन्मोत्सव पर इन्होंने आपातकाल के अनुभव बताते हुए पाली में कहा कि आर एस एस के कार्यकर्ताओं के साथ उदयपुर में आपातकाल के विरोध में शवयात्रा निकली गयी। कार्यकर्ता नारे लगा रहे थे । पुलिस जैसे ही चौंकी कार्यकर्ताओं ने पुतला जमीन पर गिरा दिया।पुलिस के सामने यह समस्या हो गयी कि क्या करे।यह अजनबी हालात बन गए कि पुतले को पुलिस स्टेशन कैसे लाया जाए।[6] नाहर ने 1955 से 1982 तक हरियाणा व राजस्थान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाते कार्य किया। 1977 में इनके नेतृत्व में राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के 40 में से 38 विधायक उदयपुर क्षेत्र के जीते। इस समय यह उदयपुर के आर एस एस विभाग प्रचारक थे।[7]
लेखन
नाहर की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लिखी पुस्तक 'स्वर्णिम भारत के स्वप्नद्रष्टा नरेंद्र मोदी पिंकसिटी पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित हुई जिसे राजस्थान की सरकारी विद्यालयों के पुस्तकालयों के लिए चयनित किया गया। [8] इस पुस्तक का विमोचन आर एस एस नेता इन्द्रेश कुमार व भूतपूर्व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी एवं महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर पी. एल. चतुर्वेदी ने राजस्थान चेम्बर भवन ऑफ कॉमर्स में किया।[9][10]2014 में पुस्तक के मार्केट में आते ही मीडिया में इस पर चर्चा शुरू हो गयी।[11] 2016 में नाहर की तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई।पहली मालवा सम्राट भोज पर "सम्राट भोज परमार"थी जिसे पिंकसिटी पब्लिशर्स ने प्रकाशित किया। राजस्थान उच्च शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ ने इसका विमोचन किया।[12]
अगली पुस्तक राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर "वसुंधरा राजे एवं विकसित राजस्थान" नाम से प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई। पुस्तक मार्किट लांच से पहले राजस्थान के राज्यपाल महामहिम कल्याण सिंह जी को भेंट की गई। यह अभीतक वसुंधरा राजे के जीवन पर लिखी पहली पुस्तक है।[13][14] राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने भारतीय इतिहास पर नाहर की शोध की प्रशंसा की।[1][15]
नाहर की तीसरी पुस्तक 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लगे आपातकाल के संघर्ष व अनुभव पर "आपातकाल के काले दिवस" नाम से प्रकाशित हुई। जिसे राजस्थान पंचायती राज्यमंत्री सुरेंद्र गोयल, विधानसभा उपमुख्य सचेतक मदन राठौड़, पाली ए डी एम, विधायक ज्ञानचंद पारख ने गणतंत्र दिवस समारोह 2016 पाली में विमोचित किया।[16]
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजय नाहर की पंडित दीनदयाल के जीवन पर लिखी पुस्तक "भारत के आधुनिक ब्रम्हर्षि पं. दीनदयाल उपाध्याय का विमोचन किया। पिंकसिटी पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने अपने आवास पर किया। विजय नाहर ने पुस्तक की प्रेस वार्ता में संवाददाताओं से कहा कि पंडित दीनदयाल से उनकी पहली मुलाकात 1962 में सिरोही में हुई। इसके बाद कई बार आर एस एस की बैठकों में मिलना हुआ जिससे पंडित जी को नजदीक से जानने का मौका मिला। पुस्तक को लिखने में एक माह का समय लगा।[17][18] पुस्तक में दीनदयालजी के भारत राष्ट्र के लिए योगदानों का जिक्र किया है। शिक्षा पत्रिका शैक्षिक मंथन में नाहर द्वारा प्रेरक प्रर्संगो का वर्णन अलग खंड में व् एकात्म मानववाद के सिद्धांत को अलग से विश्लेषित करने की अलहदा शैली को सराहा।[19] नाहर की जैन तेरापंथ समाज के पहले व नोवें आचार्य भिक्षु व तुलसी पर "मृत्युंजय महायोगी आचार्य भिक्षु" व "युगद्रष्टा युगपुरुष आचार्य तुलसी प्रकाशित हुई। दोनों पुस्तकों का विमोचन आचार्य महाश्रमण ने किया। [20]
भारतीय इतिहास में योगदान
विजय नाहर ने भारतीय इतिहास के 467 ई. से 1200 ई. के कालखंड जिसे अंधकार युग कहा जाता है, पर 6 पुस्तकें लिखी है।[21] इस कड़ी में आविष्कार प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पहली पुस्तक शीलादित्य सम्राट हर्षवर्द्धन एवं उनका युग मे 467 ई. से 810 ई तक के उत्तर भारत के राजवंशों व सम्राटों के बारे में तथ्य सहित विस्तृता से लिखा है। सम्राट हर्ष की राजनीतिक कूटनीतिज्ञता, साहित्य प्रेम, दानशीलता,कुशल प्रशासन्ता, धार्मिक सहिष्णुता व संगठन शक्ति को बहुत विस्तार से लिखा है।[22] अगली पुस्तक सम्राट यशोवर्मन में मौखरि साम्राज्य के इतिहास के साथ साथ सम्राट यशोवर्मन व सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड के इतिहास के बारे में लिखा। यह पुस्तक व इसके आगे की कड़ी की सारी पुस्तकें पिंकसिटी पब्लिशर्स जयपुर द्वारा प्रकाशित की गई । विजय नाहर ने यह खोज की कि यशोवर्मन चन्द्रवंशी क्षत्रिय था एवं मौखरि राजवंश का उत्तराधिकारी था। मौखरि सम्राट सुब्रत वर्मा का उत्तराधिकारी भोग वर्मा व उसका उत्तराधिकारी मनोरथ वर्मा व उसका उत्तराधिकारी सम्राट यशोवर्मन था। उज्जैन पर हुए अरब मुस्लिम आक्रांता सेनापति जुनेद को यशोवर्मन ने भारतीय सीमा से बाहर खदेड़ दिया। वृद्धावस्था में अपने मित्र सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड से संधि कर उत्तर भारत व दक्षिण भारत को संगठित किया।[23] विजय नाहर की इस पुस्तक को 2018 में राजस्थान सरकार द्वारा सरकारी स्कूल की लाइब्रेरी के लिए चयनित किया गया।[24] इसी कड़ी की अगली पुस्तक सम्राट मिहिर भोज एवं उनका युग प्रकाशित हुई जिसमें गुर्जर प्रतिहार वंश का इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। विजय नाहर ने लिखा कि सम्राट मिहिर भोज ने भारतीय संस्कृति के शत्रु म्लेच्छों को पराजित ही नही किया अपितु भारतीय सीमा से बाहर खदेड़ कर इस तरह भयाक्रांत कर दिया कि वह आने वाली एक शताब्दी तक भारत मे कदम नही रख सके। नाहर ने बताया कि मिहिर भोज के युग मे भारत सोने की चिड़िया कहलाया। मिहिर भोज के राज में आर्थिक संपन्नता थी, चोर डाकुओं का भय नही था। सर्वाधिक अरब मुस्लिम लेखक भारत आये व यहाँ की संस्कृति से प्रभावित होकर इसका प्रचार सम्पूर्ण विश्व में किया।[25] इसी कड़ी की अगली पुस्तकों में सम्राट भोज परमार में 950 ई. से 1100 ई. तक के भारतीय इतिहास की विवेचना की। सम्राट भोज परमार के युग में हुए राजनीतिक की नहीं बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक आर्थिक, शैक्षणिक, साहित्यिक एवं वास्तुशिल्प की प्रगति एवं परिवर्तन का बड़े विस्तार से वर्णन किया है। नाहर ने लिखा कि भोज ने धर्माधारित शासन व्यवस्था स्थापित की। विकेन्द्रित शासन व्यवस्था थी। कर बहुत कम थे, दंड व्यवस्था कठोर थी। समाज में महिलाओं का उच्च एवं आदरणीय सम्मानीय स्थान था। सम्राट भोज केवल पराक्रमी शाशक ही नही अपितु 30 ग्रंथों का रचनाकार व साहित्यकारों का संरक्षक भी था।[26] नाहर ने 636 ईसवी से 1204 ईसवी तक भारतीय राजाओ के पराक्रम को अपनी अगली पुस्तक "प्रारंभिक इस्लामिक आक्रमण एवं भारतीय प्रतिरोध" में उजागर किया। संदर्भ सहित पहली बार यह लिखा कि गुजरात के सोमनाथ मंदिर को गजनवी द्वारा खंडित करना सरासर निराधार है। मोहम्मद गजनवी था थानेसर(हरियाणा) से आगे नही बढ़ सका न ही सिंध विजय कर पाया। गजनवी भारतीय राजाओं से पराजित हुआ।सम्राट भोज परमार ने गजनी तक उसका पीछा किया। गजनी में गजनवी भोज के समक्ष गिड़गिड़ाया व भारत की और कभी आंख नही उठाने का संकल्प लिया।[27]
ग्रंथ सूची
- हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप(2011)
- मृत्युंजय महायोगी आचार्य भिक्षु(2012)
- शीलादित्य सम्राट हर्षवर्धन एवं उनका युग(2013)
- शिवाम्बु संजीवनी(2013)
- युगदृष्टा युगपुरुष आचार्य तुलसी(2013)
- ओसवाल नाहर वंश(2014)
- सम्राट यशोवर्मन(2014)
- स्वर्णिम भारत के स्वप्नद्रष्टा-नरेंद्र मोदी(2014)
- सम्राट मिहिर भोज एवम उनका युग(2015)
- वसुंधरा राजे और विकसित राजस्थान(2016)
- भक्तिमयी महासती रानाबाई हरनावाँ(2016)
- आपातकाल के काले दिवस(2016)
- सम्राट भोज परमार(2017)
- प्रारम्भिक इस्लामिक आक्रमण एवं भारतीय प्रतिरोध(2017)
- भारत के आधुनिक ब्रम्हर्षि-पं. दीनदयाल उपाध्याय(2017)
- युगपुरुष बप्पारावल(2018)
- महाराणा प्रताप की जन्मस्थली पुण्यधरा- पाली (2022)
- वीर शिरोमणि सम्राट पृथ्वीराज चौहान (2 खंडों में)(2022)
- हल्दीघाटी युद्ध के विजेता-महाराणा प्रताप (2023)[28][29]
- आज़ादी के दीवाने-पाली क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानी (2023)
- राठौड़ वंश के संस्थापक राव सिंहजी (2023)
- क्रन्तिकारी डॉ. हेडगेवार (2024)
- सनातन धर्म-हमारी सांस्कृतिक धरोहर (2024)
- पाली नरेश अखैराज सोनगरा (2024)[30][31]
सम्मान
सुंदर सिंह भंडारी ट्रस्ट की तरफ से 2018 में यू आई टी ऑडिटोरियम, कोटा में नाहर को उनके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में योगदान के लिए तत्कालीन राजस्थान गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया एवम केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थांवरचन्द्र गहलोत द्वारा सम्मानित किया गया।[32] 23 जून 2019 को एक बार फिर उदयपुर नगर निगम सभागार में सुंदरसिंह भंडारी चेरिटेबल ट्रस्ट, उदयपुर की तरफ से राष्ट्रसेवा, भारतीय के असली इतिहास की पुस्तकों व वनवासी आदिवासी क्षेत्र के लोगो को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के कार्य हेतु राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष व भूतपूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने विजय नाहर को सुंदरसिंह भंडारी सम्मान से नवाजा। [33][34][35][36][37]
सन्दर्भ
- ↑ अ आ "विकसित राजस्थान पुस्तक का विमोचन". www.bhaskar.com.com. Dainik Bhaskar. मूल से 27 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 August 2016.
- ↑ "27 मई / पुण्यतिथि – कर्मवीर धर्मचंद नाहर". www.vskbharat.com. vskbharat.com. मूल से 7 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 May 2017.
- ↑ "भारतीय शिक्षा को लेकर की चर्चा". Dainik Bhaskar. मूल से 18 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 February 2016.
- ↑ "Vijay Nahar". Prabhat Prakashan. मूल से 28 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 November 2018.
- ↑ "मीसा बंदियों को याद आया आपातकाल का दौर". Patrika Prakashan. मूल से 26 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 October 2015.
- ↑ "मीसा बंदियों को लोकतंत्र प्रहरी के रूप में नवाजा". Dainik Bhaskar. मूल से 26 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 October 2015.
- ↑ "संघ को समझिये – गुलाबजी". ladnunnews. अभिगमन तिथि 17 February 2011.
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- ↑ Vijay Nahar (2023). Pali Naresh Akheraj Songara. Bhartiya Itihas Sankalan Yojana Pali. पृ॰ 1.
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- ↑ "काम छाेटा-बड़ा नहीं हाेता, जी-जान से लगने वाला ही सफल: कटारिया". www.bhaskar.com. Bhaskar News Network. मूल से 25 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 June 2019.